नहीं किसी को अब रहा आपस में विश्वास
रक्षक आपस में भिड़े तोड़ नियम के पाश
तोड़ नियम के पाश द्वंद है दिखता उलझा
बिल्ली की रोटी का झंझट कभी नहीं बंदर से सुलझा
अच्छा होता तय हो जाता सबकुछ घर के द्वार
बात न जाती घर से उठकर सीमा के उस पार।
नहीं किसी को अब रहा आपस में विश्वास
रक्षक आपस में भिड़े तोड़ नियम के पाश
तोड़ नियम के पाश द्वंद है दिखता उलझा
बिल्ली की रोटी का झंझट कभी नहीं बंदर से सुलझा
अच्छा होता तय हो जाता सबकुछ घर के द्वार
बात न जाती घर से उठकर सीमा के उस पार।