सपा-बसपा के साथ ये कौन सा गेम खेल रही है: प्रियंका गांधी वाड्रा
इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति ऐसी है कि क्षेत्रीय क्षत्रपों ने भी कांग्रेस को बड़े भाई का दर्जा देने से इंकार कर दिया है जबकि कांग्रेस ने गत वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त देते हुए अपनी ताकत का अहसास कराया था। लेकिन उस समय कांग्रेस ने क्षेत्रीय क्षत्रपों को घास नहीं डाली थी।
रामकृष्ण बाजपेयी
लखनऊ : 2019 के लोकसभा चुनाव में अगर किसी की साख दांव पर है तो वह हैं प्रियंका गांधी वाडरा। प्रियंका गांधी की इस चुनाव के पहले तक पहुंच केवल उत्तर प्रदेश के अमेठी और रायबरेली तक रही है। कांग्रेस के एक तबके में यह मांग समय समय पर उठती रही है कि प्रियंका लाओ देश बचाओ। लेकिन राहुल के कद पर प्रभाव पड़ने के डर से अबतक कांग्रेस ने प्रियंका को बाहर नहीं निकला। पिछले लोकसभा चुनाव में भी प्रियंका को बाहर लाने की बात उठी लेकिन परवान नहीं चढ़ सकी। यहां तक कि दामाद ने अपने चुनाव लड़ने की बात भी कही लेकिन उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी गई।
अब जबकि चिर बूढ़ी कांग्रेस को इस बात का अहसास हो गया कि अब किसी भी तरह से कुछ नहीं किया जा सकता तो आखिरी दांव के अंदाज में प्रियंका को झोले से बाहर निकाल दिया।
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इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति ऐसी है कि क्षेत्रीय क्षत्रपों ने भी कांग्रेस को बड़े भाई का दर्जा देने से इंकार कर दिया है जबकि कांग्रेस ने गत वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त देते हुए अपनी ताकत का अहसास कराया था। लेकिन उस समय कांग्रेस ने क्षेत्रीय क्षत्रपों को घास नहीं डाली थी। शायद यही वजह है कि क्षेत्रीय क्षत्रप अब कांग्रेस के साथ खड़े होने को तैयार नहीं।
खासकर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी छूत की बीमारी की तरह कांग्रेस से बचने की कोशिश में लगे हैं। कांग्रेस एक ओर जहां अपना पुराना वोट बैंक हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए है वहीं इन दलों की चुनौती से भी जूझना पड़ रहा है।
मजे की बात यह है कि कांग्रेस, सपा और बसपा तीनों का मकसद भाजपा को रोकना है।
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अब चुनावी चौसर पर जहां तक प्रियंका गांधी की रणनीति की बात की जाए तो वह सपा और बसपा दोनो के साथ माइंड गेम खेलती दिख रही हैं।
हाल ही में प्रियंका गांधी ने कहा है कि कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपने प्रत्याशी एक खास रणनीति के तहत उतारे हैं। जहां हमारे प्रत्याशी मजबूत हैं वह भाजपा के खिलाफ जीतेंगे और जहां वह मजबूत नहीं हैं वह भाजपा के वोटों को काटेंगे। उनका कहना है कि कांग्रेस के प्रत्याशी कहीं पर भी समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी की संभावनाओं को आघात नहीं पहुंचाएंगे।
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प्रियंका का यह बयान क्या उनके पोकर गेम का हिस्सा है जिसमें शर्त लगाना और अकेले खेलना शामिल रहता है। इस गेम में खेले गए पत्ते, मिलाए गए मिताए और छिपाए गए पत्तों की अलग अलग संख्या होती है। कुछ पत्ते तो खेल खत्म होने तक छिपे रहते हैं।
लेकिन सपा नेता अखिलेश यादव तो इससे इत्तेफाक नहीं रखते वह इस बात से इनकार करते हैं कि समाजवादी पार्टी की कांग्रेस से कोई आपसी समझ है। बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती भी इस चिर बूढ़ी पार्टी से किसी गठबंधन को खारिज कर रही हैं।
हालांकि जहां तक उत्तर प्रदेश में जातीय गणित का अंकशास्त्र और इतिहास है। वह बताता है कि प्रियंका की कही बात का मायने क्या है। ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस अगड़ों, मुस्लिम और दलितों की पार्टी रही है। अब बीजेपी ब्राह्मणों, बनियों और पिछड़ों के एक वर्ग के वोटों को बटोर रही है। मुस्लिम और अन्य पिछड़ों में अधिकांश खासकर यादव की पहली पसंद सपा है।
मायावती की दुविधा के दो कारण हैं। पहला यह कि कांग्रेस साथ जाने से उनके पिछड़े दलित और सर्वजन समाज के नारे के साथ आए वोटों पर असर पड़ सकता है। दूसरी दुविधा यह है कि 2014 में 20 फीसद वोट हासिल करने के बाद भी वह एक भी सीट नहीं जीत सकी थीं। और बसपा लोकसभा से दूर हो गई थी।
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ऐसी स्थिति में उनके लिए सपा के साथ गठबंधन में उसके मुस्लिम ओबीसी वोटों से उनके वोटों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। जबकि कांग्रेस के साथ जाना पहले भी आत्मघाती था और अब साथ खड़े होने में भी यही खतरा है।
प्रियंका महाभारत में युधिष्ठिर के संवाद नरो व कुंजरोह...की तर्ज पर आधा सच बोल रही हैं कि कांग्रेस वहां गंभीरता से नहीं लड़ रही है जहां सपा-बसपा मजबूत हैं। कांग्रेस सपा को वाकओवर आसानी से दे सकती है लेकिन बसपा से तो उसे लड़ना ही होगा।
वैसे कांग्रेस का भाजपा को हराना एक लक्ष्य हो सकता है लेकिन उसका असली मकसद अपने वोट बैंक को सात प्रतिशत से ऊपर उठाना ही है।