दिनांक: 1०.3.2००8
बलिया में 18०7852 अनुक्रमांक वाले एलेन पाटर, 18०7866 नंबर के इनामुल वेस्ली तथा 18०7913 अनुक्रमांक के शमशेर सिंह देवपा ही नहीं बल्कि अमित कुमार मंडल और आलोक विस्वास नाम के छात्र भी माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षा में शरीक हुए हैं। वह भी तब, जब जिले के राजस्व आंकड़े साफ करते हैं कि यहां इन जातियों का एक भी वाशिंदा नहीं रहता है।
अलीगढ़ के अतरौली के एक केंद्र पर मेरठ निवासी मोहित की जगह सहारनपुर के रहने वाले दूसरे मोहित को संस्थागत छात्र के रूप में परीक्षा देते हुए पकड़ा गया। जबकि संस्थागत छात्र के रूप में परीक्षा में बैठने वालों के लिए 7० फीसदी उपस्थिति अनिवार्य है। लेकिन ये दोनों छात्र इस इलाके से पहली दफा रूबरू हो रहे थे।
हाईकोर्ट द्वारा गठित कमेटी की जांच में कौशांबी जिले में 3०० गैर सहायता प्राप्त इंटर कालेजों के असितत्व न पाये जाने के बाद भी तकरीबन 5०हजार विद्यार्थियों के फेल-पास का फैसला यहां हो रहा है। जांच के मुताबिक 2०० कागजी स्कूल जिला विद्यालय निरीक्षक के ही दो क्लर्कों द्वारा ही संचालित हो रहे हैं।
ऊपर पसरी नजीरें सरकार के नकल रोकने के दावों और संकल्प की कलई खोलती नजर आती हैं। कभी टायलेट में रखी किताब देख लेने, प्रश्नपत्र मिलने के बाद कमरे से बाहर निकल कुछ पूछ लेने और किताबों के पन्ने फाडक़र कमरे में ले जाकर मास्टर की आंख चुराते हुए कॉपी पर उतार देने का चलन अब पुराना पड़ चुका है। कभी गल्ला मंडी के रूप में ख्यात कौशांबी का अजुहा नकल मंडी के रूप में ख्यात हो चुका है। राज्य में 23 जुलाई, 1997 को पहली बार सदन में नकल के सवाल पर बहस करवाने और नकलचियों पर नकेल कसने वाले मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के गृह जनपद अतरौली भी नकलचियों के तीर्थ के रूप में ख्यात है। इस तीर्थ के बने रहने के लिए मुलायम सरकार के दौरान दोनो हाथों से वित्तविहीन विद्यालयों को मान्यता उलीची गयी। फर्नीचर, स्टाफ, प्रयोगशाला के बिना भी स्कूल चलने लगे। आपराधिक गतिविधियों के लिए चर्चित कुशीनगर जनपद की तमकुही तहसील नकल माफियाओं का केंद्र बना हुआ है। बलिया, कौशांबी, अलीगढ़, इलाहाबाद, महामायानगर, आगरा और देवरिया में इन दिनों देश के तमाम राज्यों के ही नहीं नेपाल और भूटान तक के लडक़े संस्थागत छात्र के रूप में परीक्षा देते हुए देखे जा सकते हैं। इसके चलते इन जिलों में मंहगाई आसमान छूने लगी है। कमरे के किराये कई गुने बढ़ गये हैं।
