देश के चोटी के शास्त्रीय और भक्ति संगीत गायक सिंह बन्धु अपने गायन की प्रेरणा अपने बड़े भाई को मानते हैं। उस्ताद आमिर खां साहब के शिष्य और इन्दौर घराने के प्रतिनिधि गायक के रूप में विश्व प्रसिद्ध सिंह बन्धु नाद को ब्रम्ह मानते हैं और संगीत को उपासना। वे बताते हैं कि हम जो सुबह अभ्यास करते हैं उसे रियाज कहते हैं। यह फारसी के ‘रियाजत’ से बना है। इसका सीधा मतलब है पूजा करना। पूरे संगीत गायन को वे साधना, उपासना मानते हैं। इनके गायन का ‘एटीच्यूड’ भक्ति का है। निरंकार की भक्ति है, जो ईश्वर, काल दोनों से ऊपर है। मशहूर सीरियल ‘तमस’ में संगीत रचना व स्वर देने वाले सिंह बंधु से यहां उस समय बातचीत का अवसर मिला, जब वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर एक विशेष कार्यक्रम में भाग लेने आए थे। प्रस्तुत हैं खास अंश-
सिंह बंधु ने बताया कि संगीत शिक्षा, बाल्यकाल से ही अपने बड़े भाई व दिल्ली में प्रधानाचार्य रहे जीएस सरदार की देखरेख में शुरू हुई। उन्होंने बातया कि हमारे सबसे बड़े भाई 11 वर्ष के थे तो उनकी आंख जाती रही। पिताजी ने उन्हें संगीत की शिक्षा दिलवायी और हमने संगीत की प्रेरणा अपने भाई से पायी। बचपन में ही नन्हें उस्ताद के रूप में लोकप्रिय सिंह बंधु के तीन भाई इंजीनियर हैं और पिता भी अभियंता थे। अपने भाई से 18-20 साल तक इन्होंने संगीत सीखा। सिंह बंधु की 32 साल की गायन की तालीम है। इनका मूल नाम तेजपाल सिंह और सुरिन्दर सिंह है। तेजपाल ने परास्नातक गणित और सुरिन्दर ने अंग्रेजी में आनर्स सहित स्नातक किया है। घरवाले इन्हें प्रशासनिक अधिकारी बनाना चाहते थे।
इस बात की चर्चा शुरू होते ही सिंह बंधु गंभीर हो गये। वे अतीत में लौटने लगे। बताया पढ़ाई पूरी करने के बाद घर वालों की इच्छा के विपरीत शास्त्रीय संगीत गाने का जो फैसला हम लोगों ने किया तो लगा जैसे कहर बरप गया है। पर घर वालों के तमाम डांट-डपट और समझाने के बाद भी जब हम अपने फैसले पर कायम दिखे तो रास्ता खुलने लगा और घर से भी सहयोग मिलने लगा।
इस सवाल के जवाब में कि कभी आपने एकल गाया है, सिंह बंधु बोल उठे-तकरीबन नहीं। आकाशवाणी या गुरूजन की स्तुति में बहुत पहले कभी एकल गाया हो तो नहीं कह सकते, परंतु प्रोफेशनल होकर कभी एकल नहीं गाया।
सबसे ज्यादा किसके भजन प्रिय हैं। इस सवाल के जवाब से सिंह बंधु कतराना चाहते हैं। कहते हैं हमने सबका गाया है और खूब गाया है। कई बार कुरेदने पर वे बोले नानकवाणी खूब गायी है और बेहद प्रिय भी है। इसके पक्ष में वे संस्कार की बात बताते हैं। कहते हैं-हम तो कबीर, रविदास सबके पद को नानकवाणी के रूप में ही देखते हैं। हमने सब कुछ नानकवाणी के रूप में ही स्वीकार किया है।
