आबकारी विभाग के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का कोई मतलब नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बताते हुए आबकारी विभाग ने आबकारी निरीक्षक से सहायक आबकारी आयुक्त/जिला आबकारी अधिकारी के पदों पर गलत ढंग से की गयी प्रोन्नति को न के वल लंबे समय तक बरकरार रखा वरन एक सौ चार सहायक आबकारी आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कागजी अनुपालन के तहत प्रत्यावर्तन आदेश और विभागीय चयन प्रक्रिया के माध्यम से प्रोन्नति आदेश एक-दो दिनों के अन्तराल में ही जारी कर दिये इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सहायक आबकारी आयुक्त के पद से आबकारी निरीक्षक के पद पर प्रत्यावर्तित किये गये तीन सहायक आबकारी आयुक्तों को श्रेष्ठता के आधार पर विभागीय चयन प्रक्रिया में प्रोन्नति न मिल पाने के बाद भी सहारनपुर, पीलीभीत और इटावा जैसे जिलों में बतौर सहायक आबकारी आयुक्त/ जिला आबकारी अधिकारी के पदों पर प्राइज पोस्टिंग के रूप में तैनाती दी गयी। आबकारी विभाग द्वारा अभी हाल में जारी तबादला सूची को देखने से साफ होता है। 43 से 33 जिला आबकारी अधिकारियों का स्थानान्तरण स्वयं के अनुरोध पर किया गया है।
उल्लेखनीय है कि दस अक्टूबर, 1994 को कार्मिक विभाग ने एक अधिसूचना जारी की, जिसमें कहा गया कि 5100-6500 वेतनमान के सभी पदों हेतु चयन मानदंड ज्येष्ठता (सीनियार्टी) अपनाया जाये। सहायक आबकारी आयुक्तों की सेवा नियमावली में चयन का मानदंड श्रेष्ठता (मेरिट) निर्धारित है कार्मिक विभाग की इस अधिसूचना की सहायक आबकारी आयुक्तों की सेवा नियमावली में अवहेलना की गयी। यह तय किया गया कि सहायक आबकारी आयुक्त के रिक्त पदों को ज्येष्ठता के आधार पर भरा जाये। इस आदेश के बाद अमरजीत सिंह ने उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की जिसमें कहा गया कि संवेदनशीलता को देखते हुए सहायक आबकारी आयुक्तों के पदों पर श्रेष्ठता के आधार पर ही चयन कराया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय ने इस याचिका को स्वीकृत करते हुए सहायक आबकारी आयुक्त के 10 अक्टूबर 1994 तक के रिक्त सभी पदों पर चयन मेरिट के आधार पर कराये जाने का आदेश दिया।
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश पारित करते हुए कहा कि इस याचिका का फैसला आने तक सरकार ज्येष्ठता के आधार पर प्रोन्नति कर सकती है। परन्तु अन्यथा आदेश होने पर प्रोन्नति अधिकारी अपने मूल पदों पर प्रत्यावर्तित कर दिये जायेंगे। सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद विभिन्न तिथियों में सहायक आबकारी आयुक्त के 104 पदों पर तीन चयन समितियों द्वारा ज्येष्ठता के आधार पर चयन किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने 19.08.98 को सरकार द्वारा दायर एसएलपी पर अपना अंतिम फैसला सुनाते हुए कहा कि सहायक आबकारी आयुक्त/जिला आबकारी अधिकारी के पदों पर चयन का आधार मेरिट (श्रेष्ठता) ही होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद ज्येष्ठता के आधार पर प्रोन्नति पाये अधिकारियों को 90 दिन के अंदर उनके मूल पद आबकारी निरीक्षक पर प्रत्यावर्तित कर दिया जाना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुए आबकारी विभाग ने