जनादेश बनाम न्यायालय आदेश

Update:1992-07-20 12:22 IST
अयोध्या विवाद में केंद्र व राज्य सरकारें दोनों फंस गयी है। दोनों के बीच चूहा-बिजली का खेल आरंभ हो गया है। दोनों की स्थिति यह हो गयी है कि कहे तो मां मारी जाए नहीं तो बाप कुत्ता खाए। राम मंदिर पर उत्सर्ग होकर षहीद बनने की तैयारी में कल्याण सरकार दिख रही है। कल्याण सिंह संविधान की षपथ के नाते न्यायालय की बात मानने को तैयार हैं, इससे उनका इंकार नहीं है। परंतु वो भी असमंजस में है न्यायालय की बात माने या जनादेष। न्यायालय की निष्प्रक्षता पर तो कई बार सवाल उठ चुका है। अभी हाल में भाजपा अध्यक्ष का यह कहना कि न्यायालय में 40 वर्षों से यह विवाद अनिर्णित क्यों पड़ा है। इसी परंपरा की एक कड़ी है। जनादेषों से न्यायालय बड़े नहीं होते- षाहबानो मुकदमे की तवारीख अभी भी प्रमाण के रूप में उपस्थित है। वैसे तो हमारी व्यवस्था में क्या बड़ा है, क्या छोटा है। यह तय अभी तक नहीं हो पाया। हम तो बस यही सिद्धांत मानकर चल और सब कुछ चला रहे हैं, जो जीता वही सिकतंर। मंदिर-मस्जिद प्रकरण अब वोट में बंट चुका है। वोट को नेता हाथ से नहीं जाने देता है। कांग्रेस ने अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर जामा मस्जिद का दुरुपयोग किया। कांग्रेसी संस्कृति के ही वीपी सिंह ने इसकी ही पुनरावृत्ति की; निराष भाजपाइयों के लिए तो सभी रास्ते बंद थे अब अगर विष्व हिंदू परिषद के माध्यम से उन्हें वो मठ मिल गया है तो क्या जाने दें। वैसे स्वयंसेवक संघ और विहिप किसी के सगे नहीं है। नागपुर के स्वयंसेवक संघ के अधिवेषन में राजीव गांधी का पत्र पढ़ा गया था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद के चुनाव में संघ ने राजीव गांधी को राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग किया था। वैसे मूलतः विहिप भी इंदिरा गांधी की दिमागी उपज है। पर आज करिष्माई नेता विहीन इंका के साथ वो नहीं है। रहें भी क्यों ? विहिप और संघ से की चाहे जो आलोचना हो पर वो सत्ता के चरित्र बदलने की मंषा तो रखते ही हैं वह चरित्र परिवर्तन कुछ लोगों के लिए सकारात्मक हो सकता है तो कुछ के लिए नकारात्मक भी होगा।
वैसे तो से पूरे प्रकरण में संविधान और न्यायालय के उल्लंघन तथा अवमानना की बात उठकर केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ाया जा रहा है कि वह अनुच्छेद 356 का प्रयोग प्रदेष सरकार के विरुद्ध करे; अनुच्छेद-356 में राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि किसी राज्य का षासन संविधान के अनुच्छेदों के अनुसार नहीं चलाया जा रहा है; संवैधानिक तंत्र या तो किसी राजनीतिक गतिरोध के कारण टूट गया हो या राज्य द्वारा संघ के निर्देषों का अनुपालन न करने के कारण (अनुच्छेद 356, 365) इस प्रकार की उद्घोषणा द्वारा राष्ट्रपति राज्य सरकार की षक्तियां अपने हाथ में ले सकता है; परंतु संविधान के उल्लंघन की बात गांवों मंे घुस नहीं जाएगी। क्योंकि गांवों में संविधान का कोई मतलब नहीं होता और एक ऐसे देष में साक्षरता का प्रतिषत 52.11 मात्र हो वहां राम मंदिर के खिलाफ संविधान निरुपाय हो जाएगा। अभी संविधान की रक्षा का परिणाम पूर्व सरकार भुगत रही है और जनादेष ने उसे जाके प्रिय न राम वैदेही तजये ताहि कोटि जदपि परमसनेही के तर्ज पर उसे तिरस्कृत कर रखा है।
