दिनांक-24-०3-2००8
राज्य की मौजूदा सरकार में नारा तो जनता को भयमुक्त करने का दिया गया था लेकिन लगता था कि इस नारे का सबसे ज्यादा असर सरकार के अपने कारकूनों पर हो रहा है। आलम यह है कि 45 दिन बाद विज्ञापित होने वाले एक टेण्डर की शर्तें, परिणाम और निविदा प्रपत्र पहले ही हर किसी के हाथ लग जाता है। इस बारे में मंत्री से बात भी की जाती है। तो वे इसे टाल जाते हैं। लेकिन जब टेण्डर खुलता है तो उसमें श_x008e_द दर श_x008e_द, हर्फ दर हर्फ 45 दिन पहले हुए खुलासे से एकदम मिलता है। जाहिर है कि मायावती के मंत्री और उनका महकमा अब इतने भयमुक्त हैं कि वे जहमत नहीं उठाना चाहते कि उनकी मंशा किसी तरह लीक हो जाती है तो उसमें मामूली ही सही फेरबदल करके अपनी और अपनी सरकार की इज्जत बचाने की कोशिश करें।
ताजा मामला माध्यमिक शिक्षा परिषद के तकरीबन 25०० विद्यालयों में कंम्प्यूटर शिक्षा देने के तकरीबन 167 करोड़ रूपये के इस आईसीटी प्रोजेक्ट से जुड़ा है। जिसमें केंद्र और राज्य की भागीदारी 76 और 24 फीसदी तय की गयी है। एक विद्यालय के बच्चों को कंम्प्यूटर शिक्षा देने के लिए निर्धारित 6.67 लाख रूपये में से पांच लाख रूपये केंद्र सरकार देगी बाकी धनराशि राज्य सरकार को अपने पास से व्यय करना होगा। देश के कई राज्यों में कंम्प्यूटर शिक्षा देने की इस योजना में ‘एनआईआईटी, एडुकाम, टेली डेटा और एवरान’ सरीखी कंपनियां जुटी हुयी हैं। पर उप्र में कंम्प्यूटर सिखाने के लिये निकाले गये टेंडर में एक चहेती कंपनी को काम देने के लिये कुछ शर्तें इस कदर तोड़-मरोड़ेकर परोसी गयी हैं कि इनमें से एक-दो कंपनी ही न्यूनतम और अनिवार्य अर्हता पूरी करने में कामयाब हो पायी हैं। यह शर्त तब जोड़ी गयी है जब कंम्प्यूटर शिक्षा देने के लिए उप्र को आठ जोन में बांटा गया है। टेण्डर की शर्त के मुताबिक कोई भी एक कंपनी तीन से अधिक जोन में काम नहीं कर सकती है। मतलब साफ है कि अगर इन तीनों कंपनियों को काम मिल भी जाये तो भी टेण्डर आमंत्रित करने का औचित्य साबित करने में सरकार को दिक्कत पेश आयेगी। टेण्डर दस्तावेज साफ तौर पर यह चुगली करते हैं कि किसी एक मनचाही कंपनी को उपकृत करने के लिए काफी हेरफेर की गयी है। मसलन, निविदा प्रपत्र कहता है कि जिस कंपनी ने पिछले तीन वर्ष लगातार बीस करोड़ रूपये का कारोबार किया हो वही टेण्डर डालने के लिए योग्य होगी। जबकि माध्यमिक शिक्षा महकमे के मार्फत 2 मार्च को प्रकाशित विज्ञापन में यह लिखा हुआ है कि बीते तीन वर्षों में सालाना औसत बीस करोड़ का काम करने वाली कंपनी भी अर्ह होगी। औसत वार्षिक कारोबार और न्यूनतम वार्षिक कारोबार को लेकर निविदा प्रपत्र और विज्ञापित निविदा में अंतर के बावत ‘आउटलुक’ साप्ताहिक ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक केएम त्रिपाठी से बातचीत की। उन्होंने कहा, ‘‘न्यूनतम बीस करोड़ का सालाना कारोबार जिसका जिक्र निविदा प्रपत्र में है। उसकी जगह जो विज्ञापन में औसत बीस करोड़ के कारोबार की बात है, वही सही है।’’ इस बावत उन्होंने तकनीकी कमेटी का कारोबार देख रहे अपर निदेशक मित्रलाल से भी जांच पड़ताल की। ‘आउटलुक’ साप्ताहिक ने माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र से भी इस बावत पड़ताल की तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं बाहर हूँ। आकर देखूंगा। वैसे मैंने इस योजना के लिए एक तकनीकी समिति गठित कर दी है जिसमें तमाम विशेषज्ञ हैं।’’ पर मंत्री के लौटने के बाद प्रकाशित निविदा का जो शुद्घि पत्र जारी हुआ। वह ठीक उलट था। इसमें निविदा प्रपत्र में प्रकाशित शर्तों को प्रकाशित निविदा की शर्तों से वरीयता दी गयी।
