अच्छे दिन आने की बात भले ही भारत में लोगों के गले ना उतर पा रही हो। पर दुनिया में भारत के अच्छे दिनों की सुगबुगाहट स्वीकार की जाने लगी है। खाडी देश यमन के हालात में भारत की भूमिका इसे पुष्ट करती है। तभी तो 41 देशों में भारत के ‘आपरेशन राहत’ को लेकर न सिर्फ वाहवाही हो रही है, बकल्कि वहां के नागरिक भी अपने देश से ज्यादा भारत के गुणगान कर रहे हैं। आपरेशन राहत में भारत की सफलता का पैमाना इससे भी नापा जा सकता है कि खुद अमरीका, जर्मनी, स्वीडन, फ्रांस, हंगरी, जैसे देशों ने अपने नागरिकों को बाहर निकालने के लिए भारत से मदद की गुहार की। वैसे तो खाडी देश तुर्की, मिस्र इराक और यमन भी अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए भारत का मुंह ताकते नजर आये। मदद मांगने वाले देशों की फेहरिस्त में इंडोनेशिया, आयरलैण्ड, बंगलादेश, क्यूबा, चेक गणराज्य, जिबूती, लेबनान, मलेशिया, नेपाल, फिलीपीन्स, रोमानिया, स्लोवेनिया, श्रीलंका और सिंगापुर भी शामिल है।
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमरीका ने तो अपने नागरिकों को भारत भरोसे रहने की बाकयदा ‘एडवाइजरी’ जारी कर दी थी। अमरीकी दूतावास की वेबसाइट पर प्रकाशित इस ‘एडवाइजरी’ में दूतावास ने बाकयदा भारतीय दूतावास में तैनात सचिव राज कोपल से संपर्क करने को कहा। अमरीका ने यह भी कहा कि अमरीकी नागरिकों को अभी बाहर निकालने का उनकी सरकार को कोई ‘रेस्क्यू’ आपरेशन नहीं चल रहा है। ऐसे में वो विकल्पों पर ध्यान दें।
शिया बाहुल्य यमन में वर्ष 2012 तक राष्ट्रपति रहे अब्दुल्ला सालेह के शासन के अंतिम महीनों से समस्या शुरु हुई। वर्ष 1978 से वर्ष 2012 तक उनके एकछत्र राज के खिलाफ नवंबर, 2011 में शिया विद्रोहियों ने विरोध प्रदर्शन शुरु किये। लिहाजा 27 फरवरी, 2012 को ए.एम. हादी ने राष्ट्रपति का पद संभाला। चूंकि हादी भी सुन्नी थे, इसलिए शिया विद्रोहियों ने इनका भी विरोध जारी रखा। हादी को दक्षिणी यमन के अदन शहर में शरण लेनी पडी। नतीजतन, राजधानी सन्नाह पर शिया विद्रोहियों का कब्जा हो गया। माना जा रहा है कि शिया विद्रिहियों (हौती) को खाडी के शिया बाहुल्य शक्ति केंद्र ईरान से मदद मिल रही है। हांलांकि दोनों ही इसका खंडन कर रहे हैं। सऊदी अरब की सीमा यमन से लगती है। यमन के बेदखल राष्ट्रपति अबद रब्बूह मंसूर हादी के अनुरोध पर 26 मार्च, 2015 को सऊदी अरब ने यमन पर हवाई हमले किए। राजधानी सना पर काबिज ईरान समर्थित शिया विद्रोहियों पर नौसैन्य नकेल कसने की कोशिश की। सऊदी अरब ने एक सुन्नी गठजोड़ का आह्वान किया। कतर, मोरक्को, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, जॉर्डन और सूडान ने इस पर हस्ताक्षर किए। लेकिन तुर्की और पाकिस्तान इसमें पीछे रह गए।
दरअसल, यमन के तेल भंडार की वजह से सउदी अरब और अमरीकापरस्त सुन्नी देशों की नजर उस पर है। ईरान शिया विद्रोहियों के जरिये इस पर कब्जा हासिल करना चाहता है। आई.एस.आई.एस. (इस्लामिक स्टेट आॅफ ईराक एण्ड लेवेंट) और अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों के लिए यह देश अमरीका के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए रणनैतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। ऐसे में छिडे युद्ध में हर देश ने अपने नागरिकों को 26 मार्च, 2015 के बाद से बाहर निकलने की एडवाइजरी जारी कर दूतावास बंद कर दिये।
सभी देशों ने ‘एजवाइजरी’ जारी कर अपने कामों की इतिश्री मान ली। भारत ने इससे आगे बढकर ‘आपरेशन राहत’ शुरु किया। जिसमें ना सिर्फ अपने 4640 नागरिकों को बल्कि 41 देशों के करीब एक हजार नागरिकों को राहत मिली। आपरेशन राहत के तीन हीरो हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और और कमांडो से कमांडर बने विदेश राज्य मंत्री जनरल वी.के. सिंह। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सउदी अरब के बीच की कूटनीति ने इस अभियान में बहुत ही अहम भूमिका निभाई। इस अभियान में भारत ने यमन का पक्ष नहीं लिया। नतीजतन, सउदी अरब ने भारत के ऑपरेशन राहत में भारत का पूरा समर्थन किया। इसी कूटनीति का परिणाम था कि भारत ने उस सउदी अरब से तालमेल बिठाया, जिसने यमन में हर अहम जगह पर अपनी सेना को तैनात कर दिया था।
यमन और सउदी के बीच विवाद पर भारत ने अपनी कोई स्थिति जाहिर नहीं की बल्कि तटस्थता के सिद्धांत पर चलने का फैसला लिया। जिसका फायदा भारत को पूरी तरह से मिला। लेकिन भारत की यह कोशिश रहती है कि मानवीय आधार पर ऐसे मौकों पर अपनी राय रखी जाए। भारत ने इस मसले पर हस्तक्षेप नहीं कर यह संदेश दिया कि भारतियों को यमन में अपना दुश्मन नहीं माना गया, जिसके चलते भारत को अपने नागरिकों को वहां से सकुशल वापस लाने में सफलता मिली।
भारतीय नागरिकों को यमन से सुरक्षित निकालने के लिए कई नियमों और कानूनों से बचने के लिए भारत ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की अगुवाई में अपने शीर्ष मंत्रियों को इस अभियान में लगाया। सामान्य हालात में ऐसे अभियान में हर वक्त विदेश मंत्री से इजाजत मांगनी पड़ती है। पर इस ‘आपरेशन राहत’ को लाल फीताशाही से नहीं जूझना पड़ा।
पूर्व के अनुभवों और खुफिया एजेंसियों ने निभायी अहम भूमिका भारत को राहत और बचाव कार्य को अंजाम देने का बेहद ही लंबा अनुभव है। हाल ही में भारत ने इराक में खूनी घमासान से भारतीयों को वापस लाने में जबरदस्त सफलता पायी थी। वर्ष 2011 में भारत ने लिबिया और वर्ष 2006 में लेबनान में भी राहत कार्य को बेहद ही कुशलता से अंजाम दिया गया था। इन हालातों में भारत की खुफिया एजेंसियों ने भी अहम भूमिका निभाई थी। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर भारत ने हर समय तत्कालीन परिस्थितियों से राहत एवं बचाव कार्य में लगी टीम की मदद की, जिसने ऐसे अभियान को सफल बनाने में मदद की, अमेरिका और सउदी अरब की खुफिया एजेंसियों ने भी की, मदद के इन्ही अनुभवों को भारत ने यमन अभियान में भी प्रयोग किया।
