दिनांक: 1०.3.2००8
देर से जागी सरकार ने सैकड़ों किसानों की मौत के बाद अब बुंदेलखंड के भूखे लोगों को निवाला देने का ऐलान किया है। इस ऐलान के हकीकत में बदलने में अभी कितना वक्त लगेगा यह तो पता नहीं लेकिन इस बात की आशंका जरूर बढ़ती जा रही है कि जब निवाले का इंतजाम हो रहा होगा तो उस समय लोग प्यास से दम तोड़ रहे होंगे। पशुओं की तो इहलीला समाप्त भी होने लगी है। खूंखार जंगली पशु पानी की तलाश में बस्तियों का रुखकर अफरातफरी मचा रहे हैं। पर शासन प्रशासन योजनाओं की शक्ल में इंतजामों का बखान कर कतई हालातों की भयावहता सवीकारने को तैयार नहीं। यही वजह है कि जबकि बुंदेलखंड में ‘ज्यों-ज्यों दवा की, मर्ज बढ़ता ही गया’ की दंतकथा साफतौर पर दिखती है।
सूखे से मचे कोहराम के बीच यह सवाल और भी मौजू बन पड़ा है कि रेगिस्तान से दोगुना अधिक बारिश होने के बावजूद बुंदेलखंड आखिर इस मुकाम तक कैसे पहुंच गया? गौरतलब है कि रेगिस्तानी देश इजरायल में प्रतिवर्ष सिर्फ 25० मिलीलीटर वर्षा होती है और वहां हर ओर हरियाली छाई है। जबकि 45० मिली वार्षिक बारिश वाला बुंदेलखंड भूख और प्यास से तड़प रहा है। महोबा में अब सूखे की मार से आदमी ही नहीं जानवर भी कराह उठे हैं। प्यास ने उन्हें हिंसक बना दिया है। कुलपहाड़ में प्यास से छटपटाते बंदरों के झुंड ने एक घर में आतंक कायम कर पानी लूट लिया जबकि भटीपुरा इलाके में प्यास से तडपड़ाते एक गधे ने पानी लेकर जा रही पनिहारन गीता पर हमला बोल खुरों से उसे इस कदर रौंदा कि उसे गंभीर हालत में झांसी मेडिकल कालेज में दाखिल कराना पड़ा। जंगलों में छिपे तमाम जानवर आसपास के गांवों में प्यास बुझाने के लिए बेधडक़ घूम रहे हैं। जनपद महोबा के चार विकास खंडों की खरीफ की 42 हजार हेक्टेअर में बोई गयी फसल सूख चुकी है। जिगनी गांव में बिसौरे जंगल से लेकर कछार तथा गढ़हर गांव के निकट लगभग 3 किमी लंबाई में एवं 4 इंच से लेकर डेढ़ फीट चौड़ी और 1० फीट से 35 फीट तक गहरी जमीन फट गयी। गांव के साठ वर्षीय तुलसीराम लटोरे बताते हैं, ‘‘आज तक हमने ऐसी धरती फटी कभी नहीं देखी।’’ यही घटना नेशनल हाइवे के किनारे आबाद मटौंध कसबे में भी घटी। तेज आवाज के साथ धरती फूट गई। कई मकान दरके। भापनुमा धुआं भी निकला। दरार लगभग 12० मीटर लंबी और तकरीबन एक फिट चौड़ी है। धरती फटने का हमीरपुर से शुरू हुआ सिलसिला अब बांदा तक पहुंचा है।
किस्मत की लकीरें कही जाने वाली नहरें ही अब बदकिस्मती का शिकार हैं। पर सरकार ने नहरों का संजाल बिछाने की खातिर थैली खोल रखी गई है। चालू वित्तीय वर्ष में सिर्फ चित्रकूट धाम मंडल के चार जिलों में दो करोड़ 63 लाख रूपये नहरों की सफाई और मरम्मत पर खर्च कर दिये गये हैं लेकिन बांदा, हमीरपुर, महोबा और चित्रकूट जिलों में तकरीबन 69०० किलोमीटर लंबी 16०4 यह नहरें अपनी कसौटी पर खरी नहीं उतरीं। उतरतीं भी कैसे! इनमें पानी दौड़ाने का दारोमदार बने सिंचाई विभाग के जलाशयों का पानी जो चुक चुका था। बरियारपुर व गंगऊ वियर हो या रनगवां, उर्मिल व राजघाट बांध सभी न्यूनतम जलस्तर की मार झेलते हुए छटपटा रहे हैं। पंप नहरों की भी यही दशा है और नलकूपों के एक के बाद एक फेल होने का सिलसिला अभी तक जारी है। अकेले बांदा जिले में 4० नलकूप बेकार हो गये हैं।
जलापूर्ति करने वाले बांध व सरोवरों के बीते पांच वर्षों के जल स्तर का तुलनात्मक अध्ययन करें तो बेहद चौंकाने वाले तथ्य हाथ लगते हैं। ïïवर्ष 2००3 में उर्मिल बांध का जल स्तर 236.7० फीट था जो 2००7 में घटकर 228.7० रह गया। कबरई बांध के पानी में भी गिरावट आई। यह 2००3 के 5०6 फीट की तुलना में 2००7 में घटकर तकरीबन 491 रह गया। कमोबेश यही स्थिति अर्जुन बांध की भी रही ïवहां का पानी का स्तर 176 से घटकर 167 रह गया। गरगंवा बांध का डेड स्टोर 73० है पर पानी इसमें केवल 725 फीट बचा है। बेलाताल सागर व मदन सागर का भी जलस्तर वर्ष 2००3 में जहां 675.3० एवं 21०.12 फीट था वहीं यह वर्ष 2००7 में घटकर 663.5० व 2०7.55 फीट रह गया। जाड़े में अपने कलरव से विजय सागर को गुंंजायमान रखने वाले परदेशी परिंदों ने भी उससे मुंह मोड़ लिया है। पाठा इलाके में तो जोहड़ों ने भी आदिवासियों का साथ जोड़ दिया है। प्यास बुझाना तो दूर, नित्यकर्म के लिए गंदा पानी भी मयस्सर नहीं। जिले के सरोवरों में जहां पानी की एक बूंद तक नहीं है, वहीं जल संस्थान की ओर से यहां के विभिन्न सरोवरों में जल भंडारण की काल्पनिक रिपोर्ट भेज शासन को गुमराह किया जा रहा है।
बुंदेलखंड में तकरीबन एक लाख हैंडपंप नियराते जेठ-बैशाख के महीनों में लोगों को कितना सहारा दे पायेंगे, यह कहना कठिन है। सरकारी आंकड़े कुछ भी कहें पर बांदा, महोबा, चित्रकूट-हमीरपुर व उरई जिलों में लगे करीब 67०० हैंडपंपों में ज्यादातर की सांस अभी से उखडऩे लगी है। तेजी से नीचे खिसके भूजल ने हैंडपंपों को बेजान करना शुरू कर दिया है। 9० फीसदी तालाब पहले ही सूख चुके हैं। तकरीबन 5० हजार कुएं भी इसी दशा की ओर अग्रसर हैं। बांदा जिले में ही 1०1०9 कुओं में कहने को तो 2०2० कुएं सूख गए हैं पर हकीकत इसके उलट बताई जाती है। यह स्थिति गांवों पर भारी पड़ रही है। नतीजतन, अब पेयजल के लिये पलायन की बारी बतायी जा रही है। पेयजल के नजरिये से बुंदेलखंड के कस्बों में भी स्थिति गड़बड़ाने लगी है। चित्रकूटधाम मंडल में जल संस्थान 24 टाउन व 39० गांवों में जलापूर्ति करता है। जल संस्थान के महाप्रबंधक आलोक शर्मा बहुत कुरेदने के बावजूद खुलकर कुछ नहीं बोलते। उनका कहना है, ‘‘एक लाख से नीचे की आबादी में रोजाना प्रति व्यक्ति करीब 8० लीटर, इससे ऊपर की आबादी में लगभग 155 लीटर और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 4० लीटर पानी की आपूर्ति होनी चाहिये।’’ क्या यह मानक पूरा हो रहा है? जवाब में वह चुप्पी साध जाते हैं! जबकि चित्रकूटधाम मंडल में कमिश्नर रजनीश दुबे ने बताया, ‘‘मंडल में 24 नये ट्ïयूबवेल पेयजल समस्या को ध्यान में रखकर लगाये जा रहे हैं। हर विधानसभा क्षेत्र में 25० नये हैंडपंप स्थापित हो रहे हैं। 63 नये टैंकर मंगाये गये हैं। इनमें दो 1० हजार लीटर क्षमता के मोबाइल टैंकर होंगे। मानक से ज्यादा बोर होगा। पेयजल की गुणवतता भी आंकी जायेगी। प्राइवेट पाइप स्कीम भी लागू की गई है।’’
दरअसल भूगर्भ जल सुरक्षित किये जाने के सारे उपाय कागजी ज्यादा हैं। क्योंकि तकनीकी मानकों को कड़ाई से लागू करने के बजाय फकत मनमानी की गई है। भूजल का अंधाधुंध दोहन लगातार जारी रहा। 196० के दशक के बाद से बुंदेलखंड में 18 से 68 मीटर तक भूजल स्तर में गिरावट दर्ज की गयी है। भूजल विकास एवं प्रबंधन के तहत रेनवाटर हार्वेस्टिंग या ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग पद्घति सलीके से लागू न किये जाने से वर्ष 2००7-०8 में बुंदेलखंड में कुल 72 घंटों में लगभग 4०० मिली वर्षा भी बेमानी साबित हुई। परंपरागत जल संसाधनों को हाशिये पर डाल कर नौकरशाहों, इंजीनियरों और राजनेताओं के गठजोड़ ने जिस आधुनिक तकनीक को बढ़ावा दिया है, उसकी विफलता अब सिलसिलेवार ढंग से सामने आ रही है। सिंचाई के लिये लागू की गयी अरबों रूपये की योजनाओं का एक झटके में मानो कचूमर निकाल गया है। तभी तो बुंदेलखंड की कुल कृषि योग्य भूमि में आधी बंजर पड़ी है। चित्रकूटधाम मंडल में 1०568०9 हेक्टेयर कृषि भूमि में 568०83 हेक्टेयर भूमि का कोई पुरसाहाल नजर नहीं आता। अकेले जालौन जनपद में दो लाख एकड़ भूमि बंजर है। झांसी और ललितपुर जिलों का भी कमोबेश यही हाल है। भूगर्भ जल विभाग चित्रकूट धाम मंडल के सहायक अभियंता एएच जैदी बिना किसी लाग लपेट के कहते हैं, ‘‘बुंदेलखंड को इस हालात में पहुंचाने के लिए कुदरत से कहीं ज्यादा तुगलकशाही और भ्रष्टïाचार जिम्मेदार है। जब तक भूजल वैज्ञानिक पद्घतियों को यथाशीघ्र लागू कर विज्ञान संगत सर्वेक्षणों के बाद कार्यस्थलों का चयन नहीं किया जाता, तब तक हालात यूं ही बद से बदतर हो जायेंगे।’’
बुंदेलखंड में पानी के खुली लूट के बाद अब नौबत खूनी जंग तक पहुंच गयी है। बांदा के बरगहनी गांव में यशवीर सिंह व समर सिंह की गांव के ही रामबरन, दिनेश बच्चा, राजेंद्र एवं ग्राम नांदनमऊ की पचपन वर्षीय कंचन देवी के साथ हुई मारपीट की वजह पानी ही रहा। विडंबना यह कि पानी की कमी से तबाही का यह आलम उस बुंदेलखंड में है , जहां सरोवरों, झीलों और ताल-तलैयों के रूप में जल संरक्षण की लंबी परंपरा रही है।
