विश्व पूंजीवाद के संकट के दौर और बाजार के न्द्रित अर्थव्यवस्थाओं के अस्तित्व के सामने उत्पन्न हो रही चुनौतयों के काल में गरीब और वंचितों का पक्षधर अर्थशास्त्र पुरस्कृत हुआ आर्थिक समृद्धि के संसाधन न पहुंच पाने के कारणों की जांच-परख करते हुए प्रो. अमत्र्य सेन ने जहां गरीबी के लिए असामान्य वितरण को जिम्मेदार ठहराया वहीं कल्याणकारी अर्थशास्त्र की अवधारणा के तहत एक नया आर्थिक पथ सुझाया। लम्बे समय से विश्व के प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों की जमात में शामिल प्रो. अमत्र्य सेन ने भारतीय चिन्तन एवं दर्शन को अर्थशास्त्र में स्थापित किया। इनके अध्ययन से अर्थशास्त्र को महज धन का विज्ञान मानने वाली परिभाषा जहां बौनी साबित हुई वहीं आदमी को हाशिये पर रखकर आंकड़ों को प्रतिष्ठित करने वाली प्रवृत्तियों को धक्का लगा। इनका आर्थिक चिन्तन गरीब और वंचित लोगों को आर्थिक प्रक्रियाओं में भागीदार बनाने के लिए नये और अपारम्परिक उपाय खोजने पर के न्द्रित है। अपने आर्थिक सिद्धान्त में उत्पादन के साधनों के समान वितरण के बिना श्री सेन विस्मृत एवं वंचित लोगों की आर्थिक खुशहाली का सपना नहीं देखते।
प्रेसीडेन्सी काॅलेज कलकत्ता से स्नातक डाॅ. सेन ने बी.ए. ट्राइपस (जिसके तहत तीन विषयों में आनर्स होता है) किया। इन्हें ‘च्वायस आॅफ टेक्निक्स’ में पीएचडी की उपाधि मिली। इनका यह शोध प्रबंध आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित भी हुआ। उन्होंने जादवपुर विश्वविद्यालय, कलकत्ता एवं दिल्ली स्कूल आॅफ इकनामिक्स में अध्यापक रहे श्री सेन ट्रिनिटी काॅलेज-कैम्ब्रिज, लंदन स्कूल आॅफ इकोनामिक्स एवं पाॅलिटिक्स-लंदन यूनिवर्सिटी, आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, प्रिस्टन विश्वविद्यालय-अमरीका, हावर्ड विश्वविद्यालय में भी इन्होंने अध्यापन किया। हावर्ड विश्वविद्यालय में इन्होंने प्रोफेसर आॅफ इकोनाॅमिक्स और फिलासफी के पद पर ज्वाइन किया। ट्रिनिटी कालेज, कैम्ब्रिज में वे मास्टर आॅफ ट्रिनिटी कालेज के पद पर रहे। इंडियन इकोनाॅमिक एसोसिएशन तथा इंटरनेशनल इकोनाॅमिक एसोसिएशन के प्रेसीडेंट रहे श्री सेन को अर्थशास्त्र के क्षेत्र में एडम स्मिथ के नाम पर प्रदान की जाने वाली प्रतिष्ठित एडम स्मिथ स्कालरशिप भी मिलती रही है।
दिल्ली स्कूल आॅफ इकोनाॅमिक्स के प्रवासकाल में प्रशान्त पटनायक तथा डी.पी. चैधरी नामक अपने दो शोध छात्रों का दो वर्ष से कम समय में पीएचडी कराने का गौरव भी इनके खाते में दर्ज है। उल्लेखनीय है कि प्रशांत पटनायक के शोध प्रबंध के एक्सटर्नल इक्जामनर नोबल लारेंट कैनेथ एरो एवं जान हिक्स थे। नियोजन के सिद्धांत से लेकर कल्याणकारी अर्थशास्त्र की फिलासफी, थ्योरी के साथ-साथ मैथडलाॅजी आॅफ पावरिटी पर इनके अध्ययन को सेन स्टडीज के नाम से अर्थशास्त्र में जाना जाता है। थ्योरी आॅफ सोशल च्वायस एंड