जो कंपनी पिछले पांच सालों में 165 किमी लंबे ताज एक्सप्रेस वे के निर्माण की दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पायी। उसे राज्य सरकार ने 1०47 किमी लंबे बलिया से नोएडा तक के गंगा एक्सप्रेस वे निर्माण का काम दे दिया है। कंपनी को चार साल में इसे पूरा करना है।
इंटरनेट पर उपल_x008e_ध जेपी की बैलेन्स शीट के मुताबिक इसकी कुल परिसंप_x009e_िायां 11196 करोड़ की हैं पर राज्य सरकार ने इस कंपनी पर मेहरबानी दिखाते हुए 3० हजार करोड़ रूपये की महत्वाकांक्षी योजना सौंप दी है।
कंपनी परियोजना पाने के लिये ‘टेक्रिकल बिड’ और ‘फाइनेन्शियल बिड’ में किस तरह खरी उतरी इसका जवाब राज्य सरकार के पास इसलिये नहीं था क्योंकि एक्सप्रेस हाईवे बनाने वाली कई विदेशी कंपनियों ने भी निविदा की मंशा जतायी थी। वे खरे नहीं उतरे। हालांकि कंपनी के चेयरमैन जेपी गौर इसका बहुत माकूल उ_x009e_ार ‘आउटलुक’ से बातचीत में इस प्रकार देते हैं, ‘‘ताज कॉरिडोर योजना बांके बिहारी जी की कृपा से हमें मिली थी। यह भी उन्हीं की मर्जी से मिली है।’’
मुख्यमंत्री मायावती के बीते जन्मदिन पर राज्य के लोगों को बतौर सौगात दी गयी गंगा एक्सप्रेस वे परियोजना, कैबिनेट सेके्रेटरी शशांक शेखर सिंह के मुताबिक, ‘‘देश की अब तक की सबसे महत्वाकांक्षी सडक़ परियोजना के साथ-साथ इन्फ्रास्ट्रक्चर की भी सबसे बड़ी परियोजना है।’’ यह बात उन्होंने मायावती के जन्मदिन के अवसर पर मुख्यमंत्री की विशेषताएं गिनाने के साथ ही कही थी। बलिया से नोएडा तक 1०47 किमी की यह परियोजना जिस कंपनी को बीते जनवरी माह में हासिल हुई, इसका लोगों को बहुत पहले से ही आभास था। बीते 1० दिसंबर को केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्रालय के सामने लायी गयी इस परियोजना की निविदा की तिथि 13 जनवरी तय की गयी थी। वह भी तब, जब निविदा में भाग लेने वाली कई विदेशी कंपनियों ने योजना की डीपीआर समझने के लिए दिये गये समय को उपयुक्त नहीं मानते हुये उसे बढ़ाने की राज्य सरकार से गुजारिश की थी। लेकिन यह करना सरकार के लिए पता नहीं क्यों संभव नहीं हुआ। प्री-क्वालीफाइंग निविदा में 14 कंपनियां शरीक हुईं थीं। जिनमें 5 विदेशी बड़ी निर्माण कंपनियां-मलेशिया की प्लस एक्सप्रेस वे, लिग्टन इंडिया, सांग-यंग एंड यूगरेज और एसएनसी लवालिन प्रमुख थीं पर मलेशिया, दुबई और सऊदी अरब में एक्सप्रेस-वे का निर्माण कर चुकीं कंपनियों को दरकिनार कर जिस कंपनी को यह काम देने की पहल हुई, उसके पास भवन निर्माण का अनुभव तो है पर सडक़ निर्माण का नहीं। निविदा में शिरकत करने वाली भारी भरकम भारतीय कंपनियां रिलायंस एनर्जी, जेपी, गल्फार-पीएनसी (जेवी), जूम डेवलपर्स, जीएमआर, यूनिटेक और गमॉन को भी अनदेखा कर दिया गया। अपने पिछले कार्यकाल में भी मायावती ने इसी