‘‘घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का संत।’’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निश्चित तौर पर इस कहावत का बिलकुल ठीक अर्थ समझते हैं। हांलांकि उनके इस समझ की समझ विपक्ष को नहीं है। यही वजह है कि विपक्ष उन मुद्दों और सवालों पर उनकी आलोचना को तूल दे रहा है, जो घर के जोगी नरेंद्र मोदी को विदेश का संत बनाने और बताने में जुटे हुए हैं। भारत के आजादी के ठीक एक साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यह समझ आ गयी। तभी तो वर्ष वर्ष 1948 से नेहरु ने विदेश जाने का सिलसिला शुरु किया। वह समझ गये थे कि विदेश में मान्यता मिलेगी तो भारत की जनता मान लेगी, स्वीकार कर लेगी। यह समझ इंदिरा गांधी को भी थी। हांलांकि उसके बाद और उसके पहले के प्रधानमंत्री इस समझ से उस तरह वाकिफ नहीं थे। पर नेहरू और इंदिरा की इस समझ से नरेंद्र मोदी की समझ इसलिए और आगे की कही जायेगी क्योंकि इंदिरा और नेहरु विदेश से संबंध बढाने पर काम कर रहे थे। नरेंद्र मोदी गुजराती हैं। वह खुद कहते हैं कि गुजराती सबसे अच्छा कारोबारी होता है, लिहाजा उन्होंने विदेश से संबंध बनाने के साथ-साथ भारत में ‘मेक इन इंडिया’ के मार्फत पैसा भी बढा रहे हैं। नरेंद्र मोदी की ही पार्टी भाजपा के नेता और प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि हम यह नहीं तय कर सकते कि हमारा पड़ोसी कौन होगा। देश और विश्व के संदर्भ में यह भूगोल तय करता है। मोदी को लगने लगा है कि जब पड़ोसी बदले नहीं जा सकते तो संबंध तो बदले जा सकते हैं। पारस्परिक विश्वास और सौहार्द से स्थिति परिस्थिति बदली जा सकती है। अगर दुनिया के पैमाने पर विदेशों से रिश्ते बदलें अपने पड़ोसी के साथ रिश्ते अच्छे बने तो भारत की जनता को निश्चित तौर से ऐसे नेता को स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं होगा।
यही वजह है कि नरेंद्र मोदी एक साल में 17 विदेशी दौरों पर गये। उन्होंने 57 द्विपक्षीय संधि और करार किए। उनके एक साल के कार्यकाल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 18.58 फीसदी बढ़ा। मुद्रा भंडार में भी पिछले वर्ष की तुलना में 12.29 फीसदी की बढोत्तरी दर्ज हुई। यह किसी भी प्रधानमंत्री के एक साल के कार्यकाल के लिए रश्क भरा हो सकता है। किसी भी नेता के लिए यह जरुरी होता है कि वह एक ओर जहां तात्कालिक समस्याओं से निपटने में कामयाब हो वहीं भविष्य की चुनौतियों के बारे में भी उसके पास सपने ही नहीं हकीकत का खाका होना चाहिए। हमारे देश के प्रधानमंत्रियों में से राजीव गांधी ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 21वीं सदी की चुनौती से निपटने के लिए के ‘ब्लू-प्रिंट’ पेश किया। नरेंद्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो तात्कालिक और भविष्य की समस्या दोनों पर जीत हासिल करने की राह पर एक साथ चलने की कोशिश कर रहे हैं। हांलांकि वर्तमान और भविष्य के बीच संतुलन साधने की उनकी यही बाजीगरी विपक्ष और उनके विरोधियों के आलोचना का सबब है। यही वजह है कि चीन को लेकर उनकी नीति पर सवाल उठ रहे हैं। चीन भरोसेमंद कभी नहीं रहा है। यह