चुनाव घोषणा पत्र जारी करने के अभियान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इ) ने राज्य विधानसभा चुनावांे के लिए सभी राज्यों में स्थायित्व, प्रगति, विकास और सामाजिक सौहार्द की बहाली के आश्वासन व एक आधुनिक-आत्मनिर्भर, धर्म निरपेक्ष व लोकतांत्रिक समाज के निर्माण के वायदे सहित अपना घोषणा पत्र जारी किया। 32 पृष्ठों वाले इस घोषण पत्र में भाजपा पर सीधा प्रहार करके यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि भाजपा से सीधी टक्कर की स्थिति में कांग्रेस ही है तभी तो कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में यह कहा कि भाजपा का सत्तारूढ़ होना देश को विघटन और सर्वनाश की ओर ही ले जाएगा। इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र में यह भी कहा गया है कि भाजपा के सत्ता में आने से कोई विकास नहीं हो सकता है, किसानों और खेतिहर मजदूरों का कोई भला सम्भव नहीं है और भाजपा के सत्तारूढ़ होने पर महिलाओं, अनुसूचित जातियांे/जनजातियों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा समाप्त हो जाएगी। साम्प्रदायिक सौहार्द और सर्वधर्म समभाव की स्थापना सम्भव नहीं हो पाएगी। भाजपा की इतनी सीधी आलोचना किसी भी पार्टी के घोषणा पत्र में नहीं है। इतना ही नहीं किसी भी पार्टी ने किसी भी दल के खिलाफ ऐसे आरोप व अभियोग अपने घोषणा पत्र में नहीं लगाये हैं जैसा कांग्रेस ने भाजपा पर लगाये हैं। कांग्रेस ने घोषणा पत्र जारी करने की पिछली सारी सीमाओं और परम्पराओं को तोड़ते हुए यहां तक कहा-‘सत्ता में आने के बाद कांग्रेस की सबसे बड़ी और पहली प्राथमिकता होगी चार राज्यों में भाजपा के शासनकाल के दौरान रोक दिये गये विकास कार्यों को दुगुने उत्साह से शुरू करना ताकि भाजपा के निकम्मेपन की भरपाई हो सके ।’
कांग्रेस के घोषणा पत्र के शीर्षक ‘इस समय चुनाव क्यों?’ के अनतर्गत अयोध्या मसले का जिक्र है। कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने बातचीत के जरिये इस मसले का हल निकालने का प्रयास किया परन्तु राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ओर भाजपा ने मिलकर राजनीतिक स्वार्थवश ढांचे को करने की साजिश रची। के न्द्र सरकार ने राज्य सरकार के वायदे पर भरोसा किया। पहली बार किसी राज्य सरकार ने संसद, संविधान, के न्द्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना की। हमारी राजनीतिक प्रणाली में ऐसे कार्य करने वाले व्यक्तियांे और दलों के लिए माफी की व्यवस्था नहीं हो सकती।’
विकास की बात करते हुए कांग्रेस घोषणा पत्र में इस बात का होना कि उत्तर प्रदेश सरकार ने विकास के नाम पर 900 करोड़ रूपये एवं मध्य प्रदेश सरकार ने 1500 करोड़ रूपये का इस्तेमाल नहीं किया। कर्ज माफी के नाम पर के न्द्र सरकार द्वारा दी गयी 170 करोड़ रूपये की रकम का भाजपा सरकार ने कोई इस्तेमाल नहीं किया। ये बातें कितनी सत्य हैं इससे ही समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश सरकार के सरकारी कर्मचारियों के वेतन भुगतान तक में दिक्कतें पेश आती रही हैं। इतना ही नहीं एक ओर भाजपा पर 170 करोड़ रूपये की रकम का इस्तेमाल न कर पाने की बात वहीं दूसरी तरफ इस रकम को अन्यत्र कहीं लगा देने का आरोप? यह विरोधाभास क्यों है?