-योगेश मिश्र
देर से जागी सरकार ने सैकड़ों किसानों की मौत के बाद अब बुंदेलखंड के भूखे लोगों को निवाला देने का ऐलान किया है। इस ऐलान के हकीकत में बदलने में अभी कितना वक्त लगेगा यह तो पता नहीं लेकिन इस बात की आशंका जरूर बढ़ती जा रही है कि जब निवाले का इंतजाम हो रहा होगा तो उस समय लोग प्यास से दम तोड़ रहे होंगे। पशुओं की तो इहलीला समाप्त भी होने लगी है। खूंखार जंगली पशु पानी की तलाश में बस्तियों का रुखकर अफरातफरी मचा रहे हैं। पर शासन प्रशासन योजनाओं की शक्ल में इंतजामों का बखान कर कतई हालातों की भयावहता सवीकारने को तैयार नहीं। यही वजह है कि जबकि बुंदेलखंड में ‘ज्यों-ज्यों दवा की, मर्ज बढ़ता ही गया’ की दंतकथा साफतौर पर दिखती है।
सूखे से मचे कोहराम के बीच यह सवाल और भी मौजू बन पड़ा है कि रेगिस्तान से दोगुना अधिक बारिश होने के बावजूद बुंदेलखंड आखिर इस मुकाम तक कैसे पहुंच गया? गौरतलब है कि रेगिस्तानी देश इजरायल में प्रतिवर्ष सिर्फ 25० मिलीलीटर वर्षा होती है और वहां हर ओर हरियाली छाई है। जबकि 45० मिली वार्षिक बारिश वाला बुंदेलखंड भूख और प्यास से तड़प रहा है। महोबा में अब सूखे की मार से आदमी ही नहीं जानवर भी कराह उठे हैं। प्यास ने उन्हें हिंसक बना दिया है। कुलपहाड़ में प्यास से छटपटाते बंदरों के झुंड ने एक घर में आतंक कायम कर पानी लूट लिया जबकि भटीपुरा इलाके में प्यास से तडपड़ाते एक गधे ने पानी लेकर जा रही पनिहारन गीता पर हमला बोल खुरों से उसे इस कदर रौंदा कि उसे गंभीर हालत में झांसी मेडिकल कालेज में दाखिल कराना पड़ा। जंगलों में छिपे तमाम जानवर आसपास के गांवों में प्यास बुझाने के लिए बेधडक़ घूम रहे हैं। जनपद महोबा के चार विकास खंडों की खरीफ की 42 हजार हेक्टेअर में बोई गयी फसल सूख चुकी है। जिगनी गांव में बिसौरे जंगल से लेकर कछार तथा गढ़हर गांव के निकट लगभग 3 किमी लंबाई में एवं 4 इंच से लेकर डेढ़ फीट चौड़ी और 1० फीट से 35 फीट तक गहरी जमीन फट गयी। गांव के साठ वर्षीय तुलसीराम लटोरे बताते हैं, ‘‘आज तक हमने ऐसी धरती फटी कभी नहीं देखी।’’ यही घटना नेशनल हाइवे के किनारे आबाद मटौंध कसबे में भी घटी। तेज आवाज के साथ धरती फूट गई। कई मकान दरके। भापनुमा धुआं भी निकला। दरार लगभग 12० मीटर लंबी और तकरीबन एक फिट चौड़ी है। धरती फटने का हमीरपुर से शुरू हुआ सिलसिला अब बांदा तक पहुंचा है।
