मुलायम, माया, राजनाथ, कल्याण और रामप्रकाश गुप्त के कार्यकाल की उपलधिया

Update:2007-02-20 20:31 IST
दिनाँक: 2०.०2.2००7
तकरीबन साढ़े तीन साल पहले इन्हीं दिनों जब शंकाओं और अटकलों के बीच मुलायम सरकार बनी थी तब कहा गया था कि मायावती से पीछा छुड़ाने की गरज से भाजपा ने यह सरकार बनवाई है। लिहाजा एक खास वक्त के बाद यह खत्म भी हो जाएगी। कांग्रेस भी उन दिनों सूबे में नए सिरे से खड़े होने की कोशिश में थी। नतीजतन, उसके तेवर भी यह बता रहे थे कि सरकार के रास्ते आसान नही होंगे। मगर अटकलों और आशंकाओं के खिलाफ मुलायम सिंह यादव ने न केवल सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान बनाया बल्कि उपल_x008e_िधयों के वक्फे में जनता के मोर्चे पर भी उनकी कामयाबी अव्वल कही जाएगी।

किसी भी सरकार की कामयाबी का मानदंड बिजली, सडक़, पानी (बीएसपी) और कानून व्यवस्था होती है। सरकार ने अपने इन आखिरी दिनों में तकरीबन 2०० मेगावाट अतिरिक्त बिजली उत्पादन कर इस फेहरिश्त में भी बढ़त हासिल कर ली है। हालांकि नई ऊर्जा नीति के मार्फत गाजियाबाद में 12 हजार करोड़ रूपये की लागत वाले गैस आधारित बिजलीघर को लेकर सरकार की कम भद नहीं पिटी।

सडक़ के मामले में राज्य सरकार ने न केवल स्टेट हाइवे अॅथारिटी का गठन किया बल्कि लखनऊ में सूबे के अपने ढंग के अलग लोहियापथ के लोकार्पण के बाद सार्वजनिक निर्माण महकमे के बजट को तकरीबन 5००० करोड़ रूपये तक ले आना सरकार की वह उपल_x008e_िध है जो पिछले मुख्यमंत्रियों को मयस्सर नहीं हुई। गौरतलब है कि वर्ष 2००० में इस महकमे का बजट 1264 करोड़ रूपये का था। पर यह जरूर है कि बिजली और सडक़ के मुद्ïदे पर कामयाब सरकार पानी के मुद्ïदे पर फिसड्ïडी रही। जनता को पीने का पानी मुहैया कराने की जिम्मेदारी संभालने वाले मंत्री आजम खाँ पांच सितारा होटल के एक सेमिनार में मान चुके हैं, ‘‘खुद मेरे आफिस में साफ पानी की आपूर्ति नहीं हो पा रही है।’’ सरकार की सफल गन्ना नीति को केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने लोकसभा में माना भी। प्राथमिक शिक्षा में किये गये कामकाज पर भी राष्टï्रीय स्तर पर राज्य की तारीफ हुई। पर कानून व्यवस्था के मुद्ïदे पर सरकार उतनी ही असफल रही है जितनी सफलता का दावा वह गन्ना किसानों के मूल्य भुगतान और राज्य में निवेश को लेकर कर सकती है। यह वह बिंदु है जिस पर मुलायम के पूववर्ती सभी मुख्यमंत्रियों ने ठीक से लगाम कसने में कामयाबी हासिल की थी। कानून व्यवस्था के मुद्ïदे पर मुलायम, मायावती, राजनाथ और रामप्रकाश गुप्ता सभी मुख्यमंत्रियों ने अपराधियों और शोहदों को या तो सीखचों के पीछे भेज दिया था या उन्हें यह संदेश मिल गया था कि वे सूबे की सरहद छोड़ बाहर चले जाएं। लेकिन मुलायम के लिए यही सबसे बड़ा नकारात्मक कारण रहा। मुलायम के खुद मंत्री और पार्टी के तमाम पदाधिकारी गाहे-बगाहे कानून व्यवस्था की ऐसी धज्जियां उड़ाते रहे कि मुलायम का सब किया धिया पानी मेें मिलता चला गया। कभी सपाइयों ने किसी डिप्टी एसपी को लखनऊ में जीप के बोनट पर लादकर घुमाया। कभी आईपीएस अफसर से हाथापाई कर ली। जिलाधिकारियों को हर समय उनकी औकात बताने की कोशिश की। थाने से लोग छुड़ा ले गए। हालांकि सरकार ने चंबल के बीहड़ को डकैतों के भय से मुक्त कराया। निर्भय गुर्जर सरीखे कई डकैत मार गिराये गये। पर, निवेश के मुद्ïदे पर सरकार ने फतह हासिल की है। राजनाथ, रामप्रकाश और मायावती तीनों ऐसे मुख्यमंत्रियों में आते हैं जिन्होंने राज्य में निवेश आकर्षित करने के लिए लखनऊ और मुंबई में न केवल सरकार के एक्सटेंशन काउंटर खोले बल्कि तमाम आकर्षक पैकेज भी मुहैया कराये। मायावती तो विदेश तक हो आईं। पर आना-पाई भी निवेश की फेहरिश्त में बढ़ा नहीं। मुलायम के इस बार के तकरीबन साढ़े तीन साल के राज में अकेले 5००० करोड़ रूपए का निवेश 28 चीनी मिलों में हुआ। सरकारी दावे तो दस गुना निवेश के मिलते हैं। नेता प्रतिपक्ष लालजी टंडन भी कहते हैं, ‘‘सरकार की उपल_x008e_िध कुछ नहीं है। कानून व्यवस्था, संवैधानिक व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। अपराधियों की पौ बारह है। आम नागरिक पिस रहा है। बिजली पानी नहीं है फिर भी मुलायम को शून्य अंक नहीं दो नंबर दे सकता हूँ। वह भी निजी निवेश के सवाल पर।’’ सूबे में गन्ना मूल्य के निर्धारण और भुगतान में 2० फीसदी मिठास और 8० फीसदी सियासत होती है। मुलायम सिंह यादव ने अपने तीन साल के कार्यकाल में राज्य की दो चीनी मिलों को छोड़ दिया जाय तो बाकी सब की सब चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया आना-पाई तक चुका दिया। इस मद में 21137 करोड़ रूपये पिछले तीन सालों में दिये गये। सरदार नगर चीनी मिल ने नहीं चुकाया तो कुर्की तक के आदेश हुए हालांकि वह किसी न किसी बहाने बचते आ रहे हैं। स्टेट एडवाइजरी प्राइज के मार्फत महज बढ़ो_x009e_ारी के आधार पर किसानों के हाथ 17०० करोड़ रूपये अतिरिक्त लगे।