कांग्रेस ने यह दावा भी किया है कि विचाराधीन आवेदन पत्रों का निपटान तीन माह में सुनिश्चित होगा। राज्यों में विशेष बंजर भूमि योजना शुरू होगी। दो-तीन वर्षों में गांवों में पक्की सड़कों से जोड़ने का काम पूरा होगा। यह घोषणा कहीं 100 दिनों में मूल्यों को पुरानी स्थिति में लाने जैसी तो नहीं होगी? जीवन बीमा निगम के जरिये सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी योजनाएं लागू की जाएंगी। इंदिरा आवास योजना, कुटीर ज्योति योजना व जलधारा जैसी योजनाओं को पुनः आरम्भ किया जाएगा। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/ जनजाति आयोग की तरह ही राज्य स्तरीय आयोग की स्थापना का उल्लेख भी घोषणा पत्र में है। ये योजनाएं निःसंदेह विकास की गति बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र में पृथक राज्यों की मांग के सम्बन्ध में यह कहना बेहद प्रशंसनीय है कि कांग्रेस ऐसी सभी मांगों के प्रति संवेदनशील है। वह देश के टुकड़े नहीं होने देगी। साथ ही कश्मीर मुद्दे पर कांग्रेस ने दृढ़ता का परिचय देते हुए कहा-‘भारत की भौगोलिक अखण्डता को हानि पहुंचाने की हर कोशिश का डटकर मुकाबला किया जाएगा, उसे असफल बनाया जाएगा। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा अभिन्न रहेगा। कश्मीर मसले पर जितनी दृढ़ता कांग्रेस के घोषणा पत्र में दिखती है उतनी यदि हजरत बल के मुद्दे पर कांगे्रसी प्रधानमंत्री नरसिंह राव दिखा पाते तो अंतर्राष्ट्रीय ताकतों के सामने शर्म से चेहरा झुकाकर खड़ा नहीं होना पड़ता तािा पाक व अमरीका यह दुस्साहसिक बयान व कृत्य नहीं करते जो आज कर रहे हैं। उग्रवादियों का मनोबल इतना नहीं बढ़ता, लेकिन मौन साधकर समय को शुतुरमुर्ग की तर्ज पर आंधी को सर झुका कर जाने देने वाली शैली वाले ने इसे नासूर बनाकर देश के सम्मुख आपरेशन ब्लू स्टार की स्थितियां पैदा कर दी हंै।
कांग्रेस शासन में न्याय पालिका का खासा माखौल उड़ा, उसका स्वहित में खूब प्रयोग हुआ। यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय, दरगाह में फंसे उग्रवादियों को भोजन, पानी, बिजली देने के आदेश निर्गत करने में किसी भी तरह की सामाजिक व राष्ट्रीय जिम्मेदारी महसूस नहीं करता है।
अयोध्या मसले का घोषणा पत्र में उल्लेख है लेकिन प्राथमिकता सूची में अयोध्या मसले का जिक्र नहीं है जबकि अयोध्या के राम मंदिर का ताला खुलवाने से लेकर मंदिर शिलान्यास तक की सारी हरकतों के लिए कांग्रेस स्वयं दोषी है जिसे वह आज तक स्वीकारने को तैयार नहीं है फिर भाजपा नेता कल्याण सिंह के छले जाने की बात कोरी प्रवंचना ठहरती है।
डंके ल प्रस्ताव के बारे में कांग्रेस घोषणा पत्र में यह कहना कि इस प्रस्ताव से हमारी कृषि-नीतियों और कार्यक्रमों में विदेशी हस्तक्षेप नहीं होगा तथा कांग्रेस किसानों के हितों को किसी भी किस्म का कोई नुकसान नहीं होने देगी एकदम आधारहीन व बहकाने वाली घोषणा है क्योंकि ऐसा सम्भव नहीं है। डंके ल प्रस्ताव सीधे-सीधे हमारी आर्थिक गुलामी का संके त है। जिसे लागू हो जाने के बाद निजात पाना एकदम सम्भव नहीं है। डंके ल प्रस्ताव को स्वीकार करने से खादों व बीजों के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि होगी। किसान अपनपी ही उपज को बीज के रूप में प्रयोग नहीं कर पाएंगे।
पता नहीं क्यों कश्मीर मसले पर दृढ़ता का ढोंग करने वाली कांग्रेस पार्टी अपने किन हितों के कारण डंके ल प्रस्ताव पर कोई दिखावटी, पाखण्डी, दृढ़ता का भी परिचय नहीं देना चाहती है?