राज्य के लगभग एक दर्जन जिलों में नकल मंडियां बन गई हैं। इसने अब व्यवसाय का रूप अख्तियार कर लिया है। जहां परीक्षार्थी ‘क्लाइंट’ और विद्यालय ‘उद्योग’ बन बैठे हैं। शिक्षक नेता एवं विधान परिषद सदस्य जगवीर किशोर जैन कहते हैं, ‘‘अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, कन्नौज और फर्रूखाबाद में एक-एक लाख रूपये का रेट चल रहा है।’’ सूत्रों के मुताबिक, ‘‘पांच हजार रूपये दीजिए, खुद पर्ची लाइये, नकल करिये। दस हजार रूपये में इमला बोला जायेगा, लिखना पड़ेगा। पंद्रह हजार रूपये में ब्लैक बोर्ड पर प्रश्न हल होंगे। बीस हजार रूपये में विषय विशेषज्ञ पर्चा हल करायेंगे। पचीस हजार में उत्तर पुस्तिका लिखी हुई मिलेगी।’’ देहरादून से अपने साठ मित्रों व साथ यहां परीक्षा देने आया एक कथित परीक्षार्थी अपना नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर ‘आउटलुक’ साप्ताहिक को बताया, ‘‘इंटर की डिग्री खरीदने के लिए उसने बीस हजार रूपये दिये हैं।’’ स्वामी विवेकानंद भगत सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पर प्रवेश पत्र पर फोटो की हेराफेरी के सहारे तीन मुन्ना भाइयों को परीक्षा देते रंगे हाथों पकडऩे में सफलता प्राप्त करने वाले उपजिलाधिकारी नंद लालयति बातचीत में स्वीकारते हैं, ‘‘तहसील क्षेत्र में परीक्षा केंद्रों पर व्यापक पैमाने पर कदाचार पसरा पड़ा है।’’ प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा मंत्री रह चुके शाकिर अली कहते हैं, ‘‘बोर्ड परीक्षा में सालाना अब एक अरब रूप से यादा का खेल होता है।’’ सदन में शिक्षकों का प्रतिनिधित्व करने वाले ओमप्रकाश शर्मा नकल की नग्नता कुछ इस तरह बयान करते हैं, ‘‘ऐसा नहीं कि इस खेल को कोई नहीं जानता। सब जानते हैं। लेकिन खामोश इसलिए रहते हैं कि यह रकम ‘बाटम टु टाप’ तक जाती है।’’ शर्मा की इस बात पर इसलिए भी भरोसा किया जा सकता है कि परीक्षा केंद्र बनाने से लेकर परीक्षक नियुक्त करने तक में जिस तरह सरकार के संकल्पों, दावों और कानूनों की धज्जियां उड़ायी गयीं, वह परीक्षा में जुटी किसी एक तंत्र के चलते संभव नहीं था। मसलन, पिछले साल काली सूची में डाले गये 566 स्कूलों में से भी तमाम को इस बार केंद्र बना दिया गया है। राजधानी लखनऊ में भी इस तरह का खेल खेलने से अधिकारी खुद को रोक नहीं पाये। यहां धुआंधार नकल के चलते बीते साल परीक्षा केंद्र नहीं बने सरोजनीनगर के रामकृष्ण कालेज को परीक्षा केंद्र बनाया गया। 24०० छात्रों की क्षमता वाले राजकीय विद्यालयों में 5०5 बच्चों का परीक्षा केंद्र बनाया गया तो 2००० की क्षमता वाले सहायता प्राप्त विद्यालयों में 3०० बच्चे परीक्षा देने के लिए भेजे गये। जबकि वित्तविहीन विद्यालयों के लिए सरकार के 1००० से अधिक बच्चों को कहीं भी केंद्र न बनाये जाने के आदेश की धज्जी उड़ायी गयी। मसलन, लखनऊ के गयासिवान स्कूल में 1259 और एसबीएन इंटरकालेज नरपतखेड़ा में 12०1 विद्यार्थियों का आवंटन कर दिया। यह गोलमाल भी पूरे राज्य में हुआ। तो अंबेडकरनगर में तो मान्यता की शर्तें पूरी न करने वाले 19 ऐसे विद्यालय परीक्षा केंद्र बन बैठे