आजमगढ़, 25 सितम्बर ।
-संजरपुर और सरायमीर के साथ आजमगढ़ इन दिनों अचानक सुर्खियों में है। दिल्ली,जयपुर, अहमदाबाद, बेंगलूर, हैदराबाद, वाराणसी व गोरखपुर के बम विस्फोटों को अंजाम देने में शामिल अधिकांश आतंकी आजमगढ़ के बताये गये हैं। हैरतअंगेज तस्वीरें तब सामने आती हैं जब खंगाले जाते हैं पुलिस, एलआईयू, पीईडीटी व बैंक के रिकार्ड।
-यकीन नहीं होता है कि अंग्रेजी या कम्प्यूटर सीखने या गल्फ इंट्री में नौकरी क रने की दुआई देकर घर से निकला एक नादान बच्चा कत्लेआम में महारथ हासिल कर लेता है। सरायमीर थाना क्षेत्र अंतर्गत पडऩे वाले कस्बों व ग्रामों की कुल आबादी दो लाख के आसपास है। इसमें लगभग चार हजार की आबादी वाला संजरपुर गांव भी शामिल है। सरायमीर थाना के पुलिस रिकार्ड के अनुसार एक जनवरी 2008 से 21 सितम्बर 08 के बीच 1125 लोगों ने विदेश जाने के लिये पासपोर्ट बनवाने के क्रम में थाने को आवेदन किया। इनमें से 90 फीसदी आवेदन गल्फ कंट्री के लिये है। दूसरी ओर एलआईयू के रिर्काड के अनुसार वर्ष 2007-08 में 1200 व चालू वर्ष में अब तक 500 से अधिक लोगों को पासपोर्ट जारी कर दिया गया है। इनमे भी गल्फ कंट्री कहे जाने वालों की तादात लगभग 90 फीसदी है। इतनी बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष विदेश और वह भी गल्फ कंट्री जाने की होड़ में पुलिस और एलआईयू महकमा भले ही आश्चर्यचकित न हो लेकिन आमजन के लिये यकीनन यह हैरत की बात है।
-इसमेंसबसे बड़ी बात यह है कि मुंबई में मैन पावर की सबसे बड़ी खेप भेजने वाली कंपनी भी आजमगढ़ के लोगों की है। इसमें एक कंपनी सगड़ी तहसील के एक सेठ चलाते हैं, तो दूसरी सरायमीर क्षेत्र के सियासी दल के नेता की है।
-इसके अलावा भी आधा दर्जन लोग पूरी तरह से मुंबई स्थापित होकर मैन पावर की सप्लाई कर रहे हैं।
-दूसरी ओर सरायमीर, संजरपुर व एकदम सटे हुये फरिहा इलाके में राष्टï्रीयकृत बैंकों की कुल 4 व स्थानीय बैंकों की कुल दो अर्थात कुल जमा 6 शाखाये हैं। इसमें से एक राष्टï्रीयकृत बैंक का मासिक टर्नओवर 5 करोड़ से ज्यादा है। इस प्रकार 4 राष्टï्रीयकृत बैंकों का रकमी लेनदेन लगभग 20 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुका है। दो स्थानीय बैंकों का लेन-दे इससे अलग है।
-पुष्टï सूत्रों के अनुसार इन बैंकों के रहने के बावजूद यहां हवाला कारोबार का मासिक लेनदेन भी 25 करोड़ के आसपास है।
-इसके अलावा विदेशों से तुरंत पैसा मंगवाने वाली कंपनियां भी महीने में पाच करोड़ का व्यवसाय कर लेती हैं। इस प्रकार सरायमीर परिक्षेत्र में प्रतिमाह मनी का टर्नओवर 50 करोड़ के आंकड़े को पार कर लेता है।
(राघवेन्द्र चडï्ढा व जयप्रकाश पाण्डेय, सरायमीर, 22 सितम्बर, जागरण)
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-दिल्ली धमाकों के प्रमुख आरोपियों के गांव संजरपुर से नौजवानों का पलायन शुरू हो गया है। धमाकों के बाद से ही यह गांव पुलिस और खुफिया एजेंसियों के निशाने पर है। मुस्लिम नौजवानों को डर है कि धमाकों के नाम पर कहीं उन्हें फंसा न दिया जाये। इस बीच पीपुल्स यूनियन फार ह्यïूमन राइट्स (पीयूएचआर) के प्रतिनिधिमंडल ने संजरपुर गांव का दौरा करने के बाद बताया कि पुलिस मुठभेड़ में मारे गये और पूछताछ के नाम पर बदसलूकी कर रही है। घर की महिलाओं से अभद्र व्यवहार किया गया। संजरपुर गांव में धमाकों के बाद से ही दहशत का माहौल है। यहां के अनवारुल कुरान मदरसे में करीब तीन सौ लडक़े पढऩे आते थे। पर आज इनकी संख्या 40 रह गयी है। यहां भी पुलिस ने पूछताछ की। बाकी लडक़ों के घरवालों ने उन्हें यहां से रुखसत कर दिया है। गांव वालों का कहना है कि अगर लडक़े घर में रहे तो पुलिस उन्हें किसी न किसी धमाके में जरूर फंसा देगी।
-संजरपुर के डा. जावेद अख्तर का लडक़ा असदुल्ला कोटा में इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है। पर दिल्ली धमाकों के बाद गांव में पुलिस की दबिश से यह भी दहशत में है। संजरपुर गांव की संपन्ननता पिछले डेढ़ दशक से बढ़ी है, जिसके कारण यहां के लडक़े बाहर निकल रहे हैं। गांव में 25 फीसदी लोग खेती पर निर्भर हैं, जबकि 40 फीसदी दुबई व खाड़ी देशों में नौकरी करते हैं। 35 फीसदी लोग मुंबई व अन्य जगहों पर रोजगार में लगे हुये हैं। गांव की 75 फीसदी अर्थव्यवस्था मनीआर्डर पर निर्भर है। ऐसे में दिल्ली धमाकों के बाद गांव के लोग ज्यादा परेशान हैं।
-दिल्ली मुठभेड़ में मारे गये साजिद के भाई जाहिद ने कहा, ‘मेरे भाई की उम्र 16 साल थी और पुलिस उसे पांच साल पहले हुये धमाकों में संलिप्त बता रही है। क्या 11 साल की उम्र में ही वह आतंकवादी बन गया था।’
-दिल्ली विस्फोटों का मास्टरमाइंड माने जाने वाले आतिफ के खाते में 1409 रुपये निकले। इसी तरह अन्य लोगों के खाते में भी रकम कुछ हजार तक ही सीमित रही।
(अंबरीश कुमार, आजमगढ़, 23 सितम्बर, जनसत्ता)
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-पूछताछ में खुलासा हुआ कि मुंबई में हुई बैठक में उसने देश के कानून को गैर कानूनी करार दिया। बलिक अलकायदा के कानून पर अमल की सीख दी। सिमी न केवल जेहादी तैयार करने में जुटी है बल्कि इंडियन मुजाहिदीन से मिलकर कई शहरों में युवाओं को जेहाद के लिये भडक़ाते हैं। ऐसे ही चंद युवकों की फ ौज के रूप में इंडियन मुजाहिदीन ने जन्म लिया है। एटीएस के एक अधिकारी कहते हैं, ‘अगर आम आदमी 24 घंटे उसके साथ रह जाये तो वह भी जेहाद को जायज ठहराने लगे’। बशर और नागौरी संग लगे सिमी के कारिंदे ब्रेन वाश में माहिर है।
(आनन्द सिनहा, 27 सितम्बर, अमर उजाला)
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-देश के विभिन्न भागों में आंतकवादी घटनाओं के सिलसिले में गिरफ्तार कुछ अभियुक्तों के परिजनों ने गुरुवार को यहां विधानसभा पर धरना दिया और अपनी व्यथा सुनाई। इन लोगों ने कहा जो धमाके करता है, उसे पकड़ों पर जो बेगुनाह हैं, उन्हें न फंसाओ। जिसमें जम्मू-कश्मीर से लेकर उत्तर प्रदेश के कई जिलों के लोग शामिल हुये। यह धरना पीयूसीएल, पीयूएचआर, अयोध्या की आवाज, जर्नलिस्ट यूनियन फार सिविल सोसाइटीज, यंग जर्नलिस्ट एसोसिएशसन, इप्टा, आशा परिवार, साझी दुनिया और एनएपीएम की तरफ से आयोजित किया गया था।
-अप्रैल 2006 में महाराष्टï्र के नांदेड़, जनवरी 2008 में तमिलनाडु के तरुनेलवेल्ली जिले स्थित तेनकाशी, जून 2008 में महाराष्टï्र के गडक़री रंगायतन और अगस्त 2008 में कानपुर की घटना में हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिक संगठनों की संलिप्तता साबित हुई है, लेकिन किसी भी घटना की विवेचना गंभीरता से नहीं की गयी।
-लखनऊ, फैजाबाद और बनारस में 23 नवम्बर 2007 को हुये कचहरी बम कांड के सिलसिले में गिरफ्तार सज्जादुरहमान के पिता गुलाम कादिर ने बताया कि उनका लडक़ा सजजादुरहमान देवबंद में पढ़ता था और जिस दिन कचहरी के बम धमाके हुये, उस दिन वह देवबंद में पढ़ाई कर रहा था। हाजिरी रजिस्टर में उसकी उपस्थिति भी दर्ज है। पर पुलिस ने उसे 22 दिसम्बर 2007 को किश्तवार से उठाया, जब वह छुट्टिïयों में घर आया था। बाद में लखनऊ में उसकी गिरफ्तारी की गयी।
-रामपुर के सीआरपी कैंप में हुये बम धमाके के सिलसिले में मुरादाबाद के मिलक कामरू कस्बे में पंचर जोडऩे वाले जंग बहादुर के घर रात में पुलिस पहुंची और कहा कि साहब की गाड़ी पंचर हो गयी है, साथ चलो पंचर बनाना है। फिर वह घर ही नहीं वापस पहुंचा। दो दिन बाद घरवालों को पता चला कि पुलिस ने जंग बहादुर को रामपुर के सीआरपीएफ कैंप में 31 दिसम्बर 2007 को हुये धमाके के मामले में जेल भेज दिया है और आरोप लगाया कि वह बरेली में अपने साथियों के साथ बम विस्फोट की योजना बना रहा था। तब से वह आतंकवादी बन गया और लखनऊ जेल में बंद है। अब उसका बेटा शेर अली लखनऊ में उससे मिलने आया तो रो पड़ा कि हमारा घर तो तबाह हो गया।
-इसी तरह आजमगढ़ के मडिय़ाहू जवनपुर के मो. जहीर आलम फलाही ने बताया कि उनके भतीजे खालिद को 16 दिसम्बर 2007 को मडियाहू मार्केट से पुलिस ने उठाया और 22 दिसम्बर को उसकी गिरफ्तारी बाराबंकी रेलवे स्टेशन से दिखायी। उसे लखनऊ व फैजाबाद बम कांड से जोड़ दिया गया।
-इसी प्रकार बिजनौर के तारापुर में रहने वाले किसान अब्दुल सलाम ने अपनी आपबीती सुनाते हुये कहा कि उनका लडक़ा याकूब अपनी बीमार बेटी की दवाई लेने नगीना गया था, वहीं अचानक पुलिस ने उसे नौ जून 2007 को पकड़ लिया। बाद में पुलिस ने उसे 20 जून को चारबाग लखनऊ स्टेशन में पकड़ा दिखाया।