प्रत्यावर्तन आदेश तो जारी नहीं किया साथ ही ज्येष्ठता के आधार पर विभागीय चयन प्रक्रिया के माध्यम से सहायक आबकारी आयुक्त बने अधिकारियों से कार्य कराया जाता रहा। प्रकारान्तर में सुप्रीम कोर्ट के ओदश का कागजी अनुपालन दर्शाते हुए 15 मई, 1998 को प्रत्यावर्तन और प्रोन्नति के आदेश लगभग सभी अधिकारियों को एक साथ जारी किये गये। ज्येष्ठता के आधार पर चयनित अधिकारियों को प्रत्यावर्तित नहीं किया गया। इसकी पुष्टि इस अवधि में जिला आबकारी अधिकारियों द्वारा आबकारी अधिनियम के अन्तर्गत किये गये सारे न्यायिक एवं प्रशासनिक कार्यों से की जा सकती है।
इतना ही नहीं मेरिट पर चयन कराने का प्रक्रिया में ही विभागीय नियमों एवं कानूनों का खुला उल्लंघन किया गया। मेरिट के चयन में तीन गुना पात्रता सूची होती है। आबकारी विभाग में रिक्त पदों के अनुसार पहले चरण में 42 लोगों का चयन होना चाहिए था, परन्तु विभागीय चयन प्रक्रिया में 100 लोगों का एक साथ चयन किया गया। इस चयन से विभाग में ज्येष्ठता निर्धारण की प्रक्रिया में दिक्कत होने के आसार हैं।
उल्लेखनीय है कि विभागीय चयन प्रक्रिया में आरपी वर्मा, चंद्रप्रकाश श्रीवास्तव, निधान लाल और विजय प्रताप सिंह का चयन विभागी कार्रवाई के चलते नहीं हो पाया और इनकी प्रोन्नति का लिफाफा अभी तक बंद पड़ा है। विजय प्रताप सिंह ने अपनी प्रोन्नति के लिए लोक सेवा अभिकरण का द्वार खटखटाया, परिणामतः उन्हें लोक सेवा अभिकरण के निर्देशों के तहत सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर प्रोन्नति दी गयी, परन्तु आरपी वर्मा, चंद्रप्रकाश, निधान लाल को बिना किसी आदेश के विभागीय मेहरबानी के चलते सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर सहारनपुर, पीलीभीत और इटावा जिलों में प्राइज पोस्टिंग देकर नवाजा गया।
आबकारी विभाग में जारी अंधेरगर्दी का अंदाज अभी हाल में जारी सहायक आबकारी आयुक्तों के स्थानान्तरण सूची से भी लगाया जा सकता है। 27 मई को ही विभाग ने सहायक आबकारी आयुक्तों के स्थानान्तरण की दो सूचियां जारी कीं, जिसमें प्रशासनिक/जनहित में 43 लोगों का स्थानान्तरण किया। इन दोनों सूचियों में 33 सहायक आबकारी आयुक्त ऐसे हैं जिनका स्थानान्तरण स्वयं के अनुरोध पर हुआ है।
उल्लेखनीय है कि दस अक्टूबर, 1994 को कार्मिक विभाग ने एक अधिसूचना जारी की, जिसमें कहा गया कि 5100-6500 वेतनमान के सभी पदों हेतु चयन मानदंड ज्येष्ठता (सीनियार्टी) अपनाया जाये। सहायक आबकारी आयुक्तों की सेवा नियमावली में चयन का मानदंड श्रेष्ठता (मेरिट) निर्धारित है कार्मिक विभाग की इस अधिसूचना की सहायक आबकारी आयुक्तों की सेवा नियमावली में अवहेलना की गयी। यह तय किया गया कि सहायक आबकारी आयुक्त के रिक्त पदों को ज्येष्ठता के आधार पर भरा जाये। इस आदेश के बाद अमरजीत सिंह ने उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की जिसमें कहा गया कि संवेदनशीलता को देखते हुए सहायक आबकारी आयुक्तों के पदों पर श्रेष्ठता के आधार पर ही चयन कराया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय ने इस याचिका को स्वीकृत करते हुए सहायक आबकारी आयुक्त के 10 अक्टूबर 1994 तक के रिक्त सभी पदों पर चयन मेरिट के आधार पर कराये जाने का आदेश दिया।
