दिनांक : 28.०4.2००8
राज्य में इन दिनों सदा नीरा नदियों को विपत्ति ने आ घेरा है। सदियों से कल-कल, छल-छल का नीनाद करती संगीत बिखरने वाली नदियां एक-एक कर दम तोड़ रही हैं। वे खुद प्यासी हो उठी हैं। मरणासन्न नजर आ रही हैं। कई जगह उनका प्रवाह या तो थम गया है अथवा वे रेत में तब्दील हो गयी हैं। राज्य भर में पसरी नदियों की जीवन रेखा भौगोलिक धरातल पर गुम हो गई है। पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक नदी के जिंदा रहने के लिए 4० प्रतिशत पानी का बहाव हर वक्त होना चाहिए लेकिन राज्य की किसी भी छोटी नदी में पानी का यह बहाव बचा ही नहीं है। अकेले बुंदेलखंड की बात करें तो पाठा इलाकों में सालों से जारी जल संकट के बावजूद बरदहा नदी ने साथ नहीं छोड़ा था। लेकिन अब यही नहीं चित्रकूट की पावन सलिला पयस्वनी (मंदाकिनी) का प्रवाह थम गया है। बांदा की चंद्रावल, विषाहिल, गडऱा, बानगंगा, कैल व रंज नदियां सूख गई हैं। कोल्हुआ-फतेहगंज के वन क्षेत्र से निकलने वाली विषाहिल और बानगंगा में तो इस समय रेत उड़ रही है। विषाहिल पहले भी रूठती रही है लेकिन इस साल बानगंगा की बेवफाई से इलाकाई लोग सकते में हैं। कहा जाता है कि वनवास काल में भगवान श्रीराम ने क्षेत्र को पानी संकट से उबारने के लिए धरती को बाणों से चीरकर जो जलधार बहाई थी। वही बानगंगा कहलाई। बागेन कहीं नाले जैसी दिखती है तो कहीं चुक गई। मध्य प्रदेश के कौहारी और सेहा पहाड़ से निकलने वाली इस नदी का उद्ïगम स्थल भी सूख गया है। इसके सूखने से कालिंजर से लेकर बदौसा तक हलचल है। अथाह जलराशि वाली केन नदी पर सूखे की छाया मंडराने लगी है। केंद्रीय जल आयोग एवं बाढ़ पूर्वानुमान विभाग के अवर अभियंता कालीचरण का कहना है, ‘‘मुझे लगता है कि कहीं मई जून में नदी सूख न जाए।’’ सहायक अभियंता चौरसिया के अनुसार, ‘‘26 अप्रैल को बांदा में केन का जलस्तर 94.12 था। इस लिहाज से पिछले आंकड़ों पर गौर करें तो केन में काफी पानी कम हो जाने की पुष्टिï होती है।’’ इसकी सहायक बन्ने नदी तो मरणासन्न हो गयी है। धसान और बेतवा जैसी बड़ी नदियों का जल भी इस तरह कम हो गया है कि बुंदेलखंड में लोगों ने ‘नदी बचाओ सत्याग्रह’ शुरू कर रखा है। जल बिरादरी के मशहूर पर्यावरणविद्ï तथा मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह की अगुआई में 18 अप्रैल से 1० मई तक पूरे इलाके में यह सत्याग्रह जारी रहेगा। सत्याग्रह के अगुआ सुरेश रैकवार ने ‘आउटलुक’ साप्ताहिक से कहा, ‘‘नदियां बुंदेलखंड की धमनियां और तालाब हृदय हैं। आज इनके अस्तित्व पर जो खतरा मंडरा रहा है, उसने यहां के सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्तों के साथ ही इंसानों और पशु-पक्षियों के अस्तित्व को लेकर भी खतरे की घंटी बजा दी है। सत्याग्रह के जरिए ही इससे निपटा जाएगा।’’ केंद्रीय जल आयोग भी मानता है कि बुंदेलखंड में नदियां सूख रही हैं। आयोग के केन उप मंडल बांदा के सहायक अभियंता एके चौरसिया ने ‘आउटलुक’ साप्ताहिक को बताया, ‘‘महोबा की जीवनदायिनी उर्मिल नदी सूख गई है। कैमहा में 23 जनवरी से जलस्तर की नाप जोख ठप है। कागजों में इसे ड्राई दर्ज कर लिया गया है।’’