पाॅलिसी पर उन्होंने खासा काम किया है। उनके कामों की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि फिलासफी, थ्योरी और मैथडलाॅजी में खास परस्परिक सम्बन्ध रहा है। इतना ही नहीं ह्यूमन बिइंग हमेशा उनके अध्ययन के के न्द्र में रहा है। इसी पृष्ठभूमि पर उन्होंने दुनिया के थर्ड वल्र्ड कंट्रीज की गरीबी, बेरोजगारी पर काम करके सुझाव के रूप में ठोस आकार भी दिया। सामाजिक विकास के उनके मध्ययन में स्वास्थ्य और शिक्षा खास तौर से रेखांकित हुए। उनहोंने अपने अध्ययन में यह बताया कि बाजारोन्मुखी अर्थव्यवस्था में जो कंटेन्ट आॅफ फिलासफी है उससे अलग हटकर राज्य के हस्तक्षेप से सामाजिक विकास के क्षेत्र में कल्याणकारी अर्थशास्त्र को बढ़ावा देना ही पड़ेगा। आज के आर्थिक दर्शन में उन्होंनेे एक नया विकल्प दिया। अमत्र्य सेन को पढ़ने के बाद यह कहा जा सकता है कि उनका अध्ययन महज सैद्धान्तिक नहीं है वरन् वह व्यावहारिक हल भी प्रदान करता है। बेरोजगारी, गरीबी और भुखमरी कैसे हटे इस दिशा में अमत्र्य सेन ने काम करके कहा कि जब तक साक्षरता, स्वास्थ्य, भूमि सुधार जैसे बुनियादी काम नहीं किये जायेंगे तब तक आर्थिक विकास में हाशिये पर खड़े नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित नहीं की जा सकती। वे यह भी मानते हैं कि इसके अभाव में विकास दर का कोई मतलब नहीं रह जाता है। वे अकाल को अनाजों की कमी का नतीजा नहीं मानते हैं वरन् कहते हैं कि अकाल अनाजों का उचित बंटवारा न होने का परिणाम है।
उनके अर्थशास्त्र में गरीबी भी संसाधनों के अनुचित बंटवारे का परिणाम है जिसे पूरी दुनिया में कहीं भी और कभी भी देखा जा सकता है। वे दर्शनशास्त्र भी पढ़ाते हैं इसलिए उनके सामने कभी भी अर्थशास्त्र का महज आर्थिक मनुष्य नहीं रहा है। समाज के निर्धनतम व्यक्तियों को पीड़ित करने वाली आपदाओं के बारे में नयी समझदारी प्रस्तुत करने वाले अमत्र्य सेन ने अपने पुरस्कार को अपनी उपलब्धि न मानते हुए कल्याणकारी अर्थशास्त्र को उचित मान्यता बताया है। डा. सेन के बारे में स्वीडिश एके डमी आॅफ साइंसेज ने अपने प्रशस्ति पत्र में लिखा है, डाॅ. सेन के कार्य ने दुर्भिक्ष और गरीबी के लिए उत्तरदायी आर्थिक प्रक्रियाओं की समझदारी में इजाफा किया है। उन्होंने भूख, निर्धनता के आर्थिक तंत्र का इतनी गहराई से अध्ययन किया है कि उन्हें इस क्षेत्र में विशेषज्ञ माना जाता है। अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाले प्रो. सेन पहले एशियाई, छठवें भारतीय और चैथे कलकत्ता निवासी हंै।
