सियासत की भेंट चढ़ा विकास

Update:2008-06-09 17:01 IST
दिनांक: ०9.०6.2००8
उत्तर प्रदेश को भले ही सियासत दां उद्योग प्रदेश, उत्तम प्रदेश के विशेषणों से नवाजते हुए न थकते हों पर हकीकत यह है कि बावजूद इसके बीते सत्रह सालों में राज्य विकास की दिशा में एक भी कदम आगे नहीं बढ़ा पाया है। यहां पर विकास का राजनीति की बलि-बेदी पर बलिदान साफ दिखता है। विकास और सियासत के खेल की खाईं तब और भी चौड़ी नजर आती है, जब अलग-अलग राजनीतिक दलों के नुमाइंदे एक ही क्षेत्र की नुमाइंदगी कर रहे हों। राज्य में कांग्रेस की सरकार नहीं है। पर अमेठी और रायबरेली कांग्रेस के शक्ति केंद्र माने जाते रहे हैं। विकास के लिहाज से इनकी स्थिति बेहद खराब है। वजह केंद्र और राज्य की सरकारों के बीच की खींचतान भले हो पर इस लड़ाई में हमेशा कुर्बानी उस आम-आदमी की हो रही है, जो बड़े नेताओं को महज इसलिए जिताकर सदन में भेजता है ताकि उसके इलाके में विकास की गंगा बह सके।

विकास और राजनीति के खेल में अमेठी और रायबरेली की कई योजनाएं खेत रही हैं। गत वर्ष सोनिया और लालू प्रसाद द्वारा 1685 करोड़ की लागत वाली रेल कोच फैक्ट्री का शिलान्यास किया गया था वहां आज कुछ भी नहीं है। यही नहीं, केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा 1718 करोड़ की लागत से खोला जाने वाला राष्टï्रीय ऑटोमोटिव परीक्षण तथा आर एवं डी वाह्यï संरचना प्रोजेक्ट (नैट्रिप) की भी ईंट नहीं रखी जा सकी। इसकी खास वजह राज्य सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण का काम न किया जाना है। उद्योग मंत्रालय की परियोजना के लिए 5०० एकड़ भूमि दरकार है। हालांकि केंद्र सरकार के अधिकारियों के दौरे के बाद जिलाधिकारी की रिपोर्ट के अनुसार ‘नैट्रिप’ के लिए 2०० एकड़ भूमि कठौरा में फाइनल किया गया है। कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह बताते हैं, ‘‘जमीन की दिक्कतों के मद्देनजर केंद्र सरकार को नया कानून बनाना पड़ा जिसके तहत रक्षा और रेलवे मंत्रालय अपने उपक्रमों के लिए राज्य सरकार की दया पर निर्भर नही रहेंगे बल्कि वे खुद जमीन अधिग्रहण कर सकेगेंं।’’ अखिलेश की मानें तो यह बड़ा परिवर्तन अमेठी और रायबरेली में लगाये जाने वाले उद्योगों और विकास के कामों के लिए राज्य सरकार के असहयोग से निजात पाने के लिए किया गया है। यही नहीं, इन दोनों संसदीय क्षेत्रों में केंद्र की राजीव गांधी विद्युतीकरण परियोजना भी दम तोड़ती नजर आ रही है। इसे लागू करने की जिम्मेदारी राज्य की है। रायबरेली में ऊर्जा विकास कार्यंक्रमों के लिए केंद्र ने 29 करोड़ रूपये मंजूर हुए। जिसके तहत 2०,००० नये मीटर, दो सब स्टेशन तथा 62 किमी में 33 किलोवाट की नई लाइन का निर्माण तथा सात सब स्टेशनों की क्षमता में बढ़ोत्तरी की जानी है। पर काम कच्छप गति से ही चल रहा है। आरईसी द्वारा रायबरेली एवं सुल्तानपुर के 8591 मजरों के विद्युतीकरण खातिर 428.11 करोड़ रूपए मंजूर तो हुए पर जब राज्य का बिजली महकमा इसे अंजाम देता नहीं दिखा तो यह काम पावर ग्रिड कारपोरेशन को सौंप दिया गयाा। बीस करोड़ की लागत वाले नेशनल इंस्टीट्ïयूट ऑफ फैशन टेक्रोलॉजी (निफ्ट) का शिलान्यास करते हुए सोनिया गांधी ने बताया था, ‘‘अभी तक यह डिप्लोमा था। संसद में कानून पास करके इसे डिग्री का दर्जा दे दिया गया है।’’ सोनिया के साथ आए राहुल ने फुर्सतगंज में 4० करोड़ की लागत वाले फुटवियर डिजाइन एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्ïयूट की आधारशिला रखी थी। कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह के मुताबिक, ‘‘इन दोनों परियोजनाओं के लिए राज्य सरकार ने भूमि उपलब्ध नहीं करायी। निफ्ट किराये के मकान में चल रहा है। पर लेदर इंस्टीट्ïयूट को बाजार से जमीन खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है।’’ कमोबेश यही स्थिति रायबरेली में 535 करोड़ की लागत वाले राजीव गांधी इंस्टीट्ïयूट ऑफ पेट्रोलियम टेक्नोलॉजी (आरजीआईपीटी) के निर्माण में भी है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दास मुंशी ने कहा था, ‘‘2००8-०9 से पढ़ाई शुरू हो जाएगी। निर्माण, स्टाफ तथा अन्य सुविधाओं के लिए ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में 285 करोड़ रूपए दे दिए गए हैं।’’ पर अभी तक जमीन के लिए यह संस्थान राज्य सरकार का मुंह ताक रहा है। वह भी तब, जब पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने पेट्रोलियम मंत्री के साथ संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में इस संस्थान के खोले जाने पर जरूरी मदद मुहैया कराने का भरोसा दिया था। युवा कांग्रेसी कार्यकर्ता धर्मेन्द्र शुक्ला बताते हैं, ‘‘अब तो राज्य सरकार से जमीन मिलने की उम्मीद नहीं है। लगता है इनके लिए किसानों से सीधे बाजार दर पर जमीन लेनी पड़ेगी।’’ अमेठी के परबुदुवारा में इंस्टीट्ïयूट ऑफ होटल मैनेजमेंट संस्थान के लिए पांच एकड़ भूमि की दरकार है। तो टेक्सटाइल कंपनी एस.कुमार रायबरेली में मिल लगाने के लिए 3०० एकड़ जमीन तलाश रही है। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने डलमऊ में पर्यटकों के लिए 1.83 करोड़ व राज्य के ‘सारस’ अतिथि-गृह के उच्चीकरण हेतु 4.9० करोड़ की धनराशि मुहैया कराई। पर इसमें भी अभी कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है।