-इसी तरह बिजनौर के एक और किसान मेा. शफी का लडक़ा नौशाद मजदूरी करने राजस्थान के अलवर गया था, पुलिस ने उसे वहां से 20 जून को उठाया और लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन में 23 जूनको गिरफ्तार दिखाया। इनके पास से भारी मात्रा में आरडीएक्स और हथगोले बरामद दिखाये।
-इसी तरह बिजनौर के बढ़ापुर के हामिद हुसैन का लडक़ा नासिर ऋषिकेश के मुनि की रैली आश्रम में मजदूरी कर रहा था जब पुलिस ने उसे 20 जून को पकड़ा लेकिन 21 जून को उसे लखनऊ में पकड़ा गया।
(अंबरीश कुमार, आजमगढ़, 25 सितम्बर, जनसत्ता)
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-वहीं निजी मैनेजमेंट व तकनीकी संस्थानों में पढ़ रहे ऐसे छात्रों का रिकार्ड खंगाला शुरू कर दिया है जो या तो आजमगढ़ के रहने वाले हैं या फिर सिमी के वजूद वाले क्षेत्रों से हैं। बताया गया कि पकड़े गये आतंकवादियों में से एक जियाउर रहमान के पिता रहमान मूल रूप से मेरठ के हैं और पीडब्लूडी गाजियाबाद के निर्माण खंड 2 में कार्य करते थे। इसी कारण जिया का अक्सर गाजियाबाद आना-जाना रहता था। ख्ुाफिया विभाग के सूत्र बताते हैं कि जिया गाजियाबाद में कुछ लोगों से मिलता भी था। आशंका है कि जिया के रिश्ते आजमगढ़ से यहां पढऩे आये कुछ छात्रों से हो सकते हैं।
(गाजियाबाद, 24 सितम्बर, जनसत्ता)
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-दिल्ली बम विस्फोट में वांछित आतंकी निवासी शादाब एवं असदुल्ला की तलाश में दिल्ली पुलिस ने राज्य के साथ मिलकर आजमगढ़ के संजरपुर एवं सरायमीर गांव में छापे मारे। शादाब तथा असदुल्ला से जुडे लेागों के घर में कुछ सीडी, संदिग्ध दस्तावेज और बैंक की पासबुक आदि पुलिस को मिली है। दिल्ली पुलिस व एटीएस की टीम अभी आजमगढ़ में ही है और वांछित युवकों की तलाश तथा उनसे जुड़े लोगों से पूछताछ कर रही है। दूसरी तरफ तौकीर के एक नजदीकी की तलाश में एटीएस के दल ने लखीमपुर में डेरा डाला हुआ है।
-सोमवार को संजरपुर और सरायमीर में पुलिस ने असदुल्ला के चिकित्सक पिता जावेद अख्तर के चिकित्सक पिता जावेद अख्तर के घर पर दबिश दी और उनसे पूछताछ की। इसी क्रम में उनके पुत्र अब्दुल्ला अख्तर सैफुल्ला अख्तर के अलावा अजीम अहमद, डा. फकरे आलम और सलमान खान से दिल्ली बम ब्लास्ट में शामिल रहे शादाब और असदुल्ला के अन्य साथियों और उनसे जुड़े लोगों की जानकारी प्राप्त की गयी।
-उधर एटीएस ने लखनऊ के हसनगंज से आसिफ नाम के एक युवक को हिरासत में लिया है। एटीएस को उसके यहां पिछले दिनों रुके तीन युवकों की तलाश जारी है। इसमें आजमगढ़ के दो व जौनपुर का एक युवक शामिल है। इनके न मिलने पर एटीएस ने यहां से खालिद समेत तीन लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की थी।
(लखनऊ, 23 सितम्बर, जनसत्ता)
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-इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) की इस रिपोर्ट ने शासन की नींद उड़ा दी है कि मऊआइमा इन दिनों आतंकियों की पनाहगान बन रहा है। आईबी की गोपनीय रिपोर्ट में दिल्ली ब्लास्ट के तार मऊआइमा से जुडऩे की आशंका जताते हुये चेताया गया है कि आतंकी इस कस्बे से दंगा कराने की साजिश रच सकते हैं। रिपोर्ट में कई संदिग्धों का नाम भी शुमार है। आतंकी ठिकानों के लिये महफूज अम्बेडकरनगर जिला अंडरवल्र्ड से जुड़े सदस्यों के लिये अभ्यारण साबित हो रहा है। आगरा बमकांड, साबरमती एक्सप्रेस बमकांड, मुंबई बम कांड, इलाहाबाद कुंभ मेला बमकांड, अयोध्या प्रेशर कुकर बमकांड, लखनऊ बमकांड समेत दर्जन भर से अधिक आतंकी घटनाओं का तार अम्बेडकर नगर जिले से जुड़ा रहा।
(फरहत खान, आजमगढ़, 15 सितम्बर, हिन्दुस्तान)
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-इसरार अहमद इस्लाही, वसीम अहमद इस्लाही, इब्दुल रहमान इलाही, राशिद अयूब इस्लाही, अजमल अयूब इस्लाही। ये नाम ऐसे हैं जिनको आजमगढ़ वाले बड़ी इज्जत बख्शते हैं। इनकी शोहरत परदेस में भी कम नहीं है। इन सभी में इस्लाही टाइटिल कामन है। इस्लाही किसी समुदाय विशेष का परिचायक नहीं बल्कि एक स्कूल है, जिसकी पैदाइश है ये सभी शख्स। सरायमीर के पास बड़हरिया गांव के बाशिंदे इसरार अहमद मलेशिया की यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। इस्लाही मदरसा बानपारा में हैं। वही बानपारा जिसे मीडिया मुफ्ती अबुल बशर के नाम से ज्यादा जोड़ता है। बशर अहमदाबाद विस्फोटों का मुख्य अभियुक्त है।
-इसी तरह तोवा गांव में ऊंचे ओहदे पर है। अब्दुल रहमान भी ताबा गांव के हैं और रियाध में भारतीय दूतावास में हैं। राशिद अहमद का रिश्ता कोरागनी गांव में है और वह लंदन विश्वविद्यालय में प्रतिभाओं की नयी पौध तैयार कर रहे हैं। राशिद के ही अजमल अयूब मदीना विश्वविद्यालय में रिसर्च सेंटर से जुड़े हैं।
-इस्लाही मदरसे के ही इसरार अहमद न्यूटन रियाद में रिसर्च से जुड़े हैं। वह सरायमीर कस्बे के ही महुआरा गांव से ताल्लुक रखते हैं। एक स्थानीय टीचर बताते हैं कि इसरार की सिफारिश इटली तक में वजन रखती है। नियाऊम गांव के वसीम अहमद अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। इन सभी शख्सियतों ने सैकड़ों किमी दूर रहकर भी आजमगढ़ से नाता नहीं तोड़ा है।
(रविशंकर पंत, आजमगढ़, 2 जून, हिन्दुस्तान)
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-गंगा एक्सप्रेस वे के प्रस्तावित रूट में होने वाले बदलाव के मद्देनजर विभिन्न जिलों के कई नये गांव उत्तर प्रदेश एक्सप्रेस वेज औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) में शामिल होंगे। ‘एलाइनमेंट’ तय किये जाने इलाहाबाद और वाराणसी में आ रही दिक्कतों को देखते हुये वहां के जिलाधिकारियों का उसका निराकरण करने के निर्देश दिये गये थे। बलिया और फ र्रुखाबाद में अभी भी एलाइनमेंट तय नहीं हो सका है। गंगा एक्सप्रेस वे के निर्माण के बदले विकासकर्ता को एटा के पटियाली क्षेत्र में दी जाने वाली भूमि में आने वाली दिक्कतों को देखते हुये उसे दूसरी साइड में जमीन दिया जाना तय हुआ है।
(लखनऊ, 18 सितम्बर, जागरण)
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-गुस्साये ग्रामीणों ने गंगा एक्सप्रेस वे सर्वे टीम का कैमरा तोड़ दिया और कर्मचारियों के साथ मारपीट की। ग्रामीण सर्वे का विरोध कर रहे थे। परिणामस्वरूप टीम को बिना सर्वे के लौट जाना पड़ा। नोडल अधिकारी राधेमोहन और सुरक्षा अधिकारी रामनाथ द्विवेदी सर्वे टीम के साथ जाजमऊ और बदलापुरवा के बीच कार्य कर रहे थे, तभी बड़ी संख्या में ग्रामीण वहां आ गये।
-ग्रामीणों ने सर्वे पर एतराज जताया। ग्रामीणों का कहना था कि योजना के तहत पहले गंगा को धारा से दो किमी, मीटर हटकर सडक़ बनाये जाने की बात कही गयी थी।
-सडक़ बनी तो रुस्तमपुर, खैरागढ़ और जाजमऊ के 14 मजरे समेत हजारों गांवों का अस्तित्व खत्म हो जायेगा।
(फतेहपुर, वाराणसी, 18 सितम्बर, जागरण)
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आजमगढ़ जनपद इस हिन्दुस्तान को ही नहीं वरन पूरी दुनिया की निगाहें इस पर टिकी हुई हैं। इलेक्ट्रानिक हो या प्रिंट सभी के पत्रकार उतर आये हैं, इस जनपद में छान रहे हैं खबरें। आखिर क्या है आजमगढ़ में। इस के हर गली और चौराहों पर चर्चा है आतंकवाद की। सभी ढूंढ़ रहे हैं खबरें। कोई आजमगढ़ को आतंकगढ़ बता कर चुटकी लेता है तो कोई अपना ब्रेकिंग न्यूज दिखाता है-हिन्दुस्तान का अलकायदा। इस जनपद में एटीएस जहां अपनी गिद्घ दृष्टिï जमाये हुये है वहीं रा के भी अधिकारी चुपके-चुपके टटोल और खंगाल रहे हैं जिले को यही नहीं इस जनपद के स्थानीय पत्रकार जहां पहले खबरों की कमी से परेशान रहते थे। वहीं अब राष्टï्रीय और प्रदेश स्तर के पत्रकारों की टीम और उनकी गाडिय़ां दौड़ रही हैं इसी जनपद में। सबसे प्रतिस्पर्धा में कौन कितनी अच्छी खबर निकाल लेता है। सब पूछ रहे हैं कि आज क्या हाल है। आजमगढ़ आखिर इतना चर्चित क्यों हुआ यह जनपद। क्या खास है इस जिले में।
45 लाख की आबादी के इस जनपद के अधिकांश नागरिक सुबह उठते हैं और अखबारों की सुर्खियां पढ़ते हैं, कुछ यह जानने के लिये की आज दिल्ली में आजमगढ़ को लेकर क्या हुआ। तो कुछ सहमे से अखबार उठाते हैं कि उनके किसी खास का नाम तो नहीं आ गया आतंकियों की सूची में।
आजमगढ़ जनपद अचानक ही सुर्खियों में आ या तो जरूर परन्तु इस सुर्खी में आने की नींव लगभग तीन दशक पूर्व ही पड़ चुकी थी। आजमगढ़ जिले में न तो कोई ऐतिहासिक तीर्थ स्थल है न ही ऐसा कोई सकारात्मक कारण, जिससे इसकी पहचान राष्टï्रीय या अंतर्राष्टï्रीय स्तर पर बने। उद्योग की दृष्टिï से जहां यह जनपद सूना रहा है वहीं इसे जनपद की अधिकांश भूमि भी ऊसर है। इस जनपद का दक्षिणी क्षेत्र जहां ऊसर है वहीं उत्तरी हिस्सा घाघरा के बाढ़ की विभीषिका से हर वर्ष प्रमाणित होता है कि पूर्वी हिस्से में बसा मुबारकपुर जो कभी बनारसी साडिय़ों का केन्द्र हुआ करता था, अब पूरी तरह से मंदी के दौर में तंगहाली के चलते भुखमरी, गरीबी और बेरोजगारी से गुजर रहा है।
हां यह जरूर रहा है कि इस जनपद में कुछ लोग उठे और उन्होंने अपनी पहचान राष्टï्रीय ही नहीं बल्कि अंतर्राष्टï्रीय स्तर पर बनायी और जनपद का नाम रोशन किया। चाहे वे राहुल सांस्कृतायन, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिओध जी रहे हों चाहे कैफी आजमी। इस प्रकार हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहीम रिश्तेदार हुये। यही नहीं अबू सलेम भी इसी जनपद के सरायमीर का मूल निवासी है।
हाजी मस्तान, दाऊद इब्राहीम और अदुशलेन की तिकड़ी ने रिश्ता जोड़ा। आजमगढ़ के गरीब बेरोजगारों का खाड़ी देशों के अमीर सेठों से और धीरे-धीरे यहां के लोग भी अमीर बन गये। खाकपति कब करोड़पति बन गये। इसका पता ही नहीं चला। इनके संपर्क में आये लोग अमीर तो बने ही, अपराधी ही बन गये। और अब तो आजमगढ़ में सिमी, इंडियन मुजाहिदीन, हूजी जैसे संगठन अपना जाल बिछाकर यहां के युवकों को पैसे और जिहाद का प्रलोभन देकर अपने नेटवर्क में जोडक़र रहे हैं।
आजमगढ़ जनपद में विभिन्न बैंकों की कुल 225 शाखायें कार्यरत हैं। जिसमें से अग्रणी बैंक, यूनियन बैंक आफ इंडिया की 71 शाखोयं हैं। यूबीआई में एनआरआई लोगों के खाले में लगभग 78 करोड़ रुपये फिक्सड डिपाजिट है तो सभी बैंकों का मिलाकर लगभग 140 रुपये करोड़ रुपये फिक्स है।
मात्र सरायमीर क्षेत्र के संजरपुर और फरिहा इलाके में 6 बैंक कार्यरत हैं और इसका मासिक टर्नओवर लगभग 25 करोड़ रुपये है। और इसका मासिक टर्नओवर लगभग 25 करोड़ रुपये है। विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि यह रकम तो एक नम्बर का है। इसके अलावा लगभग 20 करोड़ रुपये हवाला के माध्यम से तो लगभग 5 करोउ़ रुपये का व्यवसाय विदेशों से तुरंत पैसा मंगवाने वाली कंपनियां कर रही हैं। इस प्रकार सिर्फ सरायमीर क्षेत्र से लगभग मासिक टर्न ओवर 45-50 करोड़ का है।
इसके अलावा इन गल्फ कंपनियों से आ रहे पैसे का एक बड़ा हिस्सा दूरसंचार के खाते में भी जाता है। पूरे जनपद में 10-12 करोड़ रुपये के टेलीफोन महकमे में आता है। लोकल बेसिक फोन को मात्र 50 लाख की आय होती है। बाकी लगभग 11 करोड़ रुपये मोबाइल कंपनियां ले उड़ती हैं।
यहां के युवाओं में गल्फ कंट्री का क्या क्रेज है और वहां जाने के लिये कितनी होड़ मची है। यह सरायमीर पुलिस के उस रिकार्ड से ही पता चल जाता है कि एक जनवरी 2008 से अब तक 1125 लोगों ने प्रार्थना पत्र दिया है। विदेश जाने के लिये पासपोर्ट बनवाने के लिये केवल एक थाने का रिकार्ड यह है तो पूरे जनपद की क्या स्थिति होगी।
फिलहाल आजमगढ़ में आतंकवाद की चर्चा करें तो उन चर्चाओं को अधिक बल मिलता है। जब सिमी जैसे संगठनों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया गया है और उस संगठन का राष्टï्रीय अध्यक्ष शाहिद बद्र आजमगढ़ के मनचोमा गांव का निवासी है तथा यहां के सदर विधानसभा सीट से विधान सभा का चुनाव भी लड़ चुका है। यही नहीं प्रदेश के विभिन्न कचहरियों में हुये बम धमाकों की आयेगी। हकीम तारिक कासमी जनपद में ही रानी की सराय थाना क्षेत्र का निवासी है तथा वह हूजी का यूपी एरिया कमांडर का चीफ बताया जाता है।
अभय त्रिपाठी
पूरे देश में आतंकी घटनाओं से चर्चा में आया, आजमगढ़ कभी के नाम से जाना जाता था और ईसा पूर्व में बाजार और हाट का केन्द्र हुआ करता था। इस शहर के इतिहास को देखा जाये तो दुर्वासा, दत्तात्रेय, अल्लामा शिबली नोमानी, कैफी आजमी तथा अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जैसे विद्वानों-मनीषियों ने इस शहर का गौरव बढ़ाया वहीं आज भी इस माटी का गौरव बढ़ा रहे डा. चंद्रदेव सिंह जिन्हें इंदिरा गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक का कुलपति नियुक्त किया गया है, तो डा. तारिक अजीज भाभा एटामिक सेंंटर में वैज्ञानिक के रूप में देश की सेवा कर रहे र्हैं। वहीं अभिनेत्री एवं राज्य सभा संदस्या शबाना आजमी के रिश्ते भी इसी जिले से हैं। परन्तु बीते दो दशकों से यह शहर कभी दाऊद इब्राहीम, अबू सलेम, बाहुबली प्रतिनिधि रमाकांत यादव, उमाकांत यादव की कारगुजारियों से जाना जाने लगा। बीते 29 अगस्त को अहमदाबाद में हुये सीरियल बम ब्लास्ट के भी तार इसी जिले से जा जुड़े। इसका मास्टर माइंड अबुल बशर आजमगढ़ जिले के बीनापारा गांव का ही रहने वाला है। गांव के लोग अबुल बशहर को आतंकी मानने को तैयार नहंी थे कि हालिया बाटला हाऊस इलाके के एल 18 मुठभेड़ में मारे गये आतिफ उर्फ बशीर, साजिद और गिरफ्तार मुहम्मद सैफ का नाम भी आजमगढ़ जिले के संजरपुर गंाव की फेहरिस्त में जा जुड़ा।
आतंकी कार्रवाई की जद में यूं तो पूरा देश ही है। लेकिन हालिया घटनाओं में इस शहर का नाम लगातान आने से एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है। आत्मघाती धार्मिक उन्माद से ग्रस्त नौनिहालों का कटï्टरपंथी धूर्तों द्वारा कितनी आसानी से दुरुपयोग हो रहा हे। इसका सच दिल्ली मुठभेड़ में मारे गये और गिरफ्तार आतंकियों को देख कर समझा जा सकता है। अल्पसंख्यक समुदाय के जो दहशतगर्द आतंकी घटनाओं में लिप्त पाये गये हैं वे गरीब, समाज के वंचित, उत्पीडि़त नहीं बल्कि उच्च शिक्षित शहरी मध्यमवर्ग से हैं। जिन्हें प्रगतिशील एवं खुले विचारों वाला माना जाता है। दहशतगर्दों ने आर्थिक-सामाजिक और विकास की दृष्टिï से पिछड़े इस शहर के नौजवानों का धार्मिक आधार पर ब्रेनवाश कर आतंकी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सूबे से लगाये केन्द्र सरकार की नींद उड़ा दी है।
पूर्वांचल के मऊ, बस्ती, गोरखपुर, वाराणसी इत्यादि नगरों के लिये आतंक का यह खौफनाक चेहरा वाकई परेशान करने वाला है। मऊ में सस्ती साडिय़ों के काम तेजी और बनारसी और जरदोजी के काम में नरमी ने बुनकरों और व्यापारियों के एक बड़े तबके को दूसरे काम तलाशने पर मजबूर कर दिया। देवरिया और मऊ के कुछ समृद्घ मुसलमानों ने खाड़ी के देशों का रुख कर लिया। पैसे की चकाचौंध और वर्तमान उपभोक्तावादी संस्कृति ने सबको बराबर रहने का फार्मूला दिया और पैसों की ललक खुलकर सामने आयी और लोगों ने दूसरों का अंधानुकरण किया। फलस्वरूप सरायमीर जैसे छोटे से कस्बे में जहां आज भी आम आदमी के लिये मूलभूत सुविधायें मयस्सर नहीं है, वहां फारेन मनी एक्सचेंज के काउंटर, विदेशी समानों के बाजार और प्रतिमाह लाखों के बिल अदा करने वाले पीसीओ सेंटर खुल गये।
अंदर बे बंटे और ऊपर जुड़े आजमगढ़ के यह अल्पसंख्यक, जो वस्तुत: वहां की कुल आबादी का 65 पैंसठ प्रतिशत से भी ज्यादा है। आज किंकर्तव्यविमूढ़ हो चुके हैं। अधिकांश को यह पता भी नहीं है कि जिन जिगर के टुकड़ों को उन्होंने अच्छी तालीम के लिये दिल्ली भेजा था और लैपटाप, कम्प्यूटर जैसे आधुनिक यंत्र, जमाने के साथ चलने के लिये दिलवाये, वहीं आज दूसरों के जिगर के टुकड़ों के चीथड़े उड़ाने में महारत हासिल कर सकेंग। दिल्ली-मुठभेड़ में गिरफ्तार में सैफ के पिता शादाब उर्फ मास्टर साहब जो एक राजनीति दल की जिला इकाई के पूर्व उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं, की मानें तो ‘‘सैफ कम्प्यूटर और अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई करने छह-सात माह पूर्व दिल्ली गया था। बीते जुलाई माह में सैफ घर आया था और 10 जुलाई को वापस दिल्ली लौट गया।’’ परन्तु दहशतगर्दी की तालीम इन सभी ने कब ले ली, यह उन्हें भी नहीं पता।
