पानी में बही 95 फीसदी धनराशि

Update:2008-02-11 17:56 IST
दिनांक: 11.2.2००8
अपने बुंदेलखंड दौरे में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने जब केंद्रीय योजनाओं के लिए मिली धनराशि का केवल पांच फीसदी ही राज्य में खर्च होने की बात कही तब स_x009e_ाारूढ़ दल बसपा ने उनकी जमकर खिल्ली उड़ाई थी। कहा गया था कि यह राज्य सरकार को भ्रष्ट जताने का कुत्सित प्रयास है। वह भूख के दंश झेल रहे बुंदेलखड़ के लोंगो के कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति चमका रहे हैं। लेकिन अगर पेयजल और स्वच्छता के कार्यक्रमों में सुधार लाने हेतु ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही जलनिधि(सेक्टर रिफार्म) तथा स्वजल धारा कार्यक्रमों को क्रियान्वयन की पड़ताल करे तो उनकी यह टिप्पणी एकदम सटीक बैठती है। पानी के लिए चलाई जा रही योजनाओं के लेखा-जोखा से साफ है कि केंद्र से भेजे गए सौ रूपये में से पांच रूपया ही इन योजनाओं को लागू करने में खर्च हो पाया है।

न_x008e_बे के दशक में कर्नाटक एवं तमिलनाडु में स्वच्छता और पेयजल के क्षेत्र में रिफार्म के छिटपुट प्रयास प्रारंभ हुए थे। पर यह 1997 में विश्वबैंक के सहयोग से उप्र के 19 जनपदों के, जिनमें से 12 जनपद उ_x009e_ाराखंड में चले गये तथा सात जनपद बुंदेलखंड में हैं, 1००० गांवों में प्रयोग के रूप में योजना शुरू की गई। प्रत्येक योजना में दस प्रतिशत समुदाय की भागीदारी अनिवार्य की गयी। संचालन एवं रखरखाव की जिम्मेदारी भी समुदाय को ही दी गयी। 1999 में स्वजल परियोजना की सफलता से प्रभावित होकर भारत सरकार ने देश के 26 राज्यों के 67 जनपदों में ग्रामीण पेयजल में सुधार हेतु सेक्टर रिफार्म कार्य शुरू किया। जिसमें उप्र के पांच जनपद-आगरा, लखनऊ, चंदौली, सोनभद्र एवं मिर्जापुर का चयन हुआ। इनमें से मिर्जापुर और सोनभद्र वर्तमान में अकाल की चपेट में हैं। तो मायावती के ही पहले कार्यकाल में शुरू हुए इन स्वजल कार्यक्रम वाले उसी बुंदेलखंड में आज पानी की कमी को लेकर राजनीति गरमाने लगी है। भारत सरकार ने इन जनपदों में जल संरक्षण एवं पेयजल योजनाओं हेतु 15० करोड़ का परिव्यय निर्धारित किया था। जिसमें मिर्जापुर को 3० करोड़, लखनऊ को 4० करोड़, सोनभद्र को 25 करोड़, आगरा को 3० करोड़ तथा चंदौली को 25 करोड़ दिया गया था। खराब अनुश्रवण एवं क्रियान्वयन के कारण मिर्जापुर 862 लाख, लखनऊ 1122 लाख, सोनभद्र 1387 लाख, आगरा 1०47 लाख तथा चंदौली 1136 लाख यानी पांचों जनपद जल संरक्षण के महत्वपूर्ण कार्यक्रम में 15० करोड़ के सापेक्ष कुल 55 करोड़ ही भारत सरकार से प्राप्त कर सके।

