विश्व अर्थव्यवसथा से जुड़ने और आर्थिक सुधार

Update:1998-01-16 16:09 IST
विश्व अर्थव्यवसथा से जुड़ने और आर्थिक सुधार कार्य योजना के  तहत भारत सरकार ने अब शेयर बाजार को भी विदेशी कम्पनियों के  लिए खोलने का निर्णय लिया है। सरकार पुराने व नये उद्यमों के  51 प्रतिशत शेयर विदेशी कम्पनियों को देने के  लिए सहमत है। निजी क्षेत्र के  उद्यमी जहां विदेशी कम्पनियों को शेयर बाजार में दी गयी छूट से अपनी कम्पनी पर नियंत्रण खोने और विदेशी कम्पनियों की कुशलता और पूंजीगत साधनों का मुकाबला करने में अपने आपको समर्थ पा रहे हैं, वहां सार्वजनिक क्षेत्र के  उद्यमों व निजी क्षेत्र के  उद्योगपति भी यह मांग कर रहे हैं कि उन्हीं शर्तों पर काम करने की अनुमति व सुविधाएं दी जाएं जो विदेश्ीा पूंजी निवेशकों को दी जा रही हैं। सरकार का दावा है कि विदेशी पूंजी निवेश अर्थव्यवस्था के  बुनयादी ढांचे को मजबूत करने वाले क्षेत्रों में किया जा रहा है। लेकिन प्राथमिकता वाले उद्योग व क्षेत्र विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सौंप देने के  दूरगामी परिणाम हो सकते हैं और सरकार विश्व आर्थिक इतिहास के  घटनाक्रम की अनदेखी नहीं कर सकती।
हाल में के न्द्र सरकार द्वारा खनिज तेल के  क्षेत्रों को, जिनकी खोज भारतीय प्रतिष्ठानों या तेल व प्राकृतिक गैस आयोग द्वारा की गयी थी, विशालकाय बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सौंप देना, भारत की आर्थिक स्वतंत्रता के  साथ खिलवाड़ करना है। सरकार ने विदेशी कम्पनियों को इस क्षेत्र में प्रवेश करने के  लिए आकृष्ट करने के  लिये यह भी कहा है कि बिना किसी जोखिम के  उन्हें जल्द प्रतिफल प्राप्त हो सके गा। सरकार द्वारा इस नीति के  अनुरूप बम्बई हाई आयल फील्ड (खनिज तेल क्षेत्र) के  विकास के  लिये बहुराष्ट्रीय तेल कम्पनियों को पंूजी-निवेश की कुछ शर्तों के  साथ न्यौता दिया जा रहा है। दुनिया की 29 प्रमुख विदेशी कम्पनियां ऐसी हें, जो खनिज तेल के  क्षेत्र में अग्रणी हैं और इनमें ब्रिटिश पेट्रोलियम शेल भी शामिल है। इसके  अतिरिक्त देश के  अन्य तेल क्षेत्रों के  विकास के  लिए भी विदेशी कम्पनियांे को आमंत्रित किया गया है।
कैसी विडम्बना है कि सरकारी क्षेत्र के  उद्यमों द्वारा खनिज तेल के  क्षेत्रों की खोज व विकास में पूरी जोखिम उठाने और पूंजी लगाने के  बाद विदेशी बहुराष्ट्रीय निगमों को पूंजी निवेश के  अवसर प्रदान किये जा रहे हैं, जिससे कि वे जोखिम उठाये बिना ज्यादा मुनाफा तुरन्त कमा सकें। विदेशी पूंजी के  प्रवेश या बहुराष्ट्रीय निगमांे को बढ़ावा देने के  पक्ष में यह तर्क भी रखा जाता है कि इससे देश के  आर्थिक विकास या बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी, लेकिन बस्तुस्थिति यह है कि भारत के  आर्थिक विकास के  लिए न तो जोखिम उठाने के  लिए विदेश्ीा पूंजी की अब आवश्यकता है और न उच्च स्तरीय टेक्नोलाॅजी की। फिर भी इन विदेशी कम्पनियों को बिना कोई जोखिम उठाये खनिज तेल के  क्षेत्रों को सौंपा जा रहा है, जिससे ये कम्पनियां भारत के  प्राकृतिक साधनों व सस्ते श्रम का फायदा उठाकर देश के  उपभोक्ताओं से ज्यादा कीमतल वसूल कर सकें। यह सब कुछ उदारीकरण व प्रतियोगिता के  नाम पर हो रहा है।