इस बात से भी जाहिर होता है कि जब मोदी ने चीन की यात्रा शुरु कर दी थी, तो ऐन वक्त पर चीन के राष्ट्रीय चैनल ने भारत का ऐसा नक्शा पेश किया, जो कभी भी पहले नहीं पेश किया गया। वह हर भारतीय के दिल पर कुठाराघात था। भारत के अभिन्न हिस्से पूरे जम्मू-कश्मीर और पूरे अरुणाचल को भारत के नक्शे से गायब दिखाया गया था। इस प्रस्तुतिकरण में खास बात यह रही कि इससे पहले सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर के अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों पर चीन अपना कब्जा दिखाता था। पर जब हमारा पड़ोसी हमारा भूगोल तय करता है तो क्या उससे रिश्तों को लेकर कोई नई इबारत लिखना बंद कर दी जानी चाहिए। वह भी तब जब पड़ोसी एक बड़ी शक्ति है। हालांकि मोदी उसकी शक्ति के आगे परास्त नहीं दिखे, तभी तो उन्होंने चीन को भारत की ताकत और चिंताओं दोनों से अवगत कराने में कोताही नहीं बरती। सीमा विवाद के कारण संबंधों में अवरोध पर मोदी ने चीन के नेताओं को दीर्घकालिक और रणनीतिक दूरदृष्टि का परिचय देने की नसीहत देकर यह साफ कर दिया कि भारत आंख झुकाकर कुछ भी सहने को नहीं तैयार है, बल्कि आंख मे आंख मिलाकर समस्या का वास्तविक हल चाहता है। मोदी ने उम्मीद जताई कि चीनी नेताओं ने इस बारे में सकारात्मक संकेत दिए हैं। यह भी कि सीमा विवाद का उचित और दोनों पक्षों को स्वीकार्य हल निकालने के लिए प्रयास जारी रहेंगे। भारत की भावनात्मक जनता के लिहाज और मिजाज से मोदी ने चीनी नेताओ को अवगत कराया और कहा कि चीनी नेता भारत की संवेदनशीलता को समझते हैं तथा विश्वास बहाली के उपायों को और पुख्ता बनाने के लिए और कदम उठाने के लिए सहमत हैं। उन्होंने कहाकि वास्तविक नियंत्रण रेखा के सम्बन्ध में और स्पष्टता जरूरी है। इतना ही नहीं, मोदी ने अरुणाचल के ‘स्टेपल वीजा’ और दोनों देशों के बीच बहने वाली नदियो के जल प्रबंधन के मुद्दों को भी उठाया । उल्लेखनीय है कि चीन अरुणांचल प्रदेश और कश्मीर के नागरिकों को अलग से नत्थी वीसा जारी करता है, जिस पर भारत को आपत्ति है। इसी तरह ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह को चीनी क्षेत्र में बांध बना कर अवरुद्ध करने को लेकर भी भारत आशंकित है। मोदी ने एकता में बल और लडकर टूटने की नीयति की तर्ज पर चीनी पक्ष को यह समझाने की भी कोशिश की कि दोनों देशों को आगे बढ़ना चाहिए। आपसी विश्वास और समझदारी बढ़ानी चाहिए। अपने मतभेदो के बारे में परिपक्व एवं जिम्मेदारीपूर्ण रवैया अपनाना चाहिए। अनसुलझे मुद्दों को हल करने की ओर बढ़ना चाहिए क्योंकि ये दोनों देश मिलकर वैश्विक आबादी का तकरीबन चालीस फीसदी बैठते हैं।
मोदी बडे कारोबारी हैं। उन्हें चीन का करोबार ‘मेक इन इंडिया’ के मार्फत भारत की सरजमीं पर लाना है। चीन एक ऐसा देश है, जहां दुनिया की सारी बड़ी कंपनियां अपने उत्पाद की ‘एसेंबलिंग’ कराती हैं। मोदी का ‘मेक इन इंडिया’ इसी का पर्याय है। ‘मेक इन चाइना’ को ‘मेक इन इंडिया’ में बदलने के लिए चीन से रिश्ते रखना अपरिहार्य अनिवार्यता है। मोदी इस मामले में कामयाब भी हो रहे हैं। मोदी ने 22 बिलियन डालर के 24 करार पर हस्ताक्षर कर इसे साबित