गौरतलब है कि ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के पास निविदा प्रपत्र प्रकाशित होने की तिथि ०2 मार्च के लगभग 45 दिन पूर्व ही गोलमाल की आशंका जताते हुये उपल_x008e_ध करा दिये गये थे। बीते 13 जनवरी को तैयार की गयी सीडी के प्रिंटआउट और निविदा प्रपत्र के कागजातों का मिलान किया जाय तो इस रहस्यमय तथ्य का खुलासा होता है कि एक कंपनी विशेष को दोनों हाथों से रेवडिय़ां बांटने के लिए उसी के द्वारा तैयार की गयी सीडी के प्रिंट आउट को ही निविदा प्रपत्र बना दिया गया। सीडी के प्रिंट आउट और निविदा के कागजातों में अद्ïभुत समानता मिलती है। सीडी में सुरक्षित निविदा-प्रपत्र और निविदा प्रपत्र के पृष्ठï संख्या में भले ही तीन पेजों का अंतर हो पर हर पृष्ठï की शुरूआत, अंत और मध्य के एक-एक हर्फ बिल्कुल एक हैं। इनके सोर्स कोड, हर पेज की हेडिंग, सब हेडिंग, श_x008e_दों के बोल्ड, इटैलिक किये जाने के साथ ही साथ फांट साइज भी बदलने की आवश्यकता नहीं समझी गयी। माध्यमिक शिक्षा महकमे के हुक्मरान और मंत्री दोनों हर विद्यालाय में दो शिक्षकों की नियुक्ति की रट लगाये हुए थे पर एक कंपनी विशेष द्वारा उपल_x008e_ध कराये गये टेण्डर डाकूमेन्ट में एक शिक्षक की शर्त को मानने में गुरेज नहीं किया गया। यही नहीं, कुर्सी और मेज के प्रारूप, कमरों में सीलिंग फैन, एक्जास्ट फैन, ट्ïयूब लाइट के साथ ही प्रशिक्षक की कुर्सी तक का जो आकार-प्रकार सीडी के दस्तावेजों में है बिल्कुल वही निविदा प्रपत्र में भी हूबहू दिखता है। काम को अंजाम न दे पाने की स्थिति में दंड शुल्क की राशि भी ‘आउटलुक’ को निविदा प्रकाशित होने के 45 दिन पहले उपल_x008e_ध सीडी और प्रकाशित निविदा में एक सरीखा ही है। कुल दो परिवर्तन सीडी और निविदा प्रपत्र में देखने को मिलता है।
पहला, सीडी के दस्तावेजों के मुताबिक कंम्प्यूटर चलाने के लिये आठ घंटे जेनरेटर की व्यवस्था जतायी गयी है पर निविदा-प्रपत्र में इसे घटाकर मात्र दो घंटे कर दिया गया है। यह परिवर्तन भी मनचाही कंपनी को मनचाहा लाभ देने के लिये ही गढ़ा गया है। दूसरे, सीडी दस्तावेजों में एडीशनल डायरेक्टर ऑफ वोकेशनल के आफिस का पता व फोन नंबर डालकर विज्ञापित कर दिया गया है। अपनों को उपकृत करने के लिये टेण्डर दस्तावेज में यह भी लिखा गया है कि न्यूनतम दर वाली कंपनी के दर पर ही अन्य कंपनियों को काम करना पड़ेगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो पूरा का पूरा काम एक ही कंपनी के हवाले किया जा सकता है। मतलब साफ है कि जब किसी कंपनी द्वारा सीडी के प्रिंट आउट को ही सरकार का यह महकमा अपना निविदा प्रपत्र बना लेने में संकोच नहीं करता है तो उस कंपनी को नवाजने के लिये उसे न्यूनतम दर बताने से वह खुद को कैसे रोक पायेगा?
निविदा दस्तावेज ही नहीं, अपने स्वरूप और क्रियान्वयन को लेकर भी यह परियोजना विवादों में घिर गयी है। कंम्प्यूटर शिक्षा देने की यह परियोजना किसी राज्य में ‘बूट मॉडल’ और किसी में ‘यूजर चार्जेस’ के मार्फत चलायी जा रही है। ‘बूट मॉडल’ में एक ही कंपनी को पूरा का पूरा काम देकर छात्रों से कोई धनराशि नहीं ली जाती है। जबकि ‘यूजर चार्जेस’ में जो बच्चे कंम्प्यूटर का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं उनसे थोड़ी सी धनराशि ली जाती है। उप्र में पहले से ही राज्य सरकार के निगम उप्र डेवलपमेंट सिस्टम कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीडेस्को) के मार्फत यूजर चार्जेस प्रक्रिया के द्वारा एक लाख से अधिक बच्चे कंम्प्यूटर की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। बावजूद इसके माध्यमिक शिक्षा महकमे ने निजी कंपनियों के लिए मार्ग प्रशस्त करके जहां अपने ही निगम पर अविश्वास जताया है। वहीं निजी कंपनियों को गोलमाल का खुला खेल खेलने का मौका मुहैया कराया है। ‘बूट मॉडल’ पर आगामी योजना के संचालन और ‘यूजर चार्जेस’ पर पुरानी योजना के संचालित किये जाने के चलते कंम्प्यूटर सीखने के लिए ही बच्चों के साथ दो तरह के अलग-अलग मानदंड अपनाती हुई राज्य सरकार दिखेगी। ‘यूजर चार्जेस’ के माध्यम से कंम्प्यूटर सीखने वाले बच्चे फीस देंगे जबकि ‘बूट मॉडल’ के मार्फत कंम्प्यूटर की तालीम पाने वालों को मुफ्त शिक्षा मुहैया करायी जायेगी। गौरतलब है कि इस मॉडल में कंम्प्यूटर शिक्षा मुहैया कराने वाली कंपनी को पांच सालों में टेंडर मूल्य का भुगतान किश्तवार करने का प्रावधान है। ‘बूट मॉडल’ और ‘यूजर चार्जेस’ की विसंगति को दूर करने के लिए कई राज्यों ने दोनों योजनाओं को मिलाकर नई योजना प्रस्तावित की है। पर ‘पता नहीं किन’ तर्कों के आधार पर उप्र का माध्यमिक शिक्षा महकमा कंम्प्यूटर की तालीम पाने के दोनों रास्तों पर चलने की वकालत कर रहा है।
-योगेश मिश्र
राज्य की मौजूदा सरकार में नारा तो जनता को भयमुक्त करने का दिया गया था लेकिन लगता था कि इस नारे का सबसे ज्यादा असर सरकार के अपने कारकूनों पर हो रहा है। आलम यह है कि 45 दिन बाद विज्ञापित होने वाले एक टेण्डर की शर्तें, परिणाम और निविदा प्रपत्र पहले ही हर किसी के हाथ लग जाता है। इस बारे में मंत्री से बात भी की जाती है। तो वे इसे टाल जाते हैं। लेकिन जब टेण्डर खुलता है तो उसमें श_x008e_द दर श_x008e_द, हर्फ दर हर्फ 45 दिन पहले हुए खुलासे से एकदम मिलता है। जाहिर है कि मायावती के मंत्री और उनका महकमा अब इतने भयमुक्त हैं कि वे जहमत नहीं उठाना चाहते कि उनकी मंशा किसी तरह लीक हो जाती है तो उसमें मामूली ही सही फेरबदल करके अपनी और अपनी सरकार की इज्जत बचाने की कोशिश करें।
ताजा मामला माध्यमिक शिक्षा परिषद के तकरीबन 25०० विद्यालयों में कंम्प्यूटर शिक्षा देने के तकरीबन 167 करोड़ रूपये के इस आईसीटी प्रोजेक्ट से जुड़ा है। जिसमें केंद्र और राज्य की भागीदारी 76 और 24 फीसदी तय की गयी है। एक विद्यालय के बच्चों को कंम्प्यूटर शिक्षा देने के लिए निर्धारित 6.67 लाख रूपये में से पांच लाख रूपये केंद्र सरकार देगी बाकी धनराशि राज्य सरकार को अपने पास से व्यय करना होगा। देश के कई राज्यों में कंम्प्यूटर शिक्षा देने की इस योजना में ‘एनआईआईटी, एडुकाम, टेली डेटा और एवरान’ सरीखी कंपनियां जुटी हुयी हैं। पर उप्र में कंम्प्यूटर सिखाने के लिये निकाले गये