स्मरण रहे, भारत के  खनिज तेल क्षेत्र से 1970 के  दशक के  आरम्भ में तेल-क्षेत्र के  बहुराष्ट्रीय निगमों को निकाला गया था, क्योंकि वे खनिज तेल की खोज और भारत में खनिज तेल निकालने में विफल रहे थे व दूसरे देशों से खनिज तेल मंगाकर तेल शोधन के  बाद यहां व्यापार द्वारा अनाप-शनाप मुनाफा कमा रहे थे, लेकिन ऐसी विदेशी कम्पनियां उदारीकण की नीति के  तहत अपनी शर्तों पर पुनः भारत के  खनिज तेल क्षेत्र में प्रवेश कर रही हैं। इतना ही नहीं सरकार की नीति, के  अनुसार पेट्रोल पदार्थों के  वितरण या मूल्य पर भी सरकार, का कोई नियंत्रण नहीं रहेगा जो दूसरी सरकारी क्षेत्र की कम्पनियों पर है।
खनिज तेल के  क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय तेल कम्पनियों के  पुनः प्रवेश का निर्णय लेते समय सरकार ने ऐसी कम्पनियों के  बारे में भारत के  पिछले अनुभव को नजरअंदाज कर दिया है और विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ने और उदारीकरण की नीति लागू करने व विश्व बैंक व अन्तरराष्ट्रीय मुद्राकोष की प्रशंसा की पात्र बनने में सरकार लगी हुई। 1970 के  दशक के  अंत में खनिज तेल की खोज, उत्पादन व तेल-शोधन के  लिए आवश्यक टेक्नोलाॅजी व उपकरण दूसरे देशों सेको बहस को अनुभव बनाम विचारधारा का विकृत रूप देकर अपने अनुभवांे और कुछ स्थूल जड़ीभूत धारणाओं को विचारधारा कहकर थोपने के  पक्षधर नहीं थे। यह सच है कि उनके  जीवन में कथनी और करनी में बेहद महीन अंतर भी एकदम मिट से गये थे। उनकी विचारधारा कुछ आरम्भिक विचार बिन्दुओं और अनुभवों की द्वंदात्मकता पर निरंतर और निःसंकोच स्वयं को ही संशोधित और संवर्द्धित करते हुए एक दशक पूरा कर गयी। सरल रेखीय वैचारिकी आज जब माधवी पूरे आत्म तोष का वाहक और प्रतीक बनकर एक शताब्दी पूरी कर लेने और उदासीन असंतोष के  बाद भी जय घोष करना एक महान कार्य है, जिसे सफलतापूर्वक पूरा करने के  लिए ही गुलजारी लाल नंदा याद किये जायेंगे। पिछले कुछ दशकों में जितने मूलगामी और त्वरित परिवर्तन का शिकार हमारा समाज हुआ है, उतने ही इसके  प्रत्याभिज्ञान के  विभिन्न अनुशासनों में नई विचारधारा मूल्य दृष्टियां और स्वहित पोषी तर्कों का प्रतिपादन हुआ है।
गुलजारी लाल नंदा ने अपने जीवन के  उत्पीड़न, उपेक्षित साधारणजनांे के  स्वतः स्फूर्त और लोकमानस की भावनाओं, विद्रोहों का सूक्ष्म आख्यान लिखा है। वे देश के  एकमात्र ऐसे राजनीतिक थे, जिन्होंने सरकार में रहकर भ्रष्टाचार के  खिलाफ मोर्चा खोला था। उनका मानना था कि अगर गांधी जी के  दिखाए रास्ते पर देश को चलाया गया तो आज की विषम स्थितियां पैदा नहीं हो पातीं। समआस्पेक्ट्स आॅफ खादी नामक अपनी पुस्तक में उन्होंने गांधी के  कई सिद्धांतों की चिर प्रासंगिकता को स्थापित भी किया है।
लोगों को जोड़ने और उन्हें आंदोलित करने की उनकी प्रबल इच्छा रहती थी, लेकिन उम्र और स्वास्थ्य से साथ छोड़ दिया था। वे मानते थे कि मनुष्य के  लिए धर्म जितना आवश्यक है उतना ही जरूरी है राष्ट्र। राष्ट्रहित के  खिलाफ बोलने वालों से लोहा लेने के  लिए वे युवकों को प्रेरित तो करते ही थे, स्वयं भी तैयार रहते थे। गुलजारी लाल नंदा दिल्ली की बसों में यात्रा करते हुए लोगों को कई बार मिले थे। वे चाहते थे देश का नौजवान नम्र हो, देश और समाज की परम्परा से परे किसी चीज को मंजूर न करें। अपना लक्ष्य ऊंचा रखते हुए देश की सेवा करें। सरकार ने उन्हें भारत रत्न प्रदान करके  अपने कर्तव्यों की इतिश्री भले ही मान लिया हो, लेकिन उनके  प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि देश का नौजवान राजनीति और समाज के  प्रति पारदर्शी, इमानदारी कायम रखते हुए देश और समाज की परम्परा से परे किसी चीज को मंजूर न करे।

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