आजमगढ़ जिले में मदरसों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है, काबिलेगौर बात यह सामने आयी है कि दीनी तालीम के नाम पर हजारों की संख्या में खुले मदरसों के पीछे सोच क्या है ? शिल्बी, शिया, सुन्नी और देवबंदी जैसे अलग-अलग मतों में विभाजित इस्लाम और उसके रहनुमाओं ने खेती की जमीन पर मदरसे इसलिये बनवाने शुरू किये कि बाहर से आने वाला काला पैसा धर्म के नाम पर सफेद हो जाये और खुद की राह में किसान और मजदूर अपना काम छोड़ कर इनकी पेशकारी में जुट जायें। जिस सिमी को आज आतंकवाद का कारण बताया जा रहा है, उसी सिमी के शुुरुआती दौर के कट्टïर प्रवर्तक शाहिद बद्र फलाही भी संयोगवश आजमगढ़ के ही ककरहटा गांव के हैं। पेशे से यूनानी चिकित्सक फलाही प्रतिबंधित संगठन सिमी के राष्टï्रीय अध्यक्ष भी हैं। 27 सितम्बर 2001 को सिमी को प्रतिबंधित किया गया था, उसी रात फलाही को गिरफ्तार भी कर लिया गया। परन्तु सात अप्रैल 2004 को आरोपों को सही नहीं पाये जाने पर अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। शाहिद बद्र फलाही की मानें तो इस संगठन का उद्देश्य मुस्लिम नौजवानों मेंइस्लामिक मूल्यों का प्रचार-प्रसार करना, उच्च शिक्षा के लिये प्रेरित करना एवं राजनीतिक तौर पर जागरूक करना था। लेकिन यह संगठन आतंकी गतिविधियों में कब जा जुड़ा, उन्हें पता ही नहीं चला। दिल्ली मुठभेड़ के तत्काल बाद सैफ के गांव संजरपुर पहुंचे कुछ मीडियाकर्मियों को हजारों लोगों की उत्तेजित भीड़ ने कड़ा ऐतराज जताते हुये बंधक बना लिया। तनावपूर्व क्षणों में स्थानीय पुलिस के पहुंचने के बाद ही मीडियाकर्मी भीड़ के चंगुल से निकल सके। आजमगढ़ जिले में फारेन मनी एक्सचेंज के नित नये खुलते काउंटर, विदेशी इलेक्ट्रानिक सामानों की बहुतायत और फलते हवाला कारोबार की कहानी भी कहीं न कहीं पाकिस्तान और खाड़ी के देशों से ही जुड़ी है।
देखना होगा कि चंद सिरफिरे नौजवानों की बेजा हरकतों से बदनाम हो चुका आजमगढ़, अपने पुराने साहित्य, विज्ञान और शांतिप्रिय स्वरूप को कब वापस पाता है। आजमगढ़, आजमगढ़ फिर आजमगढ़ को अब कहीं आतंक-गढ़ का नाम न दे दिया जाये। किसी शायर का एक शेर इन दहशतगर्दों के मन-मस्तिष्क को परिवर्तित करने के लिये पर्याप्त होगा ‘‘लोग उजड़ जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस भी नहीं खाते बस्तियां जलाने में।’’
पैसे का ग्लैमर, रातों-राम अमीर बनने की ख्वाहिश, डान को आदर्श मानने की प्रवृत्ति, राजनीतिक संरक्षण, अशिक्षा और बेरोजगारी से उपजी तंगहाली ही ऐसे प्रमुख कारण हैं, जिनके चलते यूपी का आजमगढ़ जिला आतंकवादी की नर्सरी बन गया। ऐसा नहीं है कि कैफी, सांस्कृतायन, शिबली नोमानी और हरिऔध सरीखों की वजह से पहचाने जाने वाले इस आजमगढ़ की पहचान, अबू सलेम, अबुल बशर, आतिफ और साजिद के रूप में बदले जाने में कम समय लगा हो। इस जिले में आतंकवाद की जड़ें तो उसी समय पैबस्त हो गयीं थीं जब सोलह साल पहले मुम्बई बम ब्लास्ट में आजमगढ़ के अबू सलेम का नाम आया था। राष्टï्र विरोधी ताकतें आजमगढ़ को बेस बनाकर यूपी और देश के अन्य राज्यों में बीते कई सालों से आतंक की जहर घोलती रहीं लेकिन वोट की राजनीति और दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव में राज्य सरकारें इन ताकतों का सिर कुचलने की बजाय आंख मूद बैठी रहीं। इसी का नतीजा है कि पहले स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया सिमी फिर उसी पर प्रतिबंध लगने के बाद गठित हुये इंडियन मुजाहिदीन ने यहां के मुस्लिम नवयुवकों को गुमराह कर आतंकवाद की भ_ïी में झोंक दिया। दिल्ली में हुये सीरियल ब्लास्ट के बाद इसमें शामिल सभी 13 आतंकियों के आजमगढ़ का होने के खुलासे के बाद देश में आतंकवाद का नया आजमगढ़ माडï्यूल्स उभर कर सामने आया है।
दिल्ली सीरियल ब्लास्ट मामले में पुलिस मुठभेड़ में गिरफ्तार किये गये जीशान और सैफ के इंट्रोगेशन के बाद पूरी तरह से इस बात का खुलासा हो चुका है कि चाहे यूपी की लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी कचहरी में हुये ब्लास्ट हों या अहमदाबाद और जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट में आजमगढ़ के इन्हीं आतंकियेां का हाथ है। दिल्ली पुलिस ने यह खुलासा किया है कि इन विस्फोटों के पीछे आईएसआई समर्थित लश्कर-ए-तैयबा के शातिर दिमाग ने काम किया है। जिसने सिमी के सहयोग से इंडियन मुजाहिदीन के जरिये इन्हें अंजाम दिलाया। यूपी व अन्य राज्यों में हुये विस्फोट के तार आजमगढ़ से जुड़े होने की बात सामने आने के बाद प्रदेश पुलिस, एटीएस, एसटीएफ और विभिन्न खुफिया एजेंसियां सभी ने इस जिले में डेरा डाल दिया है। दिल्ली पुलिस भी दो दिनों से आजमगढ़ में छापामारी की कार्रवाई कर रही हे। ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया आजमगढ़ का आतिफ उर्फ बशीर ही भारत में इंडियन मुजाहिदीन का चीफ था। उसने अपने साथ या आगे-पीछे पढऩे वाले युवकों को बरगला कर संगठन में शामिल किया और उन्हीं के माध्यम से विभिन्न स्थानों पर सीरियल ब्लास्ट कराये। तकरीबन 45 लाख आबादी वाले आजमगढ़ जिले में मुस्लिमों की संख्या छह लाख के करीब है। यहां 100 से ज्यादा मदरसे और 11 डिग्री कालेज हैं। जिसमें दुनिया भर से लोग इस्लाम की तालीम हासिल करने आते हैं। मुस्लिम परिवारों के ज्यादातर लोग खाड़ी देशों में नौकरी कर रहे हैं आजमगढ़ का यह दुर्भाग्य यह है कि यहां के मुस्लिम समाज के लोग या तो बहुत अमीर है अथवा बहुत गरीब। अबू सलेम और मिर्जा दिलशाद बेग सरीखे अपराधियों की गुजरी जिंदगी और वर्तमान शानो-शौकत देख चुके गरीबी का दंश झेलने वाले यहां के युवाओं के दिल में रातों-रात अमीर बनने की जो चाहत घर कर गयी है उसके चलते उनमें कुवैत, दुबई, सऊदी अरब, यूएई, कतर, बहरीन आदि खाड़ी देशों में जाने की होड़ लगी रहती है। इन देशों में जाने के लिये जरूरत होती है। पासपोर्ट और धन की। पासपोर्ट तो जैसे-कैसे बन जाता है लेकिन धन के अभाव में इन्हें अपने मकसद में कामयाबी नहीं मिलती, जिससे कुंठित होने के बाद यह युवा स्थानीय स्तर पर ही धन कमाने के लिये हाथ-पैर मारना शुरू कर देते हैं। इनकी कुंठा का पूरा फायदा राष्टï्रविरोधी ताकतों के इशारे पर काम कर रहे सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के कारिंदे उठाते हैं। जो इन्हें रुपयों और मजहब के नाम पर बरगलाकर आतंकवाद के रास्ते पर उतार देते हैं।
अलीगढ़ विश्वविद्यालय में वर्ष 1989-90 में स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया के गठन के बाद से अभी तक किसी न किसी बहाने इसकी गतिविधियां यूपी में जारी रही हैं। सिमी का चीफ साहिद बद्र फलाही भी आजमगढ़ का ही है। सिमी ने अपना यूपी चीफ जिस हुमाम अहमद उर्फ हुमायूं एडवोकेट को बनाया था, वह भी इसी जिले से ताल्लुक रखता है। चार माह पूर्व गोरखपुर में हुई हुमायूं की गिरफ्तारी के बाद उसने खुलासा किया था कि वर्ष 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद भी वह लगातार प्रदेश में सक्रिय रहा है। उसने जानकारी दी कि वह खुद अैर कई अन्य वकीलों के साथ जेल में बंद सिमी व अन्य संगठनों के आतंकियों को कानूनी मदद पहुंचाने का काम करता था। हुमायूं ने खुलासा किया था कि इस कानूनी मदद के लिये आवश्यक धन आजमगढ़ का एक बड़ा व्यापारी और गुजरात के दो व्यापारी उपलब्ध कराते हैं। वर्ष 2000 में 14 अगस्त को फैजाबाद के पास साबरमती ट्रेन में जब इंडियन मुजाहिदीन का गठन किया गया तो उसका चीफ तो एमपी का सफदर नागौरी बना लेकिन संगठन में शामिल हुये ज्यादातर युवक आजमगढ़ के ही थे। हुमायूं की बात पर आतंकी अबुल बशर ने भी मुहर लगायी जब गुजरात पुलिस ने उसे आजमगढ़ से उठाया। अहमदाबाद सीरियल बम ब्लास्ट के मास्टर माइंड अबुल बशर ने उसी वक्त खुलासा कर दियार था कि लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी की कचहरियों में हुये विस्फोट के बाद भी प्रदेश सरकार और यहां के शासन-प्रशासन ने आजमगढ़ पर ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत महसूस नहीं की। आश्चर्यजनक पहलू तो यह है कि प्रतिबंध के बावजूद सिमी की गतिविधियों की मानीटरिंग करने के लिये दिल्ली हाईकोर्ट ने जो ट्रिब्युनल बनाय है उसमें राज्य सरकार के माध्यम से यूपी के डीजीपी विक्रम सिंह ने बाकायदा एक हलफनामा दाखिल किया। जिसमें उन्होंने लिखा कि वर्ष 2003 के बाद से प्रदेश में न तो सिमी की कोई गतिविधि प्रकाश में आयी है, और न ही यहां कोई वांछित है। दिल्ली में हुये सीरियल ब्लास्ट में मारे गये, गिरफ्तार और फरार सभी आतंकी आजमगढ़ जिले के ही होने का जो नया खुलासा हुआ है, उसके बाद तो आतंकवाद से सख्ती के साथ निपटने के लिये यूपी सरकार के दावों की पूरी तरह से पोल खुल गयी है।
