मायावती की किताब

Update:2008-01-15 18:14 IST
दिनाँक: 15.०1.2००8
‘मेरे संघर्षमय जीवन एवं बीएसपी मूवमेन्ट का सफरनामा’ जिस _x008e_लू बुक का लोकार्पण मायावती ने अपनी 52वीं सालगिरह पर किया है। 1०98 पृष्ठïों की इस किताब को लखनऊ के प्रकाश पैकेजर्स ने मुद्रित किया है जबकि इसकी प्रकाशक बसपा खुद है। 11०० रूपये के मूल्य वाली किताब को खोलते ही सबसे पहले संसद को उंगली दिखाती हुई अंबेडकर की प्रतिमा के एक बड़े चित्र के ऊपर अंबेडकर की यह उक्ति, ‘‘अपना उद्घार स्वयं करने के लिए इस मंदिर अर्थात्ï संसद पर वोट के माध्यम से क_x008e_जा करो।’’ दर्ज है, तो ठीक नीचे कु. मायावती की ओर से भी संसद रूपी स_x009e_ाा के मंदिर पर वोट के माध्यम से क_x008e_जा करने और प्रधानमंत्री बनने की उनकी अभिलाषा बयान करती हुई इबारत दर्ज है। दूसरे पेज पर बहुजन समाज के लोगों के लिए मायावती का यह संदेश है-‘ए बहुजन समाज एवं अपर कास्ट के गरीब व लाचार लोगों! अगर आप लोग, बीएसपी के बैनर तले, संगठित होकर स_x009e_ाा की मास्टर चाभी अपने हाथों में लेकर स्वयं हाकिम न बनें, तो हमेशा की तरह बाढ़ में बहने वाले तिनकों की तरह बेवजन, बेसहारा और बेआसरा बने रहेंगे।’’ मायावती इससे पहले बीएसपी मूवमेन्ट के सफरनामा की दो और जिल्दें जारी कर चुकी हैं। यह तीसरी जिल्द है। पिछली दोनों किताबों का नाम ‘मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन मूवमेन्ट का सफरनामा’ था लेकिन जबसे मायावती ने बहुजन से सर्वजन की यात्रा की है, सवर्ण उनके साथ जुड़े हैं, तबके बाद से उन्होंने लिखी गयी नयी किताब में बहुजन मूवमेन्ट की जगह बीएसपी मूवमेन्ट का सफरनामा लिख दिया। किताब में बीएसपी के प्रतीक चिन्ह के साथ ही साथ मायावती की एक और 231 पृष्ठï की किताब ‘बहुजन समाज और उसकी राजनीति’ का भी जिक्र है। बहुजन समाज के जन्मे संतों, गुरूओं और महापुरूषों के संघर्षों और कुर्बानियों को समर्पित तीसरी जिल्द में सन्ï 2००6 के प्रारंभ से उप्र की 15वीं विधानसभा के लिये हुये आम चुनाव के नतीजे आने तक के बीच की चुनौतियों, संघर्षों का लेखा-जोखा है। 58 अध्यायों और तीन परिशिष्टïों-अ, ब, स वाली इस किताब के परिशिष्टï अ में भारत गणराज्य के राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, संसदीय क्षेत्रों, भारत की निर्वाचन प्रक्रिया एवं निर्वाचन आयोग, परिशिष्टï ब में राष्टï्रपति, उपराष्टï्रपति, प्रधानमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय एवं कैबिनेट सचिव की चर्चा है जबकि परिशिष्टï स में उप्र के राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, राष्टï्रपति शासनकाल, विधानसभा, मंत्रिमंडल और मंत्रि मंडलीय सचिवों के बारे में जिक्र किया गया है। किताब में उप्र के बारे में कई महत्वपूर्ण आंकड़े पृष्ठ संख्या-1०88 से 1०91 के बीच दिये गये हैं जबकि पृष्ठï संख्या 1०92 से 1०93 के बीच अंग्रेजी में उप्र के बारे में कई महत्वपूर्ण सांख्यिकीय जानकारियां दी गयी हैं। 