भी कर दिया। एक अच्छे कारोबारी की तरह मोदी ने चीनी नेताओं को भारत के साथ रहने में फायदे भी गिनाए। कुछ इस अंदाज में कि चीन को अगर पाकिस्तान और भारत में किसी एक को चुनने की विवषता हो तो उन्हें भारत इक्कीस दिखाई दे। मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ मे सिर्फ इंडिया ही नहीं चीन का भी फायदा गिनाया। तभी तो चीनी प्रधानमंत्री ली और राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोनों ‘मेक इन इंडिया’ मिशन और भारत में आधारभूत ढांचे के विकास की परियोजनाओं में चीन की भगीदारी के समर्थक बनते दिखे। मोदी सिर्फ कारोबार नहीं बराबरी के कारोबार के भी पक्षधर दिखे तभी तो चीन के नेताओं को द्विपक्षीय व्यापार में असंतुलन की भारत की चिंता से अवगत और सहमत कराया। गौरतलब है कि भारत का चीन व्यापारी संबंध का घाटा 48 अरब डालर है।
मोदी की विदेश नीति की एक खास ‘स्टाइल’ है, वे नीति में रिश्तों को जोड़ते हैं, तभी तो बीजिंग के करोड़ों लोग तब अचरज में रह गये, जब उन्होंने देखा कि उनके देश के प्रीमियर ली केकियांग की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अनौपचारिक तौर पर खींची गई फोटो सोशल मीडिया पर छा गई। आमतौर पर चीनी राजनेता खुद को एक कवर में रखते हैं। यहां तक कि उनका जन्म दिन भी चीनी जनता के लिए एक रहस्य ही रहता है। चीनी प्रधानमंत्री के साथ मोदी की सेल्फी की चीन के अलावा अमेरिका में भी जमकर चर्चा हुई। अमेरिकी मीडिया ने दोनों शक्तिशाली देशों के नेताओं की सेल्फी को सबसे ‘शक्तिशाली’ कहा है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा के दूसरे दिन भारतीय नेता ने चीनी प्रीमियर (प्रधानमंत्री) ली केकियांग के साथ ‘सेल्फी डिप्लोमेसी’ की। बीजिंग के मशहूर टेंपल ऑफ हेवन में नरेंद्र मोदी ने चीनी प्रधानमंत्री के साथ कई ‘सेल्फी’ खींची।
मोदी जहां जाते हैं, उस देश का भारत से ऐतिहासिक रिश्ता बताना नहीं भूलते चाहे वो नेपाल हो या फिर चीन। यही वजह है कि भारत और चीन के लोगों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध बढ़ाने के उद्देश्य से भारत ने कुमिंग में एक योग केंद्र और शंघाई में गांधी एवं भारतीय विद्या अध्ययन संस्थान खोलने की घोषणा की। इसी तरह दोनों देशों ने बौद्धिक आदान-प्रदान के लिए साझा ‘थिंक टैंक’ भी स्थापित करने का प्रण किया।
भारत चीन के लिए अधिक उपयोगी है, यह बताने के लिए मोदी ने चीन के महत्वाकांक्षी सिल्क रोड प्रोजेक्ट और ऐसी ही भारतीय परियोजनाओं की ओर संकेत करते हुए उन पर सहमति जताई। सिल्क परियोजना चीन का स्वप्निल योजना है। जो बांग्लादेश से होता हुआ म्यामार तक जाता है। भारत का इसमें सहयोग चीन के लिए सोने पर सुहागा होगा। ऐसे में भारतीय प्रधानमंत्री का यह कहना कि क्षेत्रीय संपर्क बहुत आवश्यक है, यह जाहिर करता है कि इस संबंध से चीन को भी उतना ही फायदा है जितना भारत को। चीन और भारत की पर्यावरण की चिंता एक जैसी है, ऐसे में उन्होंने जलवायु परिवर्तन के बारे में भी दोनों देशों के सरोकार की चर्चा की। यानी यह जाहिर किया कि चीन और भारत की चिंता एक जैसी है, तो मिलकर क्यों ना इसे हल किया जाय ?