हैं, जिनके खिलाफ जांच जारी है। यह तो बस नजीर है। शायद ही कोई ऐसा जिला हो जहां काली सूची के विद्यालय परीक्षा केंद्र बनने में कामयाब न हुए हों। मानक पूरे न करने वाले विद्यालय भी केंद्र बनाकर नवाजे गये हैं। वह भी तब, जब माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र ने दावा किया हो, ‘‘इस साल काली सूची के एक भी स्कूल को परीक्षा केंद्र नहीं बनाया जाएगा।’’ काली सूची के स्कूलों को परीक्षा केंद्र बनाने के लिए अफसरों ने कुछ और भी खेल किए हैं। जैसे एक अन्य जगह जंगली बाबा इंटर कालेज के परीक्षार्थियों के परीक्षा केंद्र के नाम की जगह खाली छोड़ दी गई है। यह स्कूल काली सूची में है। सूत्र बताते हैं कि यह जगह खाली इसलिए छोड़ी गई ताकि ऐन परीक्षा के मौके पर इसी स्कूल को परीक्षा केंद्र बताकर परीक्षा करा दी जाए। परीक्षा केंद्र बनाने में अदला-बदली का भी खेल हुआ। दो स्कूलों के केंद्र एक दूसरे के हवाले किये गये ताकि नकल का खुल्लम-खुल्ला खेल आसानी से खेला जा रहा है। प्रधानाचार्य परिषद के प्रदेश उपाध्यक्ष जीतेंद्र प्रकाश मिश्र इसे तस्दीक करते हैं, ‘‘शिक्षा माफिया और शिक्षाधिकारियों की मिली भगत चल रही है। वित्त विहीन विद्यालय के परीक्षा केंद्र वित्त विहीन विद्यालय में ही बनाये जा रहे हैं।’’ मनपसंद परीक्षा केंद्र बनाने का रेट 75 हजार रूपये से लेकर पौने दो लाख रूपये तक है। रकम इस बात पर निर्भर करती है कि स्कूल प्रबंधक के कितने ‘क्लाइंट’ हैं और उसे कितनी ‘इनकम’ होगी। मनपसंद कक्ष निरीक्षक तैनात कराने के भी खेल जारी हैं। नियम के मुताबिक जिस विषय का इम्तिहान है उस विषय के शिक्षक की ड्ïयूटी नहीं लगनी चाहिये पर विद्यालयों ने शिक्षकों के विषय बदल दिये हैं। इलाहाबाद के एक स्कूल के प्रधानाचार्य के पास से बरामद एक डायरी नकल के कई रहस्य उजागर करती है।
वित्तविहीन विद्यालयों की मान्यता के बाद नकल का यह गोरखधंधा काफी तेज फला-फूला। अपने बच्चों को पास कराने के लिए इन विद्यालयों के प्रबंधन के लोग क्या-क्या नही करते हैं। इसे जानने और समझने के लिए पिछले सालों की मेरिट लिस्ट पर नजर दौड़ायी जाय तो एक ही विद्यालय नहीं, एक ही कमरे के तमाम छात्र अपनी विस्मयकारी मेधा का परिचय देते हुए टॉपरों की सूची में शुमार हो जाते हैं। जबकि राजकीय विद्यालयों के छात्र वित्तविहीन विद्यालयों की शुरूआत के बाद से पिछडऩे लगे हैं। अभी पिछले दिनों पुडुचेरी सरकार ने राज्य के हाईस्कूल की 2००7 की परीक्षा में सर्वोच्च अंक पाने वाले राजकीय विद्यालयों के दस छात्रों की सूची उन्हें सम्मानित करने और पुडुचेरी यात्रा कराने की मंशा से मांगी। लेकिन पुडुचेरी सरकार के इस खत के बाद राज्य सरकार को राजकीय विद्यालय का कोई ऐसा विद्यार्थी नहीं मिला, जिसने मेरिट में स्थान पाया हो। सरकार की यह अस्मर्थता नकल की हद को बयान करती है पर अगर इस पर वह लीपापोती करना चाहे तो साफ होता है कि इन स्कूलों के अध्यापक पढ़ाने में रुचि नही ले रहे हैं। अब यह सरकार पर है कि वह स्वीकारती क्या है। शिक्षक दल के नेता ओमप्रकाश ने बताया, ‘‘1986 से पहले इलाहाबाद व मेरठ के सरकारी स्कूलों के बच्चे ही सर्वोच्च स्थान पाते थे। लेकिन स्ववित्तपोषित स्कूल खुलने के बाद यह स्थिति बदल गई। क्योंकि इन स्कूलों में प्राय: नकल कराई जाती है।’’ सरकार की मंशा इसलिए भी साफ नजर नहीं आती है कि पिछले तीन साल से ओमप्रकाश शर्मा माध्यमिक शिक्षा निदेशक से टॉप करने वाले बच्चों की उत्तर पुस्तिकाओं की फोटोकॉपी मांग रहे हैं ताकि सरकारी स्कूल के बच्चों को उन्हें दिखाकर वरीयता सूची में आने का गुर बताया जा सके।
नकल के उद्योग की शक्ल अख्तियार करने के पीछे गारंटी पास फेल के खेल के साथ ही साथ सरकारी सेवा के लिए ओवर एज हो चुके युवाओं को अंडर ऐज करने का धंधा भी शामिल है। शिक्षा माफिया बड़ी रकम लेकर अपने नेटवर्क के किसी विद्यालय से उसका हाईस्कूल का परीक्षा फार्म भरा देते हैं और उसमें उसकी उम्र 14 वर्ष दर्ज कर देते हैं। डा. लक्ष्मी प्रसाद पांडेय जब माध्यमिक शिक्षा निदेशक हुआ करते थे तो उन्होंने इस धंधे को पकड़ा था लेकिन यह धंधा बदस्तूर जारी है। नकल पर नकेल कसने के लिए कमर कसकर खड़ी हुई सरकार औंधे मुंह गिरती नजर आ रही है।
-योगेश मिश्र
बलिया में 18०7852 अनुक्रमांक वाले एलेन पाटर, 18०7866 नंबर के इनामुल वेस्ली तथा 18०7913 अनुक्रमांक के शमशेर सिंह देवपा ही नहीं बल्कि अमित कुमार मंडल और आलोक विस्वास नाम के छात्र भी माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षा में शरीक हुए हैं। वह भी तब, जब जिले के राजस्व आंकड़े साफ करते हैं कि यहां इन जातियों का एक भी वाशिंदा नहीं रहता है।
अलीगढ़ के अतरौली के एक केंद्र पर मेरठ निवासी मोहित की जगह सहारनपुर के रहने वाले दूसरे मोहित को संस्थागत छात्र के रूप में परीक्षा देते हुए पकड़ा गया। जबकि संस्थागत छात्र के रूप में परीक्षा में बैठने वालों के लिए 7० फीसदी उपस्थिति अनिवार्य है। लेकिन ये दोनों छात्र इस इलाके से पहली दफा रूबरू हो रहे थे।
हाईकोर्ट द्वारा गठित कमेटी की जांच में कौशांबी जिले में 3०० गैर सहायता प्राप्त इंटर कालेजों के असितत्व न पाये जाने के बाद भी तकरीबन 5०हजार विद्यार्थियों के फेल-पास का फैसला यहां हो रहा है। जांच के मुताबिक 2०० कागजी स्कूल जिला विद्यालय निरीक्षक के ही दो क्लर्कों द्वारा ही संचालित हो रहे हैं।