-संजरपुर और सरायमीर के साथ आजमगढ़ इन दिनों अचानक सुर्खियों में है। दिल्ली,जयपुर, अहमदाबाद, बेंगलूर, हैदराबाद, वाराणसी व गोरखपुर के बम विस्फोटों को अंजाम देने में शामिल अधिकांश आतंकी आजमगढ़ के बताये गये हैं। हैरतअंगेज तस्वीरें तब सामने आती हैं जब खंगाले जाते हैं पुलिस, एलआईयू, पीईडीटी व बैंक के रिकार्ड।
-यकीन नहीं होता है कि अंग्रेजी या कम्प्यूटर सीखने या गल्फ इंट्री में नौकरी क रने की दुआई देकर घर से निकला एक नादान बच्चा कत्लेआम में महारथ हासिल कर लेता है। सरायमीर थाना क्षेत्र अंतर्गत पडऩे वाले कस्बों व ग्रामों की कुल आबादी दो लाख के आसपास है। इसमें लगभग चार हजार की आबादी वाला संजरपुर गांव भी शामिल है। सरायमीर थाना के पुलिस रिकार्ड के अनुसार एक जनवरी 2008 से 21 सितम्बर 08 के बीच 1125 लोगों ने विदेश जाने के लिये पासपोर्ट बनवाने के क्रम में थाने को आवेदन किया। इनमें से 90 फीसदी आवेदन गल्फ कंट्री के लिये है। दूसरी ओर एलआईयू के रिर्काड के अनुसार वर्ष 2007-08 में 1200 व चालू वर्ष में अब तक 500 से अधिक लोगों को पासपोर्ट जारी कर दिया गया है। इनमे भी गल्फ कंट्री कहे जाने वालों की तादात लगभग 90 फीसदी है। इतनी बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष विदेश और वह भी गल्फ कंट्री जाने की होड़ में पुलिस और एलआईयू महकमा भले ही आश्चर्यचकित न हो लेकिन आमजन के लिये यकीनन यह हैरत की बात है।
-इसमेंसबसे बड़ी बात यह है कि मुंबई में मैन पावर की सबसे बड़ी खेप भेजने वाली कंपनी भी आजमगढ़ के लोगों की है। इसमें एक कंपनी सगड़ी तहसील के एक सेठ चलाते हैं, तो दूसरी सरायमीर क्षेत्र के सियासी दल के नेता की है।
-इसके अलावा भी आधा दर्जन लोग पूरी तरह से मुंबई स्थापित होकर मैन पावर की सप्लाई कर रहे हैं।
-दूसरी ओर सरायमीर, संजरपुर व एकदम सटे हुये फरिहा इलाके में राष्टï्रीयकृत बैंकों की कुल 4 व स्थानीय बैंकों की कुल दो अर्थात कुल जमा 6 शाखाये हैं। इसमें से एक राष्टï्रीयकृत बैंक का मासिक टर्नओवर 5 करोड़ से ज्यादा है। इस प्रकार 4 राष्टï्रीयकृत बैंकों का रकमी लेनदेन लगभग 20 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुका है। दो स्थानीय बैंकों का लेन-दे इससे अलग है।
-पुष्टï सूत्रों के अनुसार इन बैंकों के रहने के बावजूद यहां हवाला कारोबार का मासिक लेनदेन भी 25 करोड़ के आसपास है।
-इसके अलावा विदेशों से तुरंत पैसा मंगवाने वाली कंपनियां भी महीने में पाच करोड़ का व्यवसाय कर लेती हैं। इस प्रकार सरायमीर परिक्षेत्र में प्रतिमाह मनी का टर्नओवर 50 करोड़ के आंकड़े को पार कर लेता है।
(राघवेन्द्र चडï्ढा व जयप्रकाश पाण्डेय, सरायमीर, 22 सितम्बर, जागरण)
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-दिल्ली धमाकों के प्रमुख आरोपियों के गांव संजरपुर से नौजवानों का पलायन शुरू हो गया है। धमाकों के बाद से ही यह गांव पुलिस और खुफिया एजेंसियों के निशाने पर है। मुस्लिम नौजवानों को डर है कि धमाकों के नाम पर कहीं उन्हें फंसा न दिया जाये। इस बीच पीपुल्स यूनियन फार ह्यïूमन राइट्स (पीयूएचआर) के प्रतिनिधिमंडल ने संजरपुर गांव का दौरा करने के बाद बताया कि पुलिस मुठभेड़ में मारे गये और पूछताछ के नाम पर बदसलूकी कर रही है। घर की महिलाओं से अभद्र व्यवहार किया गया। संजरपुर गांव में धमाकों के बाद से ही दहशत का माहौल है। यहां के अनवारुल कुरान मदरसे में करीब तीन सौ लडक़े पढऩे आते थे। पर आज इनकी संख्या 40 रह गयी है। यहां भी पुलिस ने पूछताछ की। बाकी लडक़ों के घरवालों ने उन्हें यहां से रुखसत कर दिया है। गांव वालों का कहना है कि अगर लडक़े घर में रहे तो पुलिस उन्हें किसी न किसी धमाके में जरूर फंसा देगी।
-संजरपुर के डा. जावेद अख्तर का लडक़ा असदुल्ला कोटा में इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है। पर दिल्ली धमाकों के बाद गांव में पुलिस की दबिश से यह भी दहशत में है। संजरपुर गांव की संपन्ननता पिछले डेढ़ दशक से बढ़ी है, जिसके कारण यहां के लडक़े बाहर निकल रहे हैं। गांव में 25 फीसदी लोग खेती पर निर्भर हैं, जबकि 40 फीसदी दुबई व खाड़ी देशों में नौकरी करते हैं। 35 फीसदी लोग मुंबई व अन्य जगहों पर रोजगार में लगे हुये हैं। गांव की 75 फीसदी अर्थव्यवस्था मनीआर्डर पर निर्भर है। ऐसे में दिल्ली धमाकों के बाद गांव के लोग ज्यादा परेशान हैं।
-दिल्ली मुठभेड़ में मारे गये साजिद के भाई जाहिद ने कहा, ‘मेरे भाई की उम्र 16 साल थी और पुलिस उसे पांच साल पहले हुये धमाकों में संलिप्त बता रही है। क्या 11 साल की उम्र में ही वह आतंकवादी बन गया था।’
-दिल्ली विस्फोटों का मास्टरमाइंड माने जाने वाले आतिफ के खाते में 1409 रुपये निकले। इसी तरह अन्य लोगों के खाते में भी रकम कुछ हजार तक ही सीमित रही।
(अंबरीश कुमार, आजमगढ़, 23 सितम्बर, जनसत्ता)
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-पूछताछ में खुलासा हुआ कि मुंबई में हुई बैठक में उसने देश के कानून को गैर कानूनी करार दिया। बलिक अलकायदा के कानून पर अमल की सीख दी। सिमी न केवल जेहादी तैयार करने में जुटी है बल्कि इंडियन मुजाहिदीन से मिलकर कई शहरों में युवाओं को जेहाद के लिये भडक़ाते हैं। ऐसे ही चंद युवकों की फ ौज के रूप में इंडियन मुजाहिदीन ने जन्म लिया है। एटीएस के एक अधिकारी कहते हैं, ‘अगर आम आदमी 24 घंटे उसके साथ रह जाये तो वह भी जेहाद को जायज ठहराने लगे’। बशर और नागौरी संग लगे सिमी के कारिंदे ब्रेन वाश में माहिर है।
(आनन्द सिनहा, 27 सितम्बर, अमर उजाला)
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-देश के विभिन्न भागों में आंतकवादी घटनाओं के सिलसिले में गिरफ्तार कुछ अभियुक्तों के परिजनों ने गुरुवार को यहां विधानसभा पर धरना दिया और अपनी व्यथा सुनाई। इन लोगों ने कहा जो धमाके करता है, उसे पकड़ों पर जो बेगुनाह हैं, उन्हें न फंसाओ। जिसमें जम्मू-कश्मीर से लेकर उत्तर प्रदेश के कई जिलों के लोग शामिल हुये। यह धरना पीयूसीएल, पीयूएचआर, अयोध्या की आवाज, जर्नलिस्ट यूनियन फार सिविल सोसाइटीज, यंग जर्नलिस्ट एसोसिएशसन, इप्टा, आशा परिवार, साझी दुनिया और एनएपीएम की तरफ से आयोजित किया गया था।
-अप्रैल 2006 में महाराष्टï्र के नांदेड़, जनवरी 2008 में तमिलनाडु के तरुनेलवेल्ली जिले स्थित तेनकाशी, जून 2008 में महाराष्टï्र के गडक़री रंगायतन और अगस्त 2008 में कानपुर की घटना में हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिक संगठनों की संलिप्तता साबित हुई है, लेकिन किसी भी घटना की विवेचना गंभीरता से नहीं की गयी।
-लखनऊ, फैजाबाद और बनारस में 23 नवम्बर 2007 को हुये कचहरी बम कांड के सिलसिले में गिरफ्तार सज्जादुरहमान के पिता गुलाम कादिर ने बताया कि उनका लडक़ा सजजादुरहमान देवबंद में पढ़ता था और जिस दिन कचहरी के बम धमाके हुये, उस दिन वह देवबंद में पढ़ाई कर रहा था। हाजिरी रजिस्टर में उसकी उपस्थिति भी दर्ज है। पर पुलिस ने उसे 22 दिसम्बर 2007 को किश्तवार से उठाया, जब वह छुट्टिïयों में घर आया था। बाद में लखनऊ में उसकी गिरफ्तारी की गयी।
-रामपुर के सीआरपी कैंप में हुये बम धमाके के सिलसिले में मुरादाबाद के मिलक कामरू कस्बे में पंचर जोडऩे वाले जंग बहादुर के घर रात में पुलिस पहुंची और कहा कि साहब की गाड़ी पंचर हो गयी है, साथ चलो पंचर बनाना है। फिर वह घर ही नहीं वापस पहुंचा। दो दिन बाद घरवालों को पता चला कि पुलिस ने जंग बहादुर को रामपुर के सीआरपीएफ कैंप में 31 दिसम्बर 2007 को हुये धमाके के मामले में जेल भेज दिया है और आरोप लगाया कि वह बरेली में अपने साथियों के साथ बम विस्फोट की योजना बना रहा था। तब से वह आतंकवादी बन गया और लखनऊ जेल में बंद है। अब उसका बेटा शेर अली लखनऊ में उससे मिलने आया तो रो पड़ा कि हमारा घर तो तबाह हो गया।
-इसी तरह आजमगढ़ के मडिय़ाहू जवनपुर के मो. जहीर आलम फलाही ने बताया कि उनके भतीजे खालिद को 16 दिसम्बर 2007 को मडियाहू मार्केट से पुलिस ने उठाया और 22 दिसम्बर को उसकी गिरफ्तारी बाराबंकी रेलवे स्टेशन से दिखायी। उसे लखनऊ व फैजाबाद बम कांड से जोड़ दिया गया।
-इसी प्रकार बिजनौर के तारापुर में रहने वाले किसान अब्दुल सलाम ने अपनी आपबीती सुनाते हुये कहा कि उनका लडक़ा याकूब अपनी बीमार बेटी की दवाई लेने नगीना गया था, वहीं अचानक पुलिस ने उसे नौ जून 2007 को पकड़ लिया। बाद में पुलिस ने उसे 20 जून को चारबाग लखनऊ स्टेशन में पकड़ा दिखाया।
