Lok Sabha Election 2019- कुछ बड़े चेहरे गायब हैं इस चुनाव में

हर 5 साल बाद होने वाले चुनावी पर्व में नेताओं का निकलकर सामने आना एक परम्परा रही है । यूपी में हो रहे लोकसभा चुनाव में कुछ ऐसे बडे चेहरे हैं जो एक दशक पहले तक राजनीति में सक्रिय हुआ करते थें लेकिन इस चुनाव में वह परिदृश्य से बाहर है।

Update:2019-04-18 21:58 IST

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: हर 5 साल बाद होने वाले चुनावी पर्व में नेताओं का निकलकर सामने आना एक परम्परा रही है । यूपी में हो रहे लोकसभा चुनाव में कुछ ऐसे बडे चेहरे हैं जो एक दशक पहले तक राजनीति में सक्रिय हुआ करते थें लेकिन इस चुनाव में वह परिदृश्य से बाहर है।

कुछ ऐसे नेता हैं जिनका दुनिया में न होना जहां उनकी याद दिलाता है तो कुछ नेताओं की राजनीतिक निष्क्रियता उनकी महत्ता को और बढ़ाने का काम कर रही है।

आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ नेताओं के बारे में ।

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लालकृष्ण आडवाणी

देश की आजादी के बाद हुए अब तक के लोकसभा चुनावों में यह पहला चुनाव है जिसमें लालकृष्ण आडवाणी की भूमिका बिल्कुल भी नहीं है। वर्ना पिछले चुनाव में भी यूपी में उनकी कई जगहों पर जनसभाएं हुई थीं। पार्टी के कद्दावर नेताओं में शुमार रहे लालकृष्ण आडवाणी की टिकट वितरण से लेकर चुनावी जनसभाओं की खूब मांग हुआ करती थी।

इस चुनाव में पूर्व उपप्रधानमंत्री एवं भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी ने जबरन ‘रिटायर’ कर दिया है।

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डाॅ. मुरली मनोहर जोशी

कभी अटल आडवाणी के बाद तीसरे नम्बर के भाजपा नेता डा. मुरली मनोहर जोशी का काफी बड़ा कद हुआ करता था। छह बार लोकसभा के सांसद बने डा. मुरली मनोहर जोशी की हर चुनाव में जनसभाओं को लेकर डिमांड हुआ करती थी। वह अटल सरकार में मानव संसाधन मंत्री तथा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे।

पिछली दफे कानपुर से सांसद चुने गए लेकिन भाजपा ने उम्र का हवाला देते हुए इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया जिसके कारण इस चुनाव में पहली बार सक्रिय नही हैं।

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कल्याण सिंह

एक समय यूपी में भाजपा की राजनीति का पर्याय रहे कल्याण सिंह अब राजस्थान के राज्यपाल की भूमिका में है। वर्ना हर चुनाव में वह बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थें। 1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद वह विधान सभा में विपक्ष के नेता भी बने। सितम्बर 1997 से नवम्बर 1999 तक पुनः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

दिसम्बर 1999 में कल्याण सिंह ने पार्टी छोड़ दी और जनवरी 2004 में पुनः भाजपा से जुड़े। 2009 में उन्होंने पुनः भाजपा को छोड़ दिया और एटा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय सांसद चुने गये। इसके बाद 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद उन्हें 2015 में राजस्थान का राज्यपाल बना दिया गया।

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केशरीनाथ त्रिपाठी

यूपी विधानसभा में तीन बार अध्यक्ष बनने वाले केशरी नाथ त्रिपाठी के टक्कर का कोई भी संवैधानिक जानकार नहीं है। 5 बार विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले केशरी नाथ को यूपी में ब्राम्हण चेहरे के रूप में पेश करती रही लेकिन पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनने के कारण अब वह चुनावी राजनीति से दूर हैं।

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लालजी टंडन

कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह की सरकार में नगर विकास मंत्री और लखनऊ के सांसद रहे लालजी टंडन अपने बेटे आशुतोष टंडन को राजनीतिक विरासत सौंपने के बाद सक्रिय राजनीति से अलग हैं। इस समय वह बिहार के गवर्नर पद पर कार्यरत हैं। पिछले विधानसभा चुनाव तक यूपी की राजनीति का एक केन्द्र टंडन जी का आवास भी हुआ करता था।

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ओमप्रकाश सिंह

चार दशक तक प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे ओमप्रकाश सिंह की पहचान भाजपा में पिछडे नेता के तौर पर की जाती रही है। वह 1977 में जनता पार्टी सरकार में मंत्री रहने के बाद भाजपा की प्रदेश सरकारों में लोकनिर्माण, सिंचाई और उच्च शिक्षा मंत्री पर रहने के साथ ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। पर 2012 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद से वह लगातार पार्टी में निष्क्रिय हैं।

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