ऊपर पसरी नजीरें सरकार के नकल रोकने के दावों और संकल्प की कलई खोलती नजर आती हैं। कभी टायलेट में रखी किताब देख लेने, प्रश्नपत्र मिलने के बाद कमरे से बाहर निकल कुछ पूछ लेने और किताबों के पन्ने फाडक़र कमरे में ले जाकर मास्टर की आंख चुराते हुए कॉपी पर उतार देने का चलन अब पुराना पड़ चुका है। कभी गल्ला मंडी के रूप में ख्यात कौशांबी का अजुहा नकल मंडी के रूप में ख्यात हो चुका है। राज्य में 23 जुलाई, 1997 को पहली बार सदन में नकल के सवाल पर बहस करवाने और नकलचियों पर नकेल कसने वाले मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के गृह जनपद अतरौली भी नकलचियों के तीर्थ के रूप में ख्यात है। इस तीर्थ के बने रहने के लिए मुलायम सरकार के दौरान दोनो हाथों से वित्तविहीन विद्यालयों को मान्यता उलीची गयी। फर्नीचर, स्टाफ, प्रयोगशाला के बिना भी स्कूल चलने लगे। आपराधिक गतिविधियों के लिए चर्चित कुशीनगर जनपद की तमकुही तहसील नकल माफियाओं का केंद्र बना हुआ है। बलिया, कौशांबी, अलीगढ़, इलाहाबाद, महामायानगर, आगरा और देवरिया में इन दिनों देश के तमाम राज्यों के ही नहीं नेपाल और भूटान तक के लडक़े संस्थागत छात्र के रूप में परीक्षा देते हुए देखे जा सकते हैं। इसके चलते इन जिलों में मंहगाई आसमान छूने लगी है। कमरे के किराये कई गुने बढ़ गये हैं।
राज्य के लगभग एक दर्जन जिलों में नकल मंडियां बन गई हैं। इसने अब व्यवसाय का रूप अख्तियार कर लिया है। जहां परीक्षार्थी ‘क्लाइंट’ और विद्यालय ‘उद्योग’ बन बैठे हैं। शिक्षक नेता एवं विधान परिषद सदस्य जगवीर किशोर जैन कहते हैं, ‘‘अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, कन्नौज और फर्रूखाबाद में एक-एक लाख रूपये का रेट चल रहा है।’’ सूत्रों के मुताबिक, ‘‘पांच हजार रूपये दीजिए, खुद पर्ची लाइये, नकल करिये। दस हजार रूपये में इमला बोला जायेगा, लिखना पड़ेगा। पंद्रह हजार रूपये में ब्लैक बोर्ड पर प्रश्न हल होंगे। बीस हजार रूपये में विषय विशेषज्ञ पर्चा हल करायेंगे। पचीस हजार में उत्तर पुस्तिका लिखी हुई मिलेगी।’’ देहरादून से अपने साठ मित्रों व साथ यहां परीक्षा देने आया एक कथित परीक्षार्थी अपना नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर ‘आउटलुक’ साप्ताहिक को बताया, ‘‘इंटर की डिग्री खरीदने के लिए उसने बीस हजार रूपये दिये हैं।’’ स्वामी विवेकानंद भगत सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पर प्रवेश पत्र पर फोटो की हेराफेरी के सहारे तीन मुन्ना भाइयों को परीक्षा देते रंगे हाथों पकडऩे में सफलता प्राप्त करने वाले उपजिलाधिकारी नंद लालयति बातचीत में स्वीकारते हैं, ‘‘तहसील क्षेत्र में परीक्षा केंद्रों पर व्यापक पैमाने पर कदाचार पसरा पड़ा है।’’ प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा मंत्री रह चुके शाकिर अली कहते हैं, ‘‘बोर्ड परीक्षा में सालाना अब एक अरब रूप से यादा का खेल होता है।’’ सदन में शिक्षकों का प्रतिनिधित्व करने वाले ओमप्रकाश शर्मा नकल की नग्नता कुछ इस तरह बयान करते हैं, ‘‘ऐसा नहीं कि इस खेल को कोई नहीं जानता। सब जानते हैं। लेकिन खामोश इसलिए रहते हैं कि यह रकम ‘बाटम टु टाप’ तक जाती है।’’ शर्मा की इस बात पर इसलिए भी भरोसा किया जा सकता है कि परीक्षा केंद्र बनाने से लेकर परीक्षक नियुक्त करने तक में जिस तरह सरकार के संकल्पों, दावों और कानूनों की धज्जियां उड़ायी गयीं, वह परीक्षा में जुटी किसी एक तंत्र के चलते संभव नहीं था। मसलन, पिछले साल काली सूची में डाले गये 566 स्कूलों में से भी तमाम को इस बार केंद्र बना दिया गया है। राजधानी लखनऊ में भी इस तरह का खेल खेलने से अधिकारी खुद को रोक नहीं पाये। यहां धुआंधार नकल के चलते बीते साल परीक्षा केंद्र नहीं बने सरोजनीनगर के रामकृष्ण कालेज को परीक्षा केंद्र बनाया गया। 24०० छात्रों की क्षमता वाले राजकीय विद्यालयों में 5०5 बच्चों का परीक्षा केंद्र बनाया गया तो 2००० की क्षमता वाले सहायता प्राप्त विद्यालयों में 3०० बच्चे परीक्षा देने के लिए भेजे गये। जबकि वित्तविहीन विद्यालयों के लिए सरकार के 1००० से अधिक बच्चों को कहीं भी केंद्र न बनाये जाने के आदेश की धज्जी उड़ायी गयी। मसलन, लखनऊ के गयासिवान स्कूल में 1259 और एसबीएन इंटरकालेज नरपतखेड़ा में 12०1 विद्यार्थियों का आवंटन कर दिया। यह गोलमाल भी पूरे राज्य में हुआ। तो अंबेडकरनगर में तो मान्यता की शर्तें पूरी न करने वाले 19 ऐसे विद्यालय परीक्षा केंद्र बन बैठे हैं, जिनके खिलाफ जांच जारी है। यह तो बस नजीर है। शायद ही कोई ऐसा जिला हो जहां काली सूची के विद्यालय परीक्षा केंद्र बनने में कामयाब न हुए हों। मानक पूरे न करने वाले विद्यालय भी केंद्र बनाकर नवाजे गये हैं। वह भी तब, जब माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र ने दावा किया हो, ‘‘इस साल काली सूची के एक भी स्कूल को परीक्षा केंद्र नहीं बनाया जाएगा।’’ काली सूची के स्कूलों को परीक्षा केंद्र बनाने के लिए अफसरों ने कुछ और भी खेल किए हैं। जैसे एक अन्य जगह जंगली बाबा इंटर कालेज के परीक्षार्थियों के परीक्षा केंद्र के नाम की जगह खाली छोड़ दी गई है। यह स्कूल काली सूची में है। सूत्र बताते हैं कि यह जगह खाली इसलिए छोड़ी गई ताकि ऐन परीक्षा के मौके पर इसी स्कूल को परीक्षा केंद्र बताकर परीक्षा करा दी जाए। परीक्षा केंद्र बनाने में अदला-बदली का भी खेल हुआ। दो स्कूलों के केंद्र एक दूसरे के हवाले किये गये ताकि नकल का खुल्लम-खुल्ला खेल आसानी से खेला जा रहा है। प्रधानाचार्य परिषद के प्रदेश उपाध्यक्ष जीतेंद्र प्रकाश मिश्र इसे तस्दीक करते हैं, ‘‘शिक्षा माफिया और शिक्षाधिकारियों की मिली भगत चल रही है। वित्त विहीन विद्यालय के परीक्षा केंद्र वित्त विहीन विद्यालय में ही बनाये जा रहे हैं।’’ मनपसंद परीक्षा केंद्र बनाने का रेट 75 हजार रूपये से लेकर पौने दो लाख रूपये तक है। रकम इस बात पर निर्भर करती है कि स्कूल प्रबंधक के कितने ‘क्लाइंट’ हैं और उसे कितनी ‘इनकम’ होगी। मनपसंद कक्ष निरीक्षक तैनात कराने के भी खेल जारी हैं। नियम के मुताबिक जिस विषय का इम्तिहान है उस विषय के शिक्षक की ड्ïयूटी नहीं लगनी चाहिये पर विद्यालयों ने शिक्षकों के विषय बदल दिये हैं। इलाहाबाद के एक स्कूल के प्रधानाचार्य के पास से बरामद एक डायरी नकल के कई रहस्य उजागर करती है।
वित्तविहीन विद्यालयों की मान्यता के बाद नकल का यह गोरखधंधा काफी तेज फला-फूला। अपने बच्चों को पास कराने के लिए इन विद्यालयों के प्रबंधन के लोग क्या-क्या नही करते हैं। इसे जानने और समझने के लिए पिछले सालों की मेरिट लिस्ट पर नजर दौड़ायी जाय तो एक ही विद्यालय नहीं, एक ही कमरे के तमाम छात्र अपनी विस्मयकारी मेधा का परिचय देते हुए टॉपरों की सूची में शुमार हो जाते हैं। जबकि राजकीय विद्यालयों के छात्र वित्तविहीन विद्यालयों की शुरूआत के बाद से पिछडऩे लगे हैं। अभी पिछले दिनों पुडुचेरी सरकार ने राज्य के हाईस्कूल की 2००7 की परीक्षा में सर्वोच्च अंक पाने वाले राजकीय विद्यालयों के दस छात्रों की सूची उन्हें सम्मानित करने और पुडुचेरी यात्रा कराने की मंशा से मांगी। लेकिन पुडुचेरी सरकार के इस खत के बाद राज्य सरकार को राजकीय विद्यालय का कोई ऐसा विद्यार्थी नहीं मिला, जिसने मेरिट में स्थान पाया हो। सरकार की यह अस्मर्थता नकल की हद को बयान करती है पर अगर इस पर वह लीपापोती करना चाहे तो साफ होता है कि इन स्कूलों के अध्यापक पढ़ाने में रुचि नही ले रहे हैं। अब यह सरकार पर है कि वह स्वीकारती क्या है। शिक्षक दल के नेता ओमप्रकाश ने बताया, ‘‘1986 से पहले इलाहाबाद व मेरठ के सरकारी स्कूलों के बच्चे ही सर्वोच्च स्थान पाते थे। लेकिन स्ववित्तपोषित स्कूल खुलने के बाद यह स्थिति बदल गई। क्योंकि इन स्कूलों में प्राय: नकल कराई जाती है।’’ सरकार की मंशा इसलिए भी साफ नजर नहीं आती है कि पिछले तीन साल से ओमप्रकाश शर्मा माध्यमिक शिक्षा निदेशक से टॉप करने वाले बच्चों की उत्तर पुस्तिकाओं की फोटोकॉपी मांग रहे हैं ताकि सरकारी स्कूल के बच्चों को उन्हें दिखाकर वरीयता सूची में आने का गुर बताया जा सके।
नकल के उद्योग की शक्ल अख्तियार करने के पीछे गारंटी पास फेल के खेल के साथ ही साथ सरकारी सेवा के लिए ओवर एज हो चुके युवाओं को अंडर ऐज करने का धंधा भी शामिल है। शिक्षा माफिया बड़ी रकम लेकर अपने नेटवर्क के किसी विद्यालय से उसका हाईस्कूल का परीक्षा फार्म भरा देते हैं और उसमें उसकी उम्र 14 वर्ष दर्ज कर देते हैं। डा. लक्ष्मी प्रसाद पांडेय जब माध्यमिक शिक्षा निदेशक हुआ करते थे तो उन्होंने इस धंधे को पकड़ा था लेकिन यह धंधा बदस्तूर जारी है। नकल पर नकेल कसने के लिए कमर कसकर खड़ी हुई सरकार औंधे मुंह गिरती नजर आ रही है।
-योगेश मिश्र