दिनांक-०3-०3-०8
पूर्वांचल के इलाके में ट्रकों के पीछे अक्सर लिखा हुआ दिख जाता है-सटला त गइला। पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द रहे कुछ खास लोगों के रातो-रात इधर-उधर किये जाने के बाद अब यह जुमला सत्ता के गलियारों में भी चलने लगा है। सुगबुगाहट है कि कैबिनेट सचिव के पद से हाशिये पर लाये गये शशांक शेखर सिंह के बाद कई और ‘नजदीकियों’ के पर कतरे जायेंगे। वह कभी राष्टï्रपति शासन के दौरान राज्यपाल रोमेश भंडारी और अभी मायाराज में सत्ता की धुरी रहे। वरिष्ठïता के लिहाज और पुराने रिश्तों के मद्देनजर कैबिनेट सचिव के पद को अलग करके शशांक शेखर सिंह को ‘सुपर नौकरशाह’ का काम और खिताब दिया गया। माया की मेहरबानी कहें या भरोसा कि उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष के साथ ही कबीना मंत्री का दर्जा भी हासिल रहा। खुद मायावती ने अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को शशांक शेखर सिंह को दोहरा ओहदा दिए जाने के बाबत पार्टी की एक बैठक में कहा था,‘‘ताकि नेताओं को उनसे मिलने जाने में कोई प्रोटोकाल अवरोधक न बने। तमाम काम के लिए कबीना मंत्री भी बेरोकटोक उनके कार्यालयों में आ-जा सकें।’’
पर सवाल यह उठता है कि मायावती से उनकी निकटता के पीछे का सच क्या है? शशांक शेखर एक सधे हुए पायलट हैं। ऐसे में हवाई सैर के लिये शौकीन राजनेताओं की वह पसंद हो जाते हैं। अर्श अथवा फर्श पर रहने की उनकी आदत ने उन्हें मायावती के पसंदीदा लोगों की फेहरिस्त में लाकर खड़ा किया। कहा जाता है कि औद्योगिक विकास आयुक्त रहते हुये उद्योगपतियों से बसपाईयों के रिश्तों की इबारत लिखने के काम में वे सहयोगी रहे। हालांकि अब मायावती ने उन्हें प्रशासनिक प्रमुख और कबीना मंत्री के सुख से वंचित कर दिया है। पर यह कह पाना किसी के लिये आसान नहीं है कि अपने पसंदीदा लोगों की सूची से मायावती ने उन्हें बाहर किया है अथवा नहीं। सूत्रों की मानें तो, ‘‘कई अदालती पचड़े, किडनी कांड में वजह-बेवजह नाम आने, मुलायम सिंह द्वारा सदन में उन पर निशान साधने के बाद रणनीति के तहत उन्हें थोड़ा किनारे किया गया है।’’ पर जब तक इस शख्सियत के पास प्रशासनिक प्रमुख का पद था, तब तक आईएएस एक्शन ग्रुप के युवा तुर्क लोगों को अहम कुर्सियों पर बिठाने के साथ ही साथ राज्य की नौकरशाही में अच्छी छवि रखने वाले नौकरशाहों को अच्छी तैनाती देकर खूब वाह-वाही लूटी। पीसीएस अफसरों को प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजकर इस संवर्ग में भी उन्होंने अपने झंडे गाड़े। विकास, प्रशासन और राजनीति के बारे में मायावती की संकल्पनाएं तमाम अन्य नेताओं से एकदम अलग हैं पर इस अलहदा संकल्पना का संकेत समझने में शशांक को महारत हासिल होने का दावा किया जा सकता है। कई मुख्यमंत्रियों के गुस्से को उन्होंने जिस तरह तटस्थ होकर झेला, उससे यह साफ था कि जी हुजूरी करना उनके शगल में नहीं है। मायावती के पसंदीदा क्षेत्रों-बिजली, उद्योग, सार्वजनिक निर्माण विभाग, सिंचाई, वित्त और नियोजन को शशांक शेखर सिंह की नौकरशाही की भाषा में ‘क्रिटिकल ब्यूरोक्रेटिक एरिया’ कहा जाता है। राज्यपाल और मुख्यमंत्रियों के प्रमुख सचिव के साथ औद्योगिक विकास आयुक्त व 18 विभागों के प्रमुख शेखर 199० में ही प्रमुख सचिव बन गये थे।
शशांक के अलावा मायावती के पसंदीदा अफसरों में शैलेश कृष्ण का नाम भी शुमार है। अपने जबरदस्त सामाजिक संबंधों और दक्ष प्रशासनिक क्षमता के मार्फत वे किसी भी राजनेता की पसंद बनने की कूबत रखते हैं। यही वजह है कि तीसरे कार्यकाल के शुरूआती दिनों में ही मुलायम सिंह ने उन्हें साथ जोड़ा था पर वह ज्यादा समय मुख्यमंत्री सचिवालय में रह नहीं पाये लेकिन मायावती ने आते ही मुख्यमंत्री सचिवालय में जगह दे दी। मुलायम सिंह के पहले कार्यकाल में सुपर नौकरशाह का ओहदा नीरा यादव को हासिल था। नौकरशाहों में पी एल पुनिया एक ऐसा नाम रहा है जो मायावती और मुलायम दोनों की सियासी विरासत और प्रशासनिक जरूरतों का पर्याय बन गया था। हालांकि ताज कारीडोर मामले के बाद मायावती ने उनसे दामन छुड़ाना जरूरी समझा। इस सुपर नौकरशाह के सियासी रिश्तों ने उनमें सियासी मनसूबे भरे। वे इन दिनों कांग्रेस के साथ हैं। बाराबंकी के फतेहपुर से विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। मायावती के पिछले तीनों कार्यकालों में साथ रहे नौकरशाह जे.एन. चैंबर और फतेह बहादुर सिंह भी इस बार एक बार फिर नई पारी में अहम ओहदों पर हैं। चैंबर को तो केंद्र की प्रतिनियुक्ति से मायवती ने सरकार बनने के साथ ही वापस बुला कर उनके प्रति अपने भरोसे का इजहार कर दिया था। इन दिनों वे गृह सरीखा भारी भरकम महकमा संभाले हैं।
-योगेश मिश्र
पूर्वांचल के इलाके में ट्रकों के पीछे अक्सर लिखा हुआ दिख जाता है-सटला त गइला। पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द रहे कुछ खास लोगों के रातो-रात इधर-उधर किये जाने के बाद अब यह जुमला सत्ता के गलियारों में भी चलने लगा है। सुगबुगाहट है कि कैबिनेट सचिव के पद से हाशिये पर लाये गये शशांक शेखर सिंह के बाद कई और ‘नजदीकियों’ के पर कतरे जायेंगे। वह कभी राष्टï्रपति शासन के दौरान राज्यपाल रोमेश भंडारी और अभी मायाराज में सत्ता की धुरी रहे। वरिष्ठïता के लिहाज और पुराने रिश्तों के मद्देनजर कैबिनेट सचिव के पद को अलग करके शशांक शेखर सिंह को ‘सुपर नौकरशाह’ का काम और खिताब दिया गया। माया की मेहरबानी कहें या भरोसा कि उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष के साथ ही कबीना मंत्री का दर्जा भी हासिल रहा। खुद मायावती ने अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को शशांक शेखर सिंह को दोहरा ओहदा दिए जाने के बाबत पार्टी की एक बैठक में कहा था,‘‘ताकि नेताओं को उनसे मिलने जाने में कोई प्रोटोकाल अवरोधक न बने। तमाम काम के लिए कबीना मंत्री भी बेरोकटोक उनके कार्यालयों में आ-जा सकें।’’