उत्तर प्रदेश के चुनाव घोषणा पत्र के शुरूआत में ही यह लिखा गया है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इ) एक मात्र ऐसी राजनीतिक पार्टी है जिसे अपने 108 वर्षों के गौरवशाली इतिहास में स्वतंत्रता आन्दोलन और देश के निर्माण में भागीदारी करने का सौभाग्य मिला। घोषणा पत्र का निर्माण करने वाली कमेटी और जारी करने वालों के ज्ञान का इसी से पता चलता है कि भारत की आजादी और निर्माण में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इ) की भूमिका का उल्लेख करते हैं। इन्हें अन्तर का भान नहीं हो पा रहा है। 20 पृष्ठ के प्रदेशीय घोषणा पत्र में 31 चीनी मिलों की स्थापना, गन्ने की ढुलाई की कटौती को समाप्त करने, गन्ना मिलों में किसानों की भागीदारी सुनिश्चित करने सहित मूल्य सूचकांक के आधार पर छात्रवृत्ति में वृद्धि, उर्दू को दूसरी राजभाषा बनाने की घोषणा शामिल है। पर्वतीय विकास परिषद की घोषणा, होमगार्ड की नियमित सेवाएं, कृषि बोर्ड का गठन आदि कांग्रेसी घोषणा पत्र के सकारात्मक पक्ष हैं, लेकिन इस घोषणा पत्र में जिस तरह राष्ट्रपति शासन के दौरान विकास कार्यों में तेजी और गन्ने के मूल्य में बढ़ोत्तरी का श्रेय लेने की बात उठी है उससे राष्ट्रपति शासन और चुनावी आचार संहिता दोनों के सामने गम्भीर प्रश्न उठ जाते हैं। प्रदेश में विकास व विनाश के नारे के लिए 1989 के बाद उत्तर प्रदेश में एक भी नया पुल, अस्पताल, विश्वविद्यालय या विद्युत उत्पादन गृह या कल कारखाना शुरू नहीं हुआ, बताकर जो चित्र खींचा गया है वह निश्चित तौर से प्रथम दृष्ट्या गैर कांग्रेसवाद के सिद्धान्तहीन व अवसरवादी गठबंधन के 1967, 1977, 1989 व 1991 की राजनीतिक असफलता को दर्शाने के लिए पर्याप्त है।
अपने 1989 व 91 के घोषणा पत्र में कांग्रेस पार्टी ने के न्द्र, राज्य सम्बन्धों पर कुछ नहीं कहा। निर्यात वृद्धि, आयात प्रतिस्थापना की सफलता को बताने के लिए मुद्रा अवमूल्यन की घटना ही पर्यापत है। सार्वजनिक क्षेत्रों में कोष का विकास, कर वसूली आदि के सामने ब्याज दरों में कटौती को खड़ा कर दिया जाए तो ये दोनों नारे बेमानी साबित हो जाएंगे। मूल्यों में कमी को आज प्रधानमंत्री नरसिंह राव अन्तर्राष्ट्रीय घटना मानकर खारिज कर देते हैं।
उर्दू को त्रिभाषा फार्मूला में लागू करने, नयी शिक्षा नीति पर अमल और प्राइमरी स्कूलों में दोपहर का भोजन जैसी 89 व 91 के घोषणा पत्रों की बात सिर्फ कागजी रह गयी। इतना ही नहीं इस दिशा में कांग्रेस सरकार ने कोई प्रगति नहीं की है। यह स्थिति कमोवेश लड़कियों की सुरक्षा, स्त्री भ्रूण हत्या पर दण्ड के लिए विधेयक लाने की कांग्रेसी घोषणा के साथ हुई।
प्रतिवर्ष एक हजार करोड़ रोजगार सृजन, 100 करोड़ मानव दिवसों को ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना में समाहित करने वाली 89 व 91 की घोषणा में जवाहर रोजगार योजना की उपलब्धि के सिवाय कोई कार्य नहीं हुआ।
जीवन व सम्पत्ति की सुरक्षा, साम्प्रदायिक अपराधियों के लिए विशेष अदालतें, अल्पसंख्यक आयोग को कानूनी अधिकार शक्ति सहित संगठित क्षेत्रों में सभी कर्मचारियों को पेंशन योजना, असंगठित क्षेत्र में विशेष सुरक्षा योजना, बंधुआ मजदूरी का खात्मा, कृषि से जुड़े मजदूरों की कम से कम मजदूरी तय करने जेसे पिछले घोषणा पत्र के वायदों पर अपने इस तीन वर्ष के कार्यकाल में भी कांग्रेस सरकार द्वारा कोई ऐसा कार्य नहीं किया गया जिससे कहा जा सके कि यह पार्टी अपने मुद्दों, वायदों, घोषणाओं की घोषणा पत्र से इतर कुछ स्वीकारती भी है।
अयोध्या जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जो सरकार मस्जिद गिराये बगैर मंदिर निर्माण की बात चुनाव घोषणा पत्र में करे और अपने दो वर्ष के कार्यकाल में मस्जिद गिराये बगैर मंदिर निर्माण का कोई ब्लू प्रिंट पेश न कर पाये। फिर उस ढांचे को जिसे कांग्रेस घोषणा पत्र में मस्जिद कहा गया था जो आज तक विवादित ढांचा है, उच्चतम न्यायालय में इस पर मुकदमा विचाराधीन है। फिर भी उसे मस्जिद कहना कितनी धर्म निरपेक्षता हे? इतना ही नहीं अगर कांग्रेस इसे मस्जिद मानती थी तो उसने वीर बहादुर सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में पूजा, अर्चना के लिए इसका ताला क्यों खुलवाया? 1991 में राजीव गांधी से उसी स्थान पर मंदिर का शिलान्यास क्यों कराया?
इसके बाद भी साम्प्रदायिक और जातिवाद से संघर्ष करने की बात धर्म और राजनीति दोनों के तालमेल को समाप्त कर इनकी पवित्रता की रक्षा का संकल्प व विनाश के मुकाबले विकास के लिए वोट की बात करना क्या सार्थक रह जाता है? वैसे राजनीति में निश्चित व निर्धारित मानदण्डों के प्रयोग का सर्वथा अभाव है इसलिए चाहे ये सारे विरोधाभास चलें, परन्तु किसी राष्ट्र निर्माण एवं स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने वाली पार्टी होने का दावा करने के बाद यह सब दावे खोखले लगने लगते हैं।
इस तरह कांग्रेस जिस स्थायित्व की बात करती है उसके लिए 1989 में प्रदेश में मुलायम सिंह सरकार एवं के न्द्र में सजपा सरकार को जद से विघटित कराकर चलाने के स्थायित्व का उदाहरण है। कांग्रेस के विकास के उदाहरण के रूप में शेयर घोटालों को लिया जा सकता है। जिसमें शेयरों के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि को वित्तमंत्री मनमोहन सिंह नयी आर्थिक नीति की उपलब्धि मान रहे थे फिर जब घोटालों का पर्दाफाश होना शुरू हो गया तब मुद्रा अवमूल्यन करके निर्यात वृद्धि व ब्याज दरों में कटौती के माध्यम से बैंकों की ऋण देय स्थिति को बढ़ाकर निवेश की सम्भावना से आंकड़े जुटाने की कसरत हो रही है।
आज जबकि लोगों के हाथ में क्रयशक्ति/ क्रय क्षमता का अभाव है फिर भी निवेश की आशा करना किसी उद्योग के लिए कोई सम्भावना सम्पन्न भविष्य नहीं देता है। आत्मर्निीार भारत का सपना बेचने वाली पार्टी डंके ल प्रस्ताव से भारत पर कोई प्रभाव नहीं मानती है? अन्तराष्ट्रीय मुद्राकोष से आर्थिक गुलामी की शर्त पर ऋण लेने को आतुर है? कारगिल को कांडला में नमक जैसी चीज बनाने के लिए जमीन आवंटित कर देती है? यह बात दीगर है कि कारगिल स्वयं वापस हो जाये। इतना ही नहीं व्यापार व निवेश के लिए हमारे आत्मनिर्भर भारत में विदेशियों को जिस तरह और जिस शर्त पर आमंत्रण भेजा जा रहा है उसके बाद भी उनका न आना भारत की आत्म निर्भरता, विकास व प्रगति को माप लेने के लिए पर्याप्त है।
धर्मनिरपेक्षता व साम्प्रदायिक सौहार्द की बात करते समय कांग्रेस को यह सोचना चाहिए कि मंदिर विवाद जो इस समय हमारे अमन-चैन को भंग करके हमारे मूल ढांचे को ध्वस्त करने के लिए कांग्रेस सहित भाजपा को छोड़ कर सभी पार्टियों की दृष्टि में जिम्मेदार है, उसकी विष बेल कांग्रेस ने ही बोयी है। इतना ही नहीं उसके बाद भी हजरतबल में देश की अस्मिता से जो खिलवाड़ हो रहा है, उसे पवित्र दरगार मानकर धर्म की आड़ पर होने दिया जाता है? जबकि इसी बीच स्वर्ण मंदिर परिसर से एक अकाली नेता की गिरफ्तारी हो जाती है।
वैसे जो भी हो यह बात सत्य है कि स्थायित्व के मुद्दे पर कांग्रेस हर पार्टियों से बेहतर और भारी पड़ती है।
1989 व 1991 के उसके चुनावी घोषणा पत्रों के मुख्य मुद्दों की समीक्षा न की जाये तो कांग्रेस ने लम्बे समय के राजनीतिक अनुभव व परिपक्वता का पूरा लाभ उठाते हुए अपना घोषणा पत्र पेश किया है परन्तु जिस तरह उसने कुछ पार्टी विशेष पर लांछन लगाये हैं उससे लोकतंत्र की मर्यादा का हनन जरूर हुआ है।
