भारतीय जनता पार्टी के आन्तरिक संघर्ष एवं प्रदेश सरकार की अदूरदर्शिता के चलते उ.प्र. हिंदी संस्थान में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। संस्थान में दो कार्यकारी अध्यक्ष काबिज हैं। राज्य सरकार ने संस्थान की मूल नियमावली के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान को बहाल करते हुए विधानसभा अध्यक्ष के सरीनाथ त्रिपाठी को पदेन कार्यकारी अध्यक्ष नामित कर दिया। जबकि पिछले वर्ष 23 मई को एक शासनादेश के जरिये भाजपा सरकार ने ही निवर्तमान अध्यक्ष शरण बिहारी गोस्वामी की भी नियुक्ति की थी।
भाषा, उर्दू अनुभाग-1 की अधिसूचना के अनुसार अब विधानसभा अध्यक्ष पदेन उ0प्र0 हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष होंगे। परंतु अधिसूचना के पश्चात् भी श्री गोस्वामी ने आज मुद्रण एवं प्रकाशन उप समिति की बैठक में कार्यकारी अध्यक्ष की हैसियत से शिरकत की। नई अधिसूचना में यह उल्लेख तो है कि संस्थान ने एक पूर्णकालिक उपाध्यक्ष की नियुक्ति शासन द्वारा की जाएगी। परंतु आज तक पूर्णकालिक कार्यकारी उपाध्यक्ष कौन होगा इस संबंध में कोई स्पष्ट आदेश जारी नहीं किया गया। यही नहीं अधिसूचना में इस बात का भी उल्लेख नहीं है कि वर्तमान में कार्यकारी उपाध्यक्ष के पद पर कार्यरत हेमलता नागपाल की वैधानिक स्थिति क्या होगी? सूत्र बताते हैं कि संस्थान की नियमावली में परिवर्तन विधानसभा अध्यक्ष के एक पत्र के नाते करना पड़ा। उल्लेखनीय है कि 1992 में हिंदी संस्थान के तत्कालीन कार्यकारी उपाध्यक्ष (पूर्णकालिक) को तत्कालीन भाजपा सरकार ने मात्र अधिसूचना जारी करके डा. शरण बिहारी गोस्वामी को कार्यकारी उपाध्यक्ष (पूर्णकालिक) नियुक्त कर दिया था, जिसके खिलाफ परिपूर्णानंद वर्मा ने हाईकोर्ट की शरण ली और अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उनके पास कार्यकारी उपाध्यक्ष (पूर्णकालिक) बनाये जाने का आदेश है। इस आदेश के निस्तारीकरण न होने के बाद भी डाॅ. गोस्वामी को कार्यकारी उपाध्यक्ष बनाया जाना गैर कानूनी है। उच्च न्यायालय ने श्री वर्मा के पक्ष में स्थगन आदेश देते हुए उन्हें तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा करने का अवसर दिया। श्री वर्मा का कार्यकाल पूरा होने के बाद ही डाॅ. गोस्वामी की नियुक्ति संभव हो सकी।
संस्थान में आज हुई एक उपसमिति की बैठक के बाद निदेशक अरूण सिंह से नए शासनादेश के बाद कार्यकारी अध्यक्ष पद पर कार्य कर रहे शरण बिहारी गोस्वामी की वैधानिक स्थिति के बारे में पूछने पर बताया कि अभी शासनादेश जारी हुआ है। जब तक एडमिनिस्ट्रेटिव आर्डर जारी नहीं होगा तब तक श्री गोस्वामी कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर बने रहेंगे परंतु शरण बिहारी गोस्वामी को एक विधिवत्् शासनादेश द्वारा पूर्णकालिक कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने एवं फिर संस्थान की नियमावली में परिवर्तन कर संशोधित नियमावली अधिसूचना द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को संस्थान का कार्यकारी अध्यक्ष नामित करने से उत्पन्न संवैधानिक संकट के बादल छटते नजर नहीं आ रहे हैं। एक ओर जहां श्री गोस्वामी एडमिनिस्ट्रेटिव आर्डर की प्रति की प्रतीक्षा करते हुए अपनी स्थिति जानने के इच्छुक हैं वहीं हेमलता नागपाल अपने पद को बरकरार रखने के लिए जोड़ जुगत में हैं।
