Shri Krishna Janmabhoomi : अब होगी कृष्ण जन्मभूमि की बात

Shri Krishna Janmabhoomi: अयोध्या और काशी की तरह मथुरा में भगवान कृष्ण की जन्मभूमि को लेकर भी विवाद है। यह मंदिर तीन बार तोड़ा और चार बार बनाया जा चुका है। अभी भी इस जगह पर मालिकाना हक के लिए दो पक्षों में कोर्ट में विवाद चल रहा है।

Newstrack :  Network
Update:2023-03-12 23:10 IST

Shri Krishna Janmabhoomi (Pic: Social Media) 

Shri Krishna Janmabhoomi: भगवान शंकर आदि देव हैं। त्रेता युग के राम। द्वापर युग के कृष्ण। राम व कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। सनातन परंपरा में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का ज़िक्र आता है। सवाल यह उठने लगा है कि भगवा पार्टी ने अयोध्या व काशी के अपने एजेंडे को अमली जामा पहनाने के बाद क्या अपनी नज़र मथुरा पर टिका दी हैं? क्योंकि मथुरा में अमित शाह एक बड़ी रैली के आयोजन में जुटे हैं। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद का यह कहना है कि, ‘अयोध्या , काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है, मथुरा की तैयारी है।‘ कभी इन तीनों स्थान को भाजपा का शक्ति केंद्र कहा जाता है।

अयोध्या और काशी की तरह मथुरा में भगवान कृष्ण की जन्मभूमि को लेकर भी विवाद है। यह मंदिर तीन बार तोड़ा और चार बार बनाया जा चुका है। अभी भी इस जगह पर मालिकाना हक के लिए दो पक्षों में कोर्ट में विवाद चल रहा है। जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह बना हुआ है।

इतिहासकारों का मत है कि जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, वहां पहले वह कारागार हुआ करता था। यहां पहला मंदिर 80-57 ईसा पूर्व बनाया गया था। इस संबंध में महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी ‘वसु’ नामक व्यक्ति ने यह मंदिर बनाया था। इसके बहुत समय बाद दूसरा मंदिर विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया था। लेकिन 1017-18 में महमूद गजनवी ने इस मंदिर को तोड़ दिया। 32 साल बाद महाराजा विजयपाल देव के शासन में फिर मंदिर बनवाया गया। मंदिर को 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने तोड़ डाला था।

इसके लगभग 125 वर्षों बाद जहांगीर के शासनकाल के दौरान ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया। लेकिन इसे औरंगजेब ने 1660 में नष्ट कर इसकी भवन सामग्री से जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक बड़ी ईदगाह बनवा दी, जो कि आज भी मौजूद है। इस ईदगाह के पीछे ही महामना पंडित मदनमोहन मालवीय की प्रेरणा से एक मंदिर स्थापित किया गया लेकिन अब यह विवादित क्षेत्र बन चुका है, क्योंकि जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह है और आधे पर मंदिर।

यहां प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि इस मंदिर के चारों ओर एक ऊंची दीवार का परकोटा मौजूद था। मंदिर के दक्षिण पश्चिम कोने में एक कुआं भी बनवाया गया था। इस कुएं से पानी 60 फीट की ऊंचाई तक ले जाकर मंदिर के प्रांगण में बने फब्वारे को चलाया जाता था। इस स्थान पर उस कुएं और बुर्ज के अवशेष अभी तक मौजूद है। इतिहासकार डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने कटरा केशवदेव को ही कृष्ण जन्मभूमि माना है। विभिन्न अध्य्यनों और साक्ष्यों के आधार पर मथुरा के राजनीतिक संग्रहालय के कृष्णदत्त वाजपेयी ने भी स्वीकारा है कि कटरा केशवदेव ही कृष्ण की असली जन्मभूमि है। मथुरा, भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और भारत की परम प्राचीन नगरी है। शूरसेन देश की यहाँ राजधानी थी। पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे - शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि। भारतवर्ष का वह भाग जो हिमालय और विंध्याचल के बीच में पड़ता है, प्राचीनकाल में आर्यावर्त कहलाता था। यहाँ पर पनपी हुई भारतीय संस्कृति को जिन धाराओं ने सींचा वे गंगा और यमुना की धाराएं थीं। इन्हीं दोनों नदियों के किनारे भारतीय संस्कृति के कई केन्द्र बने और विकसित हुए।