सिंचाई विभाग के आंकड़ों के मुताबिक विगत सात साल में इलाहाबाद में गंगा का जल स्तर साढ़े छह मीटर तक घटा है। सामान्य दिनों की बात तो दूर चौंकाने वाला तथ्य यह है कि बरसात के दिनों में भी गंगा का जल स्तर हर साल घटता जा रहा है। सिंचाई विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1994 में इलाहाबाद में गंगा का अधिकतम जलस्तर 85.63 मीटर तक पहुंचा था। वहीं पिछले वर्ष 2००7 में गंगा नदी का अधिकतम जलस्तर 79.31 मीटर ही रह गया था। विशेषज्ञों का मानना है, ‘‘गंगा का जलस्तर ऐसे ही घटता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब प्रयागवासियों के लिए गंगा की बाढ़ अतीत की कहानियों का एक हिस्सा बनकर ही रह जायेगी।’’ इसी जिले के यमुनापार की टोंस नदी सूख चुकी है। प्रतापगढ़ की टाई नदी का जलस्तर एक दशक से घटता हुआ दर्ज किया जा रहा है।
पूर्वांचल की राप्ती, आमी, कुआनो के साथ-साथ सरयू में भी पानी की कम आमद लगातार दर्ज हो रही है। सरयू गठराम गिरि, सुकरौली, बारिगांव में नाली सरीखी नजर आ रही है। सरयू तट पर बसे डेहरा टीकर गांव के रवीन्द्र तिवारी बताते हैं, ‘‘हमें पहले नदी नाव से पार करना होता था। अब साइकिल चलाते हुए नदी पार कर लेते हैं।’’ कुआनो और सरयू का संगम बेलघाट ब्लाक के शाहपुर जिगनिया और गोला में होता है। आमी नदी को बाढ़ पुर्नजीवन देती थी। लेकिन अब बाढ़ भी आमी को नदी की शक्ल नहीं दे पा रही है। गोरखपुर जिले के सोहगौरा गांव के पास राप्ती में मिलने वाली 77 किमी लंबी आमी गोरखपुर, संतकबीरनगर व बस्ती जिले के लिए जीवन रेखा है। आमी के अस्तित्व पर आए संकट से निपटने के लिए पर्यावरण प्रेमी आंदोलन की राह पर हैं। भाजपा नेता हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ने आमी के मामले को विधानसभा में उठाया। आमी बचाओ संघर्ष समिति भी बन गई है। जिसके सूत्रधार समाजवादी गुंजेश्वरी प्रसाद हैं। वे कहते हैं, ‘‘जल हमें जीवन देता है। हमें जल की वेदना समझने की जरूरत है। हम नहीं चेते तो एक दिन नदियां भी लुप्त हो जायेंगी।’’ कुशीनगर जिले में बहने वाली प्रलयंकारी छोटी और बड़ी गंडक में भी पानी काफी कम हो गया है। जल प्रबंध विशेषज्ञ डा. प्रदीप कुमार सिंह बताते हैं, ‘‘65 फीसदी वर्षा जल बेकार नष्टï हो रहा है।’’ राज्य सरकार के मंत्री राजेश त्रिपाठी खुद सरयू को बचाने के लिए महोत्सव के आयोजन में जुटे हुए हैं। कानपुर मंडल की 15 नदियों-गंगा, यमुना, चंबल, काली, पान्डु, ईसन, रिंद, उत्तरी नोन, दक्षिणी नोन, सरसों, क्वांरी, पुरहा, अनइया, सेंगुर आदि का अस्तित्व संकट में है। इस मंडल के अकेले इटावा और औरैया जिलों में नौ नदियां हैं। सरकारी उपेक्षा का ये आलम है कि पूरे मंडलायुक्त कार्यालय को ये भी पता नहीं है कि उनके मंडल मेें कितनी नदियां हैं। गंगा, यमुना और चंबल में प्रदूषण के लचते पानी आचमन के लायक भी नहीं रह गया है। यमुना दिल्ली और फिरोजाबाद का औद्योगिक कचरा अपने में समाये कानपुर और पड़ोसी जिलों में बह रही है। गंगा का हाल तो बेहाल हो चुका है अरबों पानी में बहाने के बाद भी नतीजा सिफर ही आया। गंगा जैसी पवित्र नदी में लोगों ने डुबकी लगाना बंद कर दिया है।
चंबल को एक्वेटिक सेंचुरी बनाने की सरकारी योजना में प्रदूषण के चलते पलीता लग चुका है। यहां 2००6-०7 में हजारों जलचर छोड़े गये थे, छह माह पूर्व तकरीबन एक सैकड़ा घडिय़ाल आक्सीजन की कमी के चलते दम तोड़ गये। जांच को आई आस्ट्रेलियाई टीम ने पानी के नमूने की जांच के बाद ये निष्कर्ष निकाला कि यहां का पानी पीने योग्य नहीं रहा। अलीगढ़ से निकलकर एटा, मैनपुरी, फर्रूखाबाद, इटावा होते हुए कानपुर देहात के नारगांव के पास रूरा में ‘आईने अकबरी’ में आरिंद के नाम से पहचानी गई रिंद नदी को इस कदर झटका लगा कि मुख्य धारा में से मवेशियों का रास्ता बन गया है। कई युवकों ने कहा, ‘‘भइया बाबा कहत हैं कि इ नदियां कबहुँ नहीं झुरान...’’ अब पानी नहीं मिल रहा। अफसरों को पता नहीं कि हरदोई से जौनपुर तक जाने वाली सई नदी आखिर सूखी कैसे? ऐसे में इसकी पड़ताल के लिए सरकार ने एक समिति गठित की है। जबकि जनता ने सई बचाओ संघर्ष समिति गठित है। सई नदी के किनारे बसे मिर्जापुर के बाबूलाल कहते हैं, ‘‘जब नदी ही सूख गई तो हम कहाँ जाएँगे। यही नदी हमारी जिंदगी है।’’ आगरा जनपद की उटगन जो फतेहाबाद के पास यमुना में मिलती है, 6-7 साल से सूखी पड़ी है। किवाड़, पार्वती और खारी नदियों को बचाने के लिए पांच साल पहले चेकडैम बनाए गए थे। पर इनमें बरसात का पानी न आ पाने के कारण सूख गयी हैं। अलीगढ़ की प्रमुख नदियां गंगा और यमुना हैं। पर यहां के 6०किमी क्षेत्र में पसरी काली नदी और ईसन नदी इस समय सूखी पड़ी हैं। ये दोनों गंगा की सहायक नदियां हैं। बाराबंकी के रारी नदी पर पुल बनवाने की सियासत और भाजपा और बसपा के नेताओं के बीच तो लंबे समय से जारी है। पर अब इस सियासत कोरारी ने सूख करके विराम दे दिया है। साइकिल व दोपहिया चालकों ने रारी नदी में रास्ता बना लिया है। बाजपुर के 65 वर्षीय महिपत अपनी जिंदगी में रारी की यह हालत देख गुस्साकर बोल उठते हैं, ‘‘जानवरै काहे अब तो मनई भी मरिहैं।’’ रामनगरी अयोध्या की सरयू में श्रद्घा की डुबकी पर भी संकट मंडरा रहा है। उसके सुरम्य तट पर अब घुटनों भर भी पानी नहीं रह गया है। हालात इतने बदतर हैं, ‘‘राजस्व विभाग के गोताखोर, ठेकेदारों के कारिन्दे और छोटे-छोटे बच्चे सरयू पुल के नीचे नदी तक पैदल ही पुल से श्रद्घालुओं द्वारा फेंके सिक्कों को बटोरने पहुंच जाते हैं।’’ राम से जुड़ी एक और पौराणिक नदी तमसा में 1981 से कभी वर्ष भर पानी का बहाव नहीं हुआ है। वाल्मीकि और तुलसी रामायण में वर्णित यह नदी 2००० में एकदम खत्म हो गई है। लोगों का मानना है, ‘‘माननीयों ने जितना सरकारी धन तमसा नदी को साफ करवाने में खर्च करवा दिया, उसके आधे से कम धन में तमसा को किसी नहर से जोडक़र हमेशा पानी उपलब्ध कराया जा सकता था।’’
बनारस की असि और अरूणा ने अतिक्रमण के चलते नाले का रूप ले लिया है। तो 1977 में 35० मीटर की चौड़ाई वाली गंगा सिमटकर 22० मीटर रह गयी है। गहराई के लिहाज से भी वह 9.5 मीटर की जगह 5.4 मीटर ही है। पानी की कमी के साथ-साथ अगर हम दम तोड़ रही नदियों में बह रहे औद्योगिक प्रदूषण और कचरे की बात करें तो राज्य की एक भी नदी ऐसी नहीं है जिसका बचा पानी नहाने लायक भी हो। गोमती और चंबल में तो जल जीवों को भी सांस लेना दूभर हो रहा है। मछलियां मर कर सतह पर आ जा रही हैं। राज्य की नदियों में पानी की कमी का अंदाज महज इससे लगाया जा सकता है कि बिजली महकमा बिजली बनाने के लिए सिंचाई विभाग से 23० क्यूसेक पानी मांग रहा है। 4००० मेगावाट पावर स्टेशन लगाने के लिए मांगे जाने वाली इस जलराशि में से सिर्फ 6० क्यूसेक पानी देने की स्थिति में सिंचाई विभाग है। ललितपुर में शहजाद, सजनाम, रोहिणी, जामुनी, बेतवा और धसान नदियां बहती हैं।
-योगेश मिश्र
राज्य में इन दिनों सदा नीरा नदियों को विपत्ति ने आ घेरा है। सदियों से कल-कल, छल-छल का नीनाद करती संगीत बिखरने वाली नदियां एक-एक कर दम तोड़ रही हैं। वे खुद प्यासी हो उठी हैं। मरणासन्न नजर आ रही हैं। कई जगह उनका प्रवाह या तो थम गया है अथवा वे रेत में तब्दील हो गयी हैं। राज्य भर में पसरी नदियों की जीवन रेखा भौगोलिक धरातल पर गुम हो गई है। पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक नदी के जिंदा रहने के लिए 4० प्रतिशत पानी का बहाव हर वक्त होना चाहिए लेकिन राज्य की किसी भी छोटी नदी में पानी का यह बहाव बचा ही नहीं है। अकेले बुंदेलखंड की बात करें तो पाठा इलाकों में सालों से जारी जल संकट के बावजूद बरदहा नदी ने साथ नहीं छोड़ा था। लेकिन अब यही नहीं चित्रकूट की पावन सलिला पयस्वनी (मंदाकिनी) का प्रवाह थम गया है। बांदा की चंद्रावल, विषाहिल, गडऱा, बानगंगा, कैल व रंज नदियां सूख गई हैं। कोल्हुआ-फतेहगंज के वन क्षेत्र से निकलने वाली विषाहिल और बानगंगा में तो इस समय रेत उड़ रही है। विषाहिल पहले भी रूठती रही है लेकिन इस साल बानगंगा की बेवफाई से इलाकाई लोग सकते में हैं। कहा जाता है कि वनवास काल में भगवान श्रीराम ने क्षेत्र को पानी संकट से उबारने के लिए धरती को बाणों से चीरकर जो जलधार बहाई थी। वही बानगंगा कहलाई। बागेन कहीं नाले जैसी दिखती है तो कहीं चुक गई। मध्य प्रदेश के कौहारी और सेहा पहाड़ से निकलने वाली इस नदी का उद्ïगम स्थल भी सूख गया है। इसके सूखने से कालिंजर से लेकर बदौसा तक हलचल है। अथाह जलराशि वाली केन नदी पर सूखे की छाया मंडराने लगी है। केंद्रीय जल आयोग एवं बाढ़ पूर्वानुमान विभाग के अवर अभियंता कालीचरण का कहना है, ‘‘मुझे लगता है कि कहीं मई जून में नदी सूख न जाए।’’ सहायक अभियंता चौरसिया के अनुसार, ‘‘26 अप्रैल को बांदा में केन का जलस्तर 94.12 था। इस लिहाज से पिछले आंकड़ों पर गौर करें तो केन में काफी पानी कम हो जाने की पुष्टिï होती है।’’ इसकी सहायक बन्ने नदी तो मरणासन्न हो गयी है। धसान और बेतवा जैसी बड़ी नदियों का जल भी इस तरह कम हो गया है कि बुंदेलखंड में लोगों ने ‘नदी बचाओ सत्याग्रह’ शुरू कर रखा है। जल बिरादरी के मशहूर पर्यावरणविद्ï तथा मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह की अगुआई में 18 अप्रैल से 1० मई तक पूरे इलाके में यह सत्याग्रह जारी रहेगा। सत्याग्रह के अगुआ सुरेश रैकवार ने ‘आउटलुक’ साप्ताहिक से कहा, ‘‘नदियां बुंदेलखंड की धमनियां और तालाब हृदय हैं। आज इनके अस्तित्व पर जो खतरा मंडरा रहा है, उसने यहां के सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्तों के साथ ही इंसानों और पशु-पक्षियों के अस्तित्व को लेकर भी खतरे की घंटी बजा दी है। सत्याग्रह के जरिए ही इससे निपटा जाएगा।’’ केंद्रीय जल आयोग भी मानता है कि बुंदेलखंड में नदियां सूख रही हैं। आयोग के केन उप मंडल बांदा के सहायक अभियंता एके चौरसिया ने ‘आउटलुक’ साप्ताहिक को बताया, ‘‘महोबा की जीवनदायिनी उर्मिल नदी सूख गई है। कैमहा में 23 जनवरी से जलस्तर की नाप जोख ठप है। कागजों में इसे ड्राई दर्ज कर लिया गया है।’’
सिंचाई विभाग के आंकड़ों के मुताबिक विगत सात साल में इलाहाबाद में गंगा का जल स्तर साढ़े छह मीटर तक घटा है। सामान्य दिनों की बात तो दूर चौंकाने वाला तथ्य यह है कि बरसात के दिनों में भी गंगा का जल स्तर हर साल घटता जा रहा है। सिंचाई विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1994 में इलाहाबाद में गंगा का अधिकतम जलस्तर 85.63 मीटर तक पहुंचा था। वहीं पिछले वर्ष 2००7 में गंगा नदी का अधिकतम जलस्तर 79.31 मीटर ही रह गया था। विशेषज्ञों का मानना है, ‘‘गंगा का जलस्तर ऐसे ही घटता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब प्रयागवासियों के लिए गंगा की बाढ़ अतीत की कहानियों का एक हिस्सा बनकर ही रह जायेगी।’’ इसी जिले के यमुनापार की टोंस नदी सूख चुकी है। प्रतापगढ़ की टाई नदी का जलस्तर एक दशक से घटता हुआ दर्ज किया जा रहा है।
पूर्वांचल की राप्ती, आमी, कुआनो के साथ-साथ सरयू में भी पानी की कम आमद लगातार दर्ज हो रही है। सरयू गठराम गिरि, सुकरौली, बारिगांव में नाली सरीखी नजर आ रही है। सरयू तट पर बसे डेहरा टीकर गांव के रवीन्द्र तिवारी बताते हैं, ‘‘हमें पहले नदी नाव से पार करना होता था। अब साइकिल चलाते हुए नदी पार कर लेते हैं।’’ कुआनो और सरयू का संगम बेलघाट ब्लाक के शाहपुर जिगनिया और गोला में होता है। आमी नदी को बाढ़ पुर्नजीवन देती थी। लेकिन अब बाढ़ भी आमी को नदी की शक्ल नहीं दे पा रही है। गोरखपुर जिले के सोहगौरा गांव के पास राप्ती में मिलने वाली 77 किमी लंबी आमी गोरखपुर, संतकबीरनगर व बस्ती जिले के लिए जीवन रेखा है। आमी के अस्तित्व पर आए संकट से निपटने के लिए पर्यावरण प्रेमी आंदोलन की राह पर हैं। भाजपा नेता हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ने आमी के मामले को विधानसभा में उठाया। आमी बचाओ संघर्ष समिति भी बन गई है। जिसके सूत्रधार समाजवादी गुंजेश्वरी प्रसाद हैं। वे कहते हैं, ‘‘जल हमें जीवन देता है। हमें जल की वेदना समझने की जरूरत है। हम नहीं चेते तो एक दिन नदियां भी लुप्त हो जायेंगी।’’ कुशीनगर जिले में बहने वाली प्रलयंकारी छोटी और बड़ी गंडक में भी पानी काफी कम हो गया है। जल प्रबंध विशेषज्ञ डा. प्रदीप कुमार सिंह बताते हैं, ‘‘65 फीसदी वर्षा जल बेकार नष्टï हो रहा है।’’ राज्य सरकार के मंत्री राजेश त्रिपाठी खुद सरयू को बचाने के लिए महोत्सव के आयोजन में जुटे हुए हैं। कानपुर मंडल की 15 नदियों-गंगा, यमुना, चंबल, काली, पान्डु, ईसन, रिंद, उत्तरी नोन, दक्षिणी नोन, सरसों, क्वांरी, पुरहा, अनइया, सेंगुर आदि का अस्तित्व संकट में है। इस मंडल के अकेले इटावा और औरैया जिलों में नौ नदियां हैं। सरकारी उपेक्षा का ये आलम है कि पूरे मंडलायुक्त कार्यालय को ये भी पता नहीं है कि उनके मंडल मेें कितनी नदियां हैं। गंगा, यमुना और चंबल में प्रदूषण के लचते पानी आचमन के लायक भी नहीं रह गया है। यमुना दिल्ली और फिरोजाबाद का औद्योगिक कचरा अपने में समाये कानपुर और पड़ोसी जिलों में बह रही है। गंगा का हाल तो बेहाल हो चुका है अरबों पानी में बहाने के बाद भी नतीजा सिफर ही आया। गंगा जैसी पवित्र नदी में लोगों ने डुबकी लगाना बंद कर दिया है।
चंबल को एक्वेटिक सेंचुरी बनाने की सरकारी योजना में प्रदूषण के चलते पलीता लग चुका है। यहां 2००6-०7 में हजारों जलचर छोड़े गये थे, छह माह पूर्व तकरीबन एक सैकड़ा घडिय़ाल आक्सीजन की कमी के चलते दम तोड़ गये। जांच को आई आस्ट्रेलियाई टीम ने पानी के नमूने की जांच के बाद ये निष्कर्ष निकाला कि यहां का पानी पीने योग्य नहीं रहा। अलीगढ़ से निकलकर एटा, मैनपुरी, फर्रूखाबाद, इटावा होते हुए कानपुर देहात के नारगांव के पास रूरा में ‘आईने अकबरी’ में आरिंद के नाम से पहचानी गई रिंद नदी को इस कदर झटका लगा कि मुख्य धारा में से मवेशियों का रास्ता बन गया है। कई युवकों ने कहा, ‘‘भइया बाबा कहत हैं कि इ नदियां कबहुँ नहीं झुरान...’’ अब पानी नहीं मिल रहा। अफसरों को पता नहीं कि हरदोई से जौनपुर तक जाने वाली सई नदी आखिर सूखी कैसे? ऐसे में इसकी पड़ताल के लिए सरकार ने एक समिति गठित की है। जबकि जनता ने सई बचाओ संघर्ष समिति गठित है। सई नदी के किनारे बसे मिर्जापुर के बाबूलाल कहते हैं, ‘‘जब नदी ही सूख गई तो हम कहाँ जाएँगे। यही नदी हमारी जिंदगी है।’’ आगरा जनपद की उटगन जो फतेहाबाद के पास यमुना में मिलती है, 6-7 साल से सूखी पड़ी है। किवाड़, पार्वती और खारी नदियों को बचाने के लिए पांच साल पहले चेकडैम बनाए गए थे। पर इनमें बरसात का पानी न आ पाने के कारण सूख गयी हैं। अलीगढ़ की प्रमुख नदियां गंगा और यमुना हैं। पर यहां के 6०किमी क्षेत्र में पसरी काली नदी और ईसन नदी इस समय सूखी पड़ी हैं। ये दोनों गंगा की सहायक नदियां हैं। बाराबंकी के रारी नदी पर पुल बनवाने की सियासत और भाजपा और बसपा के नेताओं के बीच तो लंबे समय से जारी है। पर अब इस सियासत कोरारी ने सूख करके विराम दे दिया है। साइकिल व दोपहिया चालकों ने रारी नदी में रास्ता बना लिया है। बाजपुर के 65 वर्षीय महिपत अपनी जिंदगी में रारी की यह हालत देख गुस्साकर बोल उठते हैं, ‘‘जानवरै काहे अब तो मनई भी मरिहैं।’’ रामनगरी अयोध्या की सरयू में श्रद्घा की डुबकी पर भी संकट मंडरा रहा है। उसके सुरम्य तट पर अब घुटनों भर भी पानी नहीं रह गया है। हालात इतने बदतर हैं, ‘‘राजस्व विभाग के गोताखोर, ठेकेदारों के कारिन्दे और छोटे-छोटे बच्चे सरयू पुल के नीचे नदी तक पैदल ही पुल से श्रद्घालुओं द्वारा फेंके सिक्कों को बटोरने पहुंच जाते हैं।’’ राम से जुड़ी एक और पौराणिक नदी तमसा में 1981 से कभी वर्ष भर पानी का बहाव नहीं हुआ है। वाल्मीकि और तुलसी रामायण में वर्णित यह नदी 2००० में एकदम खत्म हो गई है। लोगों का मानना है, ‘‘माननीयों ने जितना सरकारी धन तमसा नदी को साफ करवाने में खर्च करवा दिया, उसके आधे से कम धन में तमसा को किसी नहर से जोडक़र हमेशा पानी उपलब्ध कराया जा सकता था।’’
बनारस की असि और अरूणा ने अतिक्रमण के चलते नाले का रूप ले लिया है। तो 1977 में 35० मीटर की चौड़ाई वाली गंगा सिमटकर 22० मीटर रह गयी है। गहराई के लिहाज से भी वह 9.5 मीटर की जगह 5.4 मीटर ही है। पानी की कमी के साथ-साथ अगर हम दम तोड़ रही नदियों में बह रहे औद्योगिक प्रदूषण और कचरे की बात करें तो राज्य की एक भी नदी ऐसी नहीं है जिसका बचा पानी नहाने लायक भी हो। गोमती और चंबल में तो जल जीवों को भी सांस लेना दूभर हो रहा है। मछलियां मर कर सतह पर आ जा रही हैं। राज्य की नदियों में पानी की कमी का अंदाज महज इससे लगाया जा सकता है कि बिजली महकमा बिजली बनाने के लिए सिंचाई विभाग से 23० क्यूसेक पानी मांग रहा है। 4००० मेगावाट पावर स्टेशन लगाने के लिए मांगे जाने वाली इस जलराशि में से सिर्फ 6० क्यूसेक पानी देने की स्थिति में सिंचाई विभाग है। ललितपुर में शहजाद, सजनाम, रोहिणी, जामुनी, बेतवा और धसान नदियां बहती हैं।
-योगेश मिश्र