केंद्रीय सडक़ मंत्रालय द्वारा रायबरेली, अमेठी सडक़ों के लिए करीब 2०० करोड़ दिये जा चुके हैं। इससे राज्य की 196 में से रायबरेली की 98 सडक़ों में से तीन-तीन राज्य और मुख्य जिला मार्ग, 1० अन्य जिला मार्ग और 82 ग्रामीण मार्गों के चौड़ी व सुदृढ़ीकरण का प्रस्ताव है। लेकिन इन पर काम करने से पहले राज्य सरकार ने विशेष पैकेज के मार्फत राज्य की 3662.26 किमी सडक़ों के चौड़ीकरण और सुदृढ़ीकरण के लिए 2178 करोड़ रूपयों की धनराशि की जरूरत बताते हुए ब्यौरा पेश कर दिया। पर जिला स्तरीय सतर्कता अनुश्रवण समिति की बैठक में सोनिया गांधी द्वारा केंद्रीय सडक़ निधि, प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना की समीक्षा के दौरान जिले के अफसरों के कामकाज से खासी असंतुष्टï दिखीं। केंद्र की महात्वाकांक्षी राष्टï्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) के क्रियान्वयन को लेकर रायबरेली के तमाम लोगों ने सोनिया गांधी से शिकायत की। पर तत्कालीन जिलाधिकारी डीएन दुबे ने असत्य करार देते हुए कहा, ‘‘शिकायतकर्ता नौगवां मजरे मेरामऊ गांव का राजेंद्र कुमार चौरसिया और सर्वेश स्वयं जॉब कार्ड धारक नहीं है। जबकि देशराज जॉब कार्डधारक तो है, लेकिन प्रधान और ग्राम विकास अधिकारी ने बताया कि उसने कभी काम की मांग ही नहीं की। गांव के 172 जॉब कार्डधारकों में से 122 को रोजगार मिल चुका है।’’

केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सैफुद्दीन सोज ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इन्दिरा गांधी के जमाने में बनी शारदा सहायक नहर के ‘रि-मॉडलिंग’ के लिए 269 करोड़ रूपये मुहैया कराने तथा परियोजना से लखीमपुर, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, प्रतापगढ़, हरदोई, जौनपुर, इलाहाबाद, वाराणसी जिलों के किसानों को पर्याप्त पानी मिलने का सपना भी दिखाया था। पर सोनिया गांधी की पिछली यात्रा के दौरान किसानों ने नहर पर कोई काम न होने के बावत उनसे शिकायत की।

अमेठी और रायबरेली की परियोजनाओं को अंजाम देने में विकास बनाम सियासत की जद्दोजहद अहम है। क्योंकि जब मुलायम सिंह और मायावती से कांग्रेस के मधुर रिश्ते परवान चढ़ रहे होते हैं, तो वहां की परियोजनाओं को आनन-फानन में निपटाने की तेजी राज्य सरकार में दिखती है। मुलायम सरकार के दौरान कई केंद्रीय मंत्रियों ने अमेठी, रायबरेली की कई परियोजनाओं के बावत साझा प्रेस कांफ्रेंस करके यह जताया था। तो मायावती ने अपनी सरकार के शुरूआती दौर में अरबों की लागत वाली सात प्रमुख योजनाओं को हरी झंडी देकर केंद्र से अपने मधुर रिश्तों का इजहार किया था। कैबिनेट से स्वीकृति के बाद औद्योगिक विकास आयुक्त (आईडीसी) द्वारा यूपीएसआईडीसी के प्रबंध निदेशक को भेजे गये पत्र में सातों योजनाओं के लिए शीघ्र भूमि उपलब्ध कराने के निर्देश भी दिए थे। आईडीसी के पत्र के मुताबिक, ‘‘प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव स्वयं समय-समय पर समीक्षा कर रहे हैं। इन योजनाओं के क्रियान्वित होने के बाद रायबरेली और अमेठी चमक जाएगा।’’ इस पत्र में नेशनल इंस्टीट्ïयूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजूकेशन एंड रिसर्च सेंटर के लिए त्रिसुंडी में 1०० एकड़ भूमि अधिग्रहीत करने का निर्देश भी था। लेकिन आज राज्य सरकार के आला हुक्मरान इनकी अनदेखी करते हुए साफ दिखने लगे हैं। तभी तो अमेठी संसदीय क्षेत्र के जगदीशपुर में 3241 करोड़ की लागत वाली पेपर मिल का प्रोजेक्ट भूमि न मिलने की वजह से अभी फाइलों से बाहर नहीं निकल पाया है। बीते साल 6 जून को सुल्तानपुर जनपद में नरेगा की शुरूआत 41 करोड़ रूपये से हुई। जिला प्रशासन ने 23895० जॉब कार्ड देने का दावा किया। पर खुद राहुल गांधी ने सैकड़ों जगह जॉब कार्ड नहीं बनने तथा नहरों की सफाई मशीन से कराने की शिकायत पाई। गौरतलब है कि सुल्तानपुर जनपद में ही राहुल गांधी का अमेठी संसदीय क्षेत्र आता है। नरेगा योजना के लिहाज से देखें तो राहुल का अपना क्षेत्र ही प्रदेश में 38वें पायदान पर है। प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना में हुई अनियमितताओं की जांच खुद निगरानी समिति की बैठक में कराने की राहुल गांधी ने सिफारिश की है। अमेठी के कई इलाकों में ग्रामीण विद्युतीकरण का काम अधूरा है जबकि परियोजना का दूसरा चरण शुरू होने जा रहा है।

-योगेश मिश्र

साथ में अमेठी से संदीप अस्थाना

नोट:-रवीन्द्र जी, निराला राहुल गांधी और सोनिया गांधी द्वारा शिलान्यास की हुई कई परियोजनाओं की फोटो भेजेंगे। इनमें उसे लगाया जा सकता है।

(योगेश मिश्र)

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