प्रधानमंत्री नरसिंह राव के खिलाफ एक करोड़ रूपये लेने का जो आरोप शेयर दलाल हर्षद मेहता ने गत 16 जुलाई को लगाया था, उसकी जांच का कार्य सीबीआई ने कानून मंत्रालय की सलाह पर बंद कर दिया है। सीबीआई ने कहा कि इस आरोप पर कोई मामला दर्ज नहीं किया जा सकता क्योंकि इसके लिए जरूरी कानूनी शर्तें पूरी नहीं की गयी हैं। सीबीआई का यह भी कहना है कि भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत किसी लोकसेवक के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए जो कानूनी शर्तें पूरी करना जरूरी था उसकी पूर्ति हर्षद मेहता द्वारा लगाये गये आरोप से नहीं हो रही थी और हर्षद मेहता के वकील महेश जेठमलानी ने इस बारे में जो हलफनामा सीबीआई को भेजा था उसमें हलफनामे की मूल प्रति की जगह फोटोकाॅपी का आधार लेकर इतने बडे़ आरोप को नकारना तर्कसंगत नहीं जंचता है। इसके लिए महेश जेठमलानी को दुबारा मूल प्रतियां भेजने का अवसर दिया ही जाना चाहिए था। ऐसा न करके सरकार ने कानून और अपनी निष्पक्षता पर सवाल खड़ा किया है।
वैसे यह सम्भव हो सकता है कि हर्षद मेहता ने प्रधानमंत्री पर जो एक करोड़ रूपये लेने का आरोप लगाया था, वह बेबुनियाद हो, लेकिन एक ऐसे मौके पर जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की स्थिति हो तब सीबीआई द्वारा ऐसा किया जाना प्रधानमंत्री राव के पाक-साफ होने पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है। परिणामतः यह स्वीकारने में कोई परेशानी नहीं होगी कि के न्द्र सरकार चुनावों की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री को बेदाग साबित करने के लिए सीबीआई का अनुचित प्रयोग कर रही है। प्रधानमंत्री पर लगे इस आरोप पर तुरन्त कार्रवाई करने में असफल होना सीबीआई की एक निर्लज्ज उपलब्धि है।
वैसे भी सीबीआई को कानूनी खामियों वाला आधार प्रधानमंत्री नरसिंह राव की सरकार के कानून मंत्रालय ने दिया है, जिसकी विश्वसनीयता सीबीआई की तरह ही स्वयं संदेह के घेरे में है। प्रधानमंत्री पर लगा यह आरोप महज एक विधिक मामला ही नहीं था, वरन हर्षद मेहता ने यह आरोप लगाकर उस जमी-जमाई व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया था जिसका शिकार हमारा पूरा सामाजिकतंत्र है।
संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष राम निवास मिर्धा का यह कहना है कि इस मामले में अभी कोई आर-पार निर्णय नहीं किया गया है और इस मसले पर समिति भविष्य में विचार कर सकती है। इससे साफ जाहिर होता है कि कहीं न कहीं संदेह के दायरे में कानून मंत्रालय का सुझाव व सीबीआई का निर्णय जरूर है। अगर सचमुच कोई विधिक मामला नहीं बनता है तो फिर मिर्धा इस तरह का दोहरा बयान देकर क्या सिद्ध करना चाह रहे हैं? वैसे भी बोफोर्स मसले पर संयुक्त संसदीय समिति की पोल खुल चुकी है।
महज विधिक पहलू को देखकर इस मसले को जैसे रफा-दफा करने का षड्यंत्र हो रहा है, वह अनुचित है क्योंकि यह एक सामाजिक मुद्दा भी है। अतः इसमें सिर्फ प्रधानमंत्री को बचाने का ही प्रयास होना जरूरी नहीं है। अगर प्रधानमंत्री बेदाग हैं तो हर्षद मेहता जैसे लोगों को कीचड़ उछालने की सजा की भी कोशिश होनी चाहिए। ऐसा न करके सीबीआई ने जो कुछ किया उससे साफ जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरसिंह राव को चुनाव के पूर्व स्वच्छ होने का जामा पहनाकर के न्द्र सरकार खुफिया एजेंसियों और सरकारी तंत्र का दुरूपयोग करते हुए सभी राज्यों में सरकार बनाना चाहती है। यह सब कुछ होना इसी लक्ष्य की प्राप्ति का सोपान है।
वैसे यह सम्भव हो सकता है कि हर्षद मेहता ने प्रधानमंत्री पर जो एक करोड़ रूपये लेने का आरोप लगाया था, वह बेबुनियाद हो, लेकिन एक ऐसे मौके पर जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की स्थिति हो तब सीबीआई द्वारा ऐसा किया जाना प्रधानमंत्री राव के पाक-साफ होने पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है। परिणामतः यह स्वीकारने में कोई परेशानी नहीं होगी कि के न्द्र सरकार चुनावों की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री को बेदाग साबित करने के लिए सीबीआई का अनुचित प्रयोग कर रही है। प्रधानमंत्री पर लगे इस आरोप पर तुरन्त कार्रवाई करने में असफल होना सीबीआई की एक निर्लज्ज उपलब्धि है।
वैसे भी सीबीआई को कानूनी खामियों वाला आधार प्रधानमंत्री नरसिंह राव की सरकार के कानून मंत्रालय ने दिया है, जिसकी विश्वसनीयता सीबीआई की तरह ही स्वयं संदेह के घेरे में है। प्रधानमंत्री पर लगा यह आरोप महज एक विधिक मामला ही नहीं था, वरन हर्षद मेहता ने यह आरोप लगाकर उस जमी-जमाई व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया था जिसका शिकार हमारा पूरा सामाजिकतंत्र है।
संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष राम निवास मिर्धा का यह कहना है कि इस मामले में अभी कोई आर-पार निर्णय नहीं किया गया है और इस मसले पर समिति भविष्य में विचार कर सकती है। इससे साफ जाहिर होता है कि कहीं न कहीं संदेह के दायरे में कानून मंत्रालय का सुझाव व सीबीआई का निर्णय जरूर है। अगर सचमुच कोई विधिक मामला नहीं बनता है तो फिर मिर्धा इस तरह का दोहरा बयान देकर क्या सिद्ध करना चाह रहे हैं? वैसे भी बोफोर्स मसले पर संयुक्त संसदीय समिति की पोल खुल चुकी है।
महज विधिक पहलू को देखकर इस मसले को जैसे रफा-दफा करने का षड्यंत्र हो रहा है, वह अनुचित है क्योंकि यह एक सामाजिक मुद्दा भी है। अतः इसमें सिर्फ प्रधानमंत्री को बचाने का ही प्रयास होना जरूरी नहीं है। अगर प्रधानमंत्री बेदाग हैं तो हर्षद मेहता जैसे लोगों को कीचड़ उछालने की सजा की भी कोशिश होनी चाहिए। ऐसा न करके सीबीआई ने जो कुछ किया उससे साफ जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरसिंह राव को चुनाव के पूर्व स्वच्छ होने का जामा पहनाकर के न्द्र सरकार खुफिया एजेंसियों और सरकारी तंत्र का दुरूपयोग करते हुए सभी राज्यों में सरकार बनाना चाहती है। यह सब कुछ होना इसी लक्ष्य की प्राप्ति का सोपान है।