जयपुर: विश्व एड्स दिवस हर साल एक दिसंबर को मनाते हैं। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लगातार फैल रही इस बीमारी के लिए लोगों को जागरूक करना है। दुनिया भर में कई कैम्पेन और संस्थाएं चल रही हैं, जो लोगों लोगों लगातार एचआईवी एड्स के लिए जागरूक कर रही हैं। एचआईवी एड्स के संक्रमण से ग्रसित लोगों को लोग हीन भावना से देखते हैं और उसे चरित्रहीन कहते हैं। इतना ही नहीं लोगों की ये धारणा है कि यह छुआछूत की बीमारी है और यह साथ रहने से फैलती है। इसके डर से लोग संक्रमित व्यक्ति से दूरी बनाकर रखते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है ।
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ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस यानी एचआईवी के बारे में दुनिया भर के डॉक्टर्स पिछले कई दशक से जानकारी जुटाने में लगे हुए हैं। यह एक जानलेवा बीमारी है। इन सालों में लगभग 3 करोड़ से अधिक लोगों की मौत एड्स से चुकी है।पहले हुई रिसर्च के मुताबिक एचआईवी का वायरस पहली बार 19वीं सदी की शुरुआत में जानवरों में मिला था। साथ ही यह अनुमान भी लगाया गया कि वायरस इंसानों में चिंपैजी से आया है। 1959 में कांगो के एक बीमार आदमी के ब्लड में इस वायरस का सैंपल मिला था। कई साल बाद डॉक्टरों को उसमें एचआईवी वायरस मिला और तब से माना जाता है कि यह पहला एचआईवी संक्रमित व्यक्ति था।
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तेजी से फैल रहे एचआईवी वायरस की इस लड़ाई में डॉक्टरों को बड़ी कामयाबी मिली है। एक ऐसी दवा बनाई गई है, जिसे रोज खाने से एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति से शारीरिक संबंध बनाने के बाद भी एड्स नहीं होगा। केन्या और युगांडा के एक हजार से ज्यादा जोड़ों पर रिसर्च की गई। दो साल तक चली इस परियोजना में हिस्सा लेने वाले एचआईवी पॉजिटिव जोड़ों को यह दवा प्रि-एक्सपोजर प्रोफिलेक्सिस दी गई है।
इस दवा को ऐंटिवायरल थेरेपी कहते हैं। इस थेरेपी में एचआईवी नेगेटिव पार्टनर को इस दवाई की डोज दी गई। इसके बाद संबंध बनाने पर उन्हें एड्स नहीं हुआ। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में काम करने वाले और इस प्रोजेक्ट के मुख्य शोधकर्ता जैरेड बेटन ने बताया, 'जिस ग्रुप पर रिसर्च की गई उस समूह से एचआईवी का पूरी तरह सफाया हो गया। ऐसे 95 फीसदी मामले थे जिनमें हमें लगा था कि एचआईवी हो सकता है लेकिन ऐसा नहीं हुआ।'