मोदी ने चीन की दुखती रग पर हाथ भी धरा। चीन का दक्षिणी इलाका इस्लामिक आतंकवाद से त्रस्त है। मोदी ने आगाह किया कि आतंकवाद भारत और चीन के लिए समान खतरा है। पश्चिम एशिया में अशांति और अफगानिस्तान के घटनाक्रम से भी दोनों देश प्रभावित होते हैं। इन परिस्थितियों में दोनों देशों के बीच सहयोग बहुत जरूरी है। यह भी जाहिर किया कि पाकिस्तान के इस्लामिक आतंकवाद की आग से देर सबेर चीन भी जल सकता है।
मोदी ने साम-दाम-दंड-भेद हर तरह से इस्तेमाल किया। जय-पराजय समय लिखता है पर इतना तो तय है कि मोदी ने चीन को यह अहसास जरुर कर दिया कि पडोसी आश्रित नहीं, मित्र है। मित्रता मे ही प्रगति है।
यही वजह है कि नरेंद्र मोदी एक साल में 17 विदेशी दौरों पर गये। उन्होंने 57 द्विपक्षीय संधि और करार किए। उनके एक साल के कार्यकाल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 18.58 फीसदी बढ़ा। मुद्रा भंडार में भी पिछले वर्ष की तुलना में 12.29 फीसदी की बढोत्तरी दर्ज हुई। यह किसी भी प्रधानमंत्री के एक साल के कार्यकाल के लिए रश्क भरा हो सकता है। किसी भी नेता के लिए यह जरुरी होता है कि वह एक ओर जहां तात्कालिक समस्याओं से निपटने में कामयाब हो वहीं भविष्य की चुनौतियों के बारे में भी उसके पास सपने ही नहीं हकीकत का खाका होना चाहिए। हमारे देश के प्रधानमंत्रियों में से राजीव गांधी ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 21वीं सदी की चुनौती से निपटने के लिए के ‘ब्लू-प्रिंट’ पेश किया। नरेंद्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो तात्कालिक और भविष्य की समस्या दोनों पर जीत हासिल करने की राह पर एक साथ चलने की कोशिश कर रहे हैं। हांलांकि वर्तमान और भविष्य के बीच संतुलन साधने की उनकी यही बाजीगरी विपक्ष और उनके विरोधियों के आलोचना का सबब है। यही वजह है कि चीन को लेकर उनकी नीति पर सवाल उठ रहे हैं। चीन भरोसेमंद कभी नहीं रहा है। यह इस बात से भी जाहिर होता है कि जब मोदी ने चीन की यात्रा शुरु कर दी थी, तो ऐन वक्त पर चीन के राष्ट्रीय चैनल ने भारत का ऐसा नक्शा पेश किया, जो कभी भी पहले नहीं पेश किया गया। वह हर भारतीय के दिल पर कुठाराघात था। भारत के अभिन्न हिस्से पूरे जम्मू-कश्मीर और पूरे अरुणाचल को भारत के नक्शे से गायब दिखाया गया था। इस प्रस्तुतिकरण में खास बात यह रही कि इससे पहले सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर के अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों पर चीन अपना कब्जा दिखाता था। पर जब हमारा पड़ोसी हमारा भूगोल तय करता है तो क्या उससे रिश्तों को लेकर कोई नई इबारत लिखना बंद कर दी जानी चाहिए। वह भी तब जब पड़ोसी एक बड़ी शक्ति है। हालांकि मोदी उसकी शक्ति के आगे परास्त नहीं दिखे, तभी तो उन्होंने चीन को भारत की ताकत और चिंताओं दोनों से अवगत कराने में कोताही नहीं बरती। सीमा विवाद के कारण संबंधों में अवरोध पर मोदी ने चीन के नेताओं को दीर्घकालिक और