आजकल भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी देश भर में रैलिया कर रहे हैं , साठ साल कांग्रेस को दिये, साठ महीने सेवक को दें ऐसा नारा लगा रहे हैं। वायदे कर रहे हैं कि देश में रोजगार, सुशासन और विकास ला देंगे। उनके इन दावों के जवाब में कांग्रेस पार्टी मुखर होकर प्रायः यह कहती है कि वह सपने बेच रहे हैं। इसके एवज में कांग्रेस पार्टी बता रही है कि भारत निर्माण में बुहत सारा काम किया गया है। दस साल में भारत बदल गया है। कांग्रेस के इस कहे पर भी विश्वास करना चाहिए लेकिन एक बडा सवाल है कि नरेंद्र मोदी के मुकाबले कांग्रेस के जो बडे सेनापति हैं वायदा पूरा करने के मामले में उनका ट्रैक रिकार्ड बहुत ज्यादा खराब है। इसे परखने के लिये केवल उन चार घरों का जायजा लिया जाय जहां मंचीय सरोकार ना दिखाकर निजी सरोकार बनाने के वास्ते राहुल गांधी ने रात गुजारी अथवा परिजनों के साथ मिल बैठकर ऐसे क्षण व्यतीत किये जो उन घरो में रहने वाले बाशिंदों के लिये एक बड़ी थाती हो गये।
अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में राहुल गांधी ने दलित सुनीता और शिवकुमारी के घर रात गुजारी। इनके परिजनों के साथ खाना खाया। दोनों दलित परिवारों की दुर्दशा की कहानी बेहद दर्दनाक है। इन परिवारों के बच्चे अब भी एलमुनियम के कटोरों में सूखे भात खाते मिलते हैं। चार बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी संभाल रही शिवकुमारी के घर का चूल्हा भी बडी मुश्किल से जल पाता है। सुनीता और मदनलाल की माने तो राहुल ने घर की छत और फर्श बनवा देने का भरोसा दिलाया था। जो पूरा नहीं हुआ। बदतर तो ये हुआ कि 26 जनवरी 2008 के बाद उनकी जिंदगी सियासत की चौसर बन गयी। आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास ने अपने कर्मक्षेत्र के लिये राहुल के संसदीय क्षेत्र अमेठी को चुना तो उन्हें भी सुनीता और मदनलाल इसलिये याद आये क्योंकि इस अकेली जगह से वे राहुल गांधी के विकास की कलई खोल सकते थे। नतीजतन, वह इनके घर गये। कभी राहुल गांधी का मुरीद यह परिवार अब इलाकाई मंत्री गायत्री प्रसाद से मिली इमदाद पाकर इस कदर खुश है कि उसने हाथ का साथ छोड़कर साइकिल की सवारी कर ली है। हांलांकि जब राहुल गांधी जब इसके घर रुके थे तो इसके फौरन बाद सुनीता को राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के स्वंय सहायता समूह में काम मिल गया। साथ ही उसके बेरोजगार पति मदनलाल को इसी परियोजना में 9 हजार रुपये की नौकरी हाथ लग गयी। जहां से उसे दो बार तरक्की भी मिली लेकिन तीन साल दस माह बाद ही कामचोरी और अक्षमता का आरोप लगाते हुए बीते जून 2013 में नौकरी से उसे बाहर कर दिया गया। अब परिवार चलाने के लिए वह दिहाडी की मजदूरी कर रहा है। ढाई तीन साल पहले उसकी पत्नी सुनीता को लकवा मार गया। उसके कच्चे घर को किसी ने फूंक दिया। सर से छत चली गयी और सुनीता के इलाज मे काफी पैसे खर्च हो गये। माली हालात बिगडने के चलते बच्चे- अमर और सलोनी को 80 रुपये मासिक की फीस ना दे पाने के कारण स्कूल छोडना पडा। राहुल गांधी के अमेठी आने पर वो अपना दुखडा लेकर उनके पास गया था। मदनलाल की माने तो राहुल गांधी ने उसे पहचाना तक नहीं फिर भी वह मिला और रोकर अपना दुखडा बयान किया। आर्थिक मदद की गुहार की। पर हुआ कुछ नहीं। मदनलाल कांग्रेस के इस कमांडर की बेरुखी से बेहद दुखी है। वह बड़ी मायूसी से कहता है “ मेरे घर में राहुल गांधी ने रात में रुककर हम सब के साथ खाना खाया था, हमें नयी पहचान दिलायी थी, अब हमें पहचानते तक नही है.... ”।
सुनीता और मदनलाल की कहानी का “एक्सटेंशन” है अमेठी की ही शिवकुमारी। सुनीता के घर गये एक साल बीता था। राहुल पहुंच गये शिवकुमारी के घर। शिवकुमारी को लगा कि सुदामा के घर कृष्ण आ गये। शिवकुमारी को कृष्ण के साथ विष्णु के भी दर्शन हुए। यानी राहुल के साथ उनके दोस्त और ब्रिटिश विदेश राज्यमंत्री डेविड मिलिबैंड भी थे। राहुल ने शिवकुमारी का हाल पूछा, अपने फिरंगी दोस्त को बताया कि उनके संसदीय क्षेत्र में स्वयं सहायता ग्रुप के जरिये कैसे महिलाओं को ताकत दी जाती है। वाहवाही लूटी। फोटो खिंचवायी खाना खाया और चलते बने। शिवकुमारी भी बस उसके बाद टुकुर-टुकुर ताकती रहीं। इस इंतजार में कि राहुल की एक नज़र दोबारा उन पर कब पडे। उसके बाद कई बार राहुल अमेठी आये। दो बार शिवकुमारी मिलने गयी। पर रात गयी बात गयी। शिवकुमारी के हालात बिगड रहे है। सुध किसी को नहीं , बेटा दिल्ली मे मजदूरी कर रहा है, ना करे तो घर ना चले। अब राहुल के साथ उनके स्वयं सहायता समूह से भी शिवकुमारी ऊब चुकी है। चाहती है कब मुक्ति मिले।
यह कहानी अमेठी के बाहर हर उस जगह है जहां राहुल गये। श्रावस्ती में भी छेदीलाल के घर राहुल ने रात गुजारी। सुबह हैंडपंप पर नहाने का लुत्फ उठाया। छेदी के घऱ राहुल पहुंचे तो लगा दरिद्र नारायण आ गये। अब दरिद्रता कहां टिकेगी। जो कुछ घर में था बनाकर खिलाया। राहुल को देखना था कि आटे की चक्की कैसे चलती है। चक्की दिखायी, आटा पीसा, रोटी बनाकर खिलायी. राहुल ने छेदी से कहा दलितों का दर्द उनके दिल में रहता है। राहुल सामने बोल रहे थे तो शक की कहां गुंजाइश। सोचा जो कहा है वो होगा ही। पर वाह रे तेरा वादा....वादा के इंतजार में आखों का पानी सूख गया। पथराई आखों से कहते हैं, “ गांव ने नहर मांगी थी पांच साल बीत गया अभी खुदाई ही चल रही है। कहा था अस्पताल बनवा कर लोगों की सेहत सुधारेंगे। स्कूल बनाकर सीरत। पर गांव की सूरत वही है जो थी।”
झांसी के घिसौली, भदरवारा व मेढकी समेत कई गांव मे राहुल गये थे। सरकार आये….. लोगों के घर खाना खाया। दलित प्रेम का बखान किया। वादे गिनाये चले गये। राहुल के जाने के बाद किसी ने सुध नहीं ली। इन्हीं गांवों में बच्चे इलाज के बिना मर गये लेकिन राहुल तो क्या उनके सिपहसालार नेताओं ने भी उधर रुख नही किया। घिसौली में राहुल 12 मार्च 2008 को बृगभान अहिरवार के घर जा पहुंचे थे। जहां उन्होंने पानी पिया..... 30 मिनट रुके....और परिवार की समस्यायें सुनी। बृगभान बताता है “जब राहुल भैय्या हमारे घर आये तो हमें लगा हमारा नसीब खुल गया, हमने उन्हें अपने समस्या बतायी...कहा कि साहब हमारे पास 2 एकड़ पचास डिसमिल ज़मीन है, दो बेटे अच्छेलाल और जमना प्रसाद हैं। पत्नी साबो, जो मेरे बगल में बैठी थी वह हमेशा बीमार रहती है..।” राहुल ने इस दंपत्ति को आश्वासन दिया था “ एक पर्चा बनवा देंगे जिसमें निशुल्क इलाज होगा...बीपीएल राशन कार्ड बनेगा। ” हुआ कुछ नहीं। साबो लंबी बीमारी के कारण मर गयी। अच्छेलाल बीमारी के चलते गुजर गया। जिस घर में राहुल भैय्या बैठे थे वह भी गिर गया.......बडी मेहनत से दो दीवार ही उठा पाये है। मैं भी सांस की बीमारी से जूझ रहा हूं...। ” बृगभान की बहू और जमना की पत्नी फूलवती कहती है “एक भी वादा पूरा हुआ होता तो जिंदगी बदल जाती..कहा था आपका घर बनवायेंगे ...पढाई करायेंगे टूटा मकान बनवा देंगे...।”
