वोटकटवा

Update:2007-04-04 13:32 IST
दिनांक: 16._x007f_4.2_x007f__x007f_007
पूर्वी उ_x009e_ार प्रदेश में एक आंचलिक मुहावरा है-‘‘न खेलब न खेले देब, खेलवे बिगाड़ब।’’ प्रदेश की राजनीति में भी इस मुहावरे का खासा वजूद है। इस मुहावरे की गाड़ी के पहिये वे छोटे-छोटे तमाम दल हैं, जिनकी पहचान उन वोटकटवा ताकतों के रूप में है जो चुनावी जंग में जीतने के लिए नहीं बल्कि दूसरों की जीत रोकने के लिए उतरते हैं। सियासीदल ही नहीं, सियासी उम्मीदवार भी वोटकटवा होते हैं। इनमें कुछ की इस भूमिका की वजह पार्टी से टिकट न मिलना होता है तो कुछ दलबदलू उम्मीदवारों को सबक सिखाने के लिए यह फैसला लेते हैं। अगर इन वोटकटवा उम्मीदवारों पर नजर दौड़ायी जाय तो सूबे की सियासत में कोई ऐसा दल नहीं दिखता है जहाँ इनके चलते भितरघात की वारदातें दिखायी न पड़ रही हों। यह बात दीगर है कि इस वोटकटवा भितरघात की सबसे अधिक शिकार स_x009e_ाारूढ़ सपा है। इस बीमारी की सबसे कम शिकार बहुजन समाज पार्टी है। हालांकि इस पार्टी के सामने सबसे अधिक वोटकटवा उम्मीदवार भले न हों, पर सियासी दल जरूर हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव में उप्र की 4०3 सीटों के लिए 91 दलों के 5533 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे। इनमें से 44०० उम्मीदवार वोटकटवा साबित हुए क्योंकि यह अपनी जमानत राशि भी बचा पाने में कामयाब नहीं हुए। दिलचस्प यह है कि 91 दलों में से सिर्फ 15 ऐसे निकले जो अपने नुमाइंदों को विधानसभा में प्रवेश कराने में कामयाब हुए। इसमें भी छह ऐसे दल थे जिन्हें केवल एक-एक सीट ही मयस्सर हुई। जबकि दो सीट पाने वाले दलों की तादाद तीन थी। 38 दलों के पक्ष में शून्य फीसदी मतदान था। जबकि 16 ऐसे दल थे जिन्हें .०2 से .०7 फीसदी तक मत हासिल हुए थे। 13 दलों को .०1 फीसदी से भी कम वोट मिले। इसके बाद भी इस बार चुनाव के आते ही नौजवानों, किसानों, जातियों, व्यवसायिों के हितों की पैरोकारी का दावा करने वाले तमाम दल कुकुरमु_x009e_ो की तरह उग आए हैं। 9,51,41,132 मतदाताओं के सामने इस बार भी 111 दलों के 2487 उम्मीदवार मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यह हालात तब है जब पूरे राज्य में बसपा, भाजपा, सपा और कांग्रेस के अलावा किसी भी पार्टी की कोई ऐसी अहमियत दिख नही रही है कि वह खुद पर इतरा सके। इसके बावजूद 2०2० निर्दल उम्मीदवार भी मैदान में वोटकटवा की शक्ल में अटे और डटे हैं। गौरतलब है कि आजादी के बाद से पिछले विधानसभा चुनाव तक 33०66 निर्दल उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई लेकिन कुल 318 ही जीतने में कामयाब हो पाए। इस बार चुनाव में उदय हुई कितनी पार्टियां फिर अस्त हो जायेंगी। यह कहना जरूर मुश्किल है।

वोटकटवा की शिकार बसपा, भाजपा, सपा और कांग्रेस सबकी सब हैं। लेकिन इन अहम सियासी दलों में वोटकटवा उनके अपने ही पार्टी पदाधिकारी या टिकट से वंचित कर दिये गये राजनेता हैं। यह संक्रामक बीमारी सबसे अधिक स_x009e_ाारूढ़ सपा में दिखाई पड़ती है। समाजवादी पार्टी ने अपनी सरकार बनाने के लिए जिन 38 लोगों को बसपा से लोकतांत्रिक बहुजन दल होते हुए सपा की डगर पकड़ायी थी, उनमें से चार को छोडक़र सबके सब पार्टी के लिए ‘लाइबिलिटी’ बने हैं। इनके अलावा कुल 51 लोगों को विभिन्न पार्टियों से लाकर समाजवादी पार्टी ने सरकार बनाने के समीकरण के तहत चुनावी समर में उतारा है। लेकिन शायद उसे इस बात का इलहाम न हो कि इन सभी जगहों पर हाईकमान द्वारा उतारे गये उम्मीदवार अपने ही पार्टी पदाधिकारियों और टिकटार्थियों से मुकाबल हैं। इस बार सभी दलों ने आयातित उम्मीदवारों को अपने झंडे और बैनर खूब पकड़ाये हैं। दलबदल करके विधानसभा में पहुँचने की सबसे ज्यादा नजीरें इस चुनावी समर में दिख रही हैं।

सपा में भी आस्तीन के सांपों की कमीं नही है। मंत्री जयप्रकाश यादव सुरक्षित ठिकाने की तलाश में सहजनवां क्या आये? यशपाल रावत उनके सामने वोटकटवा बनकर खड़े हो गए हैं। पनियरा में ’वाइन किंग’ ब्रदी प्रसाद जायसवाल के खिलाफ पूर्व जिलाध्यक्ष दीप नारायन यादव के पुत्र आनंद यादव ने विरोध का बिगुल फूंक दिया है। अमरमणि के वोटकटवा पूर्व सपा सांसद अखिलेश सिंह के भाई मुन्ना सिंह हैं। लालब_x009e_ाीधारी गजाला लारी को सपा की पूर्व उम्मीदवार शांति देवी के पति आनंद यादव चुनौती दे रहे हैं। गोरखपुर से शिवसैनिक भानु मिश्र को साइकिल पर दो बार उतारा और बैठाया गया। नतीजतन, उनके बाद टिकट पाए सपाई उनके खिलाफ मुखर हैं। बलिया में मंत्री अंबिका चौधरी के लिए सपा के पुराने हमसफर कुबेर नाथ तिवारी वोटकटवा का काम कर रहे हैं। तो मंत्री रामगोविंद चौधरी अपने बांसडीह क्षेत्र में भितरघात से लगातार रूबरू हो रहे हें। नगर विकास राज्यमंत्री नारद राय को सपा के एमएलसी रहे विक्रमादित्य पांडेय की विधवा और भतीजे प्रकाश की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। तो बसपा की मंजू सिंह की राह में पिछला चुनाव लड़े राष्टï्रीय समानता दल के रामजी गुप्त रोड़ा हैं। सहकारिता राज्यमंत्री शारदानंद अंचल की राह रोकने के लिए उनके पुराने खेवनहार अच्छेलाल यादव की काफी हैं। जबकि सपा नेत्री रंजना वाजपेयी शहर उ_x009e_ारी में अपने बसपाई बेटे हर्षवर्धन को जिताने के लिए वोटकटवा का काम कर रही हैं। मुरादाबाद में भाजपाई संदीप अग्रवाल साइकिल पर सवार होकर वोटकटवा वाल्मीकि के शिकार हैं। संभल सीट पर सपा और रालोद में जबर्दस्त भितरघात होगा। इस सीट पर सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क अपने बेटे ममलूकुर्रहमान को सपा से टिकट नहीं दिलवा सके। उन्होंने ऐन वक्त पर रालोद से अपने बेटे को टिकट दिलवाने में कामयाबी पा ली, रालोद में खलबली मची। उधर बर्क सपाई होते हुए भी बेटे की मदद करने में कोर कसर छोडऩा नहीं चाहते। ऐसे में सपा रालोद में भितरघात होगा। रामपुर से मोहम्मद आजम खाँ को अपनी ही पार्टी की सांसद जयाप्रदा से डर लग रहा। पति की मृत्यु के बाद बनारस के शहर उ_x009e_ारी सीट से विधायक बनी राबिया कलाम ने टिकट मिलने और फिर कट जाने के चलते वोटकटवा का रूप अख्तियार कर लिया है। सपा सांसद मुनव्वर हसन भी अपनी पत्नी के लिए रालोद की खातिर वोट मांगते हुए सपाई वोटकटवा दिख रहे हैं। सहारनपुर के सांसद रशीद मसूद अपनी ही पार्टी के दो मंत्रियों के लिए वोटकटवा बन बैठे हैं।

वोटकटवा की फसल सबसे अधिक गोरखपुर-बस्ती मंडल में लहलहा रही है। हालांकि इस फसल को खाद-पानी देने का पहला काम योगी आदित्यनाथ ने किया था। योगी को तो मना लिया गया है, पर अब वे बगावत की राह पर हैं, जिन्हें भाजपा ने ‘कमल’ थमाकर योगी के कहने पर छीन लिया है। इनमें सहजनवां से टीपी शुक्ल व नौरंगिया से पूर्व विधायक दीपलाल भारती हैं। पूर्वांचल में योगी की वोटकटवा फसल को खाद-पानी देने का काम अब भाजपा के पूर्व सांसद श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी कर रहे हैं। भाजपा को सबक सिखाने के लिए बर्खास्त सांसद भी तैयार हैं। श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने ‘आउटलुक’ साप्ताहिक से से बातचीत में कहा, ‘‘शीर्ष नेतृत्व चाहे जिस रूप में ले लेकिन अपनी समझ से निष्ठïावान कार्यकर्ताओं का समर्थन कर मैं कोई गलत नहीं कर रहा। एक व्यक्ति के दबाव में कार्यकर्ताओं की बलि देकर राजनीति करना गलत है।’’ गोरखपुर मंडल की 98 में से 26 सीटों पर बागी वोटकटवा रुख अख्तियार किए हुए हैं। भाजपा के राष्टï्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के गृह जनपद मिर्जापुर में केशरीनाथ त्रिपाठी की कृपा से चौथी बार विधायक बनने का सपना देखने वाले पूर्व मंत्री डा. सुरजीत सिंह डंग को अपने ही दल के राष्टï्रीय अध्यक्ष के समर्थकों का कोप भाजन बनना पड़ा था। बरेली शहर सीट के उम्मीदवार राजेश अग्रवाल को अपने ही सांसद संतोष गंगवार से इतना आतंक है कि वे दिखावे के लिए भी साथ नहीं घूमते।

बागियों की हुंकार से बसपा सुप्रीमो मायावती भी सहमी हुई हैं। सिद्घार्थनगर की डुमरियागंज सीट पर बसपा के पूर्व घोषित प्रत्याशी अशोक सिंह का टिकट बदलकर पूर्व विधायक मलिक तौफीक को बसपा ने झंडी दे दी तो पार्टी सुप्रीमो को सबक सिखाने के लिए अशोक सिंह लोजपा का टिकट ले आए। देवरिया जिले के रूद्रपुर में मायावती ने सुरेश तिवारी को हाथी पर बिठाया है। पुराने बसपाई रामकपूर शाक्य निर्दल मैदान में हैं। देवरिया सदर से टिकट कटने से नाराज पुराने बसपाई विभव पांडेय बतौर निर्दल घोषित बसपा प्रत्याशी की चुनौती दे रहे हैं। कुशीनगर के हाटा (सु) से बसपा ने राजेश भारती को टिकट दिया है। बागी ने रामप्रीत जख्मी क्षेत्र में प्रचार कर रहे हैं कि मैने मैडम के जन्मदिन पर 25 हजार व टिकट के लिए पैसे से इंकार किया तो मुझे पैदल कर दिया गया। धुरियापार में धनबली नये बसपाई लाल अमीन खां को पूर्व मंत्री श्यामलाल यादव के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

बागियों के स्वर कांग्रेस में मुश्किल से सुनाई दे रहे हैं। क्योंकि कांग्रेस ने अधिकांश सीटों पर अपने दल को दगा देने वाले विधायकों पर दांव लगाया है। इलाहाबाद में हाल में कांग्रेस में आए अनुग्रह नारायण सिंह पुराने कांगे्रसी अशोक वाजपेयी और पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यप्रकाश मालवीय समर्थकों से जूझ रहे हैं। शहर दक्षिणी से उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी और अनुग्रह के खिलाफ प्रचार करते हुए कांग्रेसी जेहादी बनकर घूम रहे हैं। आजमगढ़ में रामनरेश यादव के लिए पूर्व सांसद संतोष सिंह और अमरसिंह के भाई व हाल में कांग्रेसी बने अरविन्द सिंह वोटकटवा साबित हो सकते हैं। मुरादाबाद में ही पहले मेजर जेपी सिंह के पर्चा भरने और बाद में धीरज कांछल को उतारने के चलते कांग्रेस वोटकटवाओं की शिकार है। कांग्रेस के नगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे पंडित राजेशपति त्रिपाठी के पीठ में छुरा भोंकने की योजना उनके जन्मभूमि काशी की धरती से उन्हीं के दल के सांसद के इशारे पर रची जा रही है। रामपुर की पूर्व सांसद बेगम नूरबानो के नेतृत्व को उनके ही ‘नूरमहल’ से उपजे नेता भितरघात कर रहे हें। यही स्थिति कांग्रेस उम्मीदवार डा. अनिल शर्मा और कैंट प्रत्याशी प्रवीण सिंह ऐरन के बीच है।

‘हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था, अपनी किश्ती भी वहाँ डूबी जहाँ पानी कम था।’ किसी शायर की ये पक्तियां विस चुनाव में ज्यादातर पार्टियों के नेताओं में आपसी खींचतान पर सही बैठती हैं।

-योगेश मिश्र

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