केशरी के लिए हिन्दी संस्थान की नियमावली में परिवर्तन की तैयारी

Update:1998-04-30 14:56 IST
प्रदेश सरकार उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की नियमावली में परिवर्तन करने की तैयारी कर रही है। इस परिवर्तन के  परिणाम स्वरूप जहां वर्तमान कार्यकारी उपाध्यक्ष हेमलता नागपाल हिन्दी संस्थान से बाहर होंगी वहीं कार्यकारी अध्यक्ष शरण बिहारी गोस्वामी को कार्यकारी अध्यक्ष की जगह कार्यकारी उपाध्यक्ष के  पद पर परिलब्धियों पर ही संतोष करना पडे़गा। नियमावली में इस परिवर्तन के  बाद विधानसभा अध्यक्ष जो आज पदेन उपाध्यक्ष हैं, को कार्यकारी अध्यक्ष की हैसियत प्राप्त हो जाएगी।
उल्लेखनीय है कि कल्याण सिंह की पिछली सरकार में शरण बिहारी गोस्वामी को कार्यकारी उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। कल्याण सिंह सरकार के  चले जाने के  बाद राष्ट्रपति शासन में श्री गोस्वामी को हिन्दी संस्थान से बाहर कर दिया गया। उन्होंने उच्च न्यायालय से अपने पक्ष में एक स्थगन आदेश तो प्रापत कर लिया लेकिन कुर्सी पर भौतिक रूप से दोबारा काबिज नहीं हो पाये। उपाध्यक्ष एवं कार्यकारिणी के  बिना भी संस्थान को नौकरशाही के  बदौलत लंबे समय तक चलाया गया। राष्ट्रपति शासन के  बाद जब मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने लक्ष्मीकांत वर्मा को उपाध्यक्ष की कुर्सी पुनः सौंपनी चाही। परंतु शरण बिहारी गोस्वामी के  पास उच्च न्यायालय का स्थगन होने के  कारण मुलायम सिंह लक्ष्मीकांत वर्मा को संस्थान की कुर्सी पुनः सौंपने में स्वयं को सक्षम नहीं पा रहे थे। लक्ष्मीकांत वर्मा समर्थकों ने मुलायम सिंह को दो राय थी कि कार्यकारी उपाध्यक्ष पद पर स्टे है क्योंकि न श्री वर्मा को कार्यकारी अध्यक्ष का नया पद बनाकर बिठा दिया जाय। परिणामतः 08 मार्च 94 को पत्रांक संख्या-सीएम-आठ/15-14-94-52(48/83) के  माध्यम से नियमावली में संशोधन कर श्री वर्मा को कार्यकारी अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज करा दिया गया था।
उल्लेखनीय है कि भाजपा सरकार के  आते ही शरण बिहारी गोस्वामी को नवसृजित कार्यकारी अध्यक्ष पद पर बिठा दिया गया और कार्यकारी उपाध्यक्ष पद पर हेमलता नागपाल काबिज हो गयीं। दिलचस्प यह है कि सुश्री नागपाल के  पास न तो कोई नियुक्ति पत्र है और न ही इन्हें आज तक निर्धारित मानदेय मिला है। जबकि इनकी नियुक्ति हुए दस माह से अधिक हो गये हैं। कार्यकारी उपाध्यक्ष को तीन हजार मासिक एवं अध्यक्ष को पांच हजार रूपये वेतन तथा मानदेय दिया जाता है।
सूत्र बताते हैं कि संस्थान की नियमावली में परिवर्तन विधानसभा अध्यक्ष के  निर्देशानुसार किया जा रहा है। वे प्रो. वासुदेव शरण सिंह की तरह हिंदी संस्थान एवं हिंदी के  लिए अपने हिंदी प्रेम का खुलासा करना चाहते हैं। प्रो. सिंह ने एक उत्कृष्ट हिंदी सेवक के  रूप में रेखांकित करने वाले कई काम किए हैं और वह एक साहित्य सम्पन्न जीवन दृष्टि वाले व्यक्ति रहे। जबकि वर्तमान अध्यक्ष श्री त्रिपाठी एक विधि वेत्ता हैं और हिंदी के  क्षेत्र में उनका आज तक कोई उल्लेखनीय योगदान नहीं है।

Similar News