विश्वबैंक और नाबार्ड जैसी अनुदान एजेंसियों के भारी दबाव में कार्य कर रही उत्तर प्रदेश सरकार ने अब सिंचाई विभाग के 32 खण्डों का अस्तित्व ही समाप्त करने का मन बना लिया है। पिछले वित्तीय वर्ष में 47 खण्डों और डिजाइन इकाइयों को पहले ही समाप्त करने का निर्णय लिया जा चुका है। सरकार के इस निर्णय से लगभग पांच सौ सहायक अभियंताओं और अवर अभियंताओं का भविष्य संकट में पड़ गया है। इन अभियंताओं की नियुक्ति बाकायदा पदों के विज्ञापन के बाद की जा चुकी है।
प्रदेश शासन के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार प्रदेश का सिंचाई विभाग उस समय विश्व बैंक एवं नाबार्ड के निर्देशों के तहत कार्य कर रहा है। इनके निर्देशों के चलते सिंचाई विभाग ने पिछले वित्तीय वर्ष में 47 डिवीजन एवं डिजाइन यूनिटों को समाप्त कर दिया। इस वित्तीय वर्ष में 32 डिवीजनों को तोड़ने/समाप्त करने की तैयारी की जा चुकी है।
इन यूनिटों/डिवीजनों को खत्म करने का ही परिणाम यह है कि वर्ष 96 में लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश द्वारा विज्ञप्ति पदों पर चयनित लगभग पांच सौ सहायक अभियंता और इतने ही अवर अभियंता चयन प्रक्रिया पूरी कर लेने के बाद भी नियुक्ति के लिए दर-दर भटक रहे हैं। इतना ही नहीं सिंचाई विभाग के लिए समूह-ग की परीक्षा/साक्षात्कार उत्तीर्ण अभ्यर्थी भी नियुक्ति की बाट जोह रहे हैं। सिंचाई विभाग की स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि प्रदेश में पिछले छह माह से सिंचाई का इंदराज नहीं हो पाया है, इससे करोड़ों के राजस्व की क्षति भी हो रही है।
उल्लेखनीय है कि विश्व बैंक/नाबार्ड देश में जिन परियोजनाओं को अनुदान या आर्थिक सहायता प्रदान कर रहे हैं उसकी प्राथमिक शर्त है कि जो विभाग इन परियोजनाओं का संचालन कर रहे हैं वहां कर्मचारियों/अधिकारियों की संख्या में बीस फीसदी प्रतिवर्ष की छटनी आवश्यक है। 1984/99-27/सिंचाई22अ/99 दिनांक 03 मई 99 को जारी एक शासनादेश के माध्यम से सिंचाई विभाग के छह मण्डल, 36 खण्ड एंव 37 इकाइयां तोड़ दी गयी। इतना ही नहीं सिंचाई यांत्रिक संवर्ग के 30 खण्ड एवं दो इकाइयां समाप्त कर दी गयी। इन स्थानांे पर कार्यरत कर्मचारियों/अधिकारियों से सिंचाई विभाग बिना कोई उचित कार्य लिए पगार दे रहा है।
ज्ञातव्य है कि जो 47 डिवीजनों एवं यूनिटें टूटी हैं उनमें पूर्वांचल की चाप शाखा गण्डक नहर निर्माण खण्ड देवरिया/गोरखपुर अनुसंधान नियोजन खण्ड, बाढ़ खण्ड आजमगढ़/बलिया सिंचाई निर्माण खण्ड बलिया/शारदा सहायक खण्ड-2 आजमगढ़/गण्डक सिंचाई कार्यमण्डल-3 प्रमुख हैं।
इनमें चाप शाखा का कार्य पूर्वांचल में बाढ़ की तबहारी मचाने वाली गण्डक से बाढ़ सुरक्षा का था। आजमगढ़ बाढ़ खण्ड को तोड़ते समय प्रदेश सरकार ने स्वयं द्वारा पूर्व में बनाये गये नियमों का खासा उल्लंघन किया। सरकार ने यह तय किया है कि बाढ़ प्रभावित प्रत्येक जिले में न्यूनतम एक बाढ़ खण्ड अवश्य रहेगा। सरकार की लिस्ट में आजमगढ़ बाढ़ की आशंका वाली सूची में आज भी दर्ज है। परंतु इसके बाद भी बाढ़ खण्ड यहां समाप्त कर दिया गया।
गोरखपुर अनुसंधान नियोजन खण्ड अभी गत वर्ष ही कार्य की अधिकता को देखते हुए रूड़की से 32 स्टाफ सहित यहां स्थापित किया गया था परंतु एक साल के बाद ही प्रदेश सरकार के लिए इस खण्ड का औचित्य पता नहीं कैसे समाप्त हो गया। इतना ही नहीं प्रदेश सरकार ने बांध परिकल्प मण्डल प्रथम, रूड़की, अनुसंधान एवं नियोजन मण्डल-ऋषिके श/ बांध सुरक्षा प्रकोष्ठ-लखनऊ/विद्युत परिकल्प मण्डल-4 रूड़की/टेहरी बांध परिकल्प मण्डल-रूड़की को भी समाप्त कर दिया।
