चुनाव आयुक्त विवाद लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत

Update:1993-11-14 12:14 IST
गत सप्ताह अंग्रेजी अखबारों में मुख्य रूप से मुख्य चुनाव आयुक्त और नवनियुक्त आयुक्तों के  बीच जो अंर्तद्वंद्व उभरा, उसे दुर्भाग्यपूर्ण और स्वस्थ लोकतंत्र के  लिए घातक बताया गया। इसके  साथ ही अंग्रेजी अखबारों ने अमेरिका की उप विदेश मंत्री सुश्री राबिन राॅफेल की कश्मीर मामले पर दी गयी टिप्पणी व भारत के  विरोध के  बाद अमरीका के  राजनीतिक मामलांे में विदेश सचिव टार्नाफ की टिप्पणी पर भी मिलीजुली प्रतिक्रियाएं हैं।
चुनाव आयुक्तों में हुए विवाद के  बारे में इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि पी.वी.जी. कृष्णमूर्ति को नया चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया। चुनाव आयुक्त नियुक्त होने के  बाद कृष्णमूर्ति ने छह राज्यों में होने वाले चुनावों की पूरी की पूरी चुनाव प्रक्रिया को फिर से करने की बात कही। कृष्णमूर्ति ने यह जो भी कहा, उससे लोकतंत्र में सुधार के  प्रति उनकी आस्था कम, शेषन के  प्रति उनका राजनीतिक कौशल अधिक काम कर रहा था। कृष्णमूर्ति ने मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन द्वारा चुनाव मतदान प्रक्रिया के  लिए दिये गये आदेश का पालन न किया जाय, ऐसा राज्य एवं केंद्र सरकार को लिखकर भेजा। ऐसी नाजुक स्थिति में जबकि चुनाव इतने निकट हैं, कृष्णमूर्ति के  बयान से ऐसे जटिल कानूनी प्रश्न पैदा हो गये हैं, जिसकी सुनवाई उच्चतम न्यायालय 19 नवंबर को करेगी। अच्छा होता यदि उच्चतम न्यायालय ने संवैधानिक चुनौती के  रूप में कृष्णमूर्ति एवं गिल की नियुक्ति अध्यादेश को निरस्त कर दिया होता। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि कृष्णमूर्ति जो चाहें, वह करने का अधिकार रखते हैं। अखबार लिखता है कि कृष्णमूर्ति ने एक ‘सुपर ब्यूरोक्रेट की तरह काम किया न कि मूल संवैधानिक अधिकारी की तरह।’ आंध्र प्रदेश के  नक्सली नेता पुली अंजइया के  झूठी मुठभेड पर इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि नक्सलियों द्वारा तीन दिवसीय बंद का आह्वान पूरी तरह सफल रहा। जिससे यह पता चलता है कि पीपुल्स वार ग्रुप को ज्यादा समर्थन मिला है और पीपुल्स वार ग्रुप के  विरोध में पुलिस की लोगों को समझाने की योजना पूरी तरह फ्लाॅप रही। इस सफल बंद ने पीपुल्स वार ग्रुप के  कार्यकर्ताआंे को काफी उत्साहित किया।
चुनाव आयोग में हुए विवाद पर द टाइम्स आॅफ इंडिया लिखता है कि तीन जांबाजों के  बीच हुए युद्ध से ऐसा गंभीर खतरा चुनाव आयोग को पहुंचा है, जो खेद का विषय है। इन तीनों के  बीच चल रहे युद्ध में गहरा वैचारिक, सैद्धांतिक विरोध जो दिख रहा है, उससे यह लड़ाई पूरी तौर पर बिगड़ैल बच्चों की लड़ाई दिखती है। अखबार लिखता है कि शेषन, गिल एवं कृष्णमूर्ति में अपनी सेवाओं एवं पदांे की कोई मर्यादा शेष नहीं रह गयी है। इससे लोकतंत्र को आघात पहुंच रहा है। शेषन का अपने निर्णयों को अंजाम देने की जिद की अखबार ने आलोचना की है। दूसरी ओर अखबार गिल और कृष्णमूर्ति द्वारा शेषन के  विरोध को कुछ राजनीतिज्ञों व ब्यूरोक्रेट के  इशारे पर कार्रवाई बताया है।
मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन पर संपादकीय में ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ ने लिखा है कि लोकतांत्रिक इतिहास में पहली बार किसी मुख्य चुनाव आयुक्त ने चुनाव में मतदाताआंे को मत डालने के  लिए भयमुक्त रहने का उपाय कराया और इतना ही नहीं प्रेस को चुनाव प्रक्रिया की सही सूचना उपलब्ध कराने की दिशा में भी सराहनीय प्रयास किया। मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने उच्चतम न्यायालय के  प्रति आभार व्यक्त किया कि उनके  आदेशों को हू-ब-हू पालन करने के  लिए उच्चतम न्यायालय ने भी निर्देश जारी किये। इससे चुनाव आयुक्तों में गहराता विवाद समाप्त हो गया। अखबार ने चुनाव प्रक्रिया पूरी करवाने के  तौर तरीकों के  लिए शेषन की प्रशंसा की है। अखबार ने लिखा है कि शेषन ने मतदान एंव प्रेस को निष्पक्ष एवं स्वतंत्र बनाने के  लिए बिना किसी विलम्ब के  अध्योदश जारी किये। चुनाव आयुक्त एमएस गिल के  विरोध के  बावजूद शेषन ने यह स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता बरकरार रखी इसके  लिए शेषन की प्रशंसा की गयी है।
दि टाइम्स आॅफ इंडिया लिखता है कि के न्द्रीय वित्त मंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह ने पहली बार विदेशी कर्जों के  बारे में विश्वसनीय बयान जारी किया है जो निश्चित तौर से नपा तुला कहा जाएगा। उन्होंने अपने विदेशी कर्जों के  सांख्यिकी विश्लेषण में (भारत 90-92 से रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया की मदद से) बहुत दिनों से अधर में लटके  हुए प्रकाशन में कहा कि भारत पर पूरा विदेशी कर्जे 85.4 बिलियन डालर एक मार्च 93 के  अन्त में रहा। इसकी तुलना मार्च 92 के  अंत से की जाए तो यह 82.24 बिलियन डालर था, लेकिन मार्च 91 के  अंत में अलग-अलग संस्थाओं द्वारा एकत्रित सूचनाओं के  आधार पर 63 बिलियन डालर से 70 बिलियन डालर की ऋण राशि प्रकाशित की गयी थी। अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के  आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन के  अनुसार विश्व बैंक और अन्तरराष्ट्रीय बैंकों ने भारत के  ऊपर विदेशी कर्जों के  नपे तुले आंकलन को एक कठिनतम कार्य माना है और मनमोहन सिंह ने अपने सांख्यिकी विश्लेषण को अधिक से अधिक पारदर्शी बनाने का प्रयास किया है उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि रक्षा सम्बन्धी कर्जे का हिस्सा पूरे विदेशी कर्जे के  हिस्से में काफी तेजी से घटा है। अखबार लिखता है कि मनमोहन सिंह ने ऐसा करके  एक प्रशंसनीय कार्य किया है। यह भुगतान संतुलन की स्थिति को अधिक स्थायित्व प्रदान करते हुए मध्यम श्रेणी, बहुपक्षीय एंव द्विपक्षीय भुगतान स्थिति में अल्पकालीन ऋण की स्थिति को मजबूती प्रदान करता है और इसे मध्यम कालीन ऋण की श्रेणी में ले जाने के  योग्य बनाता है। इससे अर्थव्यवस्था में सुधार के  संके त दिखेंगे और भुगतान संतुलन की स्थिति में सुधार होगा।
वीरप्पा मोइली के  विरोधाभासी क्रियाकलापों ने कर्नाटक कांग्रेस में फैले विवाद पर आश्चर्यजनक ढंग से विराम लगा दिया। इस सम्बन्ध में दि टाइम्स आॅफ इंडिया लिखता है कि वीरप्पा मोइली के  विरोधी बंगलौर में सक्रिय बैठे रहे, जिससे के न्द्र से आने वाले पर्यवेक्षकों को मोइली के  अन्य पक्षधर के न्द्रीय मंत्री जाफर शरीफ के  अवैध जमीन सौदों के  बारे में भी बताया जा सके । वीरप्पा मोइली ने राजनीतिक कौशल से विरोधियों के  बीच मतभेद पैदा करा दिया, जिससे नेतृत्व परिवर्तन के  लिए आये के न्द्रीय पर्यवेक्षकों के  सामने विरोधी कोई ठोस प्रमाण नहीं दे सके । परन्तु विरोधियों ने फिर से यह धमकी दी है कि यदि उन्हें मुख्यमंत्री बनाये रखा गया या वो ऐसे ही सरकार चलाते रहे, तो उनके  विरोध में सौ विधायक इस्तीफा देंगे। मोइली ने कहा है कि के न्द्रीय नेतृत्त्व के  राय के  बिना कर्नाटक का नेतृत्व परिवर्तन का प्रश्न ही पैदा नहीं होता, और राजशेखरा मूर्ति को हटाने के  लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की राय लेना आवश्यक नहीं समझते।
इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि गुजरात में मुख्यमंत्री चिमन भाई पटेल एवं पूर्व गृहमंत्री सीडी पटेल की कांग्रेस की स्थिति पर टिप्पणी को पूरी तरह सत्यतः नहीं माना जा सकता। अखबार लिखता है कि सातवें दशक के  भ्रष्टाचार निवारण की घटना लोग भूले नहीं होंगे कि किस तरह से एक मशहूर तस्कर को गृहमंत्री बचा सकते हैं। अखबार लिखता है कि पिछले सितम्बर में सीडी पटेल के  साथ मशहूर तस्कर कच्छ में सी. पेट्रोलिंग कर रहा था। इसमें स्पष्ट हो गया कि सीडी पटेल ने जान बूझकर तस्कर विरोधी अभियान के  साथ धोखाधड़ी किया।
इंडियन एक्सप्रेस कश्मीर के  मुद्दे पर सुश्री राबिन राफेल के  शरारतपूर्ण बयान पर पीटर टार्नाफ ने टिप्पणी करके  शिमला समझौते को अप्रभावकारी बताने वाला कहा। राफेल की टिप्पणी का खण्डन कर और टार्नाफ ने कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। टार्नाफ ने शिमला समझौते को पाक-भारत सम्बन्ध विवाद को सुलझाने के  लिए सबसे महत्वपूर्ण साधन बताया। इखबार इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि टार्नाफ ने जहां शिमला समझौते को उचित बताया, वहीं टार्नाफ ने यह कहकर कि वह पाक के  कश्मीर मुद्दे पर द्विपक्षीय वार्ता को महत्व देते हैं। उनकी मंशा स्पष्ट होती है।
पीपुल्स वार ग्रुप के  नेता पुली अन्जैया को मुठभेड़ में मारने पर आंध्र प्रदेश में हुए एक सफल बंद के  आयोजन पर टिप्पणी करते हुए हिन्दुस्तान टाइम्स ने कहा कि यह एक झूठी मुठभेड़ थी। इस मुठभेड़ के  परिणामस्वरूप नक्सलवादियों ने कई बैंकों, बड़े भवनों व टेलीफोन एक्सचेंज को बम द्वारा उड़ा दिया। गत जनवरी में हैदराबाद के  उप महानिरीक्षक के एस व्यास की शहर के  व्यस्ततम बाजार में हत्या के  परिणामस्वरूप ही पुली अन्जैया की हत्या झूठे मुठभेड़ में की गयी।
हिन्दुस्तान टाइम्स लिखता है कि माओ कम्युनिस्ट सेंटर ने एक अदालत के  स्वरूप को इजाद किया है जिसे वो जन अदालत के  या कंगारू कोर्ट कहते हैं। जिसमें उन्हांेने 6 लोगों को सजा सुनाई है। गया जिले के  इन छह अपराधियों में से 2 की नाक उन्होंने काटी और 4 के  हाथ काट डाले।
हिन्दुस्तान टाइम्स ने अमरीका के  उप विदेशी मंत्री सुश्री राबिन राफेल के  उस विवादास्पद बयान पर अमरीका के  स्पष्टीकरण के  बाद लिखा है कि राजनीतिक कला में टार्नाफ सुश्री राबिन से ज्यादा सिद्धहस्त मानता है।
हिंदुस्तान टाइम्स लिखता है कि दिल्ली में 62 प्रतिशत मतदान लोगों में अपने मताधिकार के  प्रति जागरूकता बढ़ी है। स्पष्ट करता है।

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