बार-बार टूटे-जुड़े फिर भी होती जीत

Update:1993-04-28 21:32 IST

बार-बार टूटे-जुड़े फिर भी होती जीत



लोकतंत्र कहते इसे नयी नहीं यह रीति



नयीं नहीं यह रीति, तभी तो कुछ न बोले



पी जाने की ‘शपथ’ उन्हें थी मुंह न खोले



मनमोहन हैं तोड़ते मोह यहां हर बार



उत्तर कोई है नहीं प्रश्नों का अम्बार।

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