प्रदेश में स्थित उन 37परिकल्प इकाइयों को भी समापत कर दिया गया जो बांधों के लिए डिजाइन तैयार करती थीं। स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि यदि प्रदेश सरकार को किसी छोटे या बड़े बांध के डिजाइन की जरूरत पड़े तो उसे डिजाइन विभाग के बाहर से कहीं बनवानी पड़ेगी। ज्ञातव्य है कि प्रदेश सरकार के पास बांधों की डिजाइन बनाने की 37 परिकल्प यूनिटें थीं। विश्व बैंक/नाबार्ड के दबाव में यहां तक काम किया गया कि सिंचाई विभाग की स्थायी डिविजनें भी बंद कर दी गयी।
सूत्र बताते हैं कि सिंचाई विभाग में 82 के बाद से कोई नयी भर्ती सहायक अभियंता/अवर अभियंता के पद पर नहीं हुई है। मृतक आश्रित के पदों पर जो नियुक्ति करनी भी पड़ी उन्हें भी तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के पदों पर टिका दिया गया। 96 में लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश में सहायक अभियंता एवं अवर अभियंता के पदों के लिए जो विज्ञापन हुए थे। उन पर परीक्षा/साक्षात्कार उत्त्ीर्ण कर लेने पुलिस वेरीफिके शन एवं मेडिकल करा लेने के बाद भी अभ्यर्थियों को नियुक्तियां प्रदान नहीं की गयी।
उल्लेखनीय है कि विश्व बैंक ने प्रदेश की सरयू परियोजना/वाग सागर परियोजना एवं बुंदेलखण्ड परियोजना के लिए 200 करोड़ का अनुदान दिया है। जबकि नाबार्ड से इस विभाग को गत वर्ष पांच सौ करोड़ से अधिक की धनराशि प्राप्त हुई है। सरयू परियोजना पिपरी से गोरखपुर तक के क्षेत्र को सिंचाई सुविधा उपलब्ध करायेंगे जबकि लगभग सवा सौ करोड़ की वाग सागर परियोजना से लाभान्वित होने वाले जिले इलाहाबाद, मिर्जापुर, सोनभद्र, भदोही, वाराणसी, चन्दौली एवं गाजीपुर है।
इतना ही नहीं अपर गंगा/लोअर गंगा और मध्य गंगा की रिमाडलिंग करने के लिए भी इन विदेशी संस्थाओं ने लगभग बारह सौ करोड़ रूपये की धनराशि प्रदान की है।
प्रदेश शासन के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार प्रदेश का सिंचाई विभाग उस समय विश्व बैंक एवं नाबार्ड के निर्देशों के तहत कार्य कर रहा है। इनके निर्देशों के चलते सिंचाई विभाग ने पिछले वित्तीय वर्ष में 47 डिवीजन एवं डिजाइन यूनिटों को समाप्त कर दिया। इस वित्तीय वर्ष में 32 डिवीजनों को तोड़ने/समाप्त करने की तैयारी की जा चुकी है।
इन यूनिटों/डिवीजनों को खत्म करने का ही परिणाम यह है कि वर्ष 96 में लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश द्वारा विज्ञप्ति पदों पर चयनित लगभग पांच सौ सहायक अभियंता और इतने ही अवर अभियंता चयन प्रक्रिया पूरी कर लेने के बाद भी नियुक्ति के लिए दर-दर भटक रहे हैं। इतना ही नहीं सिंचाई विभाग के लिए समूह-ग की परीक्षा/साक्षात्कार उत्तीर्ण अभ्यर्थी भी नियुक्ति की बाट जोह रहे हैं। सिंचाई विभाग की स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि प्रदेश में पिछले छह माह से सिंचाई का इंदराज नहीं हो पाया है, इससे करोड़ों के राजस्व की क्षति भी हो रही है।
उल्लेखनीय है कि विश्व बैंक/नाबार्ड देश में जिन परियोजनाओं को अनुदान या आर्थिक सहायता प्रदान कर रहे हैं उसकी प्राथमिक शर्त है कि जो विभाग इन परियोजनाओं का संचालन कर रहे हैं वहां कर्मचारियों/अधिकारियों की संख्या में बीस फीसदी प्रतिवर्ष की छटनी आवश्यक है। 1984/99-27/सिंचाई22अ/99 दिनांक 03 मई 99 को जारी एक शासनादेश के माध्यम से सिंचाई विभाग के छह मण्डल, 36 खण्ड एंव 37 इकाइयां तोड़ दी गयी। इतना ही नहीं सिंचाई यांत्रिक संवर्ग के 30 खण्ड एवं दो इकाइयां समाप्त कर दी गयी। इन स्थानांे पर कार्यरत कर्मचारियों/अधिकारियों से सिंचाई विभाग बिना कोई उचित कार्य लिए पगार दे रहा है।