कांग्रेस के घोषणा पत्र के शीर्षक ‘इस समय चुनाव क्यों?’ के अनतर्गत अयोध्या मसले का जिक्र है। कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने बातचीत के जरिये इस मसले का हल निकालने का प्रयास किया परन्तु राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ओर भाजपा ने मिलकर राजनीतिक स्वार्थवश ढांचे को करने की साजिश रची। के न्द्र सरकार ने राज्य सरकार के वायदे पर भरोसा किया। पहली बार किसी राज्य सरकार ने संसद, संविधान, के न्द्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना की। हमारी राजनीतिक प्रणाली में ऐसे कार्य करने वाले व्यक्तियांे और दलों के लिए माफी की व्यवस्था नहीं हो सकती।’
विकास की बात करते हुए कांग्रेस घोषणा पत्र में इस बात का होना कि उत्तर प्रदेश सरकार ने विकास के नाम पर 900 करोड़ रूपये एवं मध्य प्रदेश सरकार ने 1500 करोड़ रूपये का इस्तेमाल नहीं किया। कर्ज माफी के नाम पर के न्द्र सरकार द्वारा दी गयी 170 करोड़ रूपये की रकम का भाजपा सरकार ने कोई इस्तेमाल नहीं किया। ये बातें कितनी सत्य हैं इससे ही समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश सरकार के सरकारी कर्मचारियों के वेतन भुगतान तक में दिक्कतें पेश आती रही हैं। इतना ही नहीं एक ओर भाजपा पर 170 करोड़ रूपये की रकम का इस्तेमाल न कर पाने की बात वहीं दूसरी तरफ इस रकम को अन्यत्र कहीं लगा देने का आरोप? यह विरोधाभास क्यों है?
कांग्रेस ने यह दावा भी किया है कि विचाराधीन आवेदन पत्रों का निपटान तीन माह में सुनिश्चित होगा। राज्यों में विशेष बंजर भूमि योजना शुरू होगी। दो-तीन वर्षों में गांवों में पक्की सड़कों से जोड़ने का काम पूरा होगा। यह घोषणा कहीं 100 दिनों में मूल्यों को पुरानी स्थिति में लाने जैसी तो नहीं होगी? जीवन बीमा निगम के जरिये सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी योजनाएं लागू की जाएंगी। इंदिरा आवास योजना, कुटीर ज्योति योजना व जलधारा जैसी योजनाओं को पुनः आरम्भ किया जाएगा। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/ जनजाति आयोग की तरह ही राज्य स्तरीय आयोग की स्थापना का उल्लेख भी घोषणा पत्र में है। ये योजनाएं निःसंदेह विकास की गति बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र में पृथक राज्यों की मांग के सम्बन्ध में यह कहना बेहद प्रशंसनीय है कि कांग्रेस ऐसी सभी मांगों के प्रति संवेदनशील है। वह देश के टुकड़े नहीं होने देगी। साथ ही कश्मीर मुद्दे पर कांग्रेस ने दृढ़ता का परिचय देते हुए कहा-‘भारत की भौगोलिक अखण्डता को हानि पहुंचाने की हर कोशिश का डटकर मुकाबला किया जाएगा, उसे असफल बनाया जाएगा। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा अभिन्न रहेगा। कश्मीर मसले पर जितनी दृढ़ता कांग्रेस के घोषणा पत्र में दिखती है उतनी यदि हजरत बल के मुद्दे पर कांगे्रसी प्रधानमंत्री नरसिंह राव दिखा पाते तो अंतर्राष्ट्रीय ताकतों के सामने शर्म से चेहरा झुकाकर खड़ा नहीं होना पड़ता तािा पाक व अमरीका यह दुस्साहसिक बयान व कृत्य नहीं करते जो आज कर रहे हैं। उग्रवादियों का मनोबल इतना नहीं बढ़ता, लेकिन मौन साधकर समय को शुतुरमुर्ग की तर्ज पर आंधी को सर झुका कर जाने देने वाली शैली वाले ने इसे नासूर बनाकर देश के सम्मुख आपरेशन ब्लू स्टार की स्थितियां पैदा कर दी हंै।