-इसी तरह बिजनौर के एक और किसान मेा. शफी का लडक़ा नौशाद मजदूरी करने राजस्थान के अलवर गया था, पुलिस ने उसे वहां से 20 जून को उठाया और लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन में 23 जूनको गिरफ्तार दिखाया। इनके पास से भारी मात्रा में आरडीएक्स और हथगोले बरामद दिखाये।
-इसी तरह बिजनौर के बढ़ापुर के हामिद हुसैन का लडक़ा नासिर ऋषिकेश के मुनि की रैली आश्रम में मजदूरी कर रहा था जब पुलिस ने उसे 20 जून को पकड़ा लेकिन 21 जून को उसे लखनऊ में पकड़ा गया।
(अंबरीश कुमार, आजमगढ़, 25 सितम्बर, जनसत्ता)
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-वहीं निजी मैनेजमेंट व तकनीकी संस्थानों में पढ़ रहे ऐसे छात्रों का रिकार्ड खंगाला शुरू कर दिया है जो या तो आजमगढ़ के रहने वाले हैं या फिर सिमी के वजूद वाले क्षेत्रों से हैं। बताया गया कि पकड़े गये आतंकवादियों में से एक जियाउर रहमान के पिता रहमान मूल रूप से मेरठ के हैं और पीडब्लूडी गाजियाबाद के निर्माण खंड 2 में कार्य करते थे। इसी कारण जिया का अक्सर गाजियाबाद आना-जाना रहता था। ख्ुाफिया विभाग के सूत्र बताते हैं कि जिया गाजियाबाद में कुछ लोगों से मिलता भी था। आशंका है कि जिया के रिश्ते आजमगढ़ से यहां पढऩे आये कुछ छात्रों से हो सकते हैं।
(गाजियाबाद, 24 सितम्बर, जनसत्ता)
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-दिल्ली बम विस्फोट में वांछित आतंकी निवासी शादाब एवं असदुल्ला की तलाश में दिल्ली पुलिस ने राज्य के साथ मिलकर आजमगढ़ के संजरपुर एवं सरायमीर गांव में छापे मारे। शादाब तथा असदुल्ला से जुडे लेागों के घर में कुछ सीडी, संदिग्ध दस्तावेज और बैंक की पासबुक आदि पुलिस को मिली है। दिल्ली पुलिस व एटीएस की टीम अभी आजमगढ़ में ही है और वांछित युवकों की तलाश तथा उनसे जुड़े लोगों से पूछताछ कर रही है। दूसरी तरफ तौकीर के एक नजदीकी की तलाश में एटीएस के दल ने लखीमपुर में डेरा डाला हुआ है।
-सोमवार को संजरपुर और सरायमीर में पुलिस ने असदुल्ला के चिकित्सक पिता जावेद अख्तर के चिकित्सक पिता जावेद अख्तर के घर पर दबिश दी और उनसे पूछताछ की। इसी क्रम में उनके पुत्र अब्दुल्ला अख्तर सैफुल्ला अख्तर के अलावा अजीम अहमद, डा. फकरे आलम और सलमान खान से दिल्ली बम ब्लास्ट में शामिल रहे शादाब और असदुल्ला के अन्य साथियों और उनसे जुड़े लोगों की जानकारी प्राप्त की गयी।
-उधर एटीएस ने लखनऊ के हसनगंज से आसिफ नाम के एक युवक को हिरासत में लिया है। एटीएस को उसके यहां पिछले दिनों रुके तीन युवकों की तलाश जारी है। इसमें आजमगढ़ के दो व जौनपुर का एक युवक शामिल है। इनके न मिलने पर एटीएस ने यहां से खालिद समेत तीन लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की थी।
(लखनऊ, 23 सितम्बर, जनसत्ता)
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-इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) की इस रिपोर्ट ने शासन की नींद उड़ा दी है कि मऊआइमा इन दिनों आतंकियों की पनाहगान बन रहा है। आईबी की गोपनीय रिपोर्ट में दिल्ली ब्लास्ट के तार मऊआइमा से जुडऩे की आशंका जताते हुये चेताया गया है कि आतंकी इस कस्बे से दंगा कराने की साजिश रच सकते हैं। रिपोर्ट में कई संदिग्धों का नाम भी शुमार है। आतंकी ठिकानों के लिये महफूज अम्बेडकरनगर जिला अंडरवल्र्ड से जुड़े सदस्यों के लिये अभ्यारण साबित हो रहा है। आगरा बमकांड, साबरमती एक्सप्रेस बमकांड, मुंबई बम कांड, इलाहाबाद कुंभ मेला बमकांड, अयोध्या प्रेशर कुकर बमकांड, लखनऊ बमकांड समेत दर्जन भर से अधिक आतंकी घटनाओं का तार अम्बेडकर नगर जिले से जुड़ा रहा।
(फरहत खान, आजमगढ़, 15 सितम्बर, हिन्दुस्तान)
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-इसरार अहमद इस्लाही, वसीम अहमद इस्लाही, इब्दुल रहमान इलाही, राशिद अयूब इस्लाही, अजमल अयूब इस्लाही। ये नाम ऐसे हैं जिनको आजमगढ़ वाले बड़ी इज्जत बख्शते हैं। इनकी शोहरत परदेस में भी कम नहीं है। इन सभी में इस्लाही टाइटिल कामन है। इस्लाही किसी समुदाय विशेष का परिचायक नहीं बल्कि एक स्कूल है, जिसकी पैदाइश है ये सभी शख्स। सरायमीर के पास बड़हरिया गांव के बाशिंदे इसरार अहमद मलेशिया की यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। इस्लाही मदरसा बानपारा में हैं। वही बानपारा जिसे मीडिया मुफ्ती अबुल बशर के नाम से ज्यादा जोड़ता है। बशर अहमदाबाद विस्फोटों का मुख्य अभियुक्त है।
-इसी तरह तोवा गांव में ऊंचे ओहदे पर है। अब्दुल रहमान भी ताबा गांव के हैं और रियाध में भारतीय दूतावास में हैं। राशिद अहमद का रिश्ता कोरागनी गांव में है और वह लंदन विश्वविद्यालय में प्रतिभाओं की नयी पौध तैयार कर रहे हैं। राशिद के ही अजमल अयूब मदीना विश्वविद्यालय में रिसर्च सेंटर से जुड़े हैं।
-इस्लाही मदरसे के ही इसरार अहमद न्यूटन रियाद में रिसर्च से जुड़े हैं। वह सरायमीर कस्बे के ही महुआरा गांव से ताल्लुक रखते हैं। एक स्थानीय टीचर बताते हैं कि इसरार की सिफारिश इटली तक में वजन रखती है। नियाऊम गांव के वसीम अहमद अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। इन सभी शख्सियतों ने सैकड़ों किमी दूर रहकर भी आजमगढ़ से नाता नहीं तोड़ा है।
(रविशंकर पंत, आजमगढ़, 2 जून, हिन्दुस्तान)
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-गंगा एक्सप्रेस वे के प्रस्तावित रूट में होने वाले बदलाव के मद्देनजर विभिन्न जिलों के कई नये गांव उत्तर प्रदेश एक्सप्रेस वेज औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) में शामिल होंगे। ‘एलाइनमेंट’ तय किये जाने इलाहाबाद और वाराणसी में आ रही दिक्कतों को देखते हुये वहां के जिलाधिकारियों का उसका निराकरण करने के निर्देश दिये गये थे। बलिया और फ र्रुखाबाद में अभी भी एलाइनमेंट तय नहीं हो सका है। गंगा एक्सप्रेस वे के निर्माण के बदले विकासकर्ता को एटा के पटियाली क्षेत्र में दी जाने वाली भूमि में आने वाली दिक्कतों को देखते हुये उसे दूसरी साइड में जमीन दिया जाना तय हुआ है।
(लखनऊ, 18 सितम्बर, जागरण)
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-गुस्साये ग्रामीणों ने गंगा एक्सप्रेस वे सर्वे टीम का कैमरा तोड़ दिया और कर्मचारियों के साथ मारपीट की। ग्रामीण सर्वे का विरोध कर रहे थे। परिणामस्वरूप टीम को बिना सर्वे के लौट जाना पड़ा। नोडल अधिकारी राधेमोहन और सुरक्षा अधिकारी रामनाथ द्विवेदी सर्वे टीम के साथ जाजमऊ और बदलापुरवा के बीच कार्य कर रहे थे, तभी बड़ी संख्या में ग्रामीण वहां आ गये।
-ग्रामीणों ने सर्वे पर एतराज जताया। ग्रामीणों का कहना था कि योजना के तहत पहले गंगा को धारा से दो किमी, मीटर हटकर सडक़ बनाये जाने की बात कही गयी थी।
-सडक़ बनी तो रुस्तमपुर, खैरागढ़ और जाजमऊ के 14 मजरे समेत हजारों गांवों का अस्तित्व खत्म हो जायेगा।
(फतेहपुर, वाराणसी, 18 सितम्बर, जागरण)
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आजमगढ़ जनपद इस हिन्दुस्तान को ही नहीं वरन पूरी दुनिया की निगाहें इस पर टिकी हुई हैं। इलेक्ट्रानिक हो या प्रिंट सभी के पत्रकार उतर आये हैं, इस जनपद में छान रहे हैं खबरें। आखिर क्या है आजमगढ़ में। इस के हर गली और चौराहों पर चर्चा है आतंकवाद की। सभी ढूंढ़ रहे हैं खबरें। कोई आजमगढ़ को आतंकगढ़ बता कर चुटकी लेता है तो कोई अपना ब्रेकिंग न्यूज दिखाता है-हिन्दुस्तान का अलकायदा। इस जनपद में एटीएस जहां अपनी गिद्घ दृष्टिï जमाये हुये है वहीं रा के भी अधिकारी चुपके-चुपके टटोल और खंगाल रहे हैं जिले को यही नहीं इस जनपद के स्थानीय पत्रकार जहां पहले खबरों की कमी से परेशान रहते थे। वहीं अब राष्टï्रीय और प्रदेश स्तर के पत्रकारों की टीम और उनकी गाडिय़ां दौड़ रही हैं इसी जनपद में। सबसे प्रतिस्पर्धा में कौन कितनी अच्छी खबर निकाल लेता है। सब पूछ रहे हैं कि आज क्या हाल है। आजमगढ़ आखिर इतना चर्चित क्यों हुआ यह जनपद। क्या खास है इस जिले में।
45 लाख की आबादी के इस जनपद के अधिकांश नागरिक सुबह उठते हैं और अखबारों की सुर्खियां पढ़ते हैं, कुछ यह जानने के लिये की आज दिल्ली में आजमगढ़ को लेकर क्या हुआ। तो कुछ सहमे से अखबार उठाते हैं कि उनके किसी खास का नाम तो नहीं आ गया आतंकियों की सूची में।