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश पारित करते हुए कहा कि इस याचिका का फैसला आने तक सरकार ज्येष्ठता के आधार पर प्रोन्नति कर सकती है। परन्तु अन्यथा आदेश होने पर प्रोन्नति अधिकारी अपने मूल पदों पर प्रत्यावर्तित कर दिये जायेंगे। सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद विभिन्न तिथियों में सहायक आबकारी आयुक्त के 104 पदों पर तीन चयन समितियों द्वारा ज्येष्ठता के आधार पर चयन किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने 19.08.98 को सरकार द्वारा दायर एसएलपी पर अपना अंतिम फैसला सुनाते हुए कहा कि सहायक आबकारी आयुक्त/जिला आबकारी अधिकारी के पदों पर चयन का आधार मेरिट (श्रेष्ठता) ही होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद ज्येष्ठता के आधार पर प्रोन्नति पाये अधिकारियों को 90 दिन के अंदर उनके मूल पद आबकारी निरीक्षक पर प्रत्यावर्तित कर दिया जाना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुए आबकारी विभाग ने प्रत्यावर्तन आदेश तो जारी नहीं किया साथ ही ज्येष्ठता के आधार पर विभागीय चयन प्रक्रिया के माध्यम से सहायक आबकारी आयुक्त बने अधिकारियों से कार्य कराया जाता रहा। प्रकारान्तर में सुप्रीम कोर्ट के ओदश का कागजी अनुपालन दर्शाते हुए 15 मई, 1998 को प्रत्यावर्तन और प्रोन्नति के आदेश लगभग सभी अधिकारियों को एक साथ जारी किये गये। ज्येष्ठता के आधार पर चयनित अधिकारियों को प्रत्यावर्तित नहीं किया गया। इसकी पुष्टि इस अवधि में जिला आबकारी अधिकारियों द्वारा आबकारी अधिनियम के अन्तर्गत किये गये सारे न्यायिक एवं प्रशासनिक कार्यों से की जा सकती है।
इतना ही नहीं मेरिट पर चयन कराने का प्रक्रिया में ही विभागीय नियमों एवं कानूनों का खुला उल्लंघन किया गया। मेरिट के चयन में तीन गुना पात्रता सूची होती है। आबकारी विभाग में रिक्त पदों के अनुसार पहले चरण में 42 लोगों का चयन होना चाहिए था, परन्तु विभागीय चयन प्रक्रिया में 100 लोगों का एक साथ चयन किया गया। इस चयन से विभाग में ज्येष्ठता निर्धारण की प्रक्रिया में दिक्कत होने के आसार हैं।
उल्लेखनीय है कि विभागीय चयन प्रक्रिया में आरपी वर्मा, चंद्रप्रकाश श्रीवास्तव, निधान लाल और विजय प्रताप सिंह का चयन विभागी कार्रवाई के चलते नहीं हो पाया और इनकी प्रोन्नति का लिफाफा अभी तक बंद पड़ा है। विजय प्रताप सिंह ने अपनी प्रोन्नति के लिए लोक सेवा अभिकरण का द्वार खटखटाया, परिणामतः उन्हें लोक सेवा अभिकरण के निर्देशों के तहत सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर प्रोन्नति दी गयी, परन्तु आरपी वर्मा, चंद्रप्रकाश, निधान लाल को बिना किसी आदेश के विभागीय मेहरबानी के चलते सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर सहारनपुर, पीलीभीत और इटावा जिलों में प्राइज पोस्टिंग देकर नवाजा गया।
आबकारी विभाग में जारी अंधेरगर्दी का अंदाज अभी हाल में जारी सहायक आबकारी आयुक्तों के स्थानान्तरण सूची से भी लगाया जा सकता है। 27 मई को ही विभाग ने सहायक आबकारी आयुक्तों के स्थानान्तरण की दो सूचियां जारी कीं, जिसमें प्रशासनिक/जनहित में 43 लोगों का स्थानान्तरण किया। इन दोनों सूचियों में 33 सहायक आबकारी आयुक्त ऐसे हैं जिनका स्थानान्तरण स्वयं के अनुरोध पर हुआ है।