रणनीतिक दूरदृष्टि का परिचय देने की नसीहत देकर यह साफ कर दिया कि भारत आंख झुकाकर कुछ भी सहने को नहीं तैयार है, बल्कि आंख मे आंख मिलाकर समस्या का वास्तविक हल चाहता है। मोदी ने उम्मीद जताई कि चीनी नेताओं ने इस बारे में सकारात्मक संकेत दिए हैं। यह भी कि सीमा विवाद का उचित और दोनों पक्षों को स्वीकार्य हल निकालने के लिए प्रयास जारी रहेंगे। भारत की भावनात्मक जनता के लिहाज और मिजाज से मोदी ने चीनी नेताओ को अवगत कराया और कहा कि चीनी नेता भारत की संवेदनशीलता को समझते हैं तथा विश्वास बहाली के उपायों को और पुख्ता बनाने के लिए और कदम उठाने के लिए सहमत हैं। उन्होंने कहाकि वास्तविक नियंत्रण रेखा के सम्बन्ध में और स्पष्टता जरूरी है। इतना ही नहीं, मोदी ने अरुणाचल के ‘स्टेपल वीजा’ और दोनों देशों के बीच बहने वाली नदियो के जल प्रबंधन के मुद्दों को भी उठाया । उल्लेखनीय है कि चीन अरुणांचल प्रदेश और कश्मीर के नागरिकों को अलग से नत्थी वीसा जारी करता है, जिस पर भारत को आपत्ति है। इसी तरह ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह को चीनी क्षेत्र में बांध बना कर अवरुद्ध करने को लेकर भी भारत आशंकित है। मोदी ने एकता में बल और लडकर टूटने की नीयति की तर्ज पर चीनी पक्ष को यह समझाने की भी कोशिश की कि दोनों देशों को आगे बढ़ना चाहिए। आपसी विश्वास और समझदारी बढ़ानी चाहिए। अपने मतभेदो के बारे में परिपक्व एवं जिम्मेदारीपूर्ण रवैया अपनाना चाहिए। अनसुलझे मुद्दों को हल करने की ओर बढ़ना चाहिए क्योंकि ये दोनों देश मिलकर वैश्विक आबादी का तकरीबन चालीस फीसदी बैठते हैं।
मोदी बडे कारोबारी हैं। उन्हें चीन का करोबार ‘मेक इन इंडिया’ के मार्फत भारत की सरजमीं पर लाना है। चीन एक ऐसा देश है, जहां दुनिया की सारी बड़ी कंपनियां अपने उत्पाद की ‘एसेंबलिंग’ कराती हैं। मोदी का ‘मेक इन इंडिया’ इसी का पर्याय है। ‘मेक इन चाइना’ को ‘मेक इन इंडिया’ में बदलने के लिए चीन से रिश्ते रखना अपरिहार्य अनिवार्यता है। मोदी इस मामले में कामयाब भी हो रहे हैं। मोदी ने 22 बिलियन डालर के 24 करार पर हस्ताक्षर कर इसे साबित भी कर दिया। एक अच्छे कारोबारी की तरह मोदी ने चीनी नेताओं को भारत के साथ रहने में फायदे भी गिनाए। कुछ इस अंदाज में कि चीन को अगर पाकिस्तान और भारत में किसी एक को चुनने की विवषता हो तो उन्हें भारत इक्कीस दिखाई दे। मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ मे सिर्फ इंडिया ही नहीं चीन का भी फायदा गिनाया। तभी तो चीनी प्रधानमंत्री ली और राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोनों ‘मेक इन इंडिया’ मिशन और भारत में आधारभूत ढांचे के विकास की परियोजनाओं में चीन की भगीदारी के समर्थक बनते दिखे। मोदी सिर्फ कारोबार नहीं बराबरी के कारोबार के भी पक्षधर दिखे तभी तो चीन के नेताओं को द्विपक्षीय व्यापार में असंतुलन की भारत की चिंता से अवगत और सहमत कराया। गौरतलब है कि भारत का चीन व्यापारी संबंध का घाटा 48 अरब डालर है।
