कानपुर, 18 सितम्बर- देश की शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी- ‘इस देश को भगवान भी नहीं सुधार सकता’ गंगा सफाई अभियान पर सौ फीसदी सटीक बैठती है। तभी तो करोड़ों खर्च होने के बावजूद गंगा दिन-ब-दिन और मैली होती जा रही है। सीवेज और टेनरियों ने मिलकर भगीरथ के तप को मिटï्टी में मिला दिया है। भारी प्रदूषण के चलते कानपुर व आसपास के जिलों में गंगा में आक्सीजन की मात्रा घटकर शून्य तक जा पहुंची है। जिसके चलते पानी में रहने वाली जीव-जन्तुओं की कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं।
गौरतलब है कि शहर में प्रतिदिन सीवेज और टेनरियों से 42.1 करोड़ लीटर प्रदूषित जल निकलता है। इसमें से केवल 9.6 करोड़ लीटर जल को ही शोधित करने की क्षमता उपलब्ध है। शेष 32.7 करोड़ लीटर प्रदूषित जल सीधे गंगा में प्रवाहित हो रहा है। उच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद शहर के 21 नाले आज भी सीधे गंगा में खुलकर अदालती निर्देश को मुंह चिढ़ा रहे हैं। प्रशासनिक उपेक्षा की इससे बड़ी नजीर और क्या होगी कि जिला जेल में रह रहे हजारों कैदियों का मलमूत्र सीधे गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है। जबकि ठीक उसी के बगल में बाबा रामदेव और शीर्ष प्रशासन के लोग गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने का रिहर्सल करने में लगे हैं।
तकरीबन आधा दर्जन चमड़ा उद्योग वाले जाजमऊ इलाके इलाके में क्रमश: 13 करोड़ लीटर, 3.6 करोड़ लीटर व 50 लाख लीटर पानी शोधित करने के संयंत्र लगे हैं। इन संयंत्रों से केवल 9.6 करोड़ लीटर पानी ही शोधित हो पाता है। प्रदूषण के सवाल पर प्रदूषण नियंत्रण विभाग के अधिकारी पैसे की कमी का रोना रोने लगते हैं। हालांकि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के अभियान में जुटे योग गुरू रामदेव ने यह कहकर अधिकारियों को सन्न कर दिया कि ‘या तो कोठियां बनवा लो या फिर ट्रीटमेंट प्लांट’।
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी का गंगा एक्शन प्लान केवल फाइलों पर चलता दिख रहा है। हाईकोर्ट के निर्देश भी रदïï्दी की टोकरी के हवाले हो गये हैं। ऐसे में पतित पावनी गंगा प्रदूषण मुक्त होगी यह भरोसा नहीं रह गया है। कम से कम शहरवासी तो योग गुरू रामदेव की अगुवाई में चल रहे अभियान को आयोजन भर मान रहे हैं। दरअसल, जिन दिनों मुद्राराक्षस बन गयी टेनरी वालों पर हाईकोर्ट की चाबुक चली तो उन्होंने प्रदूषित पानी, जिसमें क्रोमियम जैसे घातक रसायन होते हैं, को रिवर्स बोरिंग के मार्फत जमीन के अंदर प्रवाहित करना शुरू कर दिया। नतीजतन, शहर के तमाम इलाकों में पीने के पानी में क्रोमियम का असर दिखने लगा। आज शहर के सैकड़ों हैंडपंपों पर, पानी पीने योग्य नहीं है, की चेतावनी लगी हुई है। रिवर्स बोरिंग की बात पूछे जाने पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी ‘पता नहीं’ कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं। ऐसे में कौन और कैसे पतित पावनी गंगा को प्रदूषण से मुक्ति दिलायेगा ?
कमलेश त्रिपाठी
गौरतलब है कि शहर में प्रतिदिन सीवेज और टेनरियों से 42.1 करोड़ लीटर प्रदूषित जल निकलता है। इसमें से केवल 9.6 करोड़ लीटर जल को ही शोधित करने की क्षमता उपलब्ध है। शेष 32.7 करोड़ लीटर प्रदूषित जल सीधे गंगा में प्रवाहित हो रहा है। उच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद शहर के 21 नाले आज भी सीधे गंगा में खुलकर अदालती निर्देश को मुंह चिढ़ा रहे हैं। प्रशासनिक उपेक्षा की इससे बड़ी नजीर और क्या होगी कि जिला जेल में रह रहे हजारों कैदियों का मलमूत्र सीधे गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है। जबकि ठीक उसी के बगल में बाबा रामदेव और शीर्ष प्रशासन के लोग गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने का रिहर्सल करने में लगे हैं।
तकरीबन आधा दर्जन चमड़ा उद्योग वाले जाजमऊ इलाके इलाके में क्रमश: 13 करोड़ लीटर, 3.6 करोड़ लीटर व 50 लाख लीटर पानी शोधित करने के संयंत्र लगे हैं। इन संयंत्रों से केवल 9.6 करोड़ लीटर पानी ही शोधित हो पाता है। प्रदूषण के सवाल पर प्रदूषण नियंत्रण विभाग के अधिकारी पैसे की कमी का रोना रोने लगते हैं। हालांकि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के अभियान में जुटे योग गुरू रामदेव ने यह कहकर अधिकारियों को सन्न कर दिया कि ‘या तो कोठियां बनवा लो या फिर ट्रीटमेंट प्लांट’।
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी का गंगा एक्शन प्लान केवल फाइलों पर चलता दिख रहा है। हाईकोर्ट के निर्देश भी रदïï्दी की टोकरी के हवाले हो गये हैं। ऐसे में पतित पावनी गंगा प्रदूषण मुक्त होगी यह भरोसा नहीं रह गया है। कम से कम शहरवासी तो योग गुरू रामदेव की अगुवाई में चल रहे अभियान को आयोजन भर मान रहे हैं। दरअसल, जिन दिनों मुद्राराक्षस बन गयी टेनरी वालों पर हाईकोर्ट की चाबुक चली तो उन्होंने प्रदूषित पानी, जिसमें क्रोमियम जैसे घातक रसायन होते हैं, को रिवर्स बोरिंग के मार्फत जमीन के अंदर प्रवाहित करना शुरू कर दिया। नतीजतन, शहर के तमाम इलाकों में पीने के पानी में क्रोमियम का असर दिखने लगा। आज शहर के सैकड़ों हैंडपंपों पर, पानी पीने योग्य नहीं है, की चेतावनी लगी हुई है। रिवर्स बोरिंग की बात पूछे जाने पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी ‘पता नहीं’ कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं। ऐसे में कौन और कैसे पतित पावनी गंगा को प्रदूषण से मुक्ति दिलायेगा ?
कमलेश त्रिपाठी