रोजगार के मोर्चे पर मुलायम सिंह यादव ने 6 लाख लोगों को शिक्षा मित्र, पंचायत मित्र के साथ ही साथ पुलिस, परिवहन, होमगार्ड, पशुपालन, चिकित्सा सहित एक दर्जन से अधिक महकमों में खपाया। सरकार चलाने के दौरान नए वोट बैंक बनाने के लिए उन्होंने आधी आबादी और युवाओं को अपने एजेंडे में लिया। आधी आबादी के लिए जेन्डर बजटिंग कर महिलान्मुखी होने का सपाई चेहरा पेश किया। तकरीबन साढ़े पांच लाख कन्याओं को 2० हजार रूपये प्रति कन्या की दर से 11 सौ करोड़ रूपये बाँटे। 9 लाख युवाओं को न केवल बेरोजगारी भ_x009e_ाा थमाया बल्कि यह उम्मीद भी जताई कि अगली बार सरकार आएगी तो उनके हाथ को काम देंगे। वि_x009e_ाीय प्रबंधन इतना अच्छा रहा कि सरकार को न तो अपने किसी योजना के लिए कोई दिक्कत पेश आई और न ही राज्य की ट्रेजरी में किसी का कोई चेक बाउंस हुआ। राज्य सरकार 19 सालों बाद वि_x009e_ाीय घाटे से मुक्ति पाने में कामयाब हुई।

मुलायम सिंह ने जातियों को भी अलग-अलग मिलकर उनके सम्मेलनों में न केवल हौसला अफजाई की बल्कि उनकी सरकार ने उनकी जाति के लिए क्या-क्या काम किए हैं। यह भी गिनाये। इनमें विश्वकर्मा, प्रजापति, चौरसिया, नाई, भुर्जी, धोबी, कहार सहित दो दर्जन से अधिक छोटी-बड़ी जातियों को उपकृत किया। चुनाव के दौरान अध्यापक और पुलिस की अहमियत को महसूस करते हुए इन दोनों तबको को दोनो हाथ खोलकर मुलायम ने लुटाया। शिक्षकों की सेवानिवृ_x009e_िा आयु 62 वर्ष की। चौकीदार तक को दी जाने वाली धनराशि 5०० से बढ़ाकर एक हजार कर दी। उच्च प्राथमिक स्तर के एक हजार विद्यालय अनुदान सूची पर लिये गये। माध्यमिक विद्यालय अनुदान सूची पर लाए गए। लंबे समय से उपेक्षित 246 अशासकीय संस्कृत विद्यालयों को अनुदान सूची पर लिया गया। अल्पसंख्यकों को रिझाने के लिए सौ मदरसों को अनुदान सूची में डाला गया। नदवा को आनन-फानन में भूमि दी गई तथा कई अल्पसंख्यक संस्थानों की दिल खोलकर मदद की गई।

मुलायम सिंह ने सरकारी खजाने की तिजोरी का मुँह हमेशा खुला रखा है। यही उनकी खासियत है। अपनी चौथी पारी खेलने की तैयारी में उन्होंने पिछले 94 दिनों में इतनी घोषणाएं कर दीं कि वह हांफ गए हैं। चाहे स्कूल-कालेज में पढऩे वाले लडक़े-लड़कियां हों, शिक्षक हों, डाक्टर हों, वकील हों, राज्य कर्मचारी हों, व्यापारी हों, स्वाधीनता सेनानी हों, महिलाएं हों, मीसा, डीआरआर में बंद रहे लोकतंत्र सेनानी हों मुलायम ने सबको उपकृत किया है। यही नहीं इस जमात में नेता भी शामिल किये गये हैं और इसके पीछे उनकी एक ही मंशा है कि इस बार भी प्रदेश की जनता उनके लिए स_x009e_ाा के दरवाजे खोले। बिजली और होमगार्ड कर्मियों की सेवानिवृ_x009e_िा आयु 6० साल करने के साथ ही साथ, स्वतंत्रता सेनानियों के भ_x009e_ो में 5०० रूपये की बढ़ो_x009e_ारी, वकीलों की फीस व भ_x009e_ाों में इजाफा वे काम हैं जिनके बूते मुलायम अव्वल होने का दावा कर सकते हैं। चुनावी समय को देखते हुए औद्योगिक घरानों को भी साधने की कोशिश हुई। पारीक्षा परियोजना विस्तार के तीन काम रिलायंस को, सहारा समूह को 17० एकड़ जमीन नियमित करने का फैसला और लोनी में जेपी समूह की भूमि को अर्जन मुक्त करने, उद्योगपतियों के लिए औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन के तहत पायनियर इकाइयों को सुविधाएं देने के लिए नियमों में संशोधन किया गया। लघु उद्योगों के लिए _x008e_याज पर 5 फीसदी छूट, मोटरयानों पर निर्धारित अतिरिक्त कर में छूट, आईटी उद्योगों को 25 प्रतिशत कम दर पर जमीन देने के फैसले इसी नजरिये से देखे जा रहे हैं। दिलचस्प यह भी है कि यह पहला मौका होगा जब सपा को स_x009e_ाारूढ़ पार्टी के रूप में हिसाब-किताब देना होगा। 1992 में पार्टी के गठन के बाद से अब तक हुए तीनों चुनावों में वह विपक्षी दल की हैसियत से चुनाव लड़ी है। पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कानून व्यवस्था के मुद्ïदे और अपने चहेते अफसरों, कार्यकर्ताओं तथा मंत्रियों के बेलगाम होने की वारदातों ने इन सब पर पानी फेर दिया। लोगों को एक बार फिर मायावती का राज मुलायम राज से बेहतर नजर आने लगा है। हालांकि मायावती ने अपने पूरे शासनकाल में अपने मतदाताओं को मजबूत करने, संदेश देने के काम को खास तवज्जो दी थी। उनके कार्यकाल के महत्वपूर्ण कार्यों में अंबेडकर स्मारक का निर्माण, अंबेडकर पार्क का बनाया जाना, पेरियार, छत्रपति शाहूजी सरीखे दलित समाज सुधारकों और नेताओं की मूर्तियों का लोकार्पण और अंबेडकर ग्राम विकास योजना महत्वपूर्ण थी। दलित बहुल आबादी वाले गाँवों में मायावती ने बिजली, सडक़, पानी (बीएसपी) की मुकम्मल व्यवस्था न केवल कराई बल्कि खुद भी औचक निरीक्षण कर अपनी इस मंशा में आड़े आने वाले अफसरों को दलित मतदाताओं के सामने ही ऐसी फटकार लगाई ताकि वे ये समझ सकें कि दलितों की बहन जी के हाथ अब इनकी नकेल आ गई है। आम जनता के हित में मायावती ने जो सबसे बड़ा काम किया था वह कानून व्यवस्था पर उसका सीधा नियंत्रण था। हालांकि मायावती के कार्यकाल में भी तमाम मामले दर्ज ही नहीं किए जाते थे। पर यह जरूर नहीं था कि अपराधी विधायक और मंत्री भी जो किसी विवशता के तहत मायावती को समर्थन दे रहे थे उनमें भी बेलगाम होने का साहस नहीं था। विधानसभा के अंदर अतीक अहमद और बाहर मुख्तार अंसारी के कानून तोडऩे के मामले में मायावती ने कठोर रुख अख्तियार किया था। अपने पहले कार्यकाल में मायावती अपनी घोषणाओं का महज 2० फीसदी काम ही पूरा करा पाई थीं। कुल 134 घोषणाओं में से 1०7 काम अधूरे थे। जबकि दूसरे कार्यकाल में 485 में से ३०४ काम पूरे हुए 181 घोषणाएं बची रह गईं। राजस्व प्राप्तियों में 14 फीसदी का इजाफा मायावती ने भी किया था। कानपुर में स्पेशल इकोनॉमिक जोन देश में प्रथम एपेरल पार्क और नई औद्योगिक प्रोत्साहन नीति मायावती के कार्यकाल की उपल_x008e_िधयों में शुमार है। बिजली उत्पादन मायावती भले न बढ़ा पाई हों लेकिन बिजली बचत यानी अवैध बिजली जलाने वालों का पकडऩे का कारनामा करके बिजली की दिक्कतों से थोड़ी राहत पहुँचाई थी। थाना दिवस के मार्फत थाने पर आमजन की समस्याओं के निपटारे का विचार भी मायावती का काफी कामयाब हुआ था। हालांकि मायावती की सरकार भाजपा के साथ चल रही थी नतीजतन, मुख्यमंत्री की उपल_x008e_िधयों के तमाम कामकाज भाजपा अपने कोटे में भी दर्ज करती चलती है। मसलन, शिक्षा महकमे में आमूल-चूल काम हुआ। कोचिंग पर प्रतिबंध लगे। नकल पर लगाम कसी गई। 272 नए कालेज खोले गये। पर यह महकमा भाजपा कोटे के मंत्री ओमप्रकाश सिंह के पास था। नतीजतन यह भाजपा के कोटे में चला गया। मायावती ने ही उप्र में शराब सिन्डीकेट को तोड़ा। तमाम शराब के व्यवसायी इसके अवैध कमाई के चलते माननीय बनते चले जा रहे थे।

कल्याण सिंह की सरकार राज्य में भयमुक्त समाज देेने का संकल्प लेकर आरूढ़ हुई। इस दिशा में उन्होंने काफी दूरी भी तय की। भाजपा पर सांप्रदायिक होने का दाग भी लखनऊ में 21 वर्षों से रूके अजादारी जुलूस को फिर से शुरू कराकर इसे धोने में कल्याण सिंह ने कामयाबी हासिल की। सांसद निधि की तर्ज पर विधायक निधि का गठन किया, ग्राम पंचायतों और नगर निकायों को ताकत प्रदान की। लगातार घाटे में चल रहे बिजली महकमे के सुदृढ़ीकरण के लिए ढांचागत सुधार और विकेंद्रीकरण का फैसला करते हुए विद्युत नियामक आयोग का गठन किया। सूचना का अधिकार देने की पहल कल्याण सिंह ने अपने शासनकाल में की। सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 2० फीसदी आरक्षण इन्हें स्नातक तक की नि:शुल्क शिक्षा के साथ ही साथ पति के मृत्यु के बाद सम्प_x009e_िा पर विधवा के हक का कानून तो वह लाए ही साथ ही आधी आबादी को इज्जत बख्शने के लिए कल्याण सिंह ने वल्दियत के रूप में पिता के साथ माँ का भी नाम लिखने का फैसला कर वाहवाही लूटी। पहला मुक्त विश्वविद्यालय खोलने और पहली बार सडक़ विकास निधि के गठन का काम भी उन्होंने किया। राज्य के सभी किसानों को किसान बही उपल_x008e_ध कराकर न केवल उनके पहचान का एक दस्तावेज उन्हें दिया बल्कि किसानों की तमाम दिक्कतों से निजात दिलाने के लिए कोशिश भी की। नकल मुक्त परीक्षा कल्याण सरकार की ऐसी बड़ी उपल_x008e_िधयों में शुमार रही है जिससे संरक्षकों की सरकार ने बहुत वाहवाही लूटी। बेरोजगारों की फौज घटी क्योंकि परीक्षा परिणाम इतने कम हुए कि रोजगार के दावेदारों की कतार घटी। राज्य के 9०4 विकास खंडों में महिला इंटर कालेज की स्थापना बजट पास होने के अंदर वि_x009e_ाीय स्वीकृतियां निर्गत करने और फरवरी-मार्च के महीने में वि_x009e_ाीय स्वीकृतियां देकर गलत धन निकालने की परंपरा पर रोक लगाने का काम उन्होंने आगे बढ़ाया। खाद्यान्न, गन्ना, चीनी, दूध के उत्पादन में राज्य को अव्वल स्थान पर खड़ा किया। गोवध और गो-तश्करी पर प्रतिबंध लगाया। राज्य कर्मियों को कें्रदीय वेतनमान देने में अग्रणी भूमिका निभाई। समूह ग के 14००० पद, 27००० अध्यापक, 9००० पुलिस कांस्टेबल सहित तकरीबन 5०००० बेरोजगारों को सरकारी नौकरी दीं। पर कल्याण सिंह के कार्यकाल में दी गई नौकरियां पूरी तरह पारदर्शी रहीं। किसी पर कोई विवाद नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने पारदर्शी परीक्षा का जो खाका तैयार किया था उसमें उ_x009e_ार पत्रक की एक कॉपी आवेदक अपने साथ ले जा सकता था। परिणाम बोर्डों के विभागों पर चस्पा किये जाते थे और बताया जाता था कि जिसके भी 6०, 7०, 8०, जो भी मेरिट बनती हो वह चस्पा उ_x009e_ार पत्रक के परिणाम मिलाकर जितने भी सवाल सही हों उसके मुताबिक साक्षात्कार देने आ जाए। साक्षात्कार सिर्फ 1० नंबर का रखा जाता था। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को चुस्त-दुरूस्त करने के साथ ही साथ कल्याण सिंह ने रजिस्ट्री के कागजात पर नाम अंतरण की तत्काल सुविधा मुहैया कराई थी। स्पेशल कम्पोनेंट प्लान, जो अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए होता है उसे ठीक से लागू कर दलित लोगों को भी सरकार की उपस्थिति का एहसास कराया था। राजस्व प्राप्ति में बढ़ो_x009e_ारी तो हर मुख्यमंत्री के कार्यकाल में दर्ज हुई। इस तरह देश के सर्वाधिक जनसंख्या वाले प्रदेश ने कल्याण सिंह के कार्यकाल की 18 महीनों की अवधि में विकास के दौर की वापसी का अनुभव किया। राज्य में 1991 की कल्याण सिंह की सरकार तो मील का पत्थर मानी जाती है। ईमानदारी, दक्ष प्रशासन, चुस्त कानून व्यवस्था सहित सभी क्षेत्रों और महकमों में आज भी उस सरकार की नजीर लोग देते मिलते हैं। हालांकि इनके पहले कार्यकाल में कुल 86 घोषणाओं में से 28 ही पूरी हो पाई थीं। दूसरे और तीसरे कार्यकाल में कल्याण सिंह ने बतौर मुख्यमंत्री 327 घोषणाएं कीं इनमें से 83 अधूरी रह गईं। हालांकि कल्याण सिंह के तीसरे कार्यकाल में दलबदल करके आए मंत्रियों की जमात और कुसुम राय के चलते पहले कार्यकाल वाले कल्याण सिंह का चाल, चरित्र और चेहरा बदलकर रख दिया। यह बात दीगर है कि इसी समय भाजपा का सूबे में चाल, चरित्र और चेहरा बिगड़ा। रामप्रकाश गुप्त ने अपने 11 महीने के कार्यकाल में बतौर मुख्यमंत्री 4० घोषणाएं कीं। उसमें भी 16 अधूरी रह गईं। मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही दिनों बाद से उनके ही पार्टी के लोग उन्हें भुलक्कड़ मुख्यमंत्री साबित कर हटवाने में इस कदर जुटे कि रामप्रकाश गुप्त जाटों को आरक्षण देने के अलावा कोई ऐसा अहम काम नहीं कर सके जिसकी फेहरिश्त उनकी पार्टी भी पढक़र सुना सकती। हालांकि जाटों के आरक्षण देने के उनके फैसले का लाभ उनकी पार्टी को महज इसलिए नहीं मिला क्योंकि इनके उ_x009e_ाराधिकारी मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने जाट बेल्ट को चुनाव के दौरान रालोद नेता अजित सिंह के इस कदर हवाले किया कि भाजपा से जीते जाट नेताओं की सीटें भी अजित सिंह को थमा दी गईं। राजनाथ सिंह ने बतौर मुख्यमंत्री न केवल जातियों की पंचायतें लगाईं बल्कि किसानों, कर्मचारियों, अध्यापकों, पंचायत कर्मियों की पंचाट जमाकर उनके दु:ख दर्द सुने। अफसरों को इनके कार्यकाल में काम करने का मौका जरूर मुहैया हुआ। अफसरशाही को तबादले की मार से निजात मिली। वह भी तब, जब राज्य में तकरीबन सभी मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में तबादला उद्योग की शक्ल अख्तियार कर चुका हो। पर, मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही राजनाथ इस कदर चुनावी मूड और मोड में आए कि उन्हें घोषणा मुख्यमंत्री कहा जाने लगा। उन्होंने कुल 767 घोषणाएं कीं। इनमें 82 अपूर्ण रहीं। 22 आश्वासन में त_x008e_दील हुईं। 16 ऐसी घोषणाएं हो गईं जिन्हें या तो निरस्त करना पड़ा अथवा समाप्त। इनके पार्टी के लिहाज से इनके कार्यकाल की समीक्षा यह है कि दलबदलुओं के सहयोग से ही सही स_x009e_ाारूढ़ दल भाजपा तीसरे स्थान पर सिमट कर रह गई।

-योगेश मिश्र

बाक्स आइटम:-

मुलायम सिंह यादव का पहला कार्यकाल-०5 दिसंबर, 1989 से 24 जून, 1991

मुलायम सिंह यादव का दूसरा कार्यकाल-4 दिसंबर, 1993 से 3 जून 1995

मुलायम सिंह यादव का तीसरा कार्यकाल- 29 अगस्त 2००3 से--

मायावती का पहला कार्यकाल-3 जून, 1995 से 18 अक्टूबर 1995

मायावती दूसरा कार्यकाल-21 मार्च 1997 से 2० सितंबर 1997

मायावती का तीसरा कार्यकाल- ०3 मई, 2००2 से 28 अगस्त, 2००3

कल्याण सिंह पहला कार्यकाल-24 जून, 1991 से 6 दिसंबर, 1992

कल्याण सिंह दूसरा कार्यकाल-21 सितंबर 1997 से 21 फरवरी 1998

कल्याण सिंह तीसरा कार्यकाल-22 फरवरी 1998 से 11 नवंबर 1999

रामप्रकाश गुप्त का कार्यकाल-12 नवंबर 1999 से 28 अक्टूबर 2०००

राजनाथ सिंह का कार्यकाल-28 अक्टूबर 2००० से ०7 मार्च, 2००2

-योगेश मिश्र

नोट:- रवींद्र जी, कोई और जरूरत हो तो बताइयेगा।

(योगेश मिश्र)

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