1933 में बंगाल में जन्मे अमत्र्य सेन आर्थिक विकास की पश्चिमी अवधारणा के प्रबल विरोधी माने जाते हैं क्योंकि उनका मानना है कि पूंजी किसी तंत्र में एकमेव संसाधन नहीं हो सकती है वे बाजारवादी प्रक्रिया को पर्याप्त नहीं मानते हैं। डा. सेन ने लगभग दो दर्जन किताबें लिखी हैं। जिसमें मुख्य हैं-ट्रेंड्स इन रूरल इम्प्लायमेंट एण्ड पावर्टी इम्प्लायमेंट, एन इक्वेलिटी रिइक्जामिन्ड, आॅन इथिक्स एंड इकोनोमिक्स, च्वायस वेलफेयर एंड मेजरमेंट, कामाडिटी एंड कैपिबिलटीज, इम्प्लायमेट टेक्नोलाॅजी एंड डेवलपमेंट, द स्टैण्डर्ड आॅफ लीविंग, स्टडीज आॅन इंडियन एग्रीकल्चर, ग्रोथ इकोनाॅमिक्स सेलेक्टेड रीडिंग्स। डाॅ. सेन को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्रदान किये जाने पर भारतीय अर्थशास्त्रियों में विशेष उत्साह है क्योंकि डाॅ. अमत्र्य सेन आज भी प्रति वर्ष भारत आते हैं। हर साल भारत में अमत्र्य सेन के भाषणों का एक सिलसिला चलता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था व आर्थिक नीतियों में नैतिक मूल्यों को कोई जगह नहीं दी गयी है, इसके पक्ष में दिये गये उनके तर्क बेहद मजबूत होते हैं। इसकी कड़ी आलोचना करते हुए वे कहते हैं इस देश में विश्व के सबसे अधिक गरीब रहते हैं और इसके साथ ही सबसे बड़े आकार का मध्यम वर्ग भी यहां निवास करता है। अर्थव्यवस्था की खामियों को बताते हुए प्रो. सेन कहते हैं इसका कारण योजना बनाने की दोषपूर्ण प्रक्रिया है। आज लाइसेंस, कोटा राज की समाप्ति के साथ ही विकास को गति दी जा रही है। आर्थिक मोर्चे पर नये सिरे से प्रयास किये जा रहे हैं। इस विकास यात्रा में गरीबों को रखते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि दक्षिण पूर्व देशों व चीन ने इतनी सफलता इसलिए पायी है कि उन्होंने उदारीकरण लागू करने के पहले ही अपने देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में ध्यान दिया। इसलिए भारत सही तरीके से विकास तब तक नहीं कर सकता जब तक कि वह एक प्रभावी सामाजिक उत्थान नीति न बना ले। अमत्र्य सेन का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण जिन लोगों के साथ पर्याप्त कुशलता नहीं है या जो लोग प्रशिक्षित नहीं हैं वे अपने पेशे से हाथ धो बैठंेगे।
इनका मत है कि सेवा क्षेत्र के विस्तार के साथ ही शिक्षा के स्तर व प्रशिक्षण को भी व्यापक रूप देना होगा। वे भारत को विश्व बाजार या विश्व अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ने की कोशिशों के विरोधी तो नहीं हैं परन्तु उनका दृढ़ विश्वास है कि इस जुड़ाव से भारत के गरीब का कल्याण होने वाला नहीं है। गरीबी रेखा का निर्धारण करके आर्थिक नीतियों के निर्माण के मूल में डाॅ. सेन की आर्थिक सोच ही है।
गिरि इंस्टीट्यूट आॅफ डेवलपमेन्ट स्टडीज के निदेशक डाॅ. जी.पी. मिश्र प्रो. सेन के पुरस्कृत होने पर कहते हैं क्राउनिंग मोमेन्ट, वे मात्र एक अर्थशास्त्री नहीं हैं मेरी समझ में वे पूरे विश्व में अर्थशास्त्र के सबसे अच्छे अध्यापक हैं। अमरीका में उनकी नियुक्ति पर बोली लगती है। विश्वविद्यालय उन्हें अपने यहां नियुक्त करने पर गौरवान्ति होते हैं। यह हमारे लिए और भी गौरव का विषय है कि उन्होंने भारतीय नागरिकता नहीं छोड़ी है। वर्तमान में वे एशियाई विकास बैंक ह्यूमन डिप्राइवेशन इन्डेक्स बनाने की एक परियोजना में काम कर रहे हैं। एशियाई विकास बैंक के सहायक मुख्य अर्थवेत्ता एम.