टेंडर में एक चहेती कंपनी को काम देने के लिये कुछ शर्तें इस कदर तोड़-मरोड़ेकर परोसी गयी हैं कि इनमें से एक-दो कंपनी ही न्यूनतम और अनिवार्य अर्हता पूरी करने में कामयाब हो पायी हैं। यह शर्त तब जोड़ी गयी है जब कंम्प्यूटर शिक्षा देने के लिए उप्र को आठ जोन में बांटा गया है। टेण्डर की शर्त के मुताबिक कोई भी एक कंपनी तीन से अधिक जोन में काम नहीं कर सकती है। मतलब साफ है कि अगर इन तीनों कंपनियों को काम मिल भी जाये तो भी टेण्डर आमंत्रित करने का औचित्य साबित करने में सरकार को दिक्कत पेश आयेगी। टेण्डर दस्तावेज साफ तौर पर यह चुगली करते हैं कि किसी एक मनचाही कंपनी को उपकृत करने के लिए काफी हेरफेर की गयी है। मसलन, निविदा प्रपत्र कहता है कि जिस कंपनी ने पिछले तीन वर्ष लगातार बीस करोड़ रूपये का कारोबार किया हो वही टेण्डर डालने के लिए योग्य होगी। जबकि माध्यमिक शिक्षा महकमे के मार्फत 2 मार्च को प्रकाशित विज्ञापन में यह लिखा हुआ है कि बीते तीन वर्षों में सालाना औसत बीस करोड़ का काम करने वाली कंपनी भी अर्ह होगी। औसत वार्षिक कारोबार और न्यूनतम वार्षिक कारोबार को लेकर निविदा प्रपत्र और विज्ञापित निविदा में अंतर के बावत ‘आउटलुक’ साप्ताहिक ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक केएम त्रिपाठी से बातचीत की। उन्होंने कहा, ‘‘न्यूनतम बीस करोड़ का सालाना कारोबार जिसका जिक्र निविदा प्रपत्र में है। उसकी जगह जो विज्ञापन में औसत बीस करोड़ के कारोबार की बात है, वही सही है।’’ इस बावत उन्होंने तकनीकी कमेटी का कारोबार देख रहे अपर निदेशक मित्रलाल से भी जांच पड़ताल की। ‘आउटलुक’ साप्ताहिक ने माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र से भी इस बावत पड़ताल की तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं बाहर हूँ। आकर देखूंगा। वैसे मैंने इस योजना के लिए एक तकनीकी समिति गठित कर दी है जिसमें तमाम विशेषज्ञ हैं।’’ पर मंत्री के लौटने के बाद प्रकाशित निविदा का जो शुद्घि पत्र जारी हुआ। वह ठीक उलट था। इसमें निविदा प्रपत्र में प्रकाशित शर्तों को प्रकाशित निविदा की शर्तों से वरीयता दी गयी।
गौरतलब है कि ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के पास निविदा प्रपत्र प्रकाशित होने की तिथि ०2 मार्च के लगभग 45 दिन पूर्व ही गोलमाल की आशंका जताते हुये उपल_x008e_ध करा दिये गये थे। बीते 13 जनवरी को तैयार की गयी सीडी के प्रिंटआउट और निविदा प्रपत्र के कागजातों का मिलान किया जाय तो इस रहस्यमय तथ्य का खुलासा होता है कि एक कंपनी विशेष को दोनों हाथों से रेवडिय़ां बांटने के लिए उसी के द्वारा तैयार की गयी सीडी के प्रिंट आउट को ही निविदा प्रपत्र बना दिया गया। सीडी के प्रिंट आउट और निविदा के कागजातों में अद्ïभुत समानता मिलती है। सीडी में सुरक्षित निविदा-प्रपत्र और निविदा प्रपत्र के पृष्ठï संख्या में भले ही तीन पेजों का अंतर हो पर हर पृष्ठï की शुरूआत, अंत और मध्य के एक-एक हर्फ बिल्कुल एक हैं। इनके सोर्स कोड, हर पेज की हेडिंग, सब हेडिंग, श_x008e_दों के बोल्ड, इटैलिक किये जाने के साथ ही साथ फांट साइज भी बदलने की आवश्यकता नहीं समझी गयी। माध्यमिक शिक्षा महकमे के हुक्मरान और मंत्री दोनों हर विद्यालाय में दो शिक्षकों की नियुक्ति की रट लगाये हुए थे पर एक कंपनी विशेष द्वारा उपल_x008e_ध कराये गये टेण्डर डाकूमेन्ट में एक शिक्षक की शर्त को मानने में गुरेज नहीं किया गया। यही नहीं, कुर्सी और मेज के प्रारूप, कमरों में सीलिंग फैन, एक्जास्ट फैन, ट्ïयूब लाइट के साथ ही प्रशिक्षक की कुर्सी तक का जो आकार-प्रकार सीडी के दस्तावेजों में है बिल्कुल वही निविदा प्रपत्र में भी हूबहू दिखता है। काम को अंजाम न दे पाने की स्थिति में दंड शुल्क की राशि भी ‘आउटलुक’ को निविदा प्रकाशित होने के 45 दिन पहले उपल_x008e_ध सीडी और प्रकाशित निविदा में एक सरीखा ही है। कुल दो परिवर्तन सीडी और निविदा प्रपत्र में देखने को मिलता है।
पहला, सीडी के दस्तावेजों के मुताबिक कंम्प्यूटर चलाने के लिये आठ घंटे जेनरेटर की व्यवस्था जतायी गयी है पर निविदा-प्रपत्र में इसे घटाकर मात्र दो घंटे कर दिया गया है। यह परिवर्तन भी मनचाही कंपनी को मनचाहा लाभ देने के लिये ही गढ़ा गया है। दूसरे, सीडी दस्तावेजों में एडीशनल डायरेक्टर ऑफ वोकेशनल के आफिस का पता व फोन नंबर डालकर विज्ञापित कर दिया गया है। अपनों को उपकृत करने के लिये टेण्डर दस्तावेज में यह भी लिखा गया है कि न्यूनतम दर वाली कंपनी के दर पर ही अन्य कंपनियों को काम करना पड़ेगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो पूरा का पूरा काम एक ही कंपनी के हवाले किया जा सकता है। मतलब साफ है कि जब किसी कंपनी द्वारा सीडी के प्रिंट आउट को ही सरकार का यह महकमा अपना निविदा प्रपत्र बना लेने में संकोच नहीं करता है तो उस कंपनी को नवाजने के लिये उसे न्यूनतम दर बताने से वह खुद को कैसे रोक पायेगा?
निविदा दस्तावेज ही नहीं, अपने स्वरूप और क्रियान्वयन को लेकर भी यह परियोजना विवादों में घिर गयी है। कंम्प्यूटर शिक्षा देने की यह परियोजना किसी राज्य में ‘बूट मॉडल’ और किसी में ‘यूजर चार्जेस’ के मार्फत चलायी जा रही है। ‘बूट मॉडल’ में एक ही कंपनी को पूरा का पूरा काम देकर छात्रों से कोई धनराशि नहीं ली जाती है। जबकि ‘यूजर चार्जेस’ में जो बच्चे कंम्प्यूटर का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं उनसे थोड़ी सी धनराशि ली जाती है। उप्र में पहले से ही राज्य सरकार के निगम उप्र डेवलपमेंट सिस्टम कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीडेस्को) के मार्फत यूजर चार्जेस प्रक्रिया के द्वारा एक लाख से अधिक बच्चे कंम्प्यूटर की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। बावजूद इसके माध्यमिक शिक्षा महकमे ने निजी कंपनियों के लिए मार्ग प्रशस्त करके जहां अपने ही निगम पर अविश्वास जताया है। वहीं निजी कंपनियों को गोलमाल का खुला खेल खेलने का मौका मुहैया कराया है। ‘बूट मॉडल’ पर आगामी योजना के संचालन और ‘यूजर चार्जेस’ पर पुरानी योजना के संचालित किये जाने के चलते कंम्प्यूटर सीखने के लिए ही बच्चों के साथ दो तरह के अलग-अलग मानदंड अपनाती हुई राज्य सरकार दिखेगी। ‘यूजर चार्जेस’ के माध्यम से कंम्प्यूटर सीखने वाले बच्चे फीस देंगे जबकि ‘बूट मॉडल’ के मार्फत कंम्प्यूटर की तालीम पाने वालों को मुफ्त शिक्षा मुहैया करायी जायेगी। गौरतलब है कि इस मॉडल में कंम्प्यूटर शिक्षा मुहैया कराने वाली कंपनी को पांच सालों में टेंडर मूल्य का भुगतान किश्तवार करने का प्रावधान है। ‘बूट मॉडल’ और ‘यूजर चार्जेस’ की विसंगति को दूर करने के लिए कई राज्यों ने दोनों योजनाओं को मिलाकर नई योजना प्रस्तावित की है। पर ‘पता नहीं किन’ तर्कों के आधार पर उप्र का माध्यमिक शिक्षा महकमा कंम्प्यूटर की तालीम पाने के दोनों रास्तों पर चलने की वकालत कर रहा है।
-योगेश मिश्र