तमाम लोग भले ही अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को महज एक विशिष्ट आयोजन के तौर देख रहे हैं पर सच तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक साल के कार्यकाल में यह आयोजन सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाने वाले निर्णायक फैसलों में एक के तौर पर याद किया जायेगा। एक ऐसा फैसला जो घरेलू मोर्चे से वैश्विक फलक तक और बाजार से लेकर विपक्ष की राजनीति पर सीधा असर डालने वाला साबित हुआ है। इस फैसले के मार्फत मोदी ने अंतरराष्ट्रीय क्षितिज्ञ पर न केवल अपनी पहचान को और समृद्ध किया है बल्कि धर्म और आध्यात्म गुरु कहलाये जाने के भारत के दावे को पुख्ता भी किया है।
जिस योग के मार्फत नरेंद्र मोदी ने भारत के पुराने गौरव को महिमामंडित करने में कामयाबी पाई है, उसे लेकर विवाद और वितंडा चाहे जितना किया जाय पर इस हकीकत से आंख नहीं फेरी जा सकती कि यह सब व्यर्थ की बकवास साबित हुआ है। अगर ऐसा नहीं होता, तो शायद दुनिया के 193 देशों ने योग दिवस को मान्यता नही दी होती। 177 देशों ने बाकायदा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस नही मनाया होता। इसमें 46 मुस्लिम देश भी शामिल नही होते। योग के पर्याय बन चुके महर्षि पतंजलि ने तक्षशिला में योग की शिक्षा पाई थी। यह आज के पाकिस्तान में है। बराक ओबामा ने व्हाइट हाउस में योग उद्यान बनाया है। अमेरिका से इंडोनेशिया तक ‘योगा रिसार्ट’ खुल गये हैं। योग दिवस मानने के नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव पर जितने देशों की सहमति हासिल हुई संयुक्त राष्ट्र संघ के इतिहास में किसी प्रस्ताव पर इतने देशों में एका नहीं देखी गयी। योग भारत की गौरवमयी परंपरा का हिस्सा है, पर यह ‘मोदी मैजिक’ ही है कि इसे दुनिया ने सिर माथे पर बिठाया।
कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले हमारे देश ने योग ही नहीं ईं. पू. पांचवी शताब्दी में चरकसंहिता के मार्फत आयुर्वेद का ज्ञान कराया। वैदिक युग में रसायनशास्त्र के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के खनिजों का अध्ययन किया जाता था। वैदिक काल तक अनेक खनिजों की खोज हो चुकी थी तथा उनका व्यावहारिक प्रयोग भी होने लगा था। बौद्ध विद्वान नागार्जुन ने 280-320 ई. में इस दिशा में सबसे ज्यादा काम किया। रसायनशास्त्र के कुछ प्रसिद्ध ग्रंथों में एक है रसरत्नाकर, इसके रचयिता नागार्जुन थे। वैदिक साहित्य में ही सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, नक्षत्र, ऋतु, मास, अयन आदि की स्थितियों पर गंभीर अध्ययन मिलता है। इस विषय में हमें ‘वेदार्घ ज्योतिष’ नामक ग्रंथ प्राप्त होता है। इसका रचना काल समय 1200 ई. पू. माना गया है। आर्यभट्ट और वराहमिहिर ज्योतिष गणित के सबसे बड़े विद्वान के रूप में माने जाते हैं। मात्र 23 वर्ष की उम्र में आर्यभट्ट ने ‘आर्यभट्टीय’ नामक प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में पूरे 121 श्लोक हैं। दुनिया को शून्य और दशमलव भारत की देन है। इसने गणितीय जटिलताओं को खत्म कर दिया। दिगम्बर जैन मुनि सर्वनंदी ने अपने ‘लोकविभाग’ ग्रंथ में शून्य का इस्तेमाल कर इसके दस्तावेजी प्रमाण दे दिये थे। इस ग्रंथ में दशमलव संख्या पद्धति का भी उल्लेख है। बाद में आर्यभट्ट ने ‘स्थानं स्थानं दसा गुणम’ अर्थात् दस गुना करने के लिए शून्य का जिक्र करके यह जता दिया कि दशमल सिद्धांत का उदगम् भारत ही है। अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित तीनों भारत की देन हैं। ‘यजुर्वेद’ में एक से लेकर 10 खरब तक की संख्याओं का उल्लेख मिलता है। बीजगणित के अविष्कार पर कुछ विवाद के बावजूद अब यह साबित हो चुका है कि भारतीय विद्वान आर्यभट्ट (446 ई.) ने ही बीजगणित का विकास किया। रेखागणित का अविष्कार भी वैदिक युग में ही हो गया था। इस विद्या का प्राचीन नाम है- शुल्वविद्या या शुल्वविज्ञान। अनेक पुरातात्विक स्थलों की खुदाई में प्राप्त यज्ञशालाएं, वेदिकाएं, कुण्ड इत्यादि को देखने तथा इनके अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि इनका निर्माण रेखागणित के सिद्धांत पर किया गया है।