कांग्रेस शासन में न्याय पालिका का खासा माखौल उड़ा, उसका स्वहित में खूब प्रयोग हुआ। यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय, दरगाह में फंसे उग्रवादियों को भोजन, पानी, बिजली देने के आदेश निर्गत करने में किसी भी तरह की सामाजिक व राष्ट्रीय जिम्मेदारी महसूस नहीं करता है।
अयोध्या मसले का घोषणा पत्र में उल्लेख है लेकिन प्राथमिकता सूची में अयोध्या मसले का जिक्र नहीं है जबकि अयोध्या के राम मंदिर का ताला खुलवाने से लेकर मंदिर शिलान्यास तक की सारी हरकतों के लिए कांग्रेस स्वयं दोषी है जिसे वह आज तक स्वीकारने को तैयार नहीं है फिर भाजपा नेता कल्याण सिंह के छले जाने की बात कोरी प्रवंचना ठहरती है।
डंके ल प्रस्ताव के बारे में कांग्रेस घोषणा पत्र में यह कहना कि इस प्रस्ताव से हमारी कृषि-नीतियों और कार्यक्रमों में विदेशी हस्तक्षेप नहीं होगा तथा कांग्रेस किसानों के हितों को किसी भी किस्म का कोई नुकसान नहीं होने देगी एकदम आधारहीन व बहकाने वाली घोषणा है क्योंकि ऐसा सम्भव नहीं है। डंके ल प्रस्ताव सीधे-सीधे हमारी आर्थिक गुलामी का संके त है। जिसे लागू हो जाने के बाद निजात पाना एकदम सम्भव नहीं है। डंके ल प्रस्ताव को स्वीकार करने से खादों व बीजों के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि होगी। किसान अपनपी ही उपज को बीज के रूप में प्रयोग नहीं कर पाएंगे।
पता नहीं क्यों कश्मीर मसले पर दृढ़ता का ढोंग करने वाली कांग्रेस पार्टी अपने किन हितों के कारण डंके ल प्रस्ताव पर कोई दिखावटी, पाखण्डी, दृढ़ता का भी परिचय नहीं देना चाहती है?
उत्तर प्रदेश के चुनाव घोषणा पत्र के शुरूआत में ही यह लिखा गया है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इ) एक मात्र ऐसी राजनीतिक पार्टी है जिसे अपने 108 वर्षों के गौरवशाली इतिहास में स्वतंत्रता आन्दोलन और देश के निर्माण में भागीदारी करने का सौभाग्य मिला। घोषणा पत्र का निर्माण करने वाली कमेटी और जारी करने वालों के ज्ञान का इसी से पता चलता है कि भारत की आजादी और निर्माण में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इ) की भूमिका का उल्लेख करते हैं। इन्हें अन्तर का भान नहीं हो पा रहा है। 20 पृष्ठ के प्रदेशीय घोषणा पत्र में 31 चीनी मिलों की स्थापना, गन्ने की ढुलाई की कटौती को समाप्त करने, गन्ना मिलों में किसानों की भागीदारी सुनिश्चित करने सहित मूल्य सूचकांक के आधार पर छात्रवृत्ति में वृद्धि, उर्दू को दूसरी राजभाषा बनाने की घोषणा शामिल है। पर्वतीय विकास परिषद की घोषणा, होमगार्ड की नियमित सेवाएं, कृषि बोर्ड का गठन आदि कांग्रेसी घोषणा पत्र के सकारात्मक पक्ष हैं, लेकिन इस घोषणा पत्र में जिस तरह राष्ट्रपति शासन के दौरान विकास कार्यों में तेजी और गन्ने के मूल्य में बढ़ोत्तरी का श्रेय लेने की बात उठी है उससे राष्ट्रपति शासन और चुनावी आचार संहिता दोनों के सामने गम्भीर प्रश्न उठ जाते हैं। प्रदेश में विकास व विनाश के नारे के लिए 1989 के बाद उत्तर प्रदेश में एक भी नया पुल, अस्पताल, विश्वविद्यालय या विद्युत उत्पादन गृह या कल कारखाना शुरू नहीं हुआ, बताकर जो चित्र खींचा गया है वह निश्चित तौर से प्रथम दृष्ट्या गैर कांग्रेसवाद के सिद्धान्तहीन व अवसरवादी गठबंधन के 1967, 1977, 1989 व 1991 की राजनीतिक असफलता को दर्शाने के लिए पर्याप्त है।
अपने 1989 व 91 के घोषणा पत्र में कांग्रेस पार्टी ने के न्द्र, राज्य सम्बन्धों पर कुछ नहीं कहा। निर्यात वृद्धि, आयात प्रतिस्थापना की सफलता को बताने के लिए मुद्रा अवमूल्यन की घटना ही पर्यापत है। सार्वजनिक क्षेत्रों में कोष का विकास, कर वसूली आदि के सामने ब्याज दरों में कटौती को खड़ा कर दिया जाए तो ये दोनों नारे बेमानी साबित हो जाएंगे। मूल्यों में कमी को आज प्रधानमंत्री नरसिंह राव अन्तर्राष्ट्रीय घटना मानकर खारिज कर देते हैं।
उर्दू को त्रिभाषा फार्मूला में लागू करने, नयी शिक्षा नीति पर अमल और प्राइमरी स्कूलों में दोपहर का भोजन जैसी 89 व 91 के घोषणा पत्रों की बात सिर्फ कागजी रह गयी। इतना ही नहीं इस दिशा में कांग्रेस सरकार ने कोई प्रगति नहीं की है। यह स्थिति कमोवेश लड़कियों की सुरक्षा, स्त्री भ्रूण हत्या पर दण्ड के लिए विधेयक लाने की कांग्रेसी घोषणा के साथ हुई।
प्रतिवर्ष एक हजार करोड़ रोजगार सृजन, 100 करोड़ मानव दिवसों को ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना में समाहित करने वाली 89 व 91 की घोषणा में जवाहर रोजगार योजना की उपलब्धि के सिवाय कोई कार्य नहीं हुआ।
जीवन व सम्पत्ति की सुरक्षा, साम्प्रदायिक अपराधियों के लिए विशेष अदालतें, अल्पसंख्यक आयोग को कानूनी अधिकार शक्ति सहित संगठित क्षेत्रों में सभी कर्मचारियों को पेंशन योजना, असंगठित क्षेत्र में विशेष सुरक्षा योजना, बंधुआ मजदूरी का खात्मा, कृषि से जुड़े मजदूरों की कम से कम मजदूरी तय करने जेसे पिछले घोषणा पत्र के वायदों पर अपने इस तीन वर्ष के कार्यकाल में भी कांग्रेस सरकार द्वारा कोई ऐसा कार्य नहीं किया गया जिससे कहा जा सके कि यह पार्टी अपने मुद्दों, वायदों, घोषणाओं की घोषणा पत्र से इतर कुछ स्वीकारती भी है।
अयोध्या जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जो सरकार मस्जिद गिराये बगैर मंदिर निर्माण की बात चुनाव घोषणा पत्र में करे और अपने दो वर्ष के कार्यकाल में मस्जिद गिराये बगैर मंदिर निर्माण का कोई ब्लू प्रिंट पेश न कर पाये। फिर उस ढांचे को जिसे कांग्रेस घोषणा पत्र में मस्जिद कहा गया था जो आज तक विवादित ढांचा है, उच्चतम न्यायालय में इस पर मुकदमा विचाराधीन है। फिर भी उसे मस्जिद कहना कितनी धर्म निरपेक्षता हे? इतना ही नहीं अगर कांग्रेस इसे मस्जिद मानती थी तो उसने वीर बहादुर सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में पूजा, अर्चना के लिए इसका ताला क्यों खुलवाया? 1991 में राजीव गांधी से उसी स्थान पर मंदिर का शिलान्यास क्यों कराया?