मेंढकी गांव में राहुल गांधी 10 अगस्त 2011 को पहुंचे थे। गांव के कुंजीलाल घुबैसिया बताते हैं “ वह अचानक गांव पहुंचे...गांव का भ्रमण किया...अचानक साढे सात बजे घर की कुंडी बजी तो पोते राजीव ने दरवाजा खोला...राहुल जी ने राजीव और उसके भाई संजीव को गोद में उठाया और सीधे अंदर आ पहुंचे..मैं भी दंग रह गया कि अचानक देश के इतने बडे नेता मेरे घर कैसे आ गये...उन्होंने हमारी समस्यायें सुनीं ।” मैने भी उम्मीद भरी निगाह से आग्रह किया कि साहब मेरे दो बेटे हैं अक्सर मजदूरी के लिए भटकते रहते हैं। कुछ स्थायी काम दिलवा दें तो बड़ी मेहरबानी होगी। उन्होंने कहा कि “आपके बच्चे बहुत कम पढे-लिखे हैं फिर भी मैं कोशिश करूंगा...” कुंजीलाल की माने तो राहुल गांधी उसके दूसरे मकान में सोने चले गये जहां उसकी पत्नी ने पुक्खन पूड़ी और सब्जी खिलायी। जाते समय उन्होंने सांसद प्रदीप जैन आदित्य को हिदायत दी कि इस परिवार को कोई समस्या आये तो मदद करना। कुंजीलाल बताता है कि भारी बारिश के चलते 2012 में उसका मकान गिर गया। मैने उसकी तस्वीर खींचकर प्रदीप जैन को दी।आग्रह किया कि मकान बनवा दें। उन्होंने जिलाधिकारी को चिट्ठी लिखी। जो दफ्तर-दफ्तर होती हुई बीडीओ के पास पहुंची। उन्होंने मुझे बुलाकर कहा कि बीपीएल सूची मे नाम डलवाये बिना मदद नहीं हो पायेगी। इंदिरा आवास भी नहीं मिलेगा। दोनों बेटे लालचंद और फूलचंद बाहर मजदूरी करते हैं। लालचंद ने मोबाइल पर बताया कि वो सूरत में मजदूरी कर रहा है। कहा “ छोटा भाई फूलचंद और उसकी पत्नी दिल्ली में मजदूरी करते...कभी-कभी मेरी बीवी और हम सब परिवार के साथ वहां जाते है। एक बार मैं सपरिवार दिल्ली गया था। मैंने राहुल गांधी के करीबी बैजू को फोन लगाया, तो उन्होंने कहा कि आकर मिलो.....मैं तुम्हारी मुलाकात राहुल जी से कराता हूं.... 9 अगस्त 2013 को मैं उनके 12 तुगलक रोड आवास पर गया, उस दिन कार्यालय की छुट्टी थी, मुलाकात नहीं हो पायी...13 अगस्त को फिर से वहां गया तो सिपाही ने भगा दिया..बैजू सर से फिर से बात की तो उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें लेने आता हूं...वह चार पहिया से मुझे 10 जनपथ सोनिया जी के घर लेकर गये......जहां राहुल जी से मुलाकात हुई...उन्होंने मुझे नाश्ता कराया, बाद में रामाकृष्णा के साथ मंत्री जयप्रकाश के पास काम के लिए भेज दिया। जयप्रकाश ने कहा 7 हजार रुपये महीने मिलेंगे, अभी नौकरी कच्ची है। सात हजार रुपये काफी कम थे क्योंकि मां-बाप को भी पैसा भेजना था। इससे ज्यादा मैं अपनी मेहनत मजदूरी से कमा लेता हूं । लिहाजा मै वहां से चला आया।”
वर्ष 2011 में झांसी के बघौरा गांव में राहुल गांधी बिनिया सहरिया के घर भी पहुंचे थे। जहां उन्होंने खाना खाया और मनरेगा का काम भी देखा। उसी बिनिया को गांव के एक दबंग ने खूब पीटा पर राहुल गांधी के उसके घर जाने के बाद उसकी हैसियत इतनी भी नहीं बन सकी कि बबीना थानाध्यक्ष उसकी पिटाई की प्राथमिकी तक दर्ज करते।
