मायावती सरकार के चेहरे और वरीयताएं

Update:2007-05-11 22:12 IST
 
मायावती ने अपने प्रचार के दौरान मुलायम सिंह सरकार के भ्रष्टाचार को निषाने पर लिया। उन्होंने अपनी सभाओं में पहले चरण से लेकर अन्तिम चरण तक सिर्फ यही दोहराया, ‘‘हमारी सरकार आयी तो मुलायम सिंह और अमरसिंह को जेल भेजेंगे।’’ ऐसे में साफ है कि कानून व्यवस्था पर नियंत्रण और भ्रष्टाचार से निजात दिलाना उनकी पहली प्राथमिकता होगी। हालांकि भ्रष्टाचार से मुक्ति उनके पिछले दोनों शासनकालों को देखकर आसान नहीं लगता, पर जिस तरह मायावती ने बहुजन से सर्वजन की यात्रा की ओर रुख किया है उससे कहा जा सकता है कि सियासत में लगातार नये प्रयोग करने वाली मायावती के लिये यह अपने वोट बैंक को बांधे रखने के लिहाज से कोई मुष्किल कदम नहीं होगा। उन्हें मुलायम की लोक-लुभावनी योजनाओं के चलते राज्य के खजाने पर पड़े बोझ से निपटने की भी तैयारी रखनी होगी। इतना ही नहीं, यह भी मायावती के लिये कम मुष्किल तलब नहीं होगा कि वे मुलायम सिंह यादव द्वारा शुरू की गयी बेरोजगारी भत्ता और कन्या विद्याधन सरीखी योजनाओं को ठण्डे बस्ते में डाल सकें। बहुजन से सर्वजन समाज की यात्रा के चलते मायावती को अम्बेडकर ग्रामों और दलित मतदाताओं के साथ ही साथ अगड़े वर्ग के गरीब लोगों के लिये आरक्षण के अपने दांव पर भी खरा उतरने की दिषा में कई ठोस कदम आगे बढ़ाने होंगे। इसमें कोई आष्चर्य नही होगा कि मायावती अगड़े वर्ग के लोगांे के लिये कोई योजना बसपा के रणनीतिकार और संस्थापक कांषीराम के नाम से न शुरू कर दें। क्योंकि मायावती को दलित-ब्राह्मण गठजोड़ की कड़ी को और मजबूती से जोड़ना है। इसी के लिये उन्होंने न केवल 87 ब्राह्मणों को टिकट दिया बल्कि उनके मंत्रिमण्डल के अहम् ओहदों पर कई ब्राह्मण अनजान चेहरे भी अगर नजर आयें तो कोई आष्चर्य किसी को होना नहीं चाहिये। इसकी एक वजह यह है कि मायावती ने बहुजन से सर्वजन के प्रयोग को जिस सतीष मिश्र को प्रतीक पुरुष बनाया वे खुद ही सियासत की दुनिया में एक अपरिचित सा नाम था। इतना ही नहीं, नगर निकाय और पंचायत चुनाव न लड़ने की वजह से अचानक दोबारा अस्तित्व में आ गयी भाजपा छोड़कर जाने वाले ब्राह्मण नेताओं की गति भी थम गयी। नतीजतन नामी-गिरामी ब्राह्मण जहां थे, वहीं ठिठक कर रूक गये। इसलिये मायावती के कबीना में उनकी पार्टी के ब्राह्मणों के पुराने चेहरे रामवीर उपाध्याय के अलावा जो भी नाम आ रहे हैं उनमें अधिकांष एकदम अनजान और अपरिचित चेहरा है, पर उनके पुराने कबीना सहयोगी रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुषवाहा, लालजी वर्मा, सुखदेव राजभर, राम अचल राजभर के साथ ही साथ ओम प्रकाष सिंह और जयवीर सिंह कदम से कदम मिलाकर कैबिनेट में चलते दिख रहे हैं। इन्द्रजीत सरोज, जगदीष नारायण राय, धर्मवीर अषोक भी मायावती के कबीना सहयोगी की हैसियत बरकरार रखेंगे। स्वामी प्रसाद मौर्या तो दौड़ में पिछड़ते नजर आ रहे हैं लेकिन वह और देवरिया के कमलेष शुक्ला, बुन्देल खण्ड के बादषाह सिंह भी अगर लालबत्ती का सुख उठायंे तो हैरत नहीं होना चाहिये। बादषाहसिंह की जरूरत पार्टी को बुन्देलखण्ड के उत्तर प्रदेष और मध्य प्रदेष दोनों इलाकों में है तो कमलेष शुक्ला भी उत्तर प्रदेष और उत्तराखण्ड में पार्टी की जरूरत हैं। बसपा से समाजवादी पार्टी की सरकार बनाते समय मायावती का साथ छोड़ने वाले 39 लोगों में सब के सब तकरीबन मंत्री सुख भोग रहे थे। इनमें से 3 को छोड़ कर बाकी सबने बसपा में लौटना जायज नहीं समझा। नतीजतन मायावती को जरूरी 15 फीसदी मंत्रियों का कोरम पूरा करने के लिये अपने पार्टी के भी नये चेहरों को जगह देनी ही होगी। इसमें विधान परिषद सदस्य सुधीर गोयल का नाम शुमार हो सकता है क्योंकि मायावती के निषाने पर ब्राह्मणों के बाद इसी जाति के मतदाता हैं। विधान सभा चुनाव में पार्टी ने सुधीर गोयल का व्यापारी मतदाताओं को रिझाने के लिये खासा उपयोग भी किया है।
(योगेष मिश्र)
 

Similar News