इस पूरे मिशन के सबसे बडे हीरो के तौर पर उभरे भारत के विदेश राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह। विदेश राज्य मंत्री वी.के. सिंह ने खुद इस पूरे अभियान की अगुवाई की और यमन में एक -एक भारतीय को बाहर निकाला। जनरल वी.के सिंह के बारे में शायद लोगों को पता न हो कि कमांडो से सेनाध्यक्ष के सबसे ऊंचे ओहदे तक पहुंचने वाले पहले वह षख्स थे। पहली बार हुआ है जब एक विदेशी जमीन पर जो गृह युद्ध की आग में जल रहा है, भारत सरकार का केंद्रीय मंत्री हिंदुस्तानियों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए सबसे बड़ा ऑपरेशन मिशन चला रहा था। वह मिशन जो एक साथ तीन देशों के तीन शहरों के बीच था। लेकिन इस मिशन का कंट्रोल रूम जनरल के दिमाग में था। तभी तो जनरल कभी यमन की राजधानी सना से राहत ऑपरेशन का निर्देशन करते, तो कभी पड़ोसी देश रिपब्लिक ऑफ दिबूती और अदन पहुंच जाते, इसी बीच वह भारतीयों को लेकर उड़ने वाले पायलट तक से रूबरू होते रहते ।
कितने विकट हालात में जनरल ने मिशन को अंजाम दिया इसकी बानगी यह है कि 3 अप्रैल, 2015 को जब वह यमन की राजधानी सना पहुंचे थे, तब सऊदी अरब समर्थित लड़ाकू जहाज बम बरसा रहे थे। जनरल कुछ भारतीयों को हवाई जहाज से दिबूति ले जाना चाहते थे, लेकिन भारी गोलीबारी की वजह से यह संभव नहीं हुआ। किराये की कारों से किसी तरह से भारतीयों को अदन पहुंचाया गया। यहां एक और मुश्किल खड़ी थी। अदन बदंरगाह के पास भारतीय नौसेना के युद्धपोत आईएनएस मुंबई को पहुंचना था, लेकिन अदन बंदरगाह के पास भयंकर गोलीबारी हो रही थी। आईएनएस मुंबई बंदरगाह में दाखिल नहीं हो सका। 12 छोटी नौकाओं को भारत ने किराए पर लिया। छोटी नौकाओं से भारतीयों को युद्धपोत तक ले जाया गया। छोटी नौकाओं के जरिए लोगों को आईएनएस मुंबई तक पहुंचाना बेहत मुश्किल ऑपरेशन था, लेकिन यहां पर जनरल वी.के. सिंह का फौजी तजुर्बा काम आया, जिसकी बदौलत सैकड़ों लोगों को युद्धपोत तक पहुंचाया जा सका।इतना ही नहीं, भारत सरकार ने यमन से निकल कर दिबूती जाने की कोशिश कर रहे अमेरिकी नागरिकों की मदद की पेशकश की। लोग हैरान रह गए कि जिस अमेरिका का समुद्री बेड़ा अदन की खाड़ी में डेरा डाले है, उसे आखिर भारत की मदद की जरूरत क्यों पड़ी। फ्रांस ने भी मदद मांगी। भारत ने 41 देशों के नागरिकों को यमन से बाहर निकाला। दरअसल, आपरेशन राहत विदेश मंत्रालय, नौ सेना, वायु सेना, एयर इंडिया, जहाजरानी, रेलवे और राज्य सरकारों के बीच समन्वय का बेहतरीन उदाहरण है। तभी तो भारत ने अपने सबसे नये नागरिक तीन दिन के बच्चे को भी इन्क्यूबेटर समेत यमन की गोलीबारी से बचा लिया।
बुधवार 8 अप्रैल, 2015 को देर शाम देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक ट्वीट आया, जो ट्वीट जनरल के लिए शाबाशी का था। जनरल की शान में जारी मोदी के ट्वीट में लिखा है- “ मानवता की सेवा सर्वोपरि है, ये किसी सरहद में नहीं बंधती। हम खुश हैं कि हमने यमन से लोगों को बाहर निकालने में कई देशों की मदद की। हमने अपने पड़ोसियों बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की सहायता की।” इस ट्वीट को अगर ध्यान से पढा जाय तो यह हिंद महासागर के एक बिग ब्रदर की