सिंह बंधु ने बहुत छुटपन में ही लाहौर रेडियो में अपना पहला प्रोग्राम दिया था। उन्हें प्रोग्राम का वर्ष तो नहीं याद है पर इतना याद जरूर है कि उस समय लाहौर भारत का हिस्सा था। कुछ जोर डालने पर उन्होंने कहा कि शायद बात 45-46 की है। उस समय की बात याद करते हुए बोलने लगे तब हम लोग बहुत छोटे थे। साज तक पहुंचने के लिए घुटने के बल बैठना पड़ता था। तबला बजाते थे।
सबसे अच्छा कार्यक्रम कौन सा हुआ। यह सवाल सिंह बंधु को बहुत कष्ट पहुंचाता है। उत्तर देने से पहले कह उठते हैं-कष्टप्रद प्रश्न है। वैसे इस सवाल के दो हिस्से हैं-पहला हमने सबसे ज्यादा ईमानदारी से कौन सा कार्यक्रम से परफार्म किया। इसके बारे में मैं साफ कर दूं कि हम लोग हर कार्यक्रम को बेहतर परफार्म करते हैं। चाहें आॅडिएंस कम हों या ज्यादा हमारा मानना है जो सुनने आए हैं, उन्हें न आने वालों को सजा क्यों दी जाय। इस सवाल का दूसरा हिस्सा है कार्यक्रम स्रोताओं की दृष्टि से सबसे अच्छा कौन सा रहा। फिर वे दोहराते हैं हम संगीत को पूजा मानते हैं और पूजा में कौन शरीक हुआ कौन नहीं। यह नहीं देखा जाता। वैसे सिंह बंधु को 1968 में पूना में सम्पन्न हुआ सवाई गंधर्व फेस्टिवल बेहद याद है। अपने इस कार्यक्रम को वे रोमांचकारी भी मानते हैं। कह उठते हैं कि उस समय हम लोग बहुत छोटे थे। हमारे लिए सबसे खुशी की बात यह थी कि उसी दिन गंगूबाई, भीमसेन सभी को अपना कार्यक्रम देना था। इस कार्यक्रम के बाद ही सिंह बंधु महाराष्ट्र में लोकप्रिय हो गये। उनकी स्मृति में कलकत्ता का एक कार्यक्रम आज भी ताजा है। यह कार्यक्रम जब दिया था उस समय थोड़ी देर बाद उसी स्टेज पर विलायत खां को सितार बजाना था।
हालैंड के एक अच्छे कार्यक्रम की याद भी उन्हें खासी है। बताने लगे-पोलैण्ड (वारसा) में गये थे। वहां पोलिश लोगों के बीच गाना था। हमारे गाने का समय सिर्फ डेढ़ घंटा निर्धारित था वहां गाया और लोगों ने इतना सराहा कि कार्यक्रम हमें एक घंटे और देना पड़ा। कार्यक्रम से सम्बन्धित एक और स्मृति उन्हें ताजी हो उठती है बताया-इंटरनेशनल सिम्पोजियम पोएट्री रेसिरेशन का पोलैण्ड में आयोजन था। आयोजक ने बड़े बेरहमी से कहा नौ बजने से एक मिनट भी ज्यादा आप कार्यक्रम नहीं देंगे। सवा आठ बजे हम मंच पर बैठे और नौ बजे समाप्त कर दिया, फिर क्या था। चारों ओर से तालियां बजने लगीं। वहां तालियों का मतलब होता है कि आप स्टेज नहीं छोड़ सकते। फिर क्या, हमने आयोजक के निर्देश स्रोताओं को सुनाए। स्रोताओं ने आयोजक को हूट किया और उन्होंने माफी मांगी और फिर काफी देर तक कार्यक्रम चला।