इसके बाद भी साम्प्रदायिक और जातिवाद से संघर्ष करने की बात धर्म और राजनीति दोनों के तालमेल को समाप्त कर इनकी पवित्रता की रक्षा का संकल्प व विनाश के मुकाबले विकास के लिए वोट की बात करना क्या सार्थक रह जाता है? वैसे राजनीति में निश्चित व निर्धारित मानदण्डों के प्रयोग का सर्वथा अभाव है इसलिए चाहे ये सारे विरोधाभास चलें, परन्तु किसी राष्ट्र निर्माण एवं स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने वाली पार्टी होने का दावा करने के बाद यह सब दावे खोखले लगने लगते हैं।
इस तरह कांग्रेस जिस स्थायित्व की बात करती है उसके लिए 1989 में प्रदेश में मुलायम सिंह सरकार एवं के न्द्र में सजपा सरकार को जद से विघटित कराकर चलाने के स्थायित्व का उदाहरण है। कांग्रेस के विकास के उदाहरण के रूप में शेयर घोटालों को लिया जा सकता है। जिसमें शेयरों के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि को वित्तमंत्री मनमोहन सिंह नयी आर्थिक नीति की उपलब्धि मान रहे थे फिर जब घोटालों का पर्दाफाश होना शुरू हो गया तब मुद्रा अवमूल्यन करके निर्यात वृद्धि व ब्याज दरों में कटौती के माध्यम से बैंकों की ऋण देय स्थिति को बढ़ाकर निवेश की सम्भावना से आंकड़े जुटाने की कसरत हो रही है।
आज जबकि लोगों के हाथ में क्रयशक्ति/ क्रय क्षमता का अभाव है फिर भी निवेश की आशा करना किसी उद्योग के लिए कोई सम्भावना सम्पन्न भविष्य नहीं देता है। आत्मर्निीार भारत का सपना बेचने वाली पार्टी डंके ल प्रस्ताव से भारत पर कोई प्रभाव नहीं मानती है? अन्तराष्ट्रीय मुद्राकोष से आर्थिक गुलामी की शर्त पर ऋण लेने को आतुर है? कारगिल को कांडला में नमक जैसी चीज बनाने के लिए जमीन आवंटित कर देती है? यह बात दीगर है कि कारगिल स्वयं वापस हो जाये। इतना ही नहीं व्यापार व निवेश के लिए हमारे आत्मनिर्भर भारत में विदेशियों को जिस तरह और जिस शर्त पर आमंत्रण भेजा जा रहा है उसके बाद भी उनका न आना भारत की आत्म निर्भरता, विकास व प्रगति को माप लेने के लिए पर्याप्त है।
धर्मनिरपेक्षता व साम्प्रदायिक सौहार्द की बात करते समय कांग्रेस को यह सोचना चाहिए कि मंदिर विवाद जो इस समय हमारे अमन-चैन को भंग करके हमारे मूल ढांचे को ध्वस्त करने के लिए कांग्रेस सहित भाजपा को छोड़ कर सभी पार्टियों की दृष्टि में जिम्मेदार है, उसकी विष बेल कांग्रेस ने ही बोयी है। इतना ही नहीं उसके बाद भी हजरतबल में देश की अस्मिता से जो खिलवाड़ हो रहा है, उसे पवित्र दरगार मानकर धर्म की आड़ पर होने दिया जाता है? जबकि इसी बीच स्वर्ण मंदिर परिसर से एक अकाली नेता की गिरफ्तारी हो जाती है।
वैसे जो भी हो यह बात सत्य है कि स्थायित्व के मुद्दे पर कांग्रेस हर पार्टियों से बेहतर और भारी पड़ती है।
1989 व 1991 के उसके चुनावी घोषणा पत्रों के मुख्य मुद्दों की समीक्षा न की जाये तो कांग्रेस ने लम्बे समय के राजनीतिक अनुभव व परिपक्वता का पूरा लाभ उठाते हुए अपना घोषणा पत्र पेश किया है परन्तु जिस तरह उसने कुछ पार्टी विशेष पर लांछन लगाये हैं उससे लोकतंत्र की मर्यादा का हनन जरूर हुआ है।