जी. क्विब्रिया ने कहा, ‘डाॅ. सेन एशियाई विकास बैंक के एक विकासशील सदस्य देश से आते हैं और उनकी उपलब्धि पर हमें गर्व है।’ श्री सेन हाल के वर्षों में बैंक की मानव संसाधन विकास से जुड़ी विभिन्न परियोजनाओं से जुड़े हैं। पूंजीवाद के आसन्न संकट और समाजवादी गढ़ों के पराभव के बाद विश्व अर्थव्यवस्था को नयी दिशा देने में प्रो. सेन के विचार ही एकमात्र रास्ता हैं।
प्रेसीडेन्सी काॅलेज कलकत्ता से स्नातक डाॅ. सेन ने बी.ए. ट्राइपस (जिसके तहत तीन विषयों में आनर्स होता है) किया। इन्हें ‘च्वायस आॅफ टेक्निक्स’ में पीएचडी की उपाधि मिली। इनका यह शोध प्रबंध आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित भी हुआ। उन्होंने जादवपुर विश्वविद्यालय, कलकत्ता एवं दिल्ली स्कूल आॅफ इकनामिक्स में अध्यापक रहे श्री सेन ट्रिनिटी काॅलेज-कैम्ब्रिज, लंदन स्कूल आॅफ इकोनामिक्स एवं पाॅलिटिक्स-लंदन यूनिवर्सिटी, आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, प्रिस्टन विश्वविद्यालय-अमरीका, हावर्ड विश्वविद्यालय में भी इन्होंने अध्यापन किया। हावर्ड विश्वविद्यालय में इन्होंने प्रोफेसर आॅफ इकोनाॅमिक्स और फिलासफी के पद पर ज्वाइन किया। ट्रिनिटी कालेज, कैम्ब्रिज में वे मास्टर आॅफ ट्रिनिटी कालेज के पद पर रहे। इंडियन इकोनाॅमिक एसोसिएशन तथा इंटरनेशनल इकोनाॅमिक एसोसिएशन के प्रेसीडेंट रहे श्री सेन को अर्थशास्त्र के क्षेत्र में एडम स्मिथ के नाम पर प्रदान की जाने वाली प्रतिष्ठित एडम स्मिथ स्कालरशिप भी मिलती रही है।
दिल्ली स्कूल आॅफ इकोनाॅमिक्स के प्रवासकाल में प्रशान्त पटनायक तथा डी.पी. चैधरी नामक अपने दो शोध छात्रों का दो वर्ष से कम समय में पीएचडी कराने का गौरव भी इनके खाते में दर्ज है। उल्लेखनीय है कि प्रशांत पटनायक के शोध प्रबंध के एक्सटर्नल इक्जामनर नोबल लारेंट कैनेथ एरो एवं जान हिक्स थे। नियोजन के सिद्धांत से लेकर कल्याणकारी अर्थशास्त्र की फिलासफी, थ्योरी के साथ-साथ मैथडलाॅजी आॅफ पावरिटी पर इनके अध्ययन को सेन स्टडीज के नाम से अर्थशास्त्र में जाना जाता है। थ्योरी आॅफ सोशल च्वायस एंड पाॅलिसी पर उन्होंने खासा काम किया है। उनके कामों की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि फिलासफी, थ्योरी और मैथडलाॅजी में खास परस्परिक सम्बन्ध रहा है। इतना ही नहीं ह्यूमन बिइंग हमेशा उनके अध्ययन के के न्द्र में रहा है। इसी पृष्ठभूमि पर उन्होंने दुनिया के थर्ड वल्र्ड कंट्रीज की गरीबी, बेरोजगारी पर काम करके सुझाव के रूप में ठोस आकार भी दिया। सामाजिक विकास के उनके मध्ययन में स्वास्थ्य और शिक्षा खास तौर से रेखांकित हुए। उनहोंने अपने अध्ययन में यह बताया कि बाजारोन्मुखी अर्थव्यवस्था में जो