मोदी की विदेश नीति की एक खास ‘स्टाइल’ है, वे नीति में रिश्तों को जोड़ते हैं, तभी तो बीजिंग के करोड़ों लोग तब अचरज में रह गये, जब उन्होंने देखा कि उनके देश के प्रीमियर ली केकियांग की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अनौपचारिक तौर पर खींची गई फोटो सोशल मीडिया पर छा गई। आमतौर पर चीनी राजनेता खुद को एक कवर में रखते हैं। यहां तक कि उनका जन्म दिन भी चीनी जनता के लिए एक रहस्य ही रहता है। चीनी प्रधानमंत्री के साथ मोदी की सेल्फी की चीन के अलावा अमेरिका में भी जमकर चर्चा हुई। अमेरिकी मीडिया ने दोनों शक्तिशाली देशों के नेताओं की सेल्फी को सबसे ‘शक्तिशाली’ कहा है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा के दूसरे दिन भारतीय नेता ने चीनी प्रीमियर (प्रधानमंत्री) ली केकियांग के साथ ‘सेल्फी डिप्लोमेसी’ की। बीजिंग के मशहूर टेंपल ऑफ हेवन में नरेंद्र मोदी ने चीनी प्रधानमंत्री के साथ कई ‘सेल्फी’ खींची।
मोदी जहां जाते हैं, उस देश का भारत से ऐतिहासिक रिश्ता बताना नहीं भूलते चाहे वो नेपाल हो या फिर चीन। यही वजह है कि भारत और चीन के लोगों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध बढ़ाने के उद्देश्य से भारत ने कुमिंग में एक योग केंद्र और शंघाई में गांधी एवं भारतीय विद्या अध्ययन संस्थान खोलने की घोषणा की। इसी तरह दोनों देशों ने बौद्धिक आदान-प्रदान के लिए साझा ‘थिंक टैंक’ भी स्थापित करने का प्रण किया।
भारत चीन के लिए अधिक उपयोगी है, यह बताने के लिए मोदी ने चीन के महत्वाकांक्षी सिल्क रोड प्रोजेक्ट और ऐसी ही भारतीय परियोजनाओं की ओर संकेत करते हुए उन पर सहमति जताई। सिल्क परियोजना चीन का स्वप्निल योजना है। जो बांग्लादेश से होता हुआ म्यामार तक जाता है। भारत का इसमें सहयोग चीन के लिए सोने पर सुहागा होगा। ऐसे में भारतीय प्रधानमंत्री का यह कहना कि क्षेत्रीय संपर्क बहुत आवश्यक है, यह जाहिर करता है कि इस संबंध से चीन को भी उतना ही फायदा है जितना भारत को। चीन और भारत की पर्यावरण की चिंता एक जैसी है, ऐसे में उन्होंने जलवायु परिवर्तन के बारे में भी दोनों देशों के सरोकार की चर्चा की। यानी यह जाहिर किया कि चीन और भारत की चिंता एक जैसी है, तो मिलकर क्यों ना इसे हल किया जाय ?
मोदी ने चीन की दुखती रग पर हाथ भी धरा। चीन का दक्षिणी इलाका इस्लामिक आतंकवाद से त्रस्त है। मोदी ने आगाह किया कि आतंकवाद भारत और चीन के लिए समान खतरा है। पश्चिम एशिया में अशांति और अफगानिस्तान के घटनाक्रम से भी दोनों देश प्रभावित होते हैं। इन परिस्थितियों में दोनों देशों के बीच सहयोग बहुत जरूरी है। यह भी जाहिर किया कि पाकिस्तान के इस्लामिक आतंकवाद की आग से देर सबेर चीन भी जल सकता है।
मोदी ने साम-दाम-दंड-भेद हर तरह से इस्तेमाल किया। जय-पराजय समय लिखता है पर इतना तो तय है कि मोदी ने चीन को यह अहसास जरुर कर दिया कि पडोसी आश्रित नहीं, मित्र है। मित्रता मे ही प्रगति है।