भारत सरकार द्वारा उपलब्ध करायी गयी धनराशि से आगरा में 223 हैंडपंप, 48 मिनी पाइप वाटर सप्लाई तथा कुल 4 तालाब, चंदौली में 427 हैंडपंप तथा 36 तालाब खोदे गये हैं। लखनऊ में 464 हैंडपंप, 15 मिनी पाइप वाटर सप्लाई तथा 69 तालाब बनाये गये हैं। सूखा प्रभावित मिर्जापुर एवं सोनभद्र में 462 हैंडपंप तथा सोनभद्र में कुल 17 कुओं का निर्माण कराया गया है। आंकड़े ही इस योजना के भ्रष्टïाचार की कहानी बयान करने के लिए पर्याप्त है।। क्योंकि 55 करोड़ खर्च करके 16०० हैंडपंप, 63 मिनी पाइप वाटर स्कीम, 1०9 तालाब एवं 12 कुएं ही बन पाए हैं और इनमें से भी अधिकांश अभी तक अपूर्ण है। यही नहीं, व्यय की गयी धनराशि का समायोजन अभी तक भारत सरकार को उपलब्ध नहीं कराया गया है। यदि जल निधि कार्यक्रम में कराये गये कार्यों एवं व्यय की गयी धनराशि का कार्य मूल्यांकन एवं वित्तीय आडिट करा लिया जाय तो राहुल गांधी की झांसी में की गयी टिप्पणी बिल्कुल सटीक बैठेगी।

दिसंबर 2००3 में भारत सरकार ने जल निधि कार्यक्रम को बंद करके पूरे देश में पेयजल एवं संरक्षण में चलाये जा रहे सुधार कार्यक्रमों को आगे बढ़ाते हुये स्वजलधारा के नाम से अत्यंत महत्वाकांक्षी योजना शुरू की। जहां अन्य प्रदेश इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिए लाइन विभागों में पूरी तैयारी कर रहे थे, वहीं उप्र में प्रोजेक्ट मैनेजमेन्ट यूनिट स्वजल के बंद होने के बाद पेयजल स्वच्छता मिशन हेतु 35 नये पद सृजित करने में जुटा था। इसी दौरान कई ऐसे लोगों की नियुक्ति की गई जिनकी या तो जरूरत नहीं थी अथवा वे पद के अनुरूप योग्यता नहीं रखते थे। नजीर के तौर पर जल निधि परियोजना के अनुश्रवण हेतु यूनिट को-आर्डिनेटर के पद पर कार्यरत अधिकारियों की छुट्ïटी करके प्राइवेट कंसल्टेंट मीना अग्रवाल को अनुश्रवण का चीफ बना दिया गया जो मूल रूप से कम्प्यूटर प्रोग्रामर थीं। यद्यपि तत्कालीन प्रमुख सचिव ने अनुबंध के आधार पर तैनाती के निरस्तीकरण के साथ ही सभी सेक्टोरल मुखिया के पद पर प्रतिनियुक्ति पर तैनाती के आदेश दिए थे। पर इसे अनसुना किया गया। यही नहीं, राज्य पेयजल स्वच्छता मिशन के बराबर ही मानदेय देने का शासनादेश भी दरकिनार करते हुए मात्र चार वर्ष के अनुबंध के अनुभव पर मीना अग्रवाल को मुख्य अभियंता के समतुल्य वाले वेतनमान 286०० मासिक मानदेय निर्धारित कर दिया गया। वह भी तब, जबकि इनके पास इंजीनियरिंग की कोई डिग्री नहीं है। एक-एक कंसल्टेंट पर विभाग 53००० रूपये महीने तक खर्च कर रहा है। उनके वाहनों पर व्यय हुई धनराशि 2०००० रूपये तक बैठ रही है। मनचाहे लोगों को नौकरी और मनचाही पगार देने के खातिर मिशन कार्यालय को ग्राम्य विकास आयुक्त कार्यालय से पृथक रखा गया। प्रशासनिक लापरवाही का आलम यह है कि राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन के अध्यक्ष पद पर मुख्य सचिव के होने के बाद भी लगभग तीन सालों से कोई बैठक समिति की नहीं हो पाई है। एक वर्ष से कोई वि_x009e_ा अधिकारी तैनात नहीं है। समस्त आहरण प्राइवेट कंसल्टेंट के द्वारा किया जा रहा है। जो वि_x009e_ाीय प्रावधानों के प्रतिकूल है। परियोजना का शायद ही कोई मुखिया आया हो जो अपने खाते में एक नया लैपटाप खरीद की जरूरत जताते हुए विदाई के समय लेकर चलता न बना हो। गौरतलब है कि इन परियोजनाओं के मुखिया पद पर राज्य के आईएएस अफसर प्राय: रहे हैं।

स्वजलधारा कार्यक्रम में भारत सरकार से उप्र को 2००2-०3 में 11 करोड़, 2००3-०4 में 14 करोड़, 2००4-०5 में 16 करोड़, 2००5-०6 में 26 करोड़, 2००6-०7 में 27 करोड़ की धनराशि प्राप्त हुयी। आज तक किसी भी वर्ष में उपल_x008e_ध करायी गयी धनराशि व्यय करके समायोजन भारत सरकार को नहीं दिया गया है। बावजूद इसके शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के हरेक निवासी को मानकों के अनुसार पानी मिल सके, इसके लिए जल निगम ने 295 अरब रूपये की योजना तैयार करके केंद्र को भेज दी है। जिसमें गांवों में हैंडपंप व पाइप लाइन बिछाने में 185 अरब रूपये की जरूरत आंकी गई है। जिला विकास अधिकारियों एवं सहयोगी संस्थाओं की आपसी बंदरबांट के चलते समुदाय का विश्वास भी इस कार्यक्रम से टूट गया है। नतीजतन, अब समुदाय अथवा व्यक्ति पेयजल योजनाओं के लिए अंशदान देने के लिए आगे नहीं आता। त्वरित ग्राम पेयजल योजना (एआरड_x008e_लूएसपी) के अंतर्गत भारत सरकार से 1999 से प्रतिवर्ष लगभग 3०० करोड़ की धनराशि पेयजल, गुणव_x009e_ाा सुधार हेतु प्राप्त हो रहा है। इसमें से 15 फीसदी अर्थातïï्ï लगभग 5० करोड़ रूपये प्रतिवर्ष भूजल में बढ़ो_x009e_ारी करने के लिए रिचार्ज एवं वर्षा जल संचयन पर व्यय किये जाने का प्रावधान है। गत 9 वर्षों में लगभग 45० करोड़ की धनराशि स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से ग्राम्य विकास विभाग द्वारा रिचार्जिंग हेतु व्यय किया गया है। परंतु प्रदेश में कहीं भी परिसंप_x009e_िा देखने लायक नहीं है। संपूर्ण धनराशि सुनियोजित तरीके से शासन स्थित ग्राम्य विकास विभाग, स्वयं सेवी संस्थाओं एवं जनपद स्तरीय अधिकारियों द्वारा गायब कर लिया गया है। इस प्रकरण की सीबीसीआईडी एवं आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा से कराये जाने की मांग की जाती रही है पंरतु रिचार्जिंग के काम में लगे माफियाओं ने कभी भी जांच नहीं होने दिया।

ग्रामीण एवं पेयजल स्वच्छता कार्यक्रमों को जनता तक पहुंचाने के लिए सीसीडीयू (कम्यूनिकेशन एंड कैपिसिटी डेवलपमेंट यूनिट) के लिए भी केंद्र सरकार ने उप्र को 27 करोड़ रूपया उपल_x008e_ध कराया है। इस धनराशि से प्रत्येक ग्राम पंचायत में पेयजल की गुणव_x009e_ाा के परीक्षण हेतु 6 व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया जाना है। यह पूरा कार्यक्रम अधर में लटक गया है। पिछले छह माह से सीसीडीयू की एक भी गतिविधि प्रदेश में आयोजित नहीं की गयी है। यही नहीं, सीसीडीयू के प्रोजेक्ट को-आर्डिनेटर का पद छह माह से खाली है। वह भी तब, जब 2०11 तक प्रदेश में समस्त परिवारों को शौचालय उपल_x008e_ध कराते हुये खुले में शौच की परंपरा को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। अब जबकि भारत सरकार ने नाराजगी के साथ स्वजलधारा कार्यक्रम को बंद कर दिया है। वर्ष 2००7-०8 के लिये राज्य को कोई धनराशि नहीं दी है। तब भी कुछ ‘खास लोग’ इस कार्यालय को पृथक बनाये रखना चाहते हैं। शासनादेश एवं बजट मैनुअल का उल्लंघन करते हुए अनुबंध पर कार्यरत चहेते कर्मियों के मानदेय भुगतान हेतु प्रदेश के बजट से आयोजनेत्तर मद में प्रावधान करा लिया गया है।

-योगेश मिश्र

Similar News