1994 से 1995 के बीच विभिन्न राजनीतिक दलों के मत प्रतिशत की बात है। किताब के अंतिम पन्नों में मायावती के मुख्यमंत्री बनने के चारों बार के शपथ ग्रहण के चित्र लगाये गये हैं। तकरीबन 225 मायावती के चित्रों से भरी इस पूरी किताब में छोटे-बड़े अखबारों की सुर्खियां पायी बहुजन समाज पार्टी की तमाम खबरों का भी जिक्र है। मायावती की ओर से राज्यपाल, लालू प्रसाद यादव सहित तमाम बड़ी हस्तियों को लिखे गये खतो-किताबत की कापियां भी किताब में पढऩे को मिलती हैं। राज्य की 15वीं विधानसभा में बसपा के टिकट पर जीते सभी विधायकों के नाम का जिक्र भी किताब में किया गया है। ‘जिसकी जितनी तैयारी, उसकी उतनी भागीदारी’ नारे के साथ पिछले विधानसभा चुनाव में उतरी मायावती ने अपनी किताब में साफ किया है कि सभी 4०3 विस सीटों में से किस जाति को कितने टिकट दिये गये हैं। मसलन उन्होंने कहा है, ‘‘मुस्लिम समाज को 61 तथा अपर कास्ट को 136, जिसमें ब्राम्हण समाज के 86 टिकट शामिल हैं, दिये गये थे।’’ मायावती ने अपने मतदाताओं और कार्यकर्ताओं को सचेत करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद से दूर रहने, वोटों की गिनती से संबंधित सावधानियों और वोट डालने के तौर तरीके भी अपनी किताब में सिखाने से गुरेज नहीं किया है। उन्होंने इस बात की भी किताब में सफाई दी है कि बसपा ने मुसलमानों का कभी कोई नुकसान नहीं होने दिया है। अपने प्राक्कथन में मायावती ने प्रसिद्घ अंग्रेजी लेखिका वर्जीनिया वुल्फ का जिक्र किया है। किताब में मायावती के 5०वें जन्मदिन के जश्र की कई तस्वीरें कांशीराम और उनके परिवार की उपस्थिति दर्ज कराती हुई दिखती हैं तो एक तस्वीर में कांशीराम व्हील चेयर पर मायावती के हाथों बर्थडे का केक खाते हुए भी दिखायी पड़े हैं। कांशीराम के देहावसान और उनके अंतिम संस्कार से जुड़े कार्यक्रमों के चित्र किताब में बसपा के इस पुरोधा पुरूष की स्मृतियां भी दर्ज हैं। मायावती उनका अस्थि कलश लेकर सर्वजन समाज के साथ भी दिखायी पड़ती हैं। अखबारों में छपी कई खबरों की कतरन भी उनकी इस पुस्तक का आकार बढ़ाती हैं। मायावती की यह आधी किताब अंग्रेजी के संदर्भों से भरी पड़ी है। बहुजन प्रेरणा ट्रस्ट बनाने की जरूरत के साथ-साथ कांशीराम जी के जन्मदिन को बहुजन समाज दिवस के रूप में मनाये जाने की बात भी मायावती इस किताब के मार्फत अपने लोगों से कहती हैं। वह यह बात रखती हैं कि कांशीराम जी ने ही यह फैसला लिया था कि कु. मायावती का जन्मदिन बसपा आर्थिक सहयोग दिवस के रूप में मनायेगी। महात्मा गांधी पर टिप्पणी करते हुए एक अखबार में मायावती की छपी गांधी को जातिवादी कहने की इबारत भी किताब में मिलती है। मशहूर शायर अल्लामा इकबाल की-‘मैं कहां रुकती हूं, अर्श ओ फर्श की आवाज से, मुझको जाना है बहुत ऊपर, हद ए परवास से’ पर मायावती अमल करती हैं यह बात भी किताब बताती है। दलित आंदोलन और बहुजन समाज के एजेंडे के अलावा मायावती ने अपने निजी जीवन के कई ऐसे पहलुओं पर भी रोशनी डाली है