Role of Parents: बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भूमिका
Role of Parents: माता पिता की मानसिकता तथा व्यवहार एवं आसपास के बच्चों का दृष्टिकोण आपके बच्चे का व्यवहार तय करते हैं।
Role of Parents: प्रत्येक माता पिता यह चाहते हैं कि उनका बच्चा बहुत अधिक बुद्धिमान हो और उनका नाम रोशन करे। इसे हासिल करने के लिए मां बाप अपने बच्चों पर उनकी क्षमता से अधिक मेहनत करने के लिए दवाब डालते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप बच्चे में हताशा, दबाव और हीन भावना पैदा हो जाती है। हर बच्चे की एक बौद्धिक क्षमता (intellectual ability) होती है। कुछ बच्चों को कोई एक सबक याद करने में दूसरे बच्चों के मुकाबले कुछ अधिक समय लग सकता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं की यह बच्चा मानसिक रूप से कमजोर है।
माता पिता (Parents behavior ) की मानसिकता तथा व्यवहार एवं आसपास के बच्चों का दृष्टिकोण आपके बच्चे का व्यवहार तय करते हैं।घर का वातावरण भी बच्चे को मंदबुद्धि या कुशाग्रबुद्धि होने में अहम भूमिका निभाता है।आज के इस प्रतियोगिता पूर्ण युग में माता पिता की अपेक्षाएं बहुत ऊंची होती हैं। कई बार बच्चे द्वारा अपनी तरफ से अधिकतम अभ्यास करने के बाद भी कभी वह अव्वल नहीं आ पाते। यदि बच्चा क्लास में बहुत अच्छे स्थान पर आ भी जाता है तो भी मां बाप को संतुष्टि नहीं होती और अव्वल आने की अपेक्षा करते हैं। माता, पिता और अन्य बड़ों के बीच संबंधों के तनाव का ही बच्चे की शिक्षा पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। तलाक या किसी एक की मृत्यु के बाद मां बाप में से किसी एक द्वारा पालन पोषण किए जाने वाले बच्चे अपने अध्ययन के साथ मुश्किल से तालमेल बैठा पाते हैं।
नौकरी में बार बार तबादले के कारण बच्चे को बार बार स्कूल बदलना पड़ता है । इससे उनकी दैनिक दिनचर्या बिगड़ जाती है। कुछ बच्चे नए स्कूल के साथ नए दोस्तों और सहपाठियों से मिलते हैं। इस नए वातावरण के साथ अपना तालमेल बैठाने में कुछ समय लगाते हैं।
बच्चे को अपनी शिक्षा अकेले ही करनी पड़ती हैं पूरी
अपनी अत्यधिक व्यस्तता के कारण मां बाप अपने बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते। बच्चे को अपनी शिक्षा अकेले ही पूरी करनी पड़ती है। समाज के कमजोर वर्ग के लोग अपने बच्चों की जरूरत की चीजों को पूरा करने में असमर्थ दिखाते हैं। ऊंचे वर्ग के मां बाप को व्यापार धंधा और दावतें व्यस्त रखती हैं, जिससे बच्चों को अपनी पढ़ाई लिखाई की समस्याओं को स्वयं सुलझाना होता है। ट्यूशन देने वाले केवल कुछ अध्यापक ही ऐसे होते हैं, जो बच्चों की शिक्षा दीक्षा में दिलचस्पी लेते हैं या ले सकते हैं।
कुछ बच्चों में खासकर लड़कियों को घर के काम काज में व्यस्त रखने से उन्हें गृहकार्य करने का समय मिल पाता है। जन्म तिथि में हेर फेर कर मां बाप अपने बच्चों को सामान्य से ऊंची कक्षा में भर्ती करवा देते हैं। वे यह अपेक्षा करते हैं कि उनका बच्चा अन्य बच्चों की तुलना में जल्दी ही स्कूल की शिक्षा पूरी कर ले। यदि किसी बच्चे को समय से पहले स्कूल में भर्ती करा दिया जाएगा तो उसे विषय को ठीक से समझने में कठिनाई आएगी। ऐसा बच्चा अपेक्षाकृत धीमी गति से सीखेगा। ऐसे बच्चों पर लगातार बेहतर प्रदर्शन करने के दवाब डालने से उसका नुकसान भी हो सकता है।
ऐसे भी पड़ता है बच्चों के प्रदर्शन पर बुरा असर
कुछ बच्चों पर ताने कसने और बातचीत में ज्यादा पक्षपात करने से भी बच्चों के प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ता है।अध्यापक उन विद्यार्थियों को जिन्हें वे प्राइवेट ट्यूशन पढ़ते हैं का पक्ष लेते देखे जाते हैं। इससे दूसरे बच्चों का नुकसान होता है।
• मां बाप को इन सभी संभावनाओं को समझ कर उसका समाधान ढूंढना चाहिए। मां बाप के लिए बच्चे को पहले सहज करना और फिर उससे बात करना बहुत जरूरी है।उसको स्कूल में जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उससे अक्सर बातचीत करनी चाहिए। यह भी पता करना चाहिए की वे अपने अध्यापकों के बारे में क्या सोचते हैं।
•माता पिता को चाहिए कि बच्चे के अध्यापकों से भी मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखे। अक्सर उन्हें अध्यापकों से मिलते रहना चाहिए। यह पता करना चाहिए कि उनके बच्चे को क्या परेशान करता है। बच्चे को अध्यापकों से बच्चे के व्यवहार पर भी बातचीत करनी चाहिए।
कभी कभी बीमारियां जो छोटी दिखाई पड़ती हैं और मां बाप जिनको नज़रंदाज़ कर देते हैं, बाद में गंभीर हो जाती हैं। इससे भी बच्चे को पढ़ाई लिखाई में प्रदर्शन कमजोर होता है। लिहाज़ा अपने बच्चे को मेधावी या प्रतिभाशाली बनाने में जुटे या इन विशेषणों के लिए बच्चों को तैयार करने वाले माता पिता को इन हालातों का ख़्याल रखना चाहिए । अपने जो नहीं बन सके उसे अपने बच्चे को बनाने में जुटे माता पिता को चाहिए कि बच्चे की रुचि व प्रतिभा के हिसाब से उसे तैयार करें।