ज्ञातव्य है कि जो 47 डिवीजनों एवं यूनिटें टूटी हैं उनमें पूर्वांचल की चाप शाखा गण्डक नहर निर्माण खण्ड देवरिया/गोरखपुर अनुसंधान नियोजन खण्ड, बाढ़ खण्ड आजमगढ़/बलिया सिंचाई निर्माण खण्ड बलिया/शारदा सहायक खण्ड-2 आजमगढ़/गण्डक सिंचाई कार्यमण्डल-3 प्रमुख हैं।
इनमें चाप शाखा का कार्य पूर्वांचल में बाढ़ की तबहारी मचाने वाली गण्डक से बाढ़ सुरक्षा का था। आजमगढ़ बाढ़ खण्ड को तोड़ते समय प्रदेश सरकार ने स्वयं द्वारा पूर्व में बनाये गये नियमों का खासा उल्लंघन किया। सरकार ने यह तय किया है कि बाढ़ प्रभावित प्रत्येक जिले में न्यूनतम एक बाढ़ खण्ड अवश्य रहेगा। सरकार की लिस्ट में आजमगढ़ बाढ़ की आशंका वाली सूची में आज भी दर्ज है। परंतु इसके बाद भी बाढ़ खण्ड यहां समाप्त कर दिया गया।
गोरखपुर अनुसंधान नियोजन खण्ड अभी गत वर्ष ही कार्य की अधिकता को देखते हुए रूड़की से 32 स्टाफ सहित यहां स्थापित किया गया था परंतु एक साल के बाद ही प्रदेश सरकार के लिए इस खण्ड का औचित्य पता नहीं कैसे समाप्त हो गया। इतना ही नहीं प्रदेश सरकार ने बांध परिकल्प मण्डल प्रथम, रूड़की, अनुसंधान एवं नियोजन मण्डल-ऋषिके श/ बांध सुरक्षा प्रकोष्ठ-लखनऊ/विद्युत परिकल्प मण्डल-4 रूड़की/टेहरी बांध परिकल्प मण्डल-रूड़की को भी समाप्त कर दिया।
प्रदेश में स्थित उन 37परिकल्प इकाइयों को भी समापत कर दिया गया जो बांधों के लिए डिजाइन तैयार करती थीं। स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि यदि प्रदेश सरकार को किसी छोटे या बड़े बांध के डिजाइन की जरूरत पड़े तो उसे डिजाइन विभाग के बाहर से कहीं बनवानी पड़ेगी। ज्ञातव्य है कि प्रदेश सरकार के पास बांधों की डिजाइन बनाने की 37 परिकल्प यूनिटें थीं। विश्व बैंक/नाबार्ड के दबाव में यहां तक काम किया गया कि सिंचाई विभाग की स्थायी डिविजनें भी बंद कर दी गयी।
सूत्र बताते हैं कि सिंचाई विभाग में 82 के बाद से कोई नयी भर्ती सहायक अभियंता/अवर अभियंता के पद पर नहीं हुई है। मृतक आश्रित के पदों पर जो नियुक्ति करनी भी पड़ी उन्हें भी तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के पदों पर टिका दिया गया। 96 में लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश में सहायक अभियंता एवं अवर अभियंता के पदों के लिए जो विज्ञापन हुए थे। उन पर परीक्षा/साक्षात्कार उत्त्ीर्ण कर लेने पुलिस वेरीफिके शन एवं मेडिकल करा लेने के बाद भी अभ्यर्थियों को नियुक्तियां प्रदान नहीं की गयी।
उल्लेखनीय है कि विश्व बैंक ने प्रदेश की सरयू परियोजना/वाग सागर परियोजना एवं बुंदेलखण्ड परियोजना के लिए 200 करोड़ का अनुदान दिया है। जबकि नाबार्ड से इस विभाग को गत वर्ष पांच सौ करोड़ से अधिक की धनराशि प्राप्त हुई है। सरयू परियोजना पिपरी से गोरखपुर तक के क्षेत्र को सिंचाई सुविधा उपलब्ध करायेंगे जबकि लगभग सवा सौ करोड़ की वाग सागर परियोजना से लाभान्वित होने वाले जिले इलाहाबाद, मिर्जापुर, सोनभद्र, भदोही, वाराणसी, चन्दौली एवं गाजीपुर है।
इतना ही नहीं अपर गंगा/लोअर गंगा और मध्य गंगा की रिमाडलिंग करने के लिए भी इन विदेशी संस्थाओं ने लगभग बारह सौ करोड़ रूपये की धनराशि प्रदान की है।