सिंह बंधुओं का मानना है कि शास्त्रीय संगीत की मूलधारा भक्ति संगीत है। तमस में संगीत रचना व स्वर देने के अलावा सिंह बंधु की प्रस्तुति ‘गाओ सांची वाणी’ लगभग आठ वर्ष तक दूरदर्शन पर और इन दिनों यूरोप में टीवी पर दिखाई जा रही है। दिल्ली प्रशासन के कला परिषद अवार्ड पंजाब अकादमी के संगीत अवार्ड, पंजाब सरकार के स्वतंत्रता दिवस सम्मान, भाई वीर सिंह अवार्ड, राजीव गांधी अवार्ड, फार नेशनल इंटीग्रेशन जैसे बहुत से सम्मानों से अलंकृत सिंह बंधु के अनेक शास्त्रीय तथा भक्ति संगीत के कैसेट बन चुके हैं। विदेशों में बार-बार आमंत्रित किये जाने वाले सिंह बंधु अभी तक दस देशों की यात्रा कर चुके हैं।
सिंह बंधु ने बताया कि संगीत शिक्षा, बाल्यकाल से ही अपने बड़े भाई व दिल्ली में प्रधानाचार्य रहे जीएस सरदार की देखरेख में शुरू हुई। उन्होंने बातया कि हमारे सबसे बड़े भाई 11 वर्ष के थे तो उनकी आंख जाती रही। पिताजी ने उन्हें संगीत की शिक्षा दिलवायी और हमने संगीत की प्रेरणा अपने भाई से पायी। बचपन में ही नन्हें उस्ताद के रूप में लोकप्रिय सिंह बंधु के तीन भाई इंजीनियर हैं और पिता भी अभियंता थे। अपने भाई से 18-20 साल तक इन्होंने संगीत सीखा। सिंह बंधु की 32 साल की गायन की तालीम है। इनका मूल नाम तेजपाल सिंह और सुरिन्दर सिंह है। तेजपाल ने परास्नातक गणित और सुरिन्दर ने अंग्रेजी में आनर्स सहित स्नातक किया है। घरवाले इन्हें प्रशासनिक अधिकारी बनाना चाहते थे।
इस बात की चर्चा शुरू होते ही सिंह बंधु गंभीर हो गये। वे अतीत में लौटने लगे। बताया पढ़ाई पूरी करने के बाद घर वालों की इच्छा के विपरीत शास्त्रीय संगीत गाने का जो फैसला हम लोगों ने किया तो लगा जैसे कहर बरप गया है। पर घर वालों के तमाम डांट-डपट और समझाने के बाद भी जब हम अपने फैसले पर कायम दिखे तो रास्ता खुलने लगा और घर से भी सहयोग मिलने लगा।
इस सवाल के जवाब में कि कभी आपने एकल गाया है, सिंह बंधु बोल उठे-तकरीबन नहीं। आकाशवाणी या गुरूजन की स्तुति में बहुत पहले कभी एकल गाया हो तो नहीं कह सकते, परंतु प्रोफेशनल होकर कभी एकल नहीं गाया।
सबसे ज्यादा किसके भजन प्रिय हैं। इस सवाल के जवाब से सिंह बंधु कतराना चाहते हैं। कहते हैं हमने सबका गाया है और खूब गाया है। कई बार कुरेदने पर वे बोले नानकवाणी खूब गायी है और बेहद प्रिय भी है। इसके पक्ष में वे संस्कार की बात बताते हैं। कहते हैं-हम तो कबीर, रविदास सबके पद को नानकवाणी के रूप में ही देखते हैं। हमने सब कुछ नानकवाणी के रूप में ही स्वीकार किया है।
सिंह बंधु ने बहुत छुटपन में ही लाहौर रेडियो में अपना पहला प्रोग्राम दिया था। उन्हें प्रोग्राम का वर्ष तो नहीं याद है पर इतना याद जरूर है कि उस समय लाहौर भारत का हिस्सा था। कुछ जोर डालने पर उन्होंने कहा कि शायद बात 45-46 की है। उस समय की बात याद करते हुए बोलने लगे तब हम लोग बहुत छोटे थे। साज तक पहुंचने के लिए घुटने के बल बैठना पड़ता था। तबला बजाते थे।