भाषा, उर्दू अनुभाग-1 की अधिसूचना के अनुसार अब विधानसभा अध्यक्ष पदेन उ0प्र0 हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष होंगे। परंतु अधिसूचना के पश्चात् भी श्री गोस्वामी ने आज मुद्रण एवं प्रकाशन उप समिति की बैठक में कार्यकारी अध्यक्ष की हैसियत से शिरकत की। नई अधिसूचना में यह उल्लेख तो है कि संस्थान ने एक पूर्णकालिक उपाध्यक्ष की नियुक्ति शासन द्वारा की जाएगी। परंतु आज तक पूर्णकालिक कार्यकारी उपाध्यक्ष कौन होगा इस संबंध में कोई स्पष्ट आदेश जारी नहीं किया गया। यही नहीं अधिसूचना में इस बात का भी उल्लेख नहीं है कि वर्तमान में कार्यकारी उपाध्यक्ष के पद पर कार्यरत हेमलता नागपाल की वैधानिक स्थिति क्या होगी? सूत्र बताते हैं कि संस्थान की नियमावली में परिवर्तन विधानसभा अध्यक्ष के एक पत्र के नाते करना पड़ा। उल्लेखनीय है कि 1992 में हिंदी संस्थान के तत्कालीन कार्यकारी उपाध्यक्ष (पूर्णकालिक) को तत्कालीन भाजपा सरकार ने मात्र अधिसूचना जारी करके डा. शरण बिहारी गोस्वामी को कार्यकारी उपाध्यक्ष (पूर्णकालिक) नियुक्त कर दिया था, जिसके खिलाफ परिपूर्णानंद वर्मा ने हाईकोर्ट की शरण ली और अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उनके पास कार्यकारी उपाध्यक्ष (पूर्णकालिक) बनाये जाने का आदेश है। इस आदेश के निस्तारीकरण न होने के बाद भी डाॅ. गोस्वामी को कार्यकारी उपाध्यक्ष बनाया जाना गैर कानूनी है। उच्च न्यायालय ने श्री वर्मा के पक्ष में स्थगन आदेश देते हुए उन्हें तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा करने का अवसर दिया। श्री वर्मा का कार्यकाल पूरा होने के बाद ही डाॅ. गोस्वामी की नियुक्ति संभव हो सकी।
संस्थान में आज हुई एक उपसमिति की बैठक के बाद निदेशक अरूण सिंह से नए शासनादेश के बाद कार्यकारी अध्यक्ष पद पर कार्य कर रहे शरण बिहारी गोस्वामी की वैधानिक स्थिति के बारे में पूछने पर बताया कि अभी शासनादेश जारी हुआ है। जब तक एडमिनिस्ट्रेटिव आर्डर जारी नहीं होगा तब तक श्री गोस्वामी कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर बने रहेंगे परंतु शरण बिहारी गोस्वामी को एक विधिवत्् शासनादेश द्वारा पूर्णकालिक कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने एवं फिर संस्थान की नियमावली में परिवर्तन कर संशोधित नियमावली अधिसूचना द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को संस्थान का कार्यकारी अध्यक्ष नामित करने से उत्पन्न संवैधानिक संकट के बादल छटते नजर नहीं आ रहे हैं। एक ओर जहां श्री गोस्वामी एडमिनिस्ट्रेटिव आर्डर की प्रति की प्रतीक्षा करते हुए अपनी स्थिति जानने के इच्छुक हैं वहीं हेमलता नागपाल अपने पद को बरकरार रखने के लिए जोड़ जुगत में हैं।