संसद में जब इतने गधे बैठ सकते हैं तो घोड़ा क्यों नहीं ?

उत्तर प्रदेश में कानपुर राजनीति का केन्द्र रहा है। कहा जाता है कि यहां का मिजाज पूरे प्रदेश की राजनीति का मिजाज बताता है। वैसे तो इस नगर में राजनीति के तरह-तरह के किस्से मशहूर हैं

Update:2019-04-17 21:33 IST

श्रीधर अग्निहोत्री

उत्तर प्रदेश में कानपुर राजनीति का केन्द्र रहा है। कहा जाता है कि यहां का मिजाज पूरे प्रदेश की राजनीति का मिजाज बताता है। वैसे तो इस नगर में राजनीति के तरह-तरह के किस्से मशहूर हैं लेकिन जब भी कोई चुनाव आता हैं तो लोग भगवती प्रसाद दीक्षित ‘घोडेवाला’ का जिक्र करना नहीं भूलते। दीक्षित को लोग अपनेपन में ‘इंडियन राबिनहुड’ भी कहते थे।

यह भी पढ़ें.....चाणक्य और साध्वी की टक्कर,चलने लगे बयानों के तीर- सज गया भोपाल का मैदान

काले रंग के घोडे पर बैठकर अपना चुनाव प्रचार करने वाले राबिनहुड स्टाइल में जब वह सडक पर चलते थें तो उनके पीछे हुजूम चलता था। उस दौरान कांग्रेस की सरकारें हुआ करती थी और भगवती प्रसाद दीक्षित ऐतहासिक फूलबाग के मैरान में अपने घोडे पर सवार होकर इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक का भाषण सुनते हुए खुद ही आकर्षण का केन्द्र बने रहते थें।

एक बार किसी ने उनसे कहा कि यदि आप सांसद बन भी गए तो फिर आपके घोडे का क्या होगा ? इस पर राबिन हुड ने कहा ‘‘जब लोकसभा में इतने गधे बैठ सकते हैं तो मेरा घोडा क्यों नहीं बैठ सकता है।’’

 

यह भी पढ़ें.....डिप्टी CM केशव ने कहा- जो अपने बाप का नहीं हुआ, वह नकली बुआ का सगा कैसे होगा

लोकसभा से लेकर विधानसभा तक का चुनाव लडते थे

 

भगवती प्रसाद दीक्षित उर्फ घोडेवाला की खासियत थी कि वह लोकसभा से लेकर विधानसभा तक का चुनाव लडते थे। उन्होंने राष्ट्रपति पद का भी चुनाव लड़ा। वह अपने पूरे जीवन में एक दर्जन से ऊपर चुनाव लड़ें। यहां तक कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लडने के लिए रायबरेली तथा चिकमगलूर भी अपने घोडे के साथ पहुंचें।

इंदिरा गांधी उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानती थीं। दीक्षित अपने पूरे जीवन भ्रष्ट्राचार के खिलाफ लडते रहे। इसके बाद राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव अमेठी से भी चुनाव लड़ा।

यह भी पढ़ें.....UP में इनके सहारे राजनीतिक दल, जानिए NDA, UPA और महागठबंधन प्रत्याशियों के नाम

इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई कानपुर के सिविल लाइंस स्थित डीएवी कॉलेज से की थी

 

कई बार राष्ट्रपति और लोकसभा चुनाव लड़ चुके भगवती प्रसाद दीक्षित (27 अप्रैल 1927 - 1 अक्टूबर 2013) कानपुर के भौती गांव के रहने वाले थे। बाद में शहर के दर्शनपुरवा क्षेत्र में रहने लगे थे। प्राइमरी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई कानपुर के सिविल लाइंस स्थित डीएवी कॉलेज से की थी।

यह भी पढ़ें.....साध्वी प्रज्ञा को टिकट पर बोली कांग्रेस: भाजपा से और क्या उम्मीद कर सकते हैं

उनकी ईमानदारी का सिलसिला 1952 से शुरु हुआ और वह कानपुर डेवलपमेंट बोर्ड (अब केडीए) में अफसर बने। इनकी ईमानदारी से भ्रष्ट अधिकारियों की परेशानी बढ़ गई जब उन्होंने 1958 में भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जिसके कारण सभी अधिकारी इनके खिलाफ एकजुट होने लगे और इनको झूठे आरोपों में फंसा दिया गया।

 

 

यह भी पढ़ें.....BJP को रोकने के मूड में नहीं कांग्रेस, अपने दम पर चुनाव लड़ेगी आपः संजय सिंह

नौकरी से इस्तीफा दे दिया

 

पिता के कहने पर भगवती प्रसाद दीक्षित ने दूसरे ही दिन अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। दीक्षित 1967 से 1991 के बीच कई बार चुनावी मैदान में उतरे। 1980 में कानपुर के युवाओं से भरपूर समर्थन मिला जिसको देखकर अधिकारियों ने इनको हराने के लिए वोटों के साथ हेरफेर करके कांग्रेस के आरिफ मोहम्मद खान को विजयी बना दिया था।

 

 

यह भी पढ़ें.....2017 के विधानसभा चुनाव के आधार पर 2019 का प्रोजेक्शन

भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में अपने घोड़े को मंच बनाते थे

 

भगवती प्रसाद दीक्षित भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में अपने घोड़े को मंच बनाते थे और अपनी भाषण कला से सबको मोहित कर लेते थें। यही कारण है कि 1980 में जब लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ तो उन्होंने वोटों के मामले में सांसद मनोहर लाल को भी पीछे छोड दिया था।

Tags: