दिनांक: 3०._x007f_9.200_x007f__x007f_7
‘गोरखपुर जो एक शहर था’ के बाबत जाहिर हैै प्रेमचंद और फिराक गोरखपुरी को खास वृ_x009e_ाांत बनाती होगी। आधी सदी गोरखपुर मेंं बिताकर मुझे लगता हैै, शहर नींंद मेंं हैै और सपने देखना भी उसने बंद कर दिया हैै। कभी नेहरू ने यहींं रेेलवे स्टेेडियम मेंं ‘इतिहास क्या हैै’ विषय पर स्टूूडेेन्ट्ï्ïस फेेडरेेशन केे मंच से व्याख्यान दिया था और कहा था, ‘‘युवाओं को स्वप्नदृष्टा होना चाहिए। सपने अँधेरेे में थरथराती लौ की तरह होते हैैंं।’’ गोरखपुर एक मलंग जैसा शहर हैै। शायद नाथ पंथ के प्रभाव से ऐसा हो। जब अमृतराय ‘कलम का सिपाही’ लिख रहेे थे, तो मैंंने उनकेे साथ दशरथ प्रसाद द्विवेदी और महावीर प्रसाद पोद्ïदार से भेंंट की थी। ‘स्वदेश’ में प्रेमचंद छद्ïम नाम से लेख लिखते थे। अब उनके नाम पर ‘सेंंट जोजेफ कालेज फार वीमेन’ के सामने वाली सड़क़ हैै-स्वदेश मार्ग। रामचंद्र शुक्ल ने मन्नन द्विवेदी गजपुरी के उपन्यास ‘रामलाल’ को किसान जीवन का दस्तावेज कहा हैै। जीवन ने ‘कलम और कुुदाल’ लिखा। देवेन्द्र कुमार के गीत प्रसिद्घ हैैंं।
समय बहुुत आगे चला आया हैै। कभी ‘राप्ती’, ‘रचना’, ‘सम्प्रति’ पत्रिकाएं वहाँ से निकली थींं। रचना में मुक्तिबोध का लेख छपा-‘रचना प्रक्र्रिया’। इधर ‘प्रस्थान’, ‘दस्तावेज’, ‘सहचर’ चर्र्चा में हैै। ‘प्रस्थान’ दीपक त्यागी के दो अंक क्रमश: निर्मल वर्मा और प्रेमचंद पर केेन्द्रित हैैंं। नये अंक में केेकेे बिड़़ला फाउंंडेेशन केे सम्मान पाने केे उपलक्ष्य में मुझ पर एक पूरा खंंड होगा। दूसरा सत्यप्रकाश मिश्र पर, जो अब हमारेे बीच नही हैैंं। ‘दर्पण’, ‘रूपांतर’, ‘समानान्तर’ की गतिविधियाँ ‘रंंगाश्रम’ के साथ चर्चा मे रही हैैंं। देवेन्द्र राज अंकुुर ने ‘रूपांतर’ के लिए ‘कहानी का रंंगमंच’ प्रस्तुत किया। हबीब तनवीर ने ‘मिट्ï्ïटी की गाड़़ी’ छ_x009e_ाीसगढ़़ी मेंं। कारंंत ने रूपांतर केे रंंगमंडल का दीक्षंात भाषण करते हुए ‘अनामदास’ की पोथा की चर्चा की। ‘आषाढ़़ का एक दिन’, ‘लहरों केे राजहंंस’, ‘खामोश अदालत जारी हैै’, ‘अंधा युग’, ‘बाणभट्ï्ïट की आत्मकथा’, ‘अंजो दीदी’, ‘नींंद क्योंं रात भर नहींं आती’, ‘नीला घोड़़ा’ यादगार प्रस्तुतियाँ हैैंं। ‘नीला घोड़़ा’ (बाल नाटक) का निर्देशन अपराजिता ने किया। रेेखा जैैन के साथ अचिता ने इक्कीस दिन का वर्कशाप किया जिसमें ‘खेल खिलौनोंं का संसार’ जैसे नाटक प्रस्तुत हुुए।
इधर ‘वचन पत्रिका’ ‘अनामिका प्रकाशन’ और एक समाचार पत्र केे संयुक्त तत्वावधान में संवाद 2००6 किया। गोरखपुर मेंं प्रतिरोध का सिनेमा फिल्म महोत्सव केे रूपये दो साल सम्पन्न हो चुका है। जिसमेंं कुुरोसावा, डिसीका, सत्यजीत राय आदि की फिल्मेंं दिखाई गयींं। इस बार का आयोजन ईरानी और भोजपुरी फिल्मोंं पर केेन्द्रित किया। पिछले साल दो कैसेट रिलीज हुुए-‘रंंग पैराहन’ (हरिओम), ‘देवी दयालु भई’ (मालविका)। विश्वविद्यालय के नाट्ï्ïय महोत्सव अब स्मृति भर होकर रह गये हैैं। ‘कृृति कल्चरल’ सेन्टर (निदेशक : उषा कुुमार) सांस्कृृतिक प्रशिक्षण के लिए चर्चित हैैंं। कभी विश्वविद्यालय केे कला विभाग केे अध्यक्ष शांति निकेेतन राम किंंकर केे शिष्य जितेन्द्र कुुमार आधुनिक अमूर्त कलाशिल्प के लिए प्रसिद्घ थे।
अतीत मेंं अमृता शेरगिल सरदारनगर, गोरखपुर में रहींं। उनका बहुुत सा काम ‘धान कूूटती औरतेंं’, ‘तीन ब्रम्हचारी’, ‘प्रसाधन’ कई मूड्ï्ïस, अत्यधिक चर्चा मे रहेे हैैं। उनकेे पति डा. ईगन को हमने आते-जाते देखा है। गोरखनाथ मंदिर अब सेकुुलर नहींं रहा। गीता प्रेस, आरोग्य मंदिर दर्शनीय हैैंं। इधर, मदन मोहन और बादशाह हुुसेन रिजवी कथा क्षेत्र मेंं परिचित नाम हैैंं। प्रेमचंद पार्र्क में प्रेमचंद साहित्य संस्थान हैै जिसकी पत्रिका ‘साखी’ ने नया अंक एडवर्र्ड सईद पर केन्द्रित किया हैै। इधर पार्क मेंं प्रेमचन्द केे पात्रों केे भि_x009e_िा चित्र, मुक्ताकाशी रंंगमंच दर्शनार्थियों केे आकर्षण हैंं। कभी केेदारनाथ सिंह का यही कार्यक्षेत्र था। वीएस नायपाल केे पूर्वज इसी जनपद के दुखौली गाँव के थे।
अरविन्द त्रिपाठी ने देवीशंकर अवस्थी सम्मान प्राप्त किया। वरिष्ठ आलोचक रामचंद्र तिवारी हिन्दी गौरव से सम्मानित हैैंं। नामवर सिंह केे कई व्याख्यान चर्चा में रहेे हैैंं। मान्धाता सिंह का युवा संस्कृृति मंच फिराक सम्मान देता हैै। सम्मानितोंं में शहरयार, आलोक धनवा, स्वप्निल, मखमूर सईदी रहे हैैंं। कभी राम विनायक सिंह, भगवान सिंह, रामसेवक श्रीवास्तव, विश्वजीत यहींं रचनायें लेखन के लिए जाने गये। मजनू गोरखपुरी भारत, पाकिस्तान मेंं बड़़ेे आलोचक केे रूप में जाने-जाते हैैंं। वे गोरखपुर से अलीगढ़़, फिर पाकिस्तान चले गये। ‘स्वदेश’ में फिराक की कहानियाँ भी छपींं। विद्यानिवास मिश्र का बहुुत कुुछ यहीं का हैै। इधर विश्वविद्यालय में बी.जे., एम.जे. जैसे पाठ्ï्ïयक्रम चल रहेे हैैंं। ‘इंस्ट्ï्ïटीट्ï्ïयूट ऑफ मास कम्यूनिकेेशन’ के निदेशक हैैंं-रामदरश राय। विश्वविद्यालय प्रशासन विवाद ग्रस्त रहा हैै। पर यहींं कई बड़़ेे आयोजन भी हुुए-जैसे प्रेमचंद पीठ का सेमिनार, ‘प्रेमचंद और भारतीय साहित्य’, ‘दलित विमर्श:’, ‘अनुवाद की कला’, ‘पत्रकारिता की समकालीन चुनौतियाँ।’ ‘सृजन संवाद’ युवा कवयित्री रंंजना जायसवाल केे प्रयत्न से सक्र्रिय हैै। खुद उनका कविता संग्रह ‘दुख पतंग’ चर्चा मेंं हैै। सुरेेन्द्र काले, रोहित पांडेे, रवीन्द्र जुगानी, वेद प्रकाश, प्रमोद कुुमार, अनिता अग्रवाल, अनिल राय, अनंत मिश्र, अशोक चौधरी, चितरंंजन मिश्र, चंद्रभूषण अंकुुर, कुुमार हर्ष चर्चा में रहते हैैंं। मनोज कुुमार सिंह प्रतिरोध का सिनेमा केे लिए चर्चित हैै। देवेन्द्र आर्य और महेेश ने गजल से गीत तक लम्बा सफर तय किया हैै। चित्रकारों छायाकारोंं मेंं सतीश जैन, राजीव केेतन। संगीत मेंं शरदमणि त्रिपाठी, प्रेम शंकर, रानू जानसन प्रमुख हैं। अभी-अभी खबर मिली हैै कि मस्कट-ओमान केे संस्कृृति विभाग ने एक समारोह में उषा कुुमार को कला-संगीत केे लिए सम्मानित किया हैै। याद करेेंं कभी शेखर सेन ने कबीर की एकल प्रस्तुति टाउन हाल में की थी। कात्यायनी की पहचान यहीं से बनी। अब अरविन्द सिंह सक्रिय हैैंं। ‘मैं सीमा शफक’ कहानी यहींं की देन हैै।
‘तनाव’ (संपादक माहेश्वरी) केे एक अंक मेंं श्रुति ने एमिली डिकिन्सन की पचास कविताओं का अनुवाद प्रकाशित किया। फिलहाल टीवी चैनल स्थानीयता और मनोरंंजन तक सीमित हैै। भोजपुरी फिल्म ‘गोरखनाथ बाबा तोहेे खिचड़़ी चढ़़इबो’ की पटकथा के लिए रंंगकर्मी दुर्गाप्रसाद सम्मानित हुुए। ब्रजभाषा की कविता से युवा कविता तक का सफर रोमांचक हैै। पिछले दिनों उदयभान मिश्र की कृति ‘रामग्राम से कामाख्या तक’ यात्रा वृ_x009e_ाांत केे रूप में चर्चित थी। रंंगकर्मियोंं में हरीश माथुर, केेसी ऐन, दीप शर्मा, अशोक महर्षि, मुमताज खान, सीमा मुमताज, अनिल मेहरोत्रा, निशा गुप्त, पीयूषकांत, शैलेश श्रीवास्तव, शहजाद रिजवी प्रमुख रहेे हैैं। कभी आभा शंभुतरफदार ने रूपांतर द्वारा प्रदर्शित नाटक ‘लहरों केे राजहंंस’ में सुंदरी और नंद की भूमिका निभायी। आभा धूलिया ने माया मेम साहब फिल्म मेंं काम किया। श्याम बेनेगल ने उन्हेेंं सराहा। रानी मिश्र भोजपुरी की कई फिल्मोंं मेंं आयीं। रामदेव शुक्ल, विद्याभूषण, गिरीश रस्तोगी कलाभूषण से सम्मानित हुुए। विश्वनाथ तिवारी को पुश्किन सम्मान मिला। विद्याधर द्विवेदी विक्षिप्त हुुए पर उनकी कविता ‘गर्म पैंंट’ आज तक पाठकों की स्मृति में हैै। मुहम्मद जकी ने कबीर पर बड़़ेे आयोजन किये। भौतिक विद जयप्रकाश चतुर्वेदी का मेघनाथ साहा पर मोनोग्राफ चर्चा मेंं हैै। अशोक सक्सेना ने गीता की मनोवैज्ञानिक व्याख्या की। निशा जायसवाल केे चित्र प्रशंसित हैैंं। श्री प्रदीप सुविज्ञ ने दोनो कहानी पर टेेलीफिल्म बनायी। इसमेंं सतीश जैन चित्रकार एवं राजीव केतन छायाकार हैैंं। ऐसी कोई टिप्पणी अधूरी रहने केे लिए अभिशप्त हैै और भी बहुुत कुुछ समृति मेंं हैै। उन पर फिर कभी। अभिनय के क्षेत्र में कभी अमृता सरकारी चर्चा में थीं। इधर दिव्यारानी सिंह का अभिनय सराहा गया हैै। ‘धु्रव स्वामिनी’ मेंं अमृता की भूमिका भोपाल केे भारत भवन में सराही गयी। रंंग मंडल, राष्ट्र्रीय नाट्ï्ïय विद्यालय, नई दिल्ली से संबद्घ वंदना शर्मा यहींं की हैैंं। उन्होंंने ‘भूख आग हैै’ जैसे नाटकों में काम किया हैै। संस्कृति-कर्म एक अनवरत प्रक्र्रिया हैै। शैवााल प्रकाशन फरवरी 2००8 केे विश्व पुस्तक मेले मेंं महत्वपूर्ण प्रकाशनों के साथ होगा। कभी एएल बैशम जैसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के इतिहासकार ने विश्वम्भर शरण पाठक को पुरातत्व, संस्कृति केे लिए सराहा था। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित फिराक ने यहींं कहा था- ‘‘दरअसल मैंं गुमनाम रहना चाहता हूँ।’’ चिकित्सा क्षेत्र में इधर लॉज वैलेस केे तार पूरी दुनिया से जुड़़ेे हैैंं।
‘गोरखपुर जो एक शहर था’ के बाबत जाहिर हैै प्रेमचंद और फिराक गोरखपुरी को खास वृ_x009e_ाांत बनाती होगी। आधी सदी गोरखपुर मेंं बिताकर मुझे लगता हैै, शहर नींंद मेंं हैै और सपने देखना भी उसने बंद कर दिया हैै। कभी नेहरू ने यहींं रेेलवे स्टेेडियम मेंं ‘इतिहास क्या हैै’ विषय पर स्टूूडेेन्ट्ï्ïस फेेडरेेशन केे मंच से व्याख्यान दिया था और कहा था, ‘‘युवाओं को स्वप्नदृष्टा होना चाहिए। सपने अँधेरेे में थरथराती लौ की तरह होते हैैंं।’’ गोरखपुर एक मलंग जैसा शहर हैै। शायद नाथ पंथ के प्रभाव से ऐसा हो। जब अमृतराय ‘कलम का सिपाही’ लिख रहेे थे, तो मैंंने उनकेे साथ दशरथ प्रसाद द्विवेदी और महावीर प्रसाद पोद्ïदार से भेंंट की थी। ‘स्वदेश’ में प्रेमचंद छद्ïम नाम से लेख लिखते थे। अब उनके नाम पर ‘सेंंट जोजेफ कालेज फार वीमेन’ के सामने वाली सड़क़ हैै-स्वदेश मार्ग। रामचंद्र शुक्ल ने मन्नन द्विवेदी गजपुरी के उपन्यास ‘रामलाल’ को किसान जीवन का दस्तावेज कहा हैै। जीवन ने ‘कलम और कुुदाल’ लिखा। देवेन्द्र कुमार के गीत प्रसिद्घ हैैंं।
समय बहुुत आगे चला आया हैै। कभी ‘राप्ती’, ‘रचना’, ‘सम्प्रति’ पत्रिकाएं वहाँ से निकली थींं। रचना में मुक्तिबोध का लेख छपा-‘रचना प्रक्र्रिया’। इधर ‘प्रस्थान’, ‘दस्तावेज’, ‘सहचर’ चर्र्चा में हैै। ‘प्रस्थान’ दीपक त्यागी के दो अंक क्रमश: निर्मल वर्मा और प्रेमचंद पर केेन्द्रित हैैंं। नये अंक में केेकेे बिड़़ला फाउंंडेेशन केे सम्मान पाने केे उपलक्ष्य में मुझ पर एक पूरा खंंड होगा। दूसरा सत्यप्रकाश मिश्र पर, जो अब हमारेे बीच नही हैैंं। ‘दर्पण’, ‘रूपांतर’, ‘समानान्तर’ की गतिविधियाँ ‘रंंगाश्रम’ के साथ चर्चा मे रही हैैंं। देवेन्द्र राज अंकुुर ने ‘रूपांतर’ के लिए ‘कहानी का रंंगमंच’ प्रस्तुत किया। हबीब तनवीर ने ‘मिट्ï्ïटी की गाड़़ी’ छ_x009e_ाीसगढ़़ी मेंं। कारंंत ने रूपांतर केे रंंगमंडल का दीक्षंात भाषण करते हुए ‘अनामदास’ की पोथा की चर्चा की। ‘आषाढ़़ का एक दिन’, ‘लहरों केे राजहंंस’, ‘खामोश अदालत जारी हैै’, ‘अंधा युग’, ‘बाणभट्ï्ïट की आत्मकथा’, ‘अंजो दीदी’, ‘नींंद क्योंं रात भर नहींं आती’, ‘नीला घोड़़ा’ यादगार प्रस्तुतियाँ हैैंं। ‘नीला घोड़़ा’ (बाल नाटक) का निर्देशन अपराजिता ने किया। रेेखा जैैन के साथ अचिता ने इक्कीस दिन का वर्कशाप किया जिसमें ‘खेल खिलौनोंं का संसार’ जैसे नाटक प्रस्तुत हुुए।
इधर ‘वचन पत्रिका’ ‘अनामिका प्रकाशन’ और एक समाचार पत्र केे संयुक्त तत्वावधान में संवाद 2००6 किया। गोरखपुर मेंं प्रतिरोध का सिनेमा फिल्म महोत्सव केे रूपये दो साल सम्पन्न हो चुका है। जिसमेंं कुुरोसावा, डिसीका, सत्यजीत राय आदि की फिल्मेंं दिखाई गयींं। इस बार का आयोजन ईरानी और भोजपुरी फिल्मोंं पर केेन्द्रित किया। पिछले साल दो कैसेट रिलीज हुुए-‘रंंग पैराहन’ (हरिओम), ‘देवी दयालु भई’ (मालविका)। विश्वविद्यालय के नाट्ï्ïय महोत्सव अब स्मृति भर होकर रह गये हैैं। ‘कृृति कल्चरल’ सेन्टर (निदेशक : उषा कुुमार) सांस्कृृतिक प्रशिक्षण के लिए चर्चित हैैंं। कभी विश्वविद्यालय केे कला विभाग केे अध्यक्ष शांति निकेेतन राम किंंकर केे शिष्य जितेन्द्र कुुमार आधुनिक अमूर्त कलाशिल्प के लिए प्रसिद्घ थे।
अतीत मेंं अमृता शेरगिल सरदारनगर, गोरखपुर में रहींं। उनका बहुुत सा काम ‘धान कूूटती औरतेंं’, ‘तीन ब्रम्हचारी’, ‘प्रसाधन’ कई मूड्ï्ïस, अत्यधिक चर्चा मे रहेे हैैं। उनकेे पति डा. ईगन को हमने आते-जाते देखा है। गोरखनाथ मंदिर अब सेकुुलर नहींं रहा। गीता प्रेस, आरोग्य मंदिर दर्शनीय हैैंं। इधर, मदन मोहन और बादशाह हुुसेन रिजवी कथा क्षेत्र मेंं परिचित नाम हैैंं। प्रेमचंद पार्र्क में प्रेमचंद साहित्य संस्थान हैै जिसकी पत्रिका ‘साखी’ ने नया अंक एडवर्र्ड सईद पर केन्द्रित किया हैै। इधर पार्क मेंं प्रेमचन्द केे पात्रों केे भि_x009e_िा चित्र, मुक्ताकाशी रंंगमंच दर्शनार्थियों केे आकर्षण हैंं। कभी केेदारनाथ सिंह का यही कार्यक्षेत्र था। वीएस नायपाल केे पूर्वज इसी जनपद के दुखौली गाँव के थे।
अरविन्द त्रिपाठी ने देवीशंकर अवस्थी सम्मान प्राप्त किया। वरिष्ठ आलोचक रामचंद्र तिवारी हिन्दी गौरव से सम्मानित हैैंं। नामवर सिंह केे कई व्याख्यान चर्चा में रहेे हैैंं। मान्धाता सिंह का युवा संस्कृृति मंच फिराक सम्मान देता हैै। सम्मानितोंं में शहरयार, आलोक धनवा, स्वप्निल, मखमूर सईदी रहे हैैंं। कभी राम विनायक सिंह, भगवान सिंह, रामसेवक श्रीवास्तव, विश्वजीत यहींं रचनायें लेखन के लिए जाने गये। मजनू गोरखपुरी भारत, पाकिस्तान मेंं बड़़ेे आलोचक केे रूप में जाने-जाते हैैंं। वे गोरखपुर से अलीगढ़़, फिर पाकिस्तान चले गये। ‘स्वदेश’ में फिराक की कहानियाँ भी छपींं। विद्यानिवास मिश्र का बहुुत कुुछ यहीं का हैै। इधर विश्वविद्यालय में बी.जे., एम.जे. जैसे पाठ्ï्ïयक्रम चल रहेे हैैंं। ‘इंस्ट्ï्ïटीट्ï्ïयूट ऑफ मास कम्यूनिकेेशन’ के निदेशक हैैंं-रामदरश राय। विश्वविद्यालय प्रशासन विवाद ग्रस्त रहा हैै। पर यहींं कई बड़़ेे आयोजन भी हुुए-जैसे प्रेमचंद पीठ का सेमिनार, ‘प्रेमचंद और भारतीय साहित्य’, ‘दलित विमर्श:’, ‘अनुवाद की कला’, ‘पत्रकारिता की समकालीन चुनौतियाँ।’ ‘सृजन संवाद’ युवा कवयित्री रंंजना जायसवाल केे प्रयत्न से सक्र्रिय हैै। खुद उनका कविता संग्रह ‘दुख पतंग’ चर्चा मेंं हैै। सुरेेन्द्र काले, रोहित पांडेे, रवीन्द्र जुगानी, वेद प्रकाश, प्रमोद कुुमार, अनिता अग्रवाल, अनिल राय, अनंत मिश्र, अशोक चौधरी, चितरंंजन मिश्र, चंद्रभूषण अंकुुर, कुुमार हर्ष चर्चा में रहते हैैंं। मनोज कुुमार सिंह प्रतिरोध का सिनेमा केे लिए चर्चित हैै। देवेन्द्र आर्य और महेेश ने गजल से गीत तक लम्बा सफर तय किया हैै। चित्रकारों छायाकारोंं मेंं सतीश जैन, राजीव केेतन। संगीत मेंं शरदमणि त्रिपाठी, प्रेम शंकर, रानू जानसन प्रमुख हैं। अभी-अभी खबर मिली हैै कि मस्कट-ओमान केे संस्कृृति विभाग ने एक समारोह में उषा कुुमार को कला-संगीत केे लिए सम्मानित किया हैै। याद करेेंं कभी शेखर सेन ने कबीर की एकल प्रस्तुति टाउन हाल में की थी। कात्यायनी की पहचान यहीं से बनी। अब अरविन्द सिंह सक्रिय हैैंं। ‘मैं सीमा शफक’ कहानी यहींं की देन हैै।
