नियत दिवस

Update:1993-08-15 14:21 IST
नियत दिवस आ गया है, वह नियत दिवस जिसे कि भाग्य ने निश्चित किया था और भारत आज फिर लम्बी नींद और कोशिशों के  बाद जागा है और शक्तिशाली, मुक्त और स्वतंत्र हुआ है। कुछ अंशों में अतीत हमसे अब भी मिला हुआ है, और जो प्रतिज्ञाएं, हमने इतनी बार की हैं उन्हें पूरा करने के  लिए हमें बहुत कुछ करना बाकी है। फिर भी हम मोड़ पार कर चुके  हैं। हमारे लिए नया इतिहास शुरू होता है, वह इतिहास जो हमारे जीवन और कार्यों से रचा जाएगा और जिसके  बारे में दूसरे लोग लिखेंगे।
भारत में हमारे लिए, सारे एशिया के  लिए और संसार के  लिए यह एक महान क्षण है। एक नये नक्षत्र का उदय होता है। प्रा्य की स्वतंत्रता के  नक्षत्र का, एक नयीं आशा उत्पन्न होती है, एक चिर अभिलाषित कल्पना साकार होती है। यह नक्षत्र कभी न डूबे और यह आशा कभी विफल न हो!
हमें इस स्वतंत्रता से आनन्द है, यद्यपि हमारे चारों ओर बादल घिरे हुए हैं, और अपने लोगों में से बहुत दुःख के  मारे हैं, और कठिन समस्याएं हमारे चारों ओर हैं, लेकिन स्वतंत्रता अपनी जिम्मेदारियां और बोझ लाती है और हमें स्वतंत्र और अनुशासनपूर्ण लोगों की भांति उनका सामना करना है।
आज के  दिन सबसे पहले हमें इस स्वतंत्रता के  निर्माता, राष्ट्र पिता का ध्यान आता है, जो भारत की पुरानी भावना के  मूर्त रूप होकर स्वतंत्रता की मशाल ऊंची किये हुए थे और जिन्होंने हमारे चारों ओर फैले हुए अंधकार को दूर किया। हम अक्सर उनके  अयोग्य अनुयायी रहे हैं और उनके  सन्देश से विलग हो गये हैं, लेकिन हम ही नहीं, आने वाली पीढ़ियां इस सन्देश को याद रखेंगी और अपने दिलों पर भारत के  इस बड़े बेटे की छाप को धारण करेंगी, जो कि अपने विश्वास और शक्ति और साहस और विनय में इतना महान था। हम स्वतंत्रता की इस मशाल को, चाहे जैसी आंधी और तूफान आवंे, कभी बुझने न दंेगे।
इसके  बाद हमें उन अज्ञात स्वयंसेवकों का और स्वतंत्रता के  सैनिकों का ध्यान आना चाहिए जिन्होंने बिना प्रशंसा या पुरस्कार पाये, भारत की सेवा में अपनी जानें दी हैं।
स्वतंत्रता की पूर्व संध्या:-
‘हमें अपने उन भाइयों और बहनों का भी ध्यान आता है जो राजनीति सीमाओं के  कारण हमसे जुदा हो गये हैं और जो दुर्भाग्यवश उस स्वतंत्रता में, जो हमें प्राप्त हुई है, भाग नहीं ले सकते। वे हमारे हैं, और चाहे जो हो, हमारे ही बने रहेंगे और हम उनके  अच्छे-बुरे भाग्य के  बराबर ही साझीदार होंगे।’
‘भविष्य हमें बुला रहा है। हम कहां जाएंगे और हमारा क्या प्रयत्न होगा? हमारा प्रयत्न होगा साधारण मनुष्य को, भारत के  किसानों और मजदूरों को स्वतंत्रता और अवसर दिलाना, गरीबी और अज्ञान और रोग से लड़कर उनका अन्त करना, एक समृद्ध, जनसत्तात्मक और प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण करना और ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाआं की रचना करना, जिनसे प्रत्येक पुरूष और स्त्री को न्याय और जीवन परिपूर्णता प्राप्त हो सके ।’
‘हमारे सामने कठिन काम करने को हैं। जब तक हम अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं करते, जब तक हम भारत के  सभी लोगों को वैसा नहीं बना लेते जैसा कि भाग्य ने नियत किया है, तब तक हममें से किसी के  लिए दम लेने का समय नहीं है। हम एक ऐसे बड़े देश के  नागरिक हैं जो कि विशाल उन्नति के  पथ पर अग्रसर है। हमें उस ऊंचे आदर्श के  अनुकूल अपना जीवन बनाना है। हम सभी, चाहे हम किसी धर्म के  हों, समान रूप से भारत की सन्तान हैं, और हमारे अधिकार विशेषाधिकार और दायित्व बराबर-बराबर हैं। हम साम्प्रदायिकता या संकीर्णता को उत्साहित नहीं कर सकते, क्योंकि कोई राष्ट्र, जिसके  लोग विचार अथवा कार्य मंे संकीर्ण हों, बड़ा नहीं हो सकता।
संसार के  राष्ट्रों तथा लोगों का हम अभिवादन करते हैं और यह प्रतिज्ञा करते हैं कि शान्ति, स्वतंत्रता प्रजातंत्र को अगसर करने में उनके  साथ सहयोग करेंगे। भारत के  लिए अपनी अत्यन्त प्रिय मातृभूमि के  लिए जो प्राचीन और सनातन और चिर-नवीन है, हम अपनी भक्तिपूर्ण श्रद्धांजलि भेंट करते हैं और अपने को उसकी सेवा के  लिए पुनः प्रतिज्ञाबद्ध करते हैं। (पंद्रह अगस्त 1947 को समाचार पत्रों को दिया गया संदेश)।

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