कंपनी को उस समय की महत्वाकांक्षी 165 किमी की ताज एक्सप्रेस परियोजना सौंपी थी पर कंपनी कुछ कर नहीं पायी। गंगा एक्सपरेस वे का काम लिने के बाद से जात एक्सप्रेस वे की खातिर जमीन अधिग्रहीत करने के लिये धारा-6 का प्रकाशन शुरू हो गया है। सूत्रों की मानें तो, ‘‘इस मामले में दायर याचिका में राज्य सरकार ने कहा कि हाईकोर्ट के सेवानिवृ_x009e_ा न्यायाधीश द्वारा जांच की जा चुकी है। कोई अनियमितता नहीं मिली। निर्माण आदि के लिये ग्लोबल टेंडर मांगे गये थे।’’
जिस तरह सरकार पांच साल पहले जेपी एसोसिएट्ïस को ताज एक्सप्रेस वे देने के लिए मेहरबान थी। उससे अधिक मेहरबान इस बार गंगा एक्सप्रेस वे में वह दिखती है। पर यह कंपनी इतनी बड़ी परियोजना को पूरा करने में आर्थिक रूप से सक्षम नहीं दिखती। शेयर मार्केट के भरोसेमंद सूत्र के मुताबिक, ‘‘धनराशि इकट्ïठा करने के लिए यह कंपनी अब पुराने पावर प्रोजेक्ट्ïस के मार्फत आईपीओ लाने की तैयारी कर रही है।’’ यही नहीं पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, वन्य संरक्षण अधिनियम तथा वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम, उद्योगों की स्थापना एवं परिचालन हेतु 14 नवंबर 2००6 को जारी पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की अधिसूचना के कई प्राविधानों की भी अनदेखी की जा रही है। विन्ध्य इनवायरमेंटल सोसाइटी के प्रदीप शुक्ल बताते हैं, ‘‘उप्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा लोक सुनवाई के दौरान सूचना अधिकार के तहत अभिलेख उपल_x008e_ध कराने के 27 जुलाई, 2००7 के आवेदन-पत्र पर अभी तक विचार नहीं हुआ।’’ सरकार भले ही कह रही हो कि गंगा एक्सप्रेस वे के मार्ग में संरक्षित पुरातात्विक इमारतें नहीं आतीं पर सूचना अधिकार के तहत 21 सितंबर 2००7 को पुरातत्व विभाग द्वारा दिये गये जवाब में साफ तौर पर लिखा है, ‘‘कानपुर में जाजमऊ का टीला, राजा टिकैत राय शिव मंदिर, राजा टिकैत राय की बारादरी, बिठूर का वाल्मीकि आश्रम और नाना फडऩवीस का टीला ही नहीं, मिर्जापुर स्थित चुनार का किला, सारनाथ मंदिर, वाराणसी का ब_x009e_ाीस खंभा, कर्मदेश्वर महादेव मंदिर, लहरतारा तालाब और गुरूधाम मंदिर संरक्षित इमारतों की सूची में आते हैं।’’ यही नहीं, यहां 1,5०,००० वृक्ष ऐसे हैं, जिन्हें काटे बिना परियोजना पूरी नहीं हो सकती। परियोजना की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘3० हजार वृक्षों के संभावित कटान के अतिरिक्त पारिस्थितिक स्रोतों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।’’ परियोजना को अमली जामा पहनाने के लिए यह झूठ भी बोला गया कि पूरे क्षेत्र में वनस्पतियां, लुप्तप्राय वन्य जीव प्रजातियां नहीं हैं। जबकि हकीकत यह है कि इस इलाके में शीशम, महुआ, जामुन, बरगद, अर्जुन, खजूर इत्यादि पेड़ों के साथ-साथ नीलगाय, सियार, लोमड़ी, खरगोश, चिंकारा, गौरैया और कौए, मोर तथा लुप्तप्राय पक्षी धनेश भी मिलते हैं।