जो कमोबेश अभी तक अछूते थे। मसलन, उनका नाम मायावती क्यों पड़ा? पहली बार बहनजी कहकर किसने संबोधित किया? कांशीराम जी से अपने संबंधों को बताते हुए वह कहीं-कहीं बहुत भावुक हो गयी हैं। दलबदल की कार्रवाई के फैसले, उससे जुड़ी खबरों के साथ ही साथ घूसकांड और दूसरी शादी रचाने वाले दागी सांसदों से मुक्ति पा लेने के बारे में मायावती की छपी खबरें भी किताब की शोभा बढ़ाती हैं। विदेशी नीति पर कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए मुस्लिम सर्वे के मामले पर दिये गये बयान और डेनमार्क से संबंध खत्म करने का मायावती का वक्तव्य भी किताब में है। भारत दौरे पर आए अमेरिकी राष्टï्रपतियों के बारे में मायावती ने अपने विचार रखे हैं। बागी विधायकों के मामले में विधानसभा अध्यक्ष केशरीनाथ त्रिपाठी पर उठायी गयी उंगलियों के बावत छपी कई खबरों को भी मायावती ने अपनी किताब का हिस्सा बनाया है। ब्राम्हण भाईचारा के आयोजनों की फोटो में मायावती प्रफुल्लित मुद्रा में दिखती हैं तो उनके खिलाफ छापी गयी खबरों को लेकर उन्होंने जिसे भी अवमानना की नोटिस दी है, उसका भी जिक्र उन्होंने अपनी किताब में किया है। वाराणसी सीरियल बम _x008e_लास्ट के बहाने जहां वह मुलायम को घेरते हुए दिखती हैं वहीं आतंकवाद पर नजरिया साफ भी करती हैं। किताब में मायावती ने अंबेडकर के उस संदेश को भी लिखा है जिसमें वह अपने लोगों के लिए यह संदेश देते हैं, ‘‘बहुत सख्त तकलीफों और अनंत संकटों का सामना करते हुए इस कारवां को यहां ला पाये हैं। अगर मेरे अनुयायी इस कारवां को आगे नहीं बढ़ा सकते तो उसे वहीं छोड़ दें जहां पर यह विद्यमान है लेकिन किसी भी परिस्थिति में मेरे इस कारवां को पीछे नही जाने दें। यही मेरा संदेश है मेरे लोगों के लिये।’’ लिम्बा बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्डस में मायावती का जो नाम दर्ज है उसकी प्रति भी लगायी गयी है। उप्र में नगर निकाय चुनाव मायावती क्यों नहीं लड़ी? इस बारे में भी बहुत कुछ किताब में खुलासा होता है। कांशीराम के निधन पर प्रधानमंत्री, उपराष्टï्रपति सहित अन्य महत्वपूर्ण राजनीतिक शख्सियतों द्वारा भेजी गयी संवेदनाओं के पत्र तथा अखबारों में छपी कई इबारतें मायावती ने किताब में लगा रखी हैं। ताज एक्सप्रेस-वे जांच आयोग द्वारा जांच आख्या पर कार्रवाई के संबंध में जो सरकारी टिप्पणी है, वह भी मायावती ने अपने पाठकों के लिए उपल_x008e_ध कराया है। निठारी कांड पर भी वह मुलायम को घेरते हुए दिखती हैं तो अखबारों में जो कुछ भी है वह भी उन्होंने लिख छोड़ा है। मुलायम की संप_x009e_िा की जांच सीबीआई को सौंपने के बावत भी पृष्ठï संख्या-723 पर उन्होंने लिख रखा है। अपने राजनीतिक समर के पड़ाव में आयी सभी दिक्कतों, दुश्वारियों और उसे लेकर बहुजन समाज के बीच उपजे विभ्रम को दूर करने के लिए मायावती ने इस कालखंड में जो कुछ किया है, वह सब कुछ किताब में है।

-योगेश मिश्र

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