किस्मत की लकीरें कही जाने वाली नहरें ही अब बदकिस्मती का शिकार हैं। पर सरकार ने नहरों का संजाल बिछाने की खातिर थैली खोल रखी गई है। चालू वित्तीय वर्ष में सिर्फ चित्रकूट धाम मंडल के चार जिलों में दो करोड़ 63 लाख रूपये नहरों की सफाई और मरम्मत पर खर्च कर दिये गये हैं लेकिन बांदा, हमीरपुर, महोबा और चित्रकूट जिलों में तकरीबन 69०० किलोमीटर लंबी 16०4 यह नहरें अपनी कसौटी पर खरी नहीं उतरीं। उतरतीं भी कैसे! इनमें पानी दौड़ाने का दारोमदार बने सिंचाई विभाग के जलाशयों का पानी जो चुक चुका था। बरियारपुर व गंगऊ वियर हो या रनगवां, उर्मिल व राजघाट बांध सभी न्यूनतम जलस्तर की मार झेलते हुए छटपटा रहे हैं। पंप नहरों की भी यही दशा है और नलकूपों के एक के बाद एक फेल होने का सिलसिला अभी तक जारी है। अकेले बांदा जिले में 4० नलकूप बेकार हो गये हैं।
जलापूर्ति करने वाले बांध व सरोवरों के बीते पांच वर्षों के जल स्तर का तुलनात्मक अध्ययन करें तो बेहद चौंकाने वाले तथ्य हाथ लगते हैं। ïïवर्ष 2००3 में उर्मिल बांध का जल स्तर 236.7० फीट था जो 2००7 में घटकर 228.7० रह गया। कबरई बांध के पानी में भी गिरावट आई। यह 2००3 के 5०6 फीट की तुलना में 2००7 में घटकर तकरीबन 491 रह गया। कमोबेश यही स्थिति अर्जुन बांध की भी रही ïवहां का पानी का स्तर 176 से घटकर 167 रह गया। गरगंवा बांध का डेड स्टोर 73० है पर पानी इसमें केवल 725 फीट बचा है। बेलाताल सागर व मदन सागर का भी जलस्तर वर्ष 2००3 में जहां 675.3० एवं 21०.12 फीट था वहीं यह वर्ष 2००7 में घटकर 663.5० व 2०7.55 फीट रह गया। जाड़े में अपने कलरव से विजय सागर को गुंंजायमान रखने वाले परदेशी परिंदों ने भी उससे मुंह मोड़ लिया है। पाठा इलाके में तो जोहड़ों ने भी आदिवासियों का साथ जोड़ दिया है। प्यास बुझाना तो दूर, नित्यकर्म के लिए गंदा पानी भी मयस्सर नहीं। जिले के सरोवरों में जहां पानी की एक बूंद तक नहीं है, वहीं जल संस्थान की ओर से यहां के विभिन्न सरोवरों में जल भंडारण की काल्पनिक रिपोर्ट भेज शासन को गुमराह किया जा रहा है।
बुंदेलखंड में तकरीबन एक लाख हैंडपंप नियराते जेठ-बैशाख के महीनों में लोगों को कितना सहारा दे पायेंगे, यह कहना कठिन है। सरकारी आंकड़े कुछ भी कहें पर बांदा, महोबा, चित्रकूट-हमीरपुर व उरई जिलों में लगे करीब 67०० हैंडपंपों में ज्यादातर की सांस अभी से उखडऩे लगी है। तेजी से नीचे खिसके भूजल ने हैंडपंपों को बेजान करना शुरू कर दिया है। 9० फीसदी तालाब पहले ही सूख चुके हैं। तकरीबन 5० हजार कुएं भी इसी दशा की ओर अग्रसर हैं। बांदा जिले में ही 1०1०9 कुओं में कहने को तो 2०2० कुएं सूख गए हैं पर हकीकत इसके उलट बताई जाती है। यह स्थिति गांवों पर भारी पड़ रही है। नतीजतन, अब पेयजल के लिये पलायन की बारी बतायी जा रही है। पेयजल के नजरिये से बुंदेलखंड के कस्बों में भी स्थिति गड़बड़ाने लगी है। चित्रकूटधाम मंडल में जल संस्थान 24 टाउन व 39० गांवों में जलापूर्ति करता है। जल संस्थान के महाप्रबंधक आलोक शर्मा बहुत कुरेदने के बावजूद खुलकर कुछ नहीं बोलते। उनका कहना है, ‘‘एक लाख से नीचे की आबादी में रोजाना प्रति व्यक्ति करीब 8० लीटर, इससे ऊपर की आबादी में लगभग 155 लीटर और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 4० लीटर पानी की आपूर्ति होनी चाहिये।’’ क्या यह मानक पूरा हो रहा है? जवाब में वह चुप्पी साध जाते हैं! जबकि चित्रकूटधाम मंडल में कमिश्नर रजनीश दुबे ने बताया, ‘‘मंडल में 24 नये ट्ïयूबवेल पेयजल समस्या को ध्यान में रखकर लगाये जा रहे हैं। हर विधानसभा क्षेत्र में 25० नये हैंडपंप स्थापित हो रहे हैं। 63 नये टैंकर मंगाये गये हैं। इनमें दो 1० हजार लीटर क्षमता के मोबाइल टैंकर होंगे। मानक से ज्यादा बोर होगा। पेयजल की गुणवतता भी आंकी जायेगी। प्राइवेट पाइप स्कीम भी लागू की गई है।’’
दरअसल भूगर्भ जल सुरक्षित किये जाने के सारे उपाय कागजी ज्यादा हैं। क्योंकि तकनीकी मानकों को कड़ाई से लागू करने के बजाय फकत मनमानी की गई है। भूजल का अंधाधुंध दोहन लगातार जारी रहा। 196० के दशक के बाद से बुंदेलखंड में 18 से 68 मीटर तक भूजल स्तर में गिरावट दर्ज की गयी है। भूजल विकास एवं प्रबंधन के तहत रेनवाटर हार्वेस्टिंग या ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग पद्घति सलीके से लागू न किये जाने से वर्ष 2००7-०8 में बुंदेलखंड में कुल 72 घंटों में लगभग 4०० मिली वर्षा भी बेमानी साबित हुई। परंपरागत जल संसाधनों को हाशिये पर डाल कर नौकरशाहों, इंजीनियरों और राजनेताओं के गठजोड़ ने जिस आधुनिक तकनीक को बढ़ावा दिया है, उसकी विफलता अब सिलसिलेवार ढंग से सामने आ रही है। सिंचाई के लिये लागू की गयी अरबों रूपये की योजनाओं का एक झटके में मानो कचूमर निकाल गया है। तभी तो बुंदेलखंड की कुल कृषि योग्य भूमि में आधी बंजर पड़ी है। चित्रकूटधाम मंडल में 1०568०9 हेक्टेयर कृषि भूमि में 568०83 हेक्टेयर भूमि का कोई पुरसाहाल नजर नहीं आता। अकेले जालौन जनपद में दो लाख एकड़ भूमि बंजर है। झांसी और ललितपुर जिलों का भी कमोबेश यही हाल है। भूगर्भ जल विभाग चित्रकूट धाम मंडल के सहायक अभियंता एएच जैदी बिना किसी लाग लपेट के कहते हैं, ‘‘बुंदेलखंड को इस हालात में पहुंचाने के लिए कुदरत से कहीं ज्यादा तुगलकशाही और भ्रष्टïाचार जिम्मेदार है। जब तक भूजल वैज्ञानिक पद्घतियों को यथाशीघ्र लागू कर विज्ञान संगत सर्वेक्षणों के बाद कार्यस्थलों का चयन नहीं किया जाता, तब तक हालात यूं ही बद से बदतर हो जायेंगे।’’
बुंदेलखंड में पानी के खुली लूट के बाद अब नौबत खूनी जंग तक पहुंच गयी है। बांदा के बरगहनी गांव में यशवीर सिंह व समर सिंह की गांव के ही रामबरन, दिनेश बच्चा, राजेंद्र एवं ग्राम नांदनमऊ की पचपन वर्षीय कंचन देवी के साथ हुई मारपीट की वजह पानी ही रहा। विडंबना यह कि पानी की कमी से तबाही का यह आलम उस बुंदेलखंड में है , जहां सरोवरों, झीलों और ताल-तलैयों के रूप में जल संरक्षण की लंबी परंपरा रही है।
-योगेश मिश्र