आजमगढ़ जनपद अचानक ही सुर्खियों में आ या तो जरूर परन्तु इस सुर्खी में आने की नींव लगभग तीन दशक पूर्व ही पड़ चुकी थी। आजमगढ़ जिले में न तो कोई ऐतिहासिक तीर्थ स्थल है न ही ऐसा कोई सकारात्मक कारण, जिससे इसकी पहचान राष्टï्रीय या अंतर्राष्टï्रीय स्तर पर बने। उद्योग की दृष्टिï से जहां यह जनपद सूना रहा है वहीं इसे जनपद की अधिकांश भूमि भी ऊसर है। इस जनपद का दक्षिणी क्षेत्र जहां ऊसर है वहीं उत्तरी हिस्सा घाघरा के बाढ़ की विभीषिका से हर वर्ष प्रमाणित होता है कि पूर्वी हिस्से में बसा मुबारकपुर जो कभी बनारसी साडिय़ों का केन्द्र हुआ करता था, अब पूरी तरह से मंदी के दौर में तंगहाली के चलते भुखमरी, गरीबी और बेरोजगारी से गुजर रहा है।
हां यह जरूर रहा है कि इस जनपद में कुछ लोग उठे और उन्होंने अपनी पहचान राष्टï्रीय ही नहीं बल्कि अंतर्राष्टï्रीय स्तर पर बनायी और जनपद का नाम रोशन किया। चाहे वे राहुल सांस्कृतायन, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिओध जी रहे हों चाहे कैफी आजमी। इस प्रकार हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहीम रिश्तेदार हुये। यही नहीं अबू सलेम भी इसी जनपद के सरायमीर का मूल निवासी है।
हाजी मस्तान, दाऊद इब्राहीम और अदुशलेन की तिकड़ी ने रिश्ता जोड़ा। आजमगढ़ के गरीब बेरोजगारों का खाड़ी देशों के अमीर सेठों से और धीरे-धीरे यहां के लोग भी अमीर बन गये। खाकपति कब करोड़पति बन गये। इसका पता ही नहीं चला। इनके संपर्क में आये लोग अमीर तो बने ही, अपराधी ही बन गये। और अब तो आजमगढ़ में सिमी, इंडियन मुजाहिदीन, हूजी जैसे संगठन अपना जाल बिछाकर यहां के युवकों को पैसे और जिहाद का प्रलोभन देकर अपने नेटवर्क में जोडक़र रहे हैं।
आजमगढ़ जनपद में विभिन्न बैंकों की कुल 225 शाखायें कार्यरत हैं। जिसमें से अग्रणी बैंक, यूनियन बैंक आफ इंडिया की 71 शाखोयं हैं। यूबीआई में एनआरआई लोगों के खाले में लगभग 78 करोड़ रुपये फिक्सड डिपाजिट है तो सभी बैंकों का मिलाकर लगभग 140 रुपये करोड़ रुपये फिक्स है।
मात्र सरायमीर क्षेत्र के संजरपुर और फरिहा इलाके में 6 बैंक कार्यरत हैं और इसका मासिक टर्नओवर लगभग 25 करोड़ रुपये है। और इसका मासिक टर्नओवर लगभग 25 करोड़ रुपये है। विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि यह रकम तो एक नम्बर का है। इसके अलावा लगभग 20 करोड़ रुपये हवाला के माध्यम से तो लगभग 5 करोउ़ रुपये का व्यवसाय विदेशों से तुरंत पैसा मंगवाने वाली कंपनियां कर रही हैं। इस प्रकार सिर्फ सरायमीर क्षेत्र से लगभग मासिक टर्न ओवर 45-50 करोड़ का है।
इसके अलावा इन गल्फ कंपनियों से आ रहे पैसे का एक बड़ा हिस्सा दूरसंचार के खाते में भी जाता है। पूरे जनपद में 10-12 करोड़ रुपये के टेलीफोन महकमे में आता है। लोकल बेसिक फोन को मात्र 50 लाख की आय होती है। बाकी लगभग 11 करोड़ रुपये मोबाइल कंपनियां ले उड़ती हैं।
यहां के युवाओं में गल्फ कंट्री का क्या क्रेज है और वहां जाने के लिये कितनी होड़ मची है। यह सरायमीर पुलिस के उस रिकार्ड से ही पता चल जाता है कि एक जनवरी 2008 से अब तक 1125 लोगों ने प्रार्थना पत्र दिया है। विदेश जाने के लिये पासपोर्ट बनवाने के लिये केवल एक थाने का रिकार्ड यह है तो पूरे जनपद की क्या स्थिति होगी।
फिलहाल आजमगढ़ में आतंकवाद की चर्चा करें तो उन चर्चाओं को अधिक बल मिलता है। जब सिमी जैसे संगठनों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया गया है और उस संगठन का राष्टï्रीय अध्यक्ष शाहिद बद्र आजमगढ़ के मनचोमा गांव का निवासी है तथा यहां के सदर विधानसभा सीट से विधान सभा का चुनाव भी लड़ चुका है। यही नहीं प्रदेश के विभिन्न कचहरियों में हुये बम धमाकों की आयेगी। हकीम तारिक कासमी जनपद में ही रानी की सराय थाना क्षेत्र का निवासी है तथा वह हूजी का यूपी एरिया कमांडर का चीफ बताया जाता है।
अभय त्रिपाठी
पूरे देश में आतंकी घटनाओं से चर्चा में आया, आजमगढ़ कभी के नाम से जाना जाता था और ईसा पूर्व में बाजार और हाट का केन्द्र हुआ करता था। इस शहर के इतिहास को देखा जाये तो दुर्वासा, दत्तात्रेय, अल्लामा शिबली नोमानी, कैफी आजमी तथा अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जैसे विद्वानों-मनीषियों ने इस शहर का गौरव बढ़ाया वहीं आज भी इस माटी का गौरव बढ़ा रहे डा. चंद्रदेव सिंह जिन्हें इंदिरा गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक का कुलपति नियुक्त किया गया है, तो डा. तारिक अजीज भाभा एटामिक सेंंटर में वैज्ञानिक के रूप में देश की सेवा कर रहे र्हैं। वहीं अभिनेत्री एवं राज्य सभा संदस्या शबाना आजमी के रिश्ते भी इसी जिले से हैं। परन्तु बीते दो दशकों से यह शहर कभी दाऊद इब्राहीम, अबू सलेम, बाहुबली प्रतिनिधि रमाकांत यादव, उमाकांत यादव की कारगुजारियों से जाना जाने लगा। बीते 29 अगस्त को अहमदाबाद में हुये सीरियल बम ब्लास्ट के भी तार इसी जिले से जा जुड़े। इसका मास्टर माइंड अबुल बशर आजमगढ़ जिले के बीनापारा गांव का ही रहने वाला है। गांव के लोग अबुल बशहर को आतंकी मानने को तैयार नहंी थे कि हालिया बाटला हाऊस इलाके के एल 18 मुठभेड़ में मारे गये आतिफ उर्फ बशीर, साजिद और गिरफ्तार मुहम्मद सैफ का नाम भी आजमगढ़ जिले के संजरपुर गंाव की फेहरिस्त में जा जुड़ा।
आतंकी कार्रवाई की जद में यूं तो पूरा देश ही है। लेकिन हालिया घटनाओं में इस शहर का नाम लगातान आने से एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है। आत्मघाती धार्मिक उन्माद से ग्रस्त नौनिहालों का कटï्टरपंथी धूर्तों द्वारा कितनी आसानी से दुरुपयोग हो रहा हे। इसका सच दिल्ली मुठभेड़ में मारे गये और गिरफ्तार आतंकियों को देख कर समझा जा सकता है। अल्पसंख्यक समुदाय के जो दहशतगर्द आतंकी घटनाओं में लिप्त पाये गये हैं वे गरीब, समाज के वंचित, उत्पीडि़त नहीं बल्कि उच्च शिक्षित शहरी मध्यमवर्ग से हैं। जिन्हें प्रगतिशील एवं खुले विचारों वाला माना जाता है। दहशतगर्दों ने आर्थिक-सामाजिक और विकास की दृष्टिï से पिछड़े इस शहर के नौजवानों का धार्मिक आधार पर ब्रेनवाश कर आतंकी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सूबे से लगाये केन्द्र सरकार की नींद उड़ा दी है।
पूर्वांचल के मऊ, बस्ती, गोरखपुर, वाराणसी इत्यादि नगरों के लिये आतंक का यह खौफनाक चेहरा वाकई परेशान करने वाला है। मऊ में सस्ती साडिय़ों के काम तेजी और बनारसी और जरदोजी के काम में नरमी ने बुनकरों और व्यापारियों के एक बड़े तबके को दूसरे काम तलाशने पर मजबूर कर दिया। देवरिया और मऊ के कुछ समृद्घ मुसलमानों ने खाड़ी के देशों का रुख कर लिया। पैसे की चकाचौंध और वर्तमान उपभोक्तावादी संस्कृति ने सबको बराबर रहने का फार्मूला दिया और पैसों की ललक खुलकर सामने आयी और लोगों ने दूसरों का अंधानुकरण किया। फलस्वरूप सरायमीर जैसे छोटे से कस्बे में जहां आज भी आम आदमी के लिये मूलभूत सुविधायें मयस्सर नहीं है, वहां फारेन मनी एक्सचेंज के काउंटर, विदेशी समानों के बाजार और प्रतिमाह लाखों के बिल अदा करने वाले पीसीओ सेंटर खुल गये।
अंदर बे बंटे और ऊपर जुड़े आजमगढ़ के यह अल्पसंख्यक, जो वस्तुत: वहां की कुल आबादी का 65 पैंसठ प्रतिशत से भी ज्यादा है। आज किंकर्तव्यविमूढ़ हो चुके हैं। अधिकांश को यह पता भी नहीं है कि जिन जिगर के टुकड़ों को उन्होंने अच्छी तालीम के लिये दिल्ली भेजा था और लैपटाप, कम्प्यूटर जैसे आधुनिक यंत्र, जमाने के साथ चलने के लिये दिलवाये, वहीं आज दूसरों के जिगर के टुकड़ों के चीथड़े उड़ाने में महारत हासिल कर सकेंग। दिल्ली-मुठभेड़ में गिरफ्तार में सैफ के पिता शादाब उर्फ मास्टर साहब जो एक राजनीति दल की जिला इकाई के पूर्व उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं, की मानें तो ‘‘सैफ कम्प्यूटर और अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई करने छह-सात माह पूर्व दिल्ली गया था। बीते जुलाई माह में सैफ घर आया था और 10 जुलाई को वापस दिल्ली लौट गया।’’ परन्तु दहशतगर्दी की तालीम इन सभी ने कब ले ली, यह उन्हें भी नहीं पता।
आजमगढ़ जिले में मदरसों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है, काबिलेगौर बात यह सामने आयी है कि दीनी तालीम के नाम पर हजारों की संख्या में खुले मदरसों के पीछे सोच क्या है ? शिल्बी, शिया, सुन्नी और देवबंदी जैसे अलग-अलग मतों में विभाजित इस्लाम और उसके रहनुमाओं ने खेती की जमीन पर मदरसे इसलिये बनवाने शुरू किये कि बाहर से आने वाला काला पैसा धर्म के नाम पर सफेद हो जाये और खुद की राह में किसान और मजदूर अपना काम छोड़ कर इनकी पेशकारी में जुट जायें। जिस सिमी को आज आतंकवाद का कारण बताया जा रहा है, उसी सिमी के शुुरुआती दौर के कट्टïर प्रवर्तक शाहिद बद्र फलाही भी संयोगवश आजमगढ़ के ही ककरहटा गांव के हैं। पेशे से यूनानी चिकित्सक फलाही प्रतिबंधित संगठन सिमी के राष्टï्रीय अध्यक्ष भी हैं। 27 सितम्बर 2001 को सिमी को प्रतिबंधित किया गया था, उसी रात फलाही को गिरफ्तार भी कर लिया गया। परन्तु सात अप्रैल 2004 को आरोपों को सही नहीं पाये जाने पर अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। शाहिद बद्र फलाही की मानें तो इस संगठन का उद्देश्य मुस्लिम नौजवानों मेंइस्लामिक मूल्यों का प्रचार-प्रसार करना, उच्च शिक्षा के लिये प्रेरित करना एवं राजनीतिक तौर पर जागरूक करना था। लेकिन यह संगठन आतंकी गतिविधियों में कब जा जुड़ा, उन्हें पता ही नहीं चला। दिल्ली मुठभेड़ के तत्काल बाद सैफ के गांव संजरपुर पहुंचे कुछ मीडियाकर्मियों को हजारों लोगों की उत्तेजित भीड़ ने कड़ा ऐतराज जताते हुये बंधक बना लिया। तनावपूर्व क्षणों में स्थानीय पुलिस के पहुंचने के बाद ही मीडियाकर्मी भीड़ के चंगुल से निकल सके। आजमगढ़ जिले में फारेन मनी एक्सचेंज के नित नये खुलते काउंटर, विदेशी इलेक्ट्रानिक सामानों की बहुतायत और फलते हवाला कारोबार की कहानी भी कहीं न कहीं पाकिस्तान और खाड़ी के देशों से ही जुड़ी है।
देखना होगा कि चंद सिरफिरे नौजवानों की बेजा हरकतों से बदनाम हो चुका आजमगढ़, अपने पुराने साहित्य, विज्ञान और शांतिप्रिय स्वरूप को कब वापस पाता है। आजमगढ़, आजमगढ़ फिर आजमगढ़ को अब कहीं आतंक-गढ़ का नाम न दे दिया जाये। किसी शायर का एक शेर इन दहशतगर्दों के मन-मस्तिष्क को परिवर्तित करने के लिये पर्याप्त होगा ‘‘लोग उजड़ जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस भी नहीं खाते बस्तियां जलाने में।’’
पैसे का ग्लैमर, रातों-राम अमीर बनने की ख्वाहिश, डान को आदर्श मानने की प्रवृत्ति, राजनीतिक संरक्षण, अशिक्षा और बेरोजगारी से उपजी तंगहाली ही ऐसे प्रमुख कारण हैं, जिनके चलते यूपी का आजमगढ़ जिला आतंकवादी की नर्सरी बन गया। ऐसा नहीं है कि कैफी, सांस्कृतायन, शिबली नोमानी और हरिऔध सरीखों की वजह से पहचाने जाने वाले इस आजमगढ़ की पहचान, अबू सलेम, अबुल बशर, आतिफ और साजिद के रूप में बदले जाने में कम समय लगा हो। इस जिले में आतंकवाद की जड़ें तो उसी समय पैबस्त हो गयीं थीं जब सोलह साल पहले मुम्बई बम ब्लास्ट में आजमगढ़ के अबू सलेम का नाम आया था। राष्टï्र विरोधी ताकतें आजमगढ़ को बेस बनाकर यूपी और देश के अन्य राज्यों में बीते कई सालों से आतंक की जहर घोलती रहीं लेकिन वोट की राजनीति और दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव में राज्य सरकारें इन ताकतों का सिर कुचलने की बजाय आंख मूद बैठी रहीं। इसी का नतीजा है कि पहले स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया सिमी फिर उसी पर प्रतिबंध लगने के बाद गठित हुये इंडियन मुजाहिदीन ने यहां के मुस्लिम नवयुवकों को गुमराह कर आतंकवाद की भ_ïी में झोंक दिया। दिल्ली में हुये सीरियल ब्लास्ट के बाद इसमें शामिल सभी 13 आतंकियों के आजमगढ़ का होने के खुलासे के बाद देश में आतंकवाद का नया आजमगढ़ माडï्यूल्स उभर कर सामने आया है।
दिल्ली सीरियल ब्लास्ट मामले में पुलिस मुठभेड़ में गिरफ्तार किये गये जीशान और सैफ के इंट्रोगेशन के बाद पूरी तरह से इस बात का खुलासा हो चुका है कि चाहे यूपी की लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी कचहरी में हुये ब्लास्ट हों या अहमदाबाद और जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट में आजमगढ़ के इन्हीं आतंकियेां का हाथ है। दिल्ली पुलिस ने यह खुलासा किया है कि इन विस्फोटों के पीछे आईएसआई समर्थित लश्कर-ए-तैयबा के शातिर दिमाग ने काम किया है। जिसने सिमी के सहयोग से इंडियन मुजाहिदीन के जरिये इन्हें अंजाम दिलाया। यूपी व अन्य राज्यों में हुये विस्फोट के तार आजमगढ़ से जुड़े होने की बात सामने आने के बाद प्रदेश पुलिस, एटीएस, एसटीएफ और विभिन्न खुफिया एजेंसियां सभी ने इस जिले में डेरा डाल दिया है। दिल्ली पुलिस भी दो दिनों से आजमगढ़ में छापामारी की कार्रवाई कर रही हे। ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया आजमगढ़ का आतिफ उर्फ बशीर ही भारत में इंडियन मुजाहिदीन का चीफ था। उसने अपने साथ या आगे-पीछे पढऩे वाले युवकों को बरगला कर संगठन में शामिल किया और उन्हीं के माध्यम से विभिन्न स्थानों पर सीरियल ब्लास्ट कराये। तकरीबन 45 लाख आबादी वाले आजमगढ़ जिले में मुस्लिमों की संख्या छह लाख के करीब है। यहां 100 से ज्यादा मदरसे और 11 डिग्री कालेज हैं। जिसमें दुनिया भर से लोग इस्लाम की तालीम हासिल करने आते हैं। मुस्लिम परिवारों के ज्यादातर लोग खाड़ी देशों में नौकरी कर रहे हैं आजमगढ़ का यह दुर्भाग्य यह है कि यहां के मुस्लिम समाज के लोग या तो बहुत अमीर है अथवा बहुत गरीब। अबू सलेम और मिर्जा दिलशाद बेग सरीखे अपराधियों की गुजरी जिंदगी और वर्तमान शानो-शौकत देख चुके गरीबी का दंश झेलने वाले यहां के युवाओं के दिल में रातों-रात अमीर बनने की जो चाहत घर कर गयी है उसके चलते उनमें कुवैत, दुबई, सऊदी अरब, यूएई, कतर, बहरीन आदि खाड़ी देशों में जाने की होड़ लगी रहती है। इन देशों में जाने के लिये जरूरत होती है। पासपोर्ट और धन की। पासपोर्ट तो जैसे-कैसे बन जाता है लेकिन धन के अभाव में इन्हें अपने मकसद में कामयाबी नहीं मिलती, जिससे कुंठित होने के बाद यह युवा स्थानीय स्तर पर ही धन कमाने के लिये हाथ-पैर मारना शुरू कर देते हैं। इनकी कुंठा का पूरा फायदा राष्टï्रविरोधी ताकतों के इशारे पर काम कर रहे सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के कारिंदे उठाते हैं। जो इन्हें रुपयों और मजहब के नाम पर बरगलाकर आतंकवाद के रास्ते पर उतार देते हैं।
अलीगढ़ विश्वविद्यालय में वर्ष 1989-90 में स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया के गठन के बाद से अभी तक किसी न किसी बहाने इसकी गतिविधियां यूपी में जारी रही हैं। सिमी का चीफ साहिद बद्र फलाही भी आजमगढ़ का ही है। सिमी ने अपना यूपी चीफ जिस हुमाम अहमद उर्फ हुमायूं एडवोकेट को बनाया था, वह भी इसी जिले से ताल्लुक रखता है। चार माह पूर्व गोरखपुर में हुई हुमायूं की गिरफ्तारी के बाद उसने खुलासा किया था कि वर्ष 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद भी वह लगातार प्रदेश में सक्रिय रहा है। उसने जानकारी दी कि वह खुद अैर कई अन्य वकीलों के साथ जेल में बंद सिमी व अन्य संगठनों के आतंकियों को कानूनी मदद पहुंचाने का काम करता था। हुमायूं ने खुलासा किया था कि इस कानूनी मदद के लिये आवश्यक धन आजमगढ़ का एक बड़ा व्यापारी और गुजरात के दो व्यापारी उपलब्ध कराते हैं। वर्ष 2000 में 14 अगस्त को फैजाबाद के पास साबरमती ट्रेन में जब इंडियन मुजाहिदीन का गठन किया गया तो उसका चीफ तो एमपी का सफदर नागौरी बना लेकिन संगठन में शामिल हुये ज्यादातर युवक आजमगढ़ के ही थे। हुमायूं की बात पर आतंकी अबुल बशर ने भी मुहर लगायी जब गुजरात पुलिस ने उसे आजमगढ़ से उठाया। अहमदाबाद सीरियल बम ब्लास्ट के मास्टर माइंड अबुल बशर ने उसी वक्त खुलासा कर दियार था कि लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी की कचहरियों में हुये विस्फोट के बाद भी प्रदेश सरकार और यहां के शासन-प्रशासन ने आजमगढ़ पर ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत महसूस नहीं की। आश्चर्यजनक पहलू तो यह है कि प्रतिबंध के बावजूद सिमी की गतिविधियों की मानीटरिंग करने के लिये दिल्ली हाईकोर्ट ने जो ट्रिब्युनल बनाय है उसमें राज्य सरकार के माध्यम से यूपी के डीजीपी विक्रम सिंह ने बाकायदा एक हलफनामा दाखिल किया। जिसमें उन्होंने लिखा कि वर्ष 2003 के बाद से प्रदेश में न तो सिमी की कोई गतिविधि प्रकाश में आयी है, और न ही यहां कोई वांछित है। दिल्ली में हुये सीरियल ब्लास्ट में मारे गये, गिरफ्तार और फरार सभी आतंकी आजमगढ़ जिले के ही होने का जो नया खुलासा हुआ है, उसके बाद तो आतंकवाद से सख्ती के साथ निपटने के लिये यूपी सरकार के दावों की पूरी तरह से पोल खुल गयी है।