बसपा

Update:2006-02-13 18:38 IST
दिनांक: 13._x007f_2.2_x007f__x007f_6
जयन्त मेहरोत्रा जिन दिनों बसपा केे टिकट पर राज्यसभा पहुुंंचने केे लिए लखनऊ आए थे। उन दिनों कांशीराम पर भी बहुुजन समाज को पूंजीवाद की झोली में डाल देने सरीखे कई आरोप लगे थे। लेकिन कांशीराम ने अपने हुनर के चलते बहुुत जल्दी उनसे मुक्ति पा ली। तकरीबन २० साल पहले जब बहुुजन समाज पार्टी की घोषणा के लिए कांशीराम ने अपने वामसेफ के दिनों के साथियों का अधिवेशन बुलाया था तब अग्रिम पंक्ति में बैठेे लोगों में रामसमुझ, विक्र्रम प्रसाद, जीवाराम, अर्जुन सिंह, रामकृपाल, राजबहादुर, जितेन्द्र आदि थे। आज इनका नाम गायब है। इस पूरे चक्र्र में जो नाम छूूट गए वे सब मायावती की तरह कांशीराम से सीधी बातचीत कर सकने वाले लोग थे। इनके जाने केे बाद मान्यवर और उनकेे बहुुजन समाज केे बीच की ‘खिड़क़ी’ मायावती नाम की दीवार से होकर खुलती है। यहां तक कि कांशीराम के परिजनों तक को भी मिलने के लिए इसी खिड़क़ी का इस्तेमाल करना पड़़ता है। यह बात दीगर हैै कि इस हैैसियत तक पहुंंचने के लिए मायावती ने मान्यवर का भरोसा जीतने केे लिए खासी मशक्कत की। तभी तो यह समझ सकीं कि शायद राजनीति का सबसे प्रमुख चरित्र विरोधाभासों वाली छवियां गढ़ऩा हैै। नतीजतन, मायावती ने ‘तिलक, तराजू और तलवार’ की जगह ‘तिलक लगेगा हाथी पर’ सरीखे नारे और समीकरण गढऩा शुरू कर दिया।

तीन बार स_x009e_ाा में रहने और बार-बार अपनी पार्टी केे बिखराव पर विचार करते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने यह अहसास जरूर किया होगा कि जनाधार बढ़़ाये बिना, अकेेले दलित लोगों केे सहारेे, कुर्सी पर लम्बे समय तक काबिज रहना सम्भव नहीं हैै। क्योंकि सरकार बनाने की बैशाखी जो भी दल मुहैैया कराता है उसकी शर्र्तेें मायावती को रास नहीं आती हैै। ऐसे में मायावती को नए जातीय सहयोगी की जरूरत महसूस हुुई होगी। हर बार पार्टी टूूटते समय ठाकुर विधायकों के फट से पाला बदल देने की घटनाओं से सबक लेते हुए उन्होंने यह पड़़ताल भी किया होगा कि भाजपा में राजनाथ सिंह, सपा में राजा भैया और कांग्रेस में संजय सिंह केे बाद ठाकुर मतदाताओंं केे लिए कोई जगह नहींं बचती हैै। वह भी तब जब वे राज्य मेंं टेेक्टिकल यानी अपने जातीय उम्मीदवार के पक्ष में वोटिंंग कर रहे हों। ऐसे में १३ फीसदी ब्राम्हण मतदाताओं पर उनकी नजर जाना स्वाभाविक था। ये पहले कांग्रेस को और बाद में भाजपा को ताकत प्रदान कर चुकेे थे। बसपा द्वारा आविष्कृृत और इस्तेमाल किए गए ‘ब्राम्हण कार्र्ड’ का पंचायत परिणामों पर साफ असर देखने को मिला। इसी से उत्साहित मायावती ने किसी केे गढ़़ में सेंध लगाने की जगह दलित-ब्राम्हण गठजोड़़ तैयार कर सूबे की कुुर्सी पर काबिज होने ही नहीं, बल्कि अगली उनकी सरकार होगी ऐसा माहौल देने में कामयाब हो गई हैैं। इसके लिए उन्होंंने रणनीतिक तौर पर राज्य की ४०३ में से ३३८ सीटों पर अपने उम्मीदवारों को हरी झण्डी दिखा दी हैै। मायावती इस हकीकत से वाकिफ हो चुकी हैंं कि ठाकुुर और मुसलमानोंं ने टेेक्टिकल वोटिंंग का ट्र्रेेन्ड अपना लिया हैै। जहां इनके उम्मीदवार होंंगे और वे अगर जीतने की स्थिति में होंंगे तो इन जातियों की पहली पसन्द दल की जगह उम्मीदवार होंगे। टिकटों के बंटवारे में आजमाये गए कौशल का ही नतीजा हैै कि बसपा महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र अगली सरकार के लिए आश्वस्त होते हुुए कहते हैैं, ‘‘अब तो बहन जी की सरकार के पक्ष में माहौल आप लोगों को दिखने लगा होगा।’’ यह आभास बसपाइयों को ही नहींं, राज्य की नौकरशाही और राजनेताओं को होने लगा हैै। तभी तो बसपा के टिकट केे लिए भाजपा और सपा केे ४३ विधायक अब तक अपनी अर्जी लगा चुकेे हैैं। मायावती के पसंदीदा अफसरोंं के यहां लोगों की आमद रफ्ï्त बढ़़ गई है।

-योगेश मिश्र

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