पर सवाल यह उठता है कि मायावती से उनकी निकटता के पीछे का सच क्या है? शशांक शेखर एक सधे हुए पायलट हैं। ऐसे में हवाई सैर के लिये शौकीन राजनेताओं की वह पसंद हो जाते हैं। अर्श अथवा फर्श पर रहने की उनकी आदत ने उन्हें मायावती के पसंदीदा लोगों की फेहरिस्त में लाकर खड़ा किया। कहा जाता है कि औद्योगिक विकास आयुक्त रहते हुये उद्योगपतियों से बसपाईयों के रिश्तों की इबारत लिखने के काम में वे सहयोगी रहे। हालांकि अब मायावती ने उन्हें प्रशासनिक प्रमुख और कबीना मंत्री के सुख से वंचित कर दिया है। पर यह कह पाना किसी के लिये आसान नहीं है कि अपने पसंदीदा लोगों की सूची से मायावती ने उन्हें बाहर किया है अथवा नहीं। सूत्रों की मानें तो, ‘‘कई अदालती पचड़े, किडनी कांड में वजह-बेवजह नाम आने, मुलायम सिंह द्वारा सदन में उन पर निशान साधने के बाद रणनीति के तहत उन्हें थोड़ा किनारे किया गया है।’’ पर जब तक इस शख्सियत के पास प्रशासनिक प्रमुख का पद था, तब तक आईएएस एक्शन ग्रुप के युवा तुर्क लोगों को अहम कुर्सियों पर बिठाने के साथ ही साथ राज्य की नौकरशाही में अच्छी छवि रखने वाले नौकरशाहों को अच्छी तैनाती देकर खूब वाह-वाही लूटी। पीसीएस अफसरों को प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजकर इस संवर्ग में भी उन्होंने अपने झंडे गाड़े। विकास, प्रशासन और राजनीति के बारे में मायावती की संकल्पनाएं तमाम अन्य नेताओं से एकदम अलग हैं पर इस अलहदा संकल्पना का संकेत समझने में शशांक को महारत हासिल होने का दावा किया जा सकता है। कई मुख्यमंत्रियों के गुस्से को उन्होंने जिस तरह तटस्थ होकर झेला, उससे यह साफ था कि जी हुजूरी करना उनके शगल में नहीं है। मायावती के पसंदीदा क्षेत्रों-बिजली, उद्योग, सार्वजनिक निर्माण विभाग, सिंचाई, वित्त और नियोजन को शशांक शेखर सिंह की नौकरशाही की भाषा में ‘क्रिटिकल ब्यूरोक्रेटिक एरिया’ कहा जाता है। राज्यपाल और मुख्यमंत्रियों के प्रमुख सचिव के साथ औद्योगिक विकास आयुक्त व 18 विभागों के प्रमुख शेखर 199० में ही प्रमुख सचिव बन गये थे।
शशांक के अलावा मायावती के पसंदीदा अफसरों में शैलेश कृष्ण का नाम भी शुमार है। अपने जबरदस्त सामाजिक संबंधों और दक्ष प्रशासनिक क्षमता के मार्फत वे किसी भी राजनेता की पसंद बनने की कूबत रखते हैं। यही वजह है कि तीसरे कार्यकाल के शुरूआती दिनों में ही मुलायम सिंह ने उन्हें साथ जोड़ा था पर वह ज्यादा समय मुख्यमंत्री सचिवालय में रह नहीं पाये लेकिन मायावती ने आते ही मुख्यमंत्री सचिवालय में जगह दे दी। मुलायम सिंह के पहले कार्यकाल में सुपर नौकरशाह का ओहदा नीरा यादव को हासिल था। नौकरशाहों में पी एल पुनिया एक ऐसा नाम रहा है जो मायावती और मुलायम दोनों की सियासी विरासत और प्रशासनिक जरूरतों का पर्याय बन गया था। हालांकि ताज कारीडोर मामले के बाद मायावती ने उनसे दामन छुड़ाना जरूरी समझा। इस सुपर नौकरशाह के सियासी रिश्तों ने उनमें सियासी मनसूबे भरे। वे इन दिनों कांग्रेस के साथ हैं। बाराबंकी के फतेहपुर से विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। मायावती के पिछले तीनों कार्यकालों में साथ रहे नौकरशाह जे.एन. चैंबर और फतेह बहादुर सिंह भी इस बार एक बार फिर नई पारी में अहम ओहदों पर हैं। चैंबर को तो केंद्र की प्रतिनियुक्ति से मायवती ने सरकार बनने के साथ ही वापस बुला कर उनके प्रति अपने भरोसे का इजहार कर दिया था। इन दिनों वे गृह सरीखा भारी भरकम महकमा संभाले हैं।
-योगेश मिश्र