तकरीबन 19 जिलों की 36 तहसीलों को लाभ पहुंचाने वाली इस परियोजना में दिल्ली से पूर्वी उप्र के अंतिम छोर बलिया तक की दूरी दस घंटे में तय करने का दावा राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है और कहा जा रहा है, ‘‘अत्याधुनिक गंगा एक्सप्रेस वे परियोजना प्रदेश में गंगा नदी के किनारे लगभग 1००० किमी में बसे उन लोगों के लिए नई किस्मत लेकर आएगी जो अब तक दुर्भाग्य से विकास से अछूते रह गये हैं।’’ इसमें 4०,००० करोड़ का निवेश सार्वजनिक-निजी साझेदारी से होगा तथा क्षेत्रीय विकास में 8०,००० करोड़ खर्च होना है। 1०,००० एकड़ में उद्योग लगाये जायेंगे। सवाल यह उठता है कि गंगा के किनारे बसे औद्योगिक शहर कानपुर से निकलने वाले कचरे ने कानपुर के पहले और बाद में गंगा का प्रदूषण स्तर जितना बढ़ाया है, उसे ही अगर आधार माना जाये तो इस एक्सप्रेस वे पर बसने वाले चार पॉकेट्ïस गंगा के प्रदूषण को कहां ले जायेंगे? भाजपा नेता ओंम प्रकाश सिंह कहते हैं, ‘‘यह गंगा की संस्कृति और पवित्रता नष्टï करने की साजिश है।’’ यही नहीं इस इलाके में 35 आईटीआई, 2० पॉलीटेक्रिक, 1० इंजीनियरिंग कालेज, 5 मेडिकल कालेज तथा पैरा मेडिकल स्कूल खोलने के लिये कृषि योग्य जमीन का उपयोग किया जायेगा और खेती पर गाज गिरेगी। राज्य सरकार ने इस परियोजना को पूरा करने में रोड़े न आए इसके लिए प्रशंसनीय पुनर्वास नीति बनायी है पर चार साल में पूरा करने का लक्ष्य यह बताता है कि परियोजना सरकार ने अपनी उम्र के हिसाब से तय की है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने कहा है, ‘‘गंगा एक्सप्रेस वे के निर्माण का काम जिस प्रकार एक ग्रुप विशेष को दिया है उससे यह साफ हो गया है कि इसमें करोड़ों का घोटाला हुआ है।’’ जो कंपनी पांच वर्षों में एक किमी सडक़ भी अपनी पुरानी महत्वाकांक्षी ताज एक्सप्रेस वे योजना की न बना सकी हो, सडक़ बनाने का तकनीकी अनुभव न हो उससे हर रोज एक किमी सडक़ बनाने की उम्मीद करना सियासी हलकों को भले ही बेमानी न लगे पर सडक़ बनाने का हुनर जानने वाले इसे बेहद गैर जिम्मेदाराना लक्ष्य बताते हैं। हालांकि कंपनी के सर्वेसर्वा जेपी गौड़ ‘आउटलुक’ से बातचीत में इसका जवाब कुछ इस तरह देते हैं, ‘‘मैं एक व्यक्ति के साथ संस्था हूं। जेपी परिवार में हर तरह के लोग शामिल हैं। जिसमें श्रेष्ठï इंजीनियर भी हैं। गंगा एक्सप्रेस वे योजना हमारे दक्ष इंजीनियर पूरा करेंगे जो एक मिशाल बनेगी। हमने समाज निर्माण का संकल्प लिया है जो सेवा एवं गुणव_x009e_ाा पर आधारित है। इस पावन कार्य को स्वयं गंगा जी पूरा करवाना चाहती हैं।’’ लेकिन इस बात का जवाब क्या है कि जब पर्यावरण, राष्टï्रीय राजमार्ग प्राधिकरण सहित केंद्रीय विभागों की आप_x009e_िायां भी अभी पूरी तरह से खत्म नहीं करवायी जा सकी हैं। इतना ही नहीं, रात 11 बजे आनन-फानन में जनवरी महीने में औद्योगिक विकास आयुक्त रहे अतुल गुप्ता की ओर से बुलायी गयी प्रेस कान्फ्रेन्स में संवाददाताओं के तमाम कुरेदने के बाद भी यह नहीं बता पाये कि फाइनेन्शियल बिड किसके पक्ष में हुई है। यह बताती है कि सरकार अपनों को उपकृत करने की कोशिश में बहुत कुछ दबाये रखना चाहती थी। श्री गुप्ता ने परियोजना के लिए न्यूनतम बोली 293 करोड़ रूपये की बात भले ही रात को कही हो पर जेपी एसोसिएट्ïस के कार्यकारी अध्यक्ष मनोज गौड़ सुबह ही मीडिया को बता चुके थे, ‘‘निजी क्षेत्र के इस सबसे बड़े प्रोजेक्ट का ठेका हमें मिल चुका है। हमारी बोली सबसे कम 293 करोड़ रूपये की है।’’ यह भी कम विस्मयकारी नहीं है कि जेपी एसोसिएट्ïस को लागत की महज एक प्रतिशत राशि गारंटी के रूप में सरकार के पास जमा करना होगा जबकि निर्माता कंपनी 35 वर्षों तक टोल टैक्स वसूलने का रखेगी। पर हकीकत यह है कि परियोजना चाहे जितनी भी मुफीद हो लेकिन इसको देने के लिए जिस तरह की तेजी सरकार में देखी जा रही है। उससे साफ है कि इस पर कभी न कभी, कहीं न कहीं ग्रहण जरूर लगेगा।
-योगेश मिश्र
आगरा से मनीष तिवारी एवं देहरादून से राजकुमार शर्मा
नोट:-रवीन्द्र जी, जेपी गौड़ से राजकुमार शर्मा ने बात की है। इसलिए उनका नाम दे रहा हूं। इसमें परियोजना का उदï्ïघाटन करते समय की फोटो लगायी जा सकती है।
(योगेश मिश्र)
इंटरनेट पर उपल_x008e_ध जेपी की बैलेन्स शीट के मुताबिक इसकी कुल परिसंप_x009e_िायां 11196 करोड़ की हैं पर राज्य सरकार ने इस कंपनी पर मेहरबानी दिखाते हुए 3० हजार करोड़ रूपये की महत्वाकांक्षी योजना सौंप दी है।
कंपनी परियोजना पाने के लिये ‘टेक्रिकल बिड’ और ‘फाइनेन्शियल बिड’ में किस तरह खरी उतरी इसका जवाब राज्य सरकार के पास इसलिये नहीं था क्योंकि एक्सप्रेस हाईवे बनाने वाली कई विदेशी कंपनियों ने भी निविदा की मंशा जतायी थी। वे खरे नहीं उतरे। हालांकि कंपनी के चेयरमैन जेपी गौर इसका बहुत माकूल उ_x009e_ार ‘आउटलुक’ से बातचीत में इस प्रकार देते हैं, ‘‘ताज कॉरिडोर योजना बांके बिहारी जी की कृपा से हमें मिली थी। यह भी उन्हीं की मर्जी से मिली है।’’
मुख्यमंत्री मायावती के बीते जन्मदिन पर राज्य के लोगों को बतौर सौगात दी गयी गंगा एक्सप्रेस वे परियोजना, कैबिनेट सेके्रेटरी शशांक शेखर सिंह के मुताबिक, ‘‘देश की अब तक की सबसे महत्वाकांक्षी सडक़ परियोजना के साथ-साथ इन्फ्रास्ट्रक्चर की भी सबसे बड़ी परियोजना है।’’ यह बात उन्होंने मायावती के जन्मदिन के अवसर पर मुख्यमंत्री की विशेषताएं गिनाने के साथ ही कही थी। बलिया से नोएडा तक 1०47 किमी की यह परियोजना जिस कंपनी को बीते जनवरी माह में हासिल हुई, इसका लोगों को बहुत पहले से ही आभास था। बीते 1० दिसंबर को केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्रालय के सामने लायी गयी इस परियोजना की निविदा की तिथि 13 जनवरी तय की गयी थी। वह भी तब, जब निविदा में भाग लेने वाली कई विदेशी कंपनियों ने योजना की डीपीआर समझने के लिए दिये गये समय को उपयुक्त नहीं मानते हुये उसे बढ़ाने की राज्य सरकार से गुजारिश की थी। लेकिन यह करना सरकार के लिए पता नहीं क्यों संभव नहीं हुआ। प्री-क्वालीफाइंग निविदा में 14 कंपनियां शरीक हुईं थीं। जिनमें 5 विदेशी बड़ी निर्माण कंपनियां-मलेशिया की प्लस एक्सप्रेस वे, लिग्टन इंडिया, सांग-यंग एंड यूगरेज और एसएनसी लवालिन प्रमुख थीं पर मलेशिया, दुबई और सऊदी अरब में एक्सप्रेस-वे का निर्माण कर चुकीं कंपनियों को दरकिनार कर जिस कंपनी को यह काम देने की पहल हुई, उसके पास भवन निर्माण का अनुभव तो है पर सडक़ निर्माण का नहीं। निविदा में शिरकत करने वाली भारी भरकम भारतीय कंपनियां रिलायंस एनर्जी, जेपी, गल्फार-पीएनसी (जेवी), जूम डेवलपर्स, जीएमआर, यूनिटेक और गमॉन को भी अनदेखा कर दिया गया। अपने पिछले कार्यकाल में भी मायावती ने इसी कंपनी को उस समय की महत्वाकांक्षी 165 किमी की ताज एक्सप्रेस परियोजना सौंपी थी पर कंपनी कुछ कर नहीं पायी। गंगा एक्सपरेस वे का काम लिने के बाद से जात एक्सप्रेस वे की खातिर जमीन अधिग्रहीत करने के लिये धारा-6 का प्रकाशन शुरू हो गया है। सूत्रों की मानें तो, ‘‘इस मामले में दायर याचिका में राज्य सरकार ने कहा कि हाईकोर्ट के सेवानिवृ_x009e_ा न्यायाधीश द्वारा जांच की जा चुकी है। कोई अनियमितता नहीं मिली। निर्माण आदि के लिये ग्लोबल टेंडर मांगे गये थे।’’
जिस तरह सरकार पांच साल पहले जेपी एसोसिएट्ïस को ताज एक्सप्रेस वे देने के लिए मेहरबान थी। उससे अधिक मेहरबान इस बार गंगा एक्सप्रेस वे में वह दिखती है। पर यह कंपनी इतनी बड़ी परियोजना को पूरा करने में आर्थिक रूप से सक्षम नहीं दिखती। शेयर मार्केट के भरोसेमंद सूत्र के मुताबिक, ‘‘धनराशि इकट्ïठा करने के लिए यह कंपनी अब पुराने पावर प्रोजेक्ट्ïस के मार्फत आईपीओ लाने की तैयारी कर रही है।’’ यही नहीं पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, वन्य संरक्षण अधिनियम तथा वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम, उद्योगों की स्थापना एवं परिचालन हेतु 14 नवंबर 2००6 को जारी पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की अधिसूचना के कई प्राविधानों की भी अनदेखी की जा रही है। विन्ध्य इनवायरमेंटल सोसाइटी के प्रदीप शुक्ल बताते हैं, ‘‘उप्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा लोक सुनवाई के दौरान सूचना अधिकार के तहत अभिलेख उपल_x008e_ध कराने के 27 जुलाई, 2००7 के आवेदन-पत्र पर अभी तक विचार नहीं हुआ।’’ सरकार भले ही कह रही हो कि गंगा एक्सप्रेस वे के मार्ग में संरक्षित पुरातात्विक इमारतें नहीं आतीं पर सूचना अधिकार के तहत 21 सितंबर 2००7 को पुरातत्व विभाग द्वारा दिये गये जवाब में साफ तौर पर लिखा है, ‘‘कानपुर में जाजमऊ का टीला, राजा टिकैत राय शिव मंदिर, राजा टिकैत राय की बारादरी, बिठूर का वाल्मीकि आश्रम और नाना फडऩवीस का टीला ही नहीं, मिर्जापुर स्थित चुनार का किला, सारनाथ मंदिर, वाराणसी का ब_x009e_ाीस खंभा, कर्मदेश्वर महादेव मंदिर, लहरतारा तालाब और गुरूधाम मंदिर संरक्षित इमारतों की सूची में आते हैं।’’ यही नहीं, यहां 1,5०,००० वृक्ष ऐसे हैं, जिन्हें काटे बिना परियोजना पूरी नहीं हो सकती। परियोजना की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘3० हजार वृक्षों के संभावित कटान के अतिरिक्त पारिस्थितिक स्रोतों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।’’ परियोजना को अमली जामा पहनाने के लिए यह झूठ भी बोला गया कि पूरे क्षेत्र में वनस्पतियां, लुप्तप्राय वन्य जीव प्रजातियां नहीं हैं। जबकि हकीकत यह है कि इस इलाके में शीशम, महुआ, जामुन, बरगद, अर्जुन, खजूर इत्यादि पेड़ों के साथ-साथ नीलगाय, सियार, लोमड़ी, खरगोश, चिंकारा, गौरैया और कौए, मोर तथा लुप्तप्राय पक्षी धनेश भी मिलते हैं।
तकरीबन 19 जिलों की 36 तहसीलों को लाभ पहुंचाने वाली इस परियोजना में दिल्ली से पूर्वी उप्र के अंतिम छोर बलिया तक की दूरी दस घंटे में तय करने का दावा राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है और कहा जा रहा है, ‘‘अत्याधुनिक गंगा एक्सप्रेस वे परियोजना प्रदेश में गंगा नदी के किनारे लगभग 1००० किमी में बसे उन लोगों के लिए नई किस्मत लेकर आएगी जो अब तक दुर्भाग्य से विकास से अछूते रह गये हैं।’’ इसमें 4०,००० करोड़ का निवेश सार्वजनिक-निजी साझेदारी से होगा तथा क्षेत्रीय विकास में 8०,००० करोड़ खर्च होना है। 1०,००० एकड़ में उद्योग लगाये जायेंगे। सवाल यह उठता है कि गंगा के किनारे बसे औद्योगिक शहर कानपुर से निकलने वाले कचरे ने कानपुर के पहले और बाद में गंगा का प्रदूषण स्तर जितना बढ़ाया है, उसे ही अगर आधार माना जाये तो इस एक्सप्रेस वे पर बसने वाले चार पॉकेट्ïस गंगा के प्रदूषण को कहां ले जायेंगे? भाजपा नेता ओंम प्रकाश सिंह कहते हैं, ‘‘यह गंगा की संस्कृति और पवित्रता नष्टï करने की साजिश है।’’ यही नहीं इस इलाके में 35 आईटीआई, 2० पॉलीटेक्रिक, 1० इंजीनियरिंग कालेज, 5 मेडिकल कालेज तथा पैरा मेडिकल स्कूल खोलने के लिये कृषि योग्य जमीन का उपयोग किया जायेगा और खेती पर गाज गिरेगी। राज्य सरकार ने इस परियोजना को पूरा करने में रोड़े न आए इसके लिए प्रशंसनीय पुनर्वास नीति बनायी है पर चार साल में पूरा करने का लक्ष्य यह बताता है कि परियोजना सरकार ने अपनी उम्र के हिसाब से तय की है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने कहा है, ‘‘गंगा एक्सप्रेस वे के निर्माण का काम जिस प्रकार एक ग्रुप विशेष को दिया है उससे यह साफ हो गया है कि इसमें करोड़ों का घोटाला हुआ है।’’ जो कंपनी पांच वर्षों में एक किमी सडक़ भी अपनी पुरानी महत्वाकांक्षी ताज एक्सप्रेस वे योजना की न बना सकी हो, सडक़ बनाने का तकनीकी अनुभव न हो उससे हर रोज एक किमी सडक़ बनाने की उम्मीद करना सियासी हलकों को भले ही बेमानी न लगे पर सडक़ बनाने का हुनर जानने वाले इसे बेहद गैर जिम्मेदाराना लक्ष्य बताते हैं। हालांकि कंपनी के सर्वेसर्वा जेपी गौड़ ‘आउटलुक’ से बातचीत में इसका जवाब कुछ इस तरह देते हैं, ‘‘मैं एक व्यक्ति के साथ संस्था हूं। जेपी परिवार में हर तरह के लोग शामिल हैं। जिसमें श्रेष्ठï इंजीनियर भी हैं। गंगा एक्सप्रेस वे योजना हमारे दक्ष इंजीनियर पूरा करेंगे जो एक मिशाल बनेगी। हमने समाज निर्माण का संकल्प लिया है जो सेवा एवं गुणव_x009e_ाा पर आधारित है। इस पावन कार्य को स्वयं गंगा जी पूरा करवाना चाहती हैं।’’ लेकिन इस बात का जवाब क्या है कि जब पर्यावरण, राष्टï्रीय राजमार्ग प्राधिकरण सहित केंद्रीय विभागों की आप_x009e_िायां भी अभी पूरी तरह से खत्म नहीं करवायी जा सकी हैं। इतना ही नहीं, रात 11 बजे आनन-फानन में जनवरी महीने में औद्योगिक विकास आयुक्त रहे अतुल गुप्ता की ओर से बुलायी गयी प्रेस कान्फ्रेन्स में संवाददाताओं के तमाम कुरेदने के बाद भी यह नहीं बता पाये कि फाइनेन्शियल बिड किसके पक्ष में हुई है। यह बताती है कि सरकार अपनों को उपकृत करने की कोशिश में बहुत कुछ दबाये रखना चाहती थी। श्री गुप्ता ने परियोजना के लिए न्यूनतम बोली 293 करोड़ रूपये की बात भले ही रात को कही हो पर जेपी एसोसिएट्ïस के कार्यकारी अध्यक्ष मनोज गौड़ सुबह ही मीडिया को बता चुके थे, ‘‘निजी क्षेत्र के इस सबसे बड़े प्रोजेक्ट का ठेका हमें मिल चुका है। हमारी बोली सबसे कम 293 करोड़ रूपये की है।’’ यह भी कम विस्मयकारी नहीं है कि जेपी एसोसिएट्ïस को लागत की महज एक प्रतिशत राशि गारंटी के रूप में सरकार के पास जमा करना होगा जबकि निर्माता कंपनी 35 वर्षों तक टोल टैक्स वसूलने का रखेगी। पर हकीकत यह है कि परियोजना चाहे जितनी भी मुफीद हो लेकिन इसको देने के लिए जिस तरह की तेजी सरकार में देखी जा रही है। उससे साफ है कि इस पर कभी न कभी, कहीं न कहीं ग्रहण जरूर लगेगा।
-योगेश मिश्र
आगरा से मनीष तिवारी एवं देहरादून से राजकुमार शर्मा
नोट:-रवीन्द्र जी, जेपी गौड़ से राजकुमार शर्मा ने बात की है। इसलिए उनका नाम दे रहा हूं। इसमें परियोजना का उदï्ïघाटन करते समय की फोटो लगायी जा सकती है।
(योगेश मिश्र)