राष्ट्रमण्डल देशों के शिखर सम्मेलन में साइप्रस ने कश्मीर के बारे में भारत विरोधी सामग्री वितरित करने से रोक कर एक अच्छे मेजबान होने का जो परिचय दिया है, उससे राष्ट्रकुल की मर्यादा बढ़ी है। राष्ट्रकुल सम्मेलन के मीडिया सेन्टर के लोगों का मानना है कि भारत विरोधी यह प्रचार सामग्री पाकिस्तान की नव निर्वाचित प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में यहां पहंुची। वैसे नाम के लिए भारत विरोधी इस सामग्री पर लंदन स्थित जम्मू-कश्मीर मानव अधिकार परिषद द्वारा तैयार करने के भी प्रमाण अंकित किये गये हैं। राष्ट्रमण्डल सचिवालय ने जम्मू-कश्मीर मानव अधिकार परिषद को राष्ट्रमण्डल गतिविधियों में भाग लेने से मना कर दिया था। पाक प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने कामकाजी सत्र के दौरान कश्मीर मसले को उठाकर भारत सरकार के उन साख्यों को और पुष्ट किया है, जिससे यह प्रमाण मिले हैं कि श्रीनगर की पवित्र दरगाह हजरत बल में जो कुछ भी हो रहा है, उसे पाक प्रशिक्षित आतंकवादी भारत की एकता और अमन चैन को धक्का पहुंचाने के लिए पाक के नापाक इशारे पर कर रहे हैं।
इससे पहले भी पाकिस्तान कश्मीर के मसले को कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाकर अपनी नापाक हरकतें प्रदर्शित कर चुका है। बेनजीर भुट्टो के सत्ता में आने के बाद जमायत-ए-इस्लामी और आईएसआई जैसे संगठनों ने उनका उपयोग भारत के विरोध में करने का जो मन बनाया था, उसे बेनजीर भुट्टो ने साइप्रस के राष्ट्रकुल देशों के सम्मेलन में कश्मीर मसले को उठाकर पूरा कर दिया है। एक ओर जहां भारत ने श्रीनगर की स्थिति का जायजा लेने के लिए विदेश से निष्पक्ष पर्यवेक्षकों को आमंत्रित किया वहीं पाकिस्तान सरकार ने हजरत बल मस्जिद पर आतंकवादियों के कब्जे को लेकर जो उन्मादपूर्ण प्रतिक्रिया व्यक्त की, उससे यह बात साफ हो गयी थी कि पाक इस मसले को राष्ट्रकुल सम्मेलन के मंच पर अवश्य उठायेगा, जबकि कश्मीर मुद्दा राष्ट्रकुल देशों की पांच दिवसीय शिखर बैठक की कार्यसूची में नहीं था। स्थापित परम्पराओं को ध्यान में रखकर इस बात पर विश्वास किया जा रहा था कि सम्मेलन में आए नेता दोतरफा विवादों को नहीं उठायेंगे। इतना ही नहीं भारत के प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव भारत-पाकिस्तान के बीच सभी मसलों को शिमला समझौते के तहत हल करने पर राजी भी हो गये थे। इन सारी स्थितियों के बाद प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टों के पहुंचने के बाद राष्ट्रकुल सम्मेलन में भारत विरोधी सामग्री का वितरण होना भारत-पाक रिश्ते के मद्देनजर बेहद दुर्भाग्यपूर्ण कहा जाएगा। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और जमायत-ए-इस्लामी ब्रूसेल्स में होने वाली यूरोपीय संसद की बैठक में भारत विरोधी जो माहौल तैयार करना चाह रही थीं, वह ब्रूसेल्स में भले ही तैयार नहीं हो पाया, लेकिन बेनजीर भुट्टो जिनके सम्बन्ध जमात-ए-इस्लामी और आईएसएई से बेहद खराब हैं, ने भारत विरोधी सामग्री वितरित कराकर, द्विपक्षीय मसलों को उठाकर इन संगठनों की मंशा को पूरा कर दिया और एक तरह से इनकी प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रकुल देशों के सम्मेलन में उपस्थित रहीं। इससे एक बात साफ हो गयी कि पाकिस्तान में चाहे जिसकी सरकार आये भारत-पाक रिश्तों की दरारें अब बढ़ती ही जाएंगी।
इससे पहले भी पाकिस्तान कश्मीर के मसले को कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाकर अपनी नापाक हरकतें प्रदर्शित कर चुका है। बेनजीर भुट्टो के सत्ता में आने के बाद जमायत-ए-इस्लामी और आईएसआई जैसे संगठनों ने उनका उपयोग भारत के विरोध में करने का जो मन बनाया था, उसे बेनजीर भुट्टो ने साइप्रस के राष्ट्रकुल देशों के सम्मेलन में कश्मीर मसले को उठाकर पूरा कर दिया है। एक ओर जहां भारत ने श्रीनगर की स्थिति का जायजा लेने के लिए विदेश से निष्पक्ष पर्यवेक्षकों को आमंत्रित किया वहीं पाकिस्तान सरकार ने हजरत बल मस्जिद पर आतंकवादियों के कब्जे को लेकर जो उन्मादपूर्ण प्रतिक्रिया व्यक्त की, उससे यह बात साफ हो गयी थी कि पाक इस मसले को राष्ट्रकुल सम्मेलन के मंच पर अवश्य उठायेगा, जबकि कश्मीर मुद्दा राष्ट्रकुल देशों की पांच दिवसीय शिखर बैठक की कार्यसूची में नहीं था। स्थापित परम्पराओं को ध्यान में रखकर इस बात पर विश्वास किया जा रहा था कि सम्मेलन में आए नेता दोतरफा विवादों को नहीं उठायेंगे। इतना ही नहीं भारत के प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव भारत-पाकिस्तान के बीच सभी मसलों को शिमला समझौते के तहत हल करने पर राजी भी हो गये थे। इन सारी स्थितियों के बाद प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टों के पहुंचने के बाद राष्ट्रकुल सम्मेलन में भारत विरोधी सामग्री का वितरण होना भारत-पाक रिश्ते के मद्देनजर बेहद दुर्भाग्यपूर्ण कहा जाएगा। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और जमायत-ए-इस्लामी ब्रूसेल्स में होने वाली यूरोपीय संसद की बैठक में भारत विरोधी जो माहौल तैयार करना चाह रही थीं, वह ब्रूसेल्स में भले ही तैयार नहीं हो पाया, लेकिन बेनजीर भुट्टो जिनके सम्बन्ध जमात-ए-इस्लामी और आईएसएई से बेहद खराब हैं, ने भारत विरोधी सामग्री वितरित कराकर, द्विपक्षीय मसलों को उठाकर इन संगठनों की मंशा को पूरा कर दिया और एक तरह से इनकी प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रकुल देशों के सम्मेलन में उपस्थित रहीं। इससे एक बात साफ हो गयी कि पाकिस्तान में चाहे जिसकी सरकार आये भारत-पाक रिश्तों की दरारें अब बढ़ती ही जाएंगी।