कंटेन्ट आॅफ फिलासफी है उससे अलग हटकर राज्य के हस्तक्षेप से सामाजिक विकास के क्षेत्र में कल्याणकारी अर्थशास्त्र को बढ़ावा देना ही पड़ेगा। आज के आर्थिक दर्शन में उन्होंनेे एक नया विकल्प दिया। अमत्र्य सेन को पढ़ने के बाद यह कहा जा सकता है कि उनका अध्ययन महज सैद्धान्तिक नहीं है वरन् वह व्यावहारिक हल भी प्रदान करता है। बेरोजगारी, गरीबी और भुखमरी कैसे हटे इस दिशा में अमत्र्य सेन ने काम करके कहा कि जब तक साक्षरता, स्वास्थ्य, भूमि सुधार जैसे बुनियादी काम नहीं किये जायेंगे तब तक आर्थिक विकास में हाशिये पर खड़े नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित नहीं की जा सकती। वे यह भी मानते हैं कि इसके अभाव में विकास दर का कोई मतलब नहीं रह जाता है। वे अकाल को अनाजों की कमी का नतीजा नहीं मानते हैं वरन् कहते हैं कि अकाल अनाजों का उचित बंटवारा न होने का परिणाम है।
उनके अर्थशास्त्र में गरीबी भी संसाधनों के अनुचित बंटवारे का परिणाम है जिसे पूरी दुनिया में कहीं भी और कभी भी देखा जा सकता है। वे दर्शनशास्त्र भी पढ़ाते हैं इसलिए उनके सामने कभी भी अर्थशास्त्र का महज आर्थिक मनुष्य नहीं रहा है। समाज के निर्धनतम व्यक्तियों को पीड़ित करने वाली आपदाओं के बारे में नयी समझदारी प्रस्तुत करने वाले अमत्र्य सेन ने अपने पुरस्कार को अपनी उपलब्धि न मानते हुए कल्याणकारी अर्थशास्त्र को उचित मान्यता बताया है। डा. सेन के बारे में स्वीडिश एके डमी आॅफ साइंसेज ने अपने प्रशस्ति पत्र में लिखा है, डाॅ. सेन के कार्य ने दुर्भिक्ष और गरीबी के लिए उत्तरदायी आर्थिक प्रक्रियाओं की समझदारी में इजाफा किया है। उन्होंने भूख, निर्धनता के आर्थिक तंत्र का इतनी गहराई से अध्ययन किया है कि उन्हें इस क्षेत्र में विशेषज्ञ माना जाता है। अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाले प्रो. सेन पहले एशियाई, छठवें भारतीय और चैथे कलकत्ता निवासी हंै।
1933 में बंगाल में जन्मे अमत्र्य सेन आर्थिक विकास की पश्चिमी अवधारणा के प्रबल विरोधी माने जाते हैं क्योंकि उनका मानना है कि पूंजी किसी तंत्र में एकमेव संसाधन नहीं हो सकती है वे बाजारवादी प्रक्रिया को पर्याप्त नहीं मानते हैं। डा. सेन ने लगभग दो दर्जन किताबें लिखी हैं। जिसमें मुख्य हैं-ट्रेंड्स इन रूरल इम्प्लायमेंट एण्ड पावर्टी इम्प्लायमेंट, एन इक्वेलिटी रिइक्जामिन्ड, आॅन इथिक्स एंड इकोनोमिक्स, च्वायस वेलफेयर एंड मेजरमेंट, कामाडिटी एंड कैपिबिलटीज, इम्प्लायमेट टेक्नोलाॅजी एंड डेवलपमेंट, द स्टैण्डर्ड आॅफ लीविंग, स्टडीज आॅन इंडियन एग्रीकल्चर, ग्रोथ इकोनाॅमिक्स सेलेक्टेड रीडिंग्स। डाॅ. सेन को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्रदान किये जाने पर भारतीय अर्थशास्त्रियों में विशेष उत्साह है क्योंकि डाॅ. अमत्र्य सेन आज भी प्रति वर्ष भारत आते हैं। हर साल भारत में अमत्र्य सेन के