जिन-जिन गांवों में राहुल गये और वहां जिनके पास भी इंदिरा आवास ये बताना नहीं भूले कि जिस घर में वे रह रहे हैं वो उनके खानदान की नेता के नाम पर है। पर इतिहास की इबारत से बाहर निकल कर वर्तमान का सच और भविष्य की तस्वीर काफी धुंधली ही दिख रही है। बकौल कांग्रेसी राहुल देश का भविष्य हैं, पर मायूस चेहरे और वादों के इंतजार में पडी आंखें सिर्फ शिकायत कर रही हैं।
अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में राहुल गांधी ने दलित सुनीता और शिवकुमारी के घर रात गुजारी। इनके परिजनों के साथ खाना खाया। दोनों दलित परिवारों की दुर्दशा की कहानी बेहद दर्दनाक है। इन परिवारों के बच्चे अब भी एलमुनियम के कटोरों में सूखे भात खाते मिलते हैं। चार बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी संभाल रही शिवकुमारी के घर का चूल्हा भी बडी मुश्किल से जल पाता है। सुनीता और मदनलाल की माने तो राहुल ने घर की छत और फर्श बनवा देने का भरोसा दिलाया था। जो पूरा नहीं हुआ। बदतर तो ये हुआ कि 26 जनवरी 2008 के बाद उनकी जिंदगी सियासत की चौसर बन गयी। आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास ने अपने कर्मक्षेत्र के लिये राहुल के संसदीय क्षेत्र अमेठी को चुना तो उन्हें भी सुनीता और मदनलाल इसलिये याद आये क्योंकि इस अकेली जगह से वे राहुल गांधी के विकास की कलई खोल सकते थे। नतीजतन, वह इनके घर गये। कभी राहुल गांधी का मुरीद यह परिवार अब इलाकाई मंत्री गायत्री प्रसाद से मिली इमदाद पाकर इस कदर खुश है कि उसने हाथ का साथ छोड़कर साइकिल की सवारी कर ली है। हांलांकि जब राहुल गांधी जब इसके घर रुके थे तो इसके फौरन बाद सुनीता को राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के स्वंय सहायता समूह में काम मिल गया। साथ ही उसके बेरोजगार पति मदनलाल को इसी परियोजना में 9 हजार रुपये की नौकरी हाथ लग गयी। जहां से उसे दो बार तरक्की भी मिली लेकिन तीन साल दस माह बाद ही कामचोरी और अक्षमता का आरोप लगाते हुए बीते जून 2013 में नौकरी से उसे बाहर कर दिया गया। अब परिवार चलाने के लिए वह दिहाडी की मजदूरी कर रहा है। ढाई तीन साल पहले उसकी पत्नी सुनीता को लकवा मार गया। उसके कच्चे घर को किसी ने फूंक दिया। सर से छत चली गयी और सुनीता के इलाज मे काफी पैसे खर्च हो गये। माली हालात बिगडने के चलते बच्चे- अमर और सलोनी को 80 रुपये मासिक की फीस ना दे पाने के कारण स्कूल छोडना पडा। राहुल गांधी के अमेठी आने पर वो अपना दुखडा लेकर उनके पास गया था। मदनलाल की माने तो राहुल गांधी ने उसे पहचाना तक नहीं फिर भी वह मिला और रोकर अपना दुखडा बयान किया। आर्थिक मदद की गुहार की। पर हुआ कुछ नहीं। मदनलाल कांग्रेस के इस कमांडर की बेरुखी से बेहद दुखी है। वह बड़ी मायूसी से कहता है “ मेरे घर में राहुल गांधी ने रात में रुककर हम सब के साथ खाना खाया था, हमें नयी पहचान दिलायी थी, अब हमें पहचानते तक नही है.... ”।
सुनीता और मदनलाल की कहानी का “एक्सटेंशन” है अमेठी की ही शिवकुमारी। सुनीता के घर गये एक साल बीता था। राहुल पहुंच गये शिवकुमारी के घर। शिवकुमारी को लगा कि सुदामा के घर कृष्ण आ गये। शिवकुमारी को कृष्ण के साथ विष्णु के भी दर्शन हुए। यानी राहुल के साथ उनके दोस्त और ब्रिटिश विदेश राज्यमंत्री डेविड मिलिबैंड भी थे। राहुल ने शिवकुमारी का हाल पूछा, अपने फिरंगी दोस्त को बताया कि उनके संसदीय क्षेत्र में स्वयं सहायता ग्रुप के जरिये कैसे महिलाओं को ताकत दी जाती है। वाहवाही लूटी। फोटो खिंचवायी खाना खाया और चलते बने। शिवकुमारी भी बस उसके बाद टुकुर-टुकुर ताकती रहीं। इस इंतजार में कि राहुल की एक नज़र दोबारा उन पर कब पडे। उसके बाद कई बार राहुल अमेठी आये। दो बार शिवकुमारी मिलने गयी। पर रात गयी बात गयी। शिवकुमारी के हालात बिगड रहे है। सुध किसी को नहीं , बेटा दिल्ली मे मजदूरी कर रहा है, ना करे तो घर ना चले। अब राहुल के साथ उनके स्वयं सहायता समूह से भी शिवकुमारी ऊब चुकी है। चाहती है कब मुक्ति मिले।
यह कहानी अमेठी के बाहर हर उस जगह है जहां राहुल गये। श्रावस्ती में भी छेदीलाल के घर राहुल ने रात गुजारी। सुबह हैंडपंप पर नहाने का लुत्फ उठाया। छेदी के घऱ राहुल पहुंचे तो लगा दरिद्र नारायण आ गये। अब दरिद्रता कहां टिकेगी। जो कुछ घर में था बनाकर खिलाया। राहुल को देखना था कि आटे की चक्की कैसे चलती है। चक्की दिखायी, आटा पीसा, रोटी बनाकर खिलायी. राहुल ने छेदी से कहा दलितों का दर्द उनके दिल में रहता है। राहुल सामने बोल रहे थे तो शक की कहां गुंजाइश। सोचा जो कहा है वो होगा ही। पर वाह रे तेरा वादा....वादा के इंतजार में आखों का पानी सूख गया। पथराई आखों से कहते हैं, “ गांव ने नहर मांगी थी पांच साल बीत गया अभी खुदाई ही चल रही है। कहा था अस्पताल बनवा कर लोगों की सेहत सुधारेंगे। स्कूल बनाकर सीरत। पर गांव की सूरत वही है जो थी।”
झांसी के घिसौली, भदरवारा व मेढकी समेत कई गांव मे राहुल गये थे। सरकार आये….. लोगों के घर खाना खाया। दलित प्रेम का बखान किया। वादे गिनाये चले गये। राहुल के जाने के बाद किसी ने सुध नहीं ली। इन्हीं गांवों में बच्चे इलाज के बिना मर गये लेकिन राहुल तो क्या उनके सिपहसालार नेताओं ने भी उधर रुख नही किया। घिसौली में राहुल 12 मार्च 2008 को बृगभान अहिरवार के घर जा पहुंचे थे। जहां उन्होंने पानी पिया..... 30 मिनट रुके....और परिवार की समस्यायें सुनी। बृगभान बताता है “जब राहुल भैय्या हमारे घर आये तो हमें लगा हमारा नसीब खुल गया, हमने उन्हें अपने समस्या बतायी...कहा कि साहब हमारे पास 2 एकड़ पचास डिसमिल ज़मीन है, दो बेटे अच्छेलाल और जमना प्रसाद हैं। पत्नी साबो, जो मेरे बगल में बैठी थी वह हमेशा बीमार रहती है..।” राहुल ने इस दंपत्ति को आश्वासन दिया था “ एक पर्चा बनवा देंगे जिसमें निशुल्क इलाज होगा...बीपीएल राशन कार्ड बनेगा। ” हुआ कुछ नहीं। साबो लंबी बीमारी के कारण मर गयी। अच्छेलाल बीमारी के चलते गुजर गया। जिस घर में राहुल भैय्या बैठे थे वह भी गिर गया.......बडी मेहनत से दो दीवार ही उठा पाये है। मैं भी सांस की बीमारी से जूझ रहा हूं...। ” बृगभान की बहू और जमना की पत्नी फूलवती कहती है “एक भी वादा पूरा हुआ होता तो जिंदगी बदल जाती..कहा था आपका घर बनवायेंगे ...पढाई करायेंगे टूटा मकान बनवा देंगे...।”
मेंढकी गांव में राहुल गांधी 10 अगस्त 2011 को पहुंचे थे। गांव के कुंजीलाल घुबैसिया बताते हैं “ वह अचानक गांव पहुंचे...गांव का भ्रमण किया...अचानक साढे सात बजे घर की कुंडी बजी तो पोते राजीव ने दरवाजा खोला...राहुल जी ने राजीव और उसके भाई संजीव को गोद में उठाया और सीधे अंदर आ पहुंचे..मैं भी दंग रह गया कि अचानक देश के इतने बडे नेता मेरे घर कैसे आ गये...उन्होंने हमारी समस्यायें सुनीं ।” मैने भी उम्मीद भरी निगाह से आग्रह किया कि साहब मेरे दो बेटे हैं अक्सर मजदूरी के लिए भटकते रहते हैं। कुछ स्थायी काम दिलवा दें तो बड़ी मेहरबानी होगी। उन्होंने कहा कि “आपके बच्चे बहुत कम पढे-लिखे हैं फिर भी मैं कोशिश करूंगा...” कुंजीलाल की माने तो राहुल गांधी उसके दूसरे मकान में सोने चले गये जहां उसकी पत्नी ने पुक्खन पूड़ी और सब्जी खिलायी। जाते समय उन्होंने सांसद प्रदीप जैन आदित्य को हिदायत दी कि इस परिवार को कोई समस्या आये तो मदद करना। कुंजीलाल बताता है कि भारी बारिश के चलते 2012 में उसका मकान गिर गया। मैने उसकी तस्वीर खींचकर प्रदीप जैन को दी।आग्रह किया कि मकान बनवा दें। उन्होंने जिलाधिकारी को चिट्ठी लिखी। जो दफ्तर-दफ्तर होती हुई बीडीओ के पास पहुंची। उन्होंने मुझे बुलाकर कहा कि बीपीएल सूची मे नाम डलवाये बिना मदद नहीं हो पायेगी। इंदिरा आवास भी नहीं मिलेगा। दोनों बेटे लालचंद और फूलचंद बाहर मजदूरी करते हैं। लालचंद ने मोबाइल पर बताया कि वो सूरत में मजदूरी कर रहा है। कहा “ छोटा भाई फूलचंद और उसकी पत्नी दिल्ली में मजदूरी करते...कभी-कभी मेरी बीवी और हम सब परिवार के साथ वहां जाते है। एक बार मैं सपरिवार दिल्ली गया था। मैंने राहुल गांधी के करीबी बैजू को फोन लगाया, तो उन्होंने कहा कि आकर मिलो.....मैं तुम्हारी मुलाकात राहुल जी से कराता हूं.... 9 अगस्त 2013 को मैं उनके 12 तुगलक रोड आवास पर गया, उस दिन कार्यालय की छुट्टी थी, मुलाकात नहीं हो पायी...13 अगस्त को फिर से वहां गया तो सिपाही ने भगा दिया..बैजू सर से फिर से बात की तो उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें लेने आता हूं...वह चार पहिया से मुझे 10 जनपथ सोनिया जी के घर लेकर गये......जहां राहुल जी से मुलाकात हुई...उन्होंने मुझे नाश्ता कराया, बाद में रामाकृष्णा के साथ मंत्री जयप्रकाश के पास काम के लिए भेज दिया। जयप्रकाश ने कहा 7 हजार रुपये महीने मिलेंगे, अभी नौकरी कच्ची है। सात हजार रुपये काफी कम थे क्योंकि मां-बाप को भी पैसा भेजना था। इससे ज्यादा मैं अपनी मेहनत मजदूरी से कमा लेता हूं । लिहाजा मै वहां से चला आया।”
वर्ष 2011 में झांसी के बघौरा गांव में राहुल गांधी बिनिया सहरिया के घर भी पहुंचे थे। जहां उन्होंने खाना खाया और मनरेगा का काम भी देखा। उसी बिनिया को गांव के एक दबंग ने खूब पीटा पर राहुल गांधी के उसके घर जाने के बाद उसकी हैसियत इतनी भी नहीं बन सकी कि बबीना थानाध्यक्ष उसकी पिटाई की प्राथमिकी तक दर्ज करते।
जिन-जिन गांवों में राहुल गये और वहां जिनके पास भी इंदिरा आवास ये बताना नहीं भूले कि जिस घर में वे रह रहे हैं वो उनके खानदान की नेता के नाम पर है। पर इतिहास की इबारत से बाहर निकल कर वर्तमान का सच और भविष्य की तस्वीर काफी धुंधली ही दिख रही है। बकौल कांग्रेसी राहुल देश का भविष्य हैं, पर मायूस चेहरे और वादों के इंतजार में पडी आंखें सिर्फ शिकायत कर रही हैं।