मिल चुके हैं पुरातात्विक अवशेष

  • ब्रिटिश लेखक ए. डब्लू एंटविसल ने अपनी पुस्तक ‘ब्रज - सेंटर ऑफ़ कृष्णा पिलग्रिमेज’ में लिखा है कि कृष्ण भगवान् की जन्मभूमि को समर्पित एक मंदिर उनके प्रपौत्र वज्रनाभ ने बनवाया था। इसे कतरा केशवदेव भी कहा जाता था। इसी किताब में लिखा है कि इस स्थल पर हुए पुरातात्विक उत्खनन में ईसापूर्व छठ्वीं सदी के बरतन और टेराकोटा से बनी चीजें मिली थीं। इस उत्खनन में कुछ जैन प्रतिमाएं और गुप्त काल का एक यक्ष विहार भी मिला था।
  • ब्रिटिश सेना के मेजर जनरल सर एलेग्जेंडर कनिंघम ने इतिहास पर कई किताबें लिखी हैं।उनके दस्तावेजों को बतौर साक्ष्य अयोध्या के केस में भी इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने मथुरा के बारे में लिखा है कि ये मुमकिन है कि पहली शताब्दी में यहाँ वैष्णव मंदिर का निर्माण किया गया हो।
  • महमूद गजनवी के एक समकालीन लेखक अल उत्बी ने ‘तारीख-ए-यामिनी’ में महावन में हज्नावी की लूटपाट और मथुरा का जिक्र किया है। उसने लिखा है - शर के बीच में एक विशाल और भव्य मंदिर था, जिसके बारे में लोग मानते थे कि उसे इंसानों ने नहीं, बल्कि फरिश्तों ने बनाया था। मंदिर की सुन्दरता का वर्णन अल्फाज या चित्र नहीं कर सकते हैं।
  • महमूद गजनवी ने खुद लिखा है कि - अगर कोई इसके जैसा मंदिर बनाना कहेगा तो वो 10 करोड़ दीनार खर्च करके भी ऐसा मंदिर नहीं बना पायेगा। और सबसे हुनरमंद कारीगरों को भी इसे बनाने में 200 साल लग जायेंगे।
  • एफ.एस ग्रोव्स ने अपनी किताब मथुरा ‘वृन्दावन - द मिस्टिकल लैंड ऑफ़ लार्ड कृष्णा’ और फज़ी अहमद ने ‘हीरोज़ ऑफ़ इस्लाम’ में लिखा है कि महमूद गजनवी ने सभी मंदिरों को जलाने और ध्वस्त करने का आदेश दिया था और सैकड़ों ऊंटों पर सोने - चांदी की मूर्तियाँ लाद कर ले गया था।
  • हांस बेकार ने अपनी किताब ‘द हिस्ट्री ऑफ़ सेक्रेड प्लेसेस इन इंडिया’ में लिखा है कि विक्रम संवत 1207 में यहाँ आसमान छूता विशाल मंदिर बनवाया गया था।
  • स्टीफन नैप ने ‘कृष्णा डेयटीज़ एंड देयर मिराक्ल्स’ में लिखा है कि 16 सदी की शुरुआत में वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु और वल्लभाचार्य मथुरा आये थे।
  • मुग़ल शहंशाह जहाँगीर के समय के लेखक अब्दुल्लाह ने अपनी किताब ‘तारीख-ए-दौदी’ में लिखा है कि दिल्ली के सुलतान सिकंदर लोधी ने सोलहवीं शताब्दी में मथुरा और उसके मंदिरों को तहस-नहस कर दिया था।

बनारस के राजा ने खरीदा

ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1815 में एक नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीद लिया। वर्ष 1940 में यहां पंडित मदन मोहन मालवीय आए और तीन वर्ष बाद 1943 में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा आए। वे श्रीकृष्ण जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर बड़े दुखी हुए। इसी दौरान मालवीय जी ने बिड़ला को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पुनर्रुद्धार को लेकर एक पत्र लिखा। मालवीय की इच्छा का सम्मान करते हुए बिड़ला ने सात फरवरी 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया। इससे पहले कि वे कुछ कर पाते मालवीय का देहांत हो गया। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की।

ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहां रहने वाले कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल कर दी। इसका फैसला 1953 में आया। इसके बाद ही यहां कुछ निर्माण कार्य शुरू हो सका। यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ।

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