संविधान की दुहाई और संविधान का उल्लंघन जारी रहेगा क्यांेकि जनादेष को यह बताने का प्रयास जारी है कि पूर्व सरकारी ने अल्पसंख्यकों के हितों के लिए संविधान का खुला उल्लंघन किया गया है। यथा अल्पसंख्यकों द्वारा संख्या के आधार पर विधान मंडलों व सेवाओं में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की मांग संविधान के अनुच्छेद 15 (1) और 16 (1) (2) का उल्लंघन है। मुसलमानों की ओर से यह भी मांग की गयी कि भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में एक समान सिविल संहिता स्ािापित करने का जो निर्देष अनुच्छेद 44 में है वह मुसलमानों पर लागू नहीं होना चाहिए। मुसलमानों पर उनकी व्यक्तिगत विधि के ऊपर षरीयत लागू होन चाहिए। यहां संविधान के अनुच्छेद 44 का उल्लंघन हुआ। जब भारत के विधि आयेग ने विवाह और विवाह अनुच्छेद हेतु एक समान संहिता के निर्माण का कार्य प्रारंभ किया  तब मुसलमान व इसाइयों ने इसका विरोध किया। परिणामतः जिस सरकार ने इन विषयों से संबंधित षास्त्रीय व पारंपरिक विधि को छोड़ने के लिए ंिहंदुओं को उत्प्रेरित किया था। उसी सरकार ने राजनीतिक कारणों से अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हथियार डाल दिए। जबकि तुर्की, बांग्लादेष जैसे राज्यों में बहु विवाह का उत्पादन हो गया है पाक में इसे घटाया जा रहा है और भारत में षरीयत के आधार पर अपनी व्यवस्था कायम करने का संघर्ष जारी है।
इन स्थितियों में संविधान के उल्लंघन पर प्रदेष सरकार की बर्खास्तगी गले नहीं उतरेगी और इंका सरकार भी जो प्रिय न राम वैदेही की तर्ज पर अस्वीकार की जाने लगेगी। भाजपा अंगुली कटाकर षहीद हो जाएगी। अविष्वास प्रस्ताव से उबरने के बाद सरकार को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसे मिला मत जनविष्वास है। जनवष्विास वरना वह एक और संसद में बरकरार रहने के सांसदों की मंषा का परिणाम है तथा दूसरी ओर अविष्वास प्रस्ताव विपक्ष के संसद में उपस्थिति का अहसास मात्र।
कल्याण सरकार ने बर्खास्तगी का मन बना लिया है। विधायकों को क्षेत्र में जाने के मौखिक निर्देष दिए जा चुके हैं। विधायकों को यह जिम्मेदारी सोंपी गयी है कि बसों में अपने क्षेत्र के मतदाताओं को लाकर रामलला के दर्षन कराएं, जिससे गांवों में, षहरों में यह फैलाया जा सके कि मंदिर निर्माण जारी है। केंद्र रोकेगा तो भी जारी रहेगा विष्व हिंदू परिषद मानने की मुद्रा में नहंी है। टकराव चाहिए केंद्र से और टकराव के लिए इससे अच्छा मुद्दा नहीं मिलेगा क्योंकि अब राम मंदिर के साथ-साथ राम वोट बैंक भी हो गया है। केंद्र सरकार सांप छदूंदर वाली स्थितियों में है। इसका हल जनादेष के पास ही है। जनता के पास है। सभी पक्षों को अपनी-अपनी प्रतिबद्धताएं भूलना होगा; मुसलमानों को बाबर को राम के समानांतर खड़ा करने से पीछे हटना होगा और हिंदुओं को मथुरा और काषी की मंषा को समाप्त करना होगा नहीं तो संघर्ष जारी रहेगा। बढ़ेगा। न्यायालय भी हल नहीं देंगे और चूहा-बिल्ली का खेल जारी रहेगा। क्योंकि संविधान और न्यायालय पहले ही अपने औचित्य पर ढेर से सवालिया निषान छोड़ चुके हैं।

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