भाषणों का एक सिलसिला चलता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था व आर्थिक नीतियों में नैतिक मूल्यों को कोई जगह नहीं दी गयी है, इसके पक्ष में दिये गये उनके तर्क बेहद मजबूत होते हैं। इसकी कड़ी आलोचना करते हुए वे कहते हैं इस देश में विश्व के सबसे अधिक गरीब रहते हैं और इसके साथ ही सबसे बड़े आकार का मध्यम वर्ग भी यहां निवास करता है। अर्थव्यवस्था की खामियों को बताते हुए प्रो. सेन कहते हैं इसका कारण योजना बनाने की दोषपूर्ण प्रक्रिया है। आज लाइसेंस, कोटा राज की समाप्ति के साथ ही विकास को गति दी जा रही है। आर्थिक मोर्चे पर नये सिरे से प्रयास किये जा रहे हैं। इस विकास यात्रा में गरीबों को रखते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि दक्षिण पूर्व देशों व चीन ने इतनी सफलता इसलिए पायी है कि उन्होंने उदारीकरण लागू करने के पहले ही अपने देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में ध्यान दिया। इसलिए भारत सही तरीके से विकास तब तक नहीं कर सकता जब तक कि वह एक प्रभावी सामाजिक उत्थान नीति न बना ले। अमत्र्य सेन का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण जिन लोगों के साथ पर्याप्त कुशलता नहीं है या जो लोग प्रशिक्षित नहीं हैं वे अपने पेशे से हाथ धो बैठंेगे।
इनका मत है कि सेवा क्षेत्र के विस्तार के साथ ही शिक्षा के स्तर व प्रशिक्षण को भी व्यापक रूप देना होगा। वे भारत को विश्व बाजार या विश्व अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ने की कोशिशों के विरोधी तो नहीं हैं परन्तु उनका दृढ़ विश्वास है कि इस जुड़ाव से भारत के गरीब का कल्याण होने वाला नहीं है। गरीबी रेखा का निर्धारण करके आर्थिक नीतियों के निर्माण के मूल में डाॅ. सेन की आर्थिक सोच ही है।
गिरि इंस्टीट्यूट आॅफ डेवलपमेन्ट स्टडीज के निदेशक डाॅ. जी.पी. मिश्र प्रो. सेन के पुरस्कृत होने पर कहते हैं क्राउनिंग मोमेन्ट, वे मात्र एक अर्थशास्त्री नहीं हैं मेरी समझ में वे पूरे विश्व में अर्थशास्त्र के सबसे अच्छे अध्यापक हैं। अमरीका में उनकी नियुक्ति पर बोली लगती है। विश्वविद्यालय उन्हें अपने यहां नियुक्त करने पर गौरवान्ति होते हैं। यह हमारे लिए और भी गौरव का विषय है कि उन्होंने भारतीय नागरिकता नहीं छोड़ी है। वर्तमान में वे एशियाई विकास बैंक ह्यूमन डिप्राइवेशन इन्डेक्स बनाने की एक परियोजना में काम कर रहे हैं। एशियाई विकास बैंक के सहायक मुख्य अर्थवेत्ता एम.जी. क्विब्रिया ने कहा, ‘डाॅ. सेन एशियाई विकास बैंक के एक विकासशील सदस्य देश से आते हैं और उनकी उपलब्धि पर हमें गर्व है।’ श्री सेन हाल के वर्षों में बैंक की मानव संसाधन विकास से जुड़ी विभिन्न परियोजनाओं से जुड़े हैं। पूंजीवाद के आसन्न संकट और समाजवादी गढ़ों के पराभव के बाद विश्व अर्थव्यवस्था को नयी दिशा देने में प्रो. सेन के विचार ही एकमात्र रास्ता हैं।