‘तनाव’ (संपादक माहेश्वरी) केे एक अंक मेंं श्रुति ने एमिली डिकिन्सन की पचास कविताओं का अनुवाद प्रकाशित किया। फिलहाल टीवी चैनल स्थानीयता और मनोरंंजन तक सीमित हैै। भोजपुरी फिल्म ‘गोरखनाथ बाबा तोहेे खिचड़़ी चढ़़इबो’ की पटकथा के लिए रंंगकर्मी दुर्गाप्रसाद सम्मानित हुुए। ब्रजभाषा की कविता से युवा कविता तक का सफर रोमांचक हैै। पिछले दिनों उदयभान मिश्र की कृति ‘रामग्राम से कामाख्या तक’ यात्रा वृ_x009e_ाांत केे रूप में चर्चित थी। रंंगकर्मियोंं में हरीश माथुर, केेसी ऐन, दीप शर्मा, अशोक महर्षि, मुमताज खान, सीमा मुमताज, अनिल मेहरोत्रा, निशा गुप्त, पीयूषकांत, शैलेश श्रीवास्तव, शहजाद रिजवी प्रमुख रहेे हैैं। कभी आभा शंभुतरफदार ने रूपांतर द्वारा प्रदर्शित नाटक ‘लहरों केे राजहंंस’ में सुंदरी और नंद की भूमिका निभायी। आभा धूलिया ने माया मेम साहब फिल्म मेंं काम किया। श्याम बेनेगल ने उन्हेेंं सराहा। रानी मिश्र भोजपुरी की कई फिल्मोंं मेंं आयीं। रामदेव शुक्ल, विद्याभूषण, गिरीश रस्तोगी कलाभूषण से सम्मानित हुुए। विश्वनाथ तिवारी को पुश्किन सम्मान मिला। विद्याधर द्विवेदी विक्षिप्त हुुए पर उनकी कविता ‘गर्म पैंंट’ आज तक पाठकों की स्मृति में हैै। मुहम्मद जकी ने कबीर पर बड़़ेे आयोजन किये। भौतिक विद जयप्रकाश चतुर्वेदी का मेघनाथ साहा पर मोनोग्राफ चर्चा मेंं हैै। अशोक सक्सेना ने गीता की मनोवैज्ञानिक व्याख्या की। निशा जायसवाल केे चित्र प्रशंसित हैैंं। श्री प्रदीप सुविज्ञ ने दोनो कहानी पर टेेलीफिल्म बनायी। इसमेंं सतीश जैन चित्रकार एवं राजीव केतन छायाकार हैैंं। ऐसी कोई टिप्पणी अधूरी रहने केे लिए अभिशप्त हैै और भी बहुुत कुुछ समृति मेंं हैै। उन पर फिर कभी। अभिनय के क्षेत्र में कभी अमृता सरकारी चर्चा में थीं। इधर दिव्यारानी सिंह का अभिनय सराहा गया हैै। ‘धु्रव स्वामिनी’ मेंं अमृता की भूमिका भोपाल केे भारत भवन में सराही गयी। रंंग मंडल, राष्ट्र्रीय नाट्ï्ïय विद्यालय, नई दिल्ली से संबद्घ वंदना शर्मा यहींं की हैैंं। उन्होंंने ‘भूख आग हैै’ जैसे नाटकों में काम किया हैै। संस्कृति-कर्म एक अनवरत प्रक्र्रिया हैै। शैवााल प्रकाशन फरवरी 2००8 केे विश्व पुस्तक मेले मेंं महत्वपूर्ण प्रकाशनों के साथ होगा। कभी एएल बैशम जैसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के इतिहासकार ने विश्वम्भर शरण पाठक को पुरातत्व, संस्कृति केे लिए सराहा था। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित फिराक ने यहींं कहा था- ‘‘दरअसल मैंं गुमनाम रहना चाहता हूँ।’’ चिकित्सा क्षेत्र में इधर लॉज वैलेस केे तार पूरी दुनिया से जुड़़ेे हैैंं।