धूल भरी आंधी चली हुआ तुषारापात
रद कठौरा में हुई अधिवेशन की बात
अधिवेशन की बात घात थी नेताओं की
धनगत नहीं विलाप, हानि है आशाओं की
कुपित, प्रकृति ने है किया कितना कठिन प्रहार
जिसकी जैसी भावना, वैसा ही उपहार।
धूल भरी आंधी चली हुआ तुषारापात
रद कठौरा में हुई अधिवेशन की बात
अधिवेशन की बात घात थी नेताओं की
धनगत नहीं विलाप, हानि है आशाओं की
कुपित, प्रकृति ने है किया कितना कठिन प्रहार
जिसकी जैसी भावना, वैसा ही उपहार।