लखनऊ- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बीते सोमवार को मिले मुस्लिम धर्म गुरुओं के लिए अब हिंदू सेंटिमेंट समझने की भी जरूरत है। हालांकि यह जरूरत समूचे मुस्लिम समुदाय के लिए भी है। हिंदू समुदाय के लिए भी जरूरी है कि वह मुस्लिम सेंटिमेंट समझे। तकरीबन चार सौ साल तक चले एक विवाद के सर्वोच्च फैसले के बाद यह और जरूरी हो जाता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर मुस्लिम धर्म गुरुओं ने अयोध्या में मस्जिद के लिए ऐसी जगह मांगी है जहां इस्लामिक यूनिवर्सिटी भी बन सके।
यह मांग करते हुए शायद वे यह भूल गए कि सर्वोच्च अदालत ने उनके हिस्से केवल पांच एकड़ जमीन देने को कहा है। यही नहीं विवाद महज 2.77 एकड़ का ही था। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने यह 2.77 एकड़ जमीन तीन भागों में बांट दी थी। दो हिस्से हिंदुओं के हक में आए थे। यानी मुस्लिम समाज को इस फैसले से केवल 0.923 एकड़ जमीन ही मिल सकती थी। सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद मुस्लिम धर्म गुरुओं को कोई नई मांग नहीं रखनी चाहिए। यह एक नए विवाद का आधार बन सकता है। यही नहीं विश्वविद्यालय के लिए सैकड़ों एकड़ जमीन चाहिए।
एक तो राज्य सरकार को पांच एकड़ की जगह सैकड़ों एकड़ जमीन क्यों देनी चाहिए। दूसरे एक विवाद जिसका किसी तरह पटाक्षेप हो पाया। उसको फिर से जन्म देने की जरूरत क्यों होनी चाहिए? क्यों अयोध्या में इस्लामिक विश्वविद्यालय बनाया जाना चाहिए? अब अयोध्या को मुस्लिम समुदाय अपने लिए नये केंद्र के रूप में क्यों देखता है? ऐसे कई सवाल इस तरह की मांगों की बाद आकार लेने लगेंगे।
मामले के पक्षकार रहे इकबाल अंसारी ने अदालती फैसले पर संतोष जताया था। कहा था कि हम अपील नहीं करेंगे। बावजूद इसके वह अधिग्रहित भूमि में से पांच एकड़ जमीन मांग रहे हैं। यह नये विवाद का सतह तैयार करता है। मुस्लिम समाज को अब अयोध्या को किसी नये केंद्र के रूप में बनाने और देखने से बचना चाहिए। अगर वहां पांच एकड़ जमीन कहीं मिलती भी है तो जो मस्जिद तामीर कराएं उसके साथ बाबर और मीर बाकी जैसे आक्रांताओं के नाम न चस्पा हों इस बात का पूरा एहतियात बरता जाना चाहिए। इस फैसले के आने से काफी पहले फैजाबाद जिले का नाम अयोध्या हो गया है। ऐसे में मुस्लिम समाज को पुरानी अयोध्या की जगह अगर अयोध्या नामकरण वाले नये जिले में कहीं भी जमीन मिले तो स्वागत किया जाना चाहिए। ऐसा करके ही वे देश में अमन का पैगाम दे सकते हैं।
यह मांग करते हुए शायद वे यह भूल गए कि सर्वोच्च अदालत ने उनके हिस्से केवल पांच एकड़ जमीन देने को कहा है। यही नहीं विवाद महज 2.77 एकड़ का ही था। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने यह 2.77 एकड़ जमीन तीन भागों में बांट दी थी। दो हिस्से हिंदुओं के हक में आए थे। यानी मुस्लिम समाज को इस फैसले से केवल 0.923 एकड़ जमीन ही मिल सकती थी। सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद मुस्लिम धर्म गुरुओं को कोई नई मांग नहीं रखनी चाहिए। यह एक नए विवाद का आधार बन सकता है। यही नहीं विश्वविद्यालय के लिए सैकड़ों एकड़ जमीन चाहिए।
एक तो राज्य सरकार को पांच एकड़ की जगह सैकड़ों एकड़ जमीन क्यों देनी चाहिए। दूसरे एक विवाद जिसका किसी तरह पटाक्षेप हो पाया। उसको फिर से जन्म देने की जरूरत क्यों होनी चाहिए? क्यों अयोध्या में इस्लामिक विश्वविद्यालय बनाया जाना चाहिए? अब अयोध्या को मुस्लिम समुदाय अपने लिए नये केंद्र के रूप में क्यों देखता है? ऐसे कई सवाल इस तरह की मांगों की बाद आकार लेने लगेंगे।
मामले के पक्षकार रहे इकबाल अंसारी ने अदालती फैसले पर संतोष जताया था। कहा था कि हम अपील नहीं करेंगे। बावजूद इसके वह अधिग्रहित भूमि में से पांच एकड़ जमीन मांग रहे हैं। यह नये विवाद का सतह तैयार करता है। मुस्लिम समाज को अब अयोध्या को किसी नये केंद्र के रूप में बनाने और देखने से बचना चाहिए। अगर वहां पांच एकड़ जमीन कहीं मिलती भी है तो जो मस्जिद तामीर कराएं उसके साथ बाबर और मीर बाकी जैसे आक्रांताओं के नाम न चस्पा हों इस बात का पूरा एहतियात बरता जाना चाहिए। इस फैसले के आने से काफी पहले फैजाबाद जिले का नाम अयोध्या हो गया है। ऐसे में मुस्लिम समाज को पुरानी अयोध्या की जगह अगर अयोध्या नामकरण वाले नये जिले में कहीं भी जमीन मिले तो स्वागत किया जाना चाहिए। ऐसा करके ही वे देश में अमन का पैगाम दे सकते हैं।