सबसे अच्छा कार्यक्रम कौन सा हुआ। यह सवाल सिंह बंधु को बहुत कष्ट पहुंचाता है। उत्तर देने से पहले कह उठते हैं-कष्टप्रद प्रश्न है। वैसे इस सवाल के दो हिस्से हैं-पहला हमने सबसे ज्यादा ईमानदारी से कौन सा कार्यक्रम से परफार्म किया। इसके बारे में मैं साफ कर दूं कि हम लोग हर कार्यक्रम को बेहतर परफार्म करते हैं। चाहें आॅडिएंस कम हों या ज्यादा हमारा मानना है जो सुनने आए हैं, उन्हें न आने वालों को सजा क्यों दी जाय। इस सवाल का दूसरा हिस्सा है कार्यक्रम स्रोताओं की दृष्टि से सबसे अच्छा कौन सा रहा। फिर वे दोहराते हैं हम संगीत को पूजा मानते हैं और पूजा में कौन शरीक हुआ कौन नहीं। यह नहीं देखा जाता। वैसे सिंह बंधु को 1968 में पूना में सम्पन्न हुआ सवाई गंधर्व फेस्टिवल बेहद याद है। अपने इस कार्यक्रम को वे रोमांचकारी भी मानते हैं। कह उठते हैं कि उस समय हम लोग बहुत छोटे थे। हमारे लिए सबसे खुशी की बात यह थी कि उसी दिन गंगूबाई, भीमसेन सभी को अपना कार्यक्रम देना था। इस कार्यक्रम के बाद ही सिंह बंधु महाराष्ट्र में लोकप्रिय हो गये। उनकी स्मृति में कलकत्ता का एक कार्यक्रम आज भी ताजा है। यह कार्यक्रम जब दिया था उस समय थोड़ी देर बाद उसी स्टेज पर विलायत खां को सितार बजाना था।
हालैंड के एक अच्छे कार्यक्रम की याद भी उन्हें खासी है। बताने लगे-पोलैण्ड (वारसा) में गये थे। वहां पोलिश लोगों के बीच गाना था। हमारे गाने का समय सिर्फ डेढ़ घंटा निर्धारित था वहां गाया और लोगों ने इतना सराहा कि कार्यक्रम हमें एक घंटे और देना पड़ा। कार्यक्रम से सम्बन्धित एक और स्मृति उन्हें ताजी हो उठती है बताया-इंटरनेशनल सिम्पोजियम पोएट्री रेसिरेशन का पोलैण्ड में आयोजन था। आयोजक ने बड़े बेरहमी से कहा नौ बजने से एक मिनट भी ज्यादा आप कार्यक्रम नहीं देंगे। सवा आठ बजे हम मंच पर बैठे और नौ बजे समाप्त कर दिया, फिर क्या था। चारों ओर से तालियां बजने लगीं। वहां तालियों का मतलब होता है कि आप स्टेज नहीं छोड़ सकते। फिर क्या, हमने आयोजक के निर्देश स्रोताओं को सुनाए। स्रोताओं ने आयोजक को हूट किया और उन्होंने माफी मांगी और फिर काफी देर तक कार्यक्रम चला।
सिंह बंधुओं का मानना है कि शास्त्रीय संगीत की मूलधारा भक्ति संगीत है। तमस में संगीत रचना व स्वर देने के अलावा सिंह बंधु की प्रस्तुति ‘गाओ सांची वाणी’ लगभग आठ वर्ष तक दूरदर्शन पर और इन दिनों यूरोप में टीवी पर दिखाई जा रही है। दिल्ली प्रशासन के कला परिषद अवार्ड पंजाब अकादमी के संगीत अवार्ड, पंजाब सरकार के स्वतंत्रता दिवस सम्मान, भाई वीर सिंह अवार्ड, राजीव गांधी अवार्ड, फार नेशनल इंटीग्रेशन जैसे बहुत से सम्मानों से अलंकृत सिंह बंधु के अनेक शास्त्रीय तथा भक्ति संगीत के कैसेट बन चुके हैं। विदेशों में बार-बार आमंत्रित किये जाने वाले सिंह बंधु अभी तक दस देशों की यात्रा कर चुके हैं।