भूमिका में आ चुके देश के राष्ट्राध्यक्ष का ट्वीट है। चीन की ताकत और हिंद महासागर के देशों में उसकी भूमिका से परेशान भारत ने इस मुसीबत की घड़ी में जिस तरह से इन देशों के नागरिकों को राहत दी है, वह राहत चीन की सैन्य ताकत का जवाब बन सकती है। ताकत के साथ जिम्मेदारी का यह रुख भारत को हिंद महासागर के निर्विवाद नेता के तौर पर स्थापित कर सकता है। क्योंकि नेता की असली परीक्षा तो विपत्ति के समय ही होती है और इसमें भारत खरा उतरा है।
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमरीका ने तो अपने नागरिकों को भारत भरोसे रहने की बाकयदा ‘एडवाइजरी’ जारी कर दी थी। अमरीकी दूतावास की वेबसाइट पर प्रकाशित इस ‘एडवाइजरी’ में दूतावास ने बाकयदा भारतीय दूतावास में तैनात सचिव राज कोपल से संपर्क करने को कहा। अमरीका ने यह भी कहा कि अमरीकी नागरिकों को अभी बाहर निकालने का उनकी सरकार को कोई ‘रेस्क्यू’ आपरेशन नहीं चल रहा है। ऐसे में वो विकल्पों पर ध्यान दें।
शिया बाहुल्य यमन में वर्ष 2012 तक राष्ट्रपति रहे अब्दुल्ला सालेह के शासन के अंतिम महीनों से समस्या शुरु हुई। वर्ष 1978 से वर्ष 2012 तक उनके एकछत्र राज के खिलाफ नवंबर, 2011 में शिया विद्रोहियों ने विरोध प्रदर्शन शुरु किये। लिहाजा 27 फरवरी, 2012 को ए.एम. हादी ने राष्ट्रपति का पद संभाला। चूंकि हादी भी सुन्नी थे, इसलिए शिया विद्रोहियों ने इनका भी विरोध जारी रखा। हादी को दक्षिणी यमन के अदन शहर में शरण लेनी पडी। नतीजतन, राजधानी सन्नाह पर शिया विद्रोहियों का कब्जा हो गया। माना जा रहा है कि शिया विद्रिहियों (हौती) को खाडी के शिया बाहुल्य शक्ति केंद्र ईरान से मदद मिल रही है। हांलांकि दोनों ही इसका खंडन कर रहे हैं। सऊदी अरब की सीमा यमन से लगती है। यमन के बेदखल राष्ट्रपति अबद रब्बूह मंसूर हादी के अनुरोध पर 26 मार्च, 2015 को सऊदी अरब ने यमन पर हवाई हमले किए। राजधानी सना पर काबिज ईरान समर्थित शिया विद्रोहियों पर नौसैन्य नकेल कसने की कोशिश की। सऊदी अरब ने एक सुन्नी गठजोड़ का आह्वान किया। कतर, मोरक्को, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, जॉर्डन और सूडान ने इस पर हस्ताक्षर किए। लेकिन तुर्की और पाकिस्तान इसमें पीछे रह गए।
दरअसल, यमन के तेल भंडार की वजह से सउदी अरब और अमरीकापरस्त सुन्नी देशों की नजर उस पर है। ईरान शिया विद्रोहियों के जरिये इस पर कब्जा हासिल करना चाहता है। आई.एस.आई.एस. (इस्लामिक स्टेट आॅफ ईराक एण्ड लेवेंट) और अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों के लिए यह देश अमरीका के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए रणनैतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। ऐसे में छिडे युद्ध में हर देश ने अपने नागरिकों को 26 मार्च, 2015 के बाद से बाहर निकलने की एडवाइजरी जारी कर दूतावास बंद कर दिये।
सभी देशों ने ‘एजवाइजरी’ जारी कर अपने कामों की इतिश्री मान ली। भारत ने इससे आगे बढकर ‘आपरेशन राहत’ शुरु किया। जिसमें ना सिर्फ अपने 4640 नागरिकों को बल्कि 41 देशों के करीब एक हजार नागरिकों को राहत मिली। आपरेशन राहत के तीन हीरो हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और और कमांडो से कमांडर बने विदेश राज्य मंत्री जनरल वी.के. सिंह। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सउदी अरब के बीच की कूटनीति ने इस अभियान में बहुत ही अहम भूमिका निभाई। इस अभियान में भारत ने यमन का पक्ष नहीं लिया। नतीजतन, सउदी अरब ने भारत के ऑपरेशन राहत में भारत का पूरा समर्थन किया। इसी कूटनीति का परिणाम था कि भारत ने उस सउदी अरब से तालमेल बिठाया, जिसने यमन में हर अहम जगह पर अपनी सेना को तैनात कर दिया था।
यमन और सउदी के बीच विवाद पर भारत ने अपनी कोई स्थिति जाहिर नहीं की बल्कि तटस्थता के सिद्धांत पर चलने का फैसला लिया। जिसका फायदा भारत को पूरी तरह से मिला। लेकिन भारत की यह कोशिश रहती है कि मानवीय आधार पर ऐसे मौकों पर अपनी राय रखी जाए। भारत ने इस मसले पर हस्तक्षेप नहीं कर यह संदेश दिया कि भारतियों को यमन में अपना दुश्मन नहीं माना गया, जिसके चलते भारत को अपने नागरिकों को वहां से सकुशल वापस लाने में सफलता मिली।
भारतीय नागरिकों को यमन से सुरक्षित निकालने के लिए कई नियमों और कानूनों से बचने के लिए भारत ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की अगुवाई में अपने शीर्ष मंत्रियों को इस अभियान में लगाया। सामान्य हालात में ऐसे अभियान में हर वक्त विदेश मंत्री से इजाजत मांगनी पड़ती है। पर इस ‘आपरेशन राहत’ को लाल फीताशाही से नहीं जूझना पड़ा।
पूर्व के अनुभवों और खुफिया एजेंसियों ने निभायी अहम भूमिका भारत को राहत और बचाव कार्य को अंजाम देने का बेहद ही लंबा अनुभव है। हाल ही में भारत ने इराक में खूनी घमासान से भारतीयों को वापस लाने में जबरदस्त सफलता पायी थी। वर्ष 2011 में भारत ने लिबिया और वर्ष 2006 में लेबनान में भी राहत कार्य को बेहद ही कुशलता से अंजाम दिया गया था। इन हालातों में भारत की खुफिया एजेंसियों ने भी अहम भूमिका निभाई थी। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर भारत ने हर समय तत्कालीन परिस्थितियों से राहत एवं बचाव कार्य में लगी टीम की मदद की, जिसने ऐसे अभियान को सफल बनाने में मदद की, अमेरिका और सउदी अरब की खुफिया एजेंसियों ने भी की, मदद के इन्ही अनुभवों को भारत ने यमन अभियान में भी प्रयोग किया।
इस पूरे मिशन के सबसे बडे हीरो के तौर पर उभरे भारत के विदेश राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह। विदेश राज्य मंत्री वी.के. सिंह ने खुद इस पूरे अभियान की अगुवाई की और यमन में एक -एक भारतीय को बाहर निकाला। जनरल वी.के सिंह के बारे में शायद लोगों को पता न हो कि कमांडो से सेनाध्यक्ष के सबसे ऊंचे ओहदे तक पहुंचने वाले पहले वह षख्स थे। पहली बार हुआ है जब एक विदेशी जमीन पर जो गृह युद्ध की आग में जल रहा है, भारत सरकार का केंद्रीय मंत्री हिंदुस्तानियों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए सबसे बड़ा ऑपरेशन मिशन चला रहा था। वह मिशन जो एक साथ तीन देशों के तीन शहरों के बीच था। लेकिन इस मिशन का कंट्रोल रूम जनरल के दिमाग में था। तभी तो जनरल कभी यमन की राजधानी सना से राहत ऑपरेशन का निर्देशन करते, तो कभी पड़ोसी देश रिपब्लिक ऑफ दिबूती और अदन पहुंच जाते, इसी बीच वह भारतीयों को लेकर उड़ने वाले पायलट तक से रूबरू होते रहते ।
कितने विकट हालात में जनरल ने मिशन को अंजाम दिया इसकी बानगी यह है कि 3 अप्रैल, 2015 को जब वह यमन की राजधानी सना पहुंचे थे, तब सऊदी अरब समर्थित लड़ाकू जहाज बम बरसा रहे थे। जनरल कुछ भारतीयों को हवाई जहाज से दिबूति ले जाना चाहते थे, लेकिन भारी गोलीबारी की वजह से यह संभव नहीं हुआ। किराये की कारों से किसी तरह से भारतीयों को अदन पहुंचाया गया। यहां एक और मुश्किल खड़ी थी। अदन बदंरगाह के पास भारतीय नौसेना के युद्धपोत आईएनएस मुंबई को पहुंचना था, लेकिन अदन बंदरगाह के पास भयंकर गोलीबारी हो रही थी। आईएनएस मुंबई बंदरगाह में दाखिल नहीं हो सका। 12 छोटी नौकाओं को भारत ने किराए पर लिया। छोटी नौकाओं से भारतीयों को युद्धपोत तक ले जाया गया। छोटी नौकाओं के जरिए लोगों को आईएनएस मुंबई तक पहुंचाना बेहत मुश्किल ऑपरेशन था, लेकिन यहां पर जनरल वी.के. सिंह का फौजी तजुर्बा काम आया, जिसकी बदौलत सैकड़ों लोगों को युद्धपोत तक पहुंचाया जा सका।इतना ही नहीं, भारत सरकार ने यमन से निकल कर दिबूती जाने की कोशिश कर रहे अमेरिकी नागरिकों की मदद की पेशकश की। लोग हैरान रह गए कि जिस अमेरिका का समुद्री बेड़ा अदन की खाड़ी में डेरा डाले है, उसे आखिर भारत की मदद की जरूरत क्यों पड़ी। फ्रांस ने भी मदद मांगी। भारत ने 41 देशों के नागरिकों को यमन से बाहर निकाला। दरअसल, आपरेशन राहत विदेश मंत्रालय, नौ सेना, वायु सेना, एयर इंडिया, जहाजरानी, रेलवे और राज्य सरकारों के बीच समन्वय का बेहतरीन उदाहरण है। तभी तो भारत ने अपने सबसे नये नागरिक तीन दिन के बच्चे को भी इन्क्यूबेटर समेत यमन की गोलीबारी से बचा लिया।
बुधवार 8 अप्रैल, 2015 को देर शाम देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक ट्वीट आया, जो ट्वीट जनरल के लिए शाबाशी का था। जनरल की शान में जारी मोदी के ट्वीट में लिखा है- “ मानवता की सेवा सर्वोपरि है, ये किसी सरहद में नहीं बंधती। हम खुश हैं कि हमने यमन से लोगों को बाहर निकालने में कई देशों की मदद की। हमने अपने पड़ोसियों बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की सहायता की।” इस ट्वीट को अगर ध्यान से पढा जाय तो यह हिंद महासागर के एक बिग ब्रदर की भूमिका में आ चुके देश के राष्ट्राध्यक्ष का ट्वीट है। चीन की ताकत और हिंद महासागर के देशों में उसकी भूमिका से परेशान भारत ने इस मुसीबत की घड़ी में जिस तरह से इन देशों के नागरिकों को राहत दी है, वह राहत चीन की सैन्य ताकत का जवाब बन सकती है। ताकत के साथ जिम्मेदारी का यह रुख भारत को हिंद महासागर के निर्विवाद नेता के तौर पर स्थापित कर सकता है। क्योंकि नेता की असली परीक्षा तो विपत्ति के समय ही होती है और इसमें भारत खरा उतरा है।