यही नहीं, अर्थशास्त्र और अभियांत्रिकी के क्षेत्र में भी दुनिया का सिरमौर भारत ही है। इन विद्याओं से जुड़ी प्राचीनतम पुस्तकें भारतीय विद्वानों की ही हैं। पर यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनिया इस सच को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। हम इस सच को स्वीकार करवा पाने की स्थिति में नहीं रहे। लेकिन उत्तरी गोलार्ध के सबसे लंबे दिन को नरेंद्र मोदी ने एक ऐसी सच्चाई दुनिया को कुबूल करने को मजबूर कर दी जिससे भारत के अन्य क्षेत्रों में भी अगुवा होने का मार्ग प्रशस्त होता है। यह इक ऐसी सच्चाई है जिसे देश के बारे में सोचने वाले किसी भी शख्स को कुबूल करने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। जिस योग को लेकर दुनिया में भारत की पहचान मजबूत हुई है, इसके पेटेंट की भी लंबी लड़ाई अमेरिका से भारत को लड़नी पड़ी है। भारत हथियार बनाने में अगुवा नहीं हो सकता। पैसा कमाने में अगुवा नहीं हो सकता। ऐसे में नरेंद्र मोदी ने एक ऐसे क्षेत्र में भारत की अगुवाई कुबूल करवाई, जिस क्षेत्र में भारत लंबे समय से अपनी प्रतिष्ठा का हकदार था। आज जब पूरी दुनिया में ‘वेलनेस इंडस्ट्री’ सबसे तेजी से बढ रहा एक समृद्ध सेक्टर है, जहां अरबों-खरबों डालर का व्यापार हैं। ऐसे में जब भारत इसका अगुवा होगा तो निःसंदेह भारत के लोग ही विशेषज्ञ होंगे, उन्हें ही जगह मिलेगी। कम से कम मोदी ने यह तो मुकम्मल करा ही लिया है। मोदी के इसी ‘मैजिक’ का करिश्मा है कि विपक्ष या तो पलायन आसन में चला गया अथवा मोदी के सामने शीर्षासन करने लगा। धर्मनिरपेक्षता की ओट लेकर जो लोग यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि योग हिंदू है, उन्हें भी इस आयोजन के जरिये जवाब मिल गया है।
आयोजन के बाद योग को लेकर विवाद और वितंडा खडा करने वालों के सवालों का जवाब देना भी अनिवार्य हो जाता है। आजकल डाक्टरों का एक बड़ा तबका योग को लेकर यह आरोप मढ़ता है कि योग बीमारी का इलाज नहीं है। यह सच भी है। पर यह भी उतना ही बड़ा सच है कि योग बीमारी आने की प्रतीक्षा नहीं करता। वह ऐसी स्थिति बनाता है कि बीमारी आये ही न। अगर दुनिया के लोग इसे लेकर सचेत होते हैं, तो यह स्वास्थ्य रक्षण का सबसे व्यापक, सबसे लोकप्रिय और सबसे कम समय लेने वाला तरीका है जिससे हर कोई लाभान्वित हो सकता है।
योग में स्वस्थ काया की गारंटी छिपी होती है। योग में शास्त्रीय और अनुभवात्मक ज्ञान तथा आधुनिक दृष्टिकोण का समन्यवय है। शरीर, मन और आत्मा तीनों का योग करता है योग। यह इन तीनों को ऐसे ही बांधता है, जैसे हमारी मांसपेशियां अपने तंतुओं से जुड़ी रहती हैं। अपने समय के लोकप्रिय गिटारवादक जार्ज हैरिसन ने यह कुबूल किया था कि उनकी सफलता का राज भारतीय यौगिक क्रियाएँ हैं। यही नहीं, दुनिया के पहले सौर्य विमान ‘इंपल्स-2’ के पायलट बट्र्रेड पिकार्ड और सह पायलट अंद्रिबोस बर्ग भी यह कुबूल किया हैं कि इस विमान को उड़ाने की कामयाबी के पीछे की ताकत योग की है। कुछ ही महीनों पहले दिवंगत हुए दुनिया के सबसे बडे योग प्रशिक्षक वी.के.एस. आयंगर को 2004 में टाइम मैगजीन ने दुनिया की 100 महत्वपूर्ण शख्सियतों में शुमार किया था। योग दृष्टि से दृष्टा तक की यात्रा कराता है। योग शक्ति और मुक्ति दोनों प्रदान करता है। शक्ति लड़ने के लिए और मुक्ति छोड़ने के लिए।
योग जीवन को चेतना का मंत्र देता है। जीवन के बारे में यह सत्य हम भूलते जा रहे हैं कि हमें भगवान की तरफ से उम्र नहीं सांस मिलती है। वृहदारण्यक उपनिषद में सांसों पर नियंत्रण का जिक्र है। सुदूर गांवों में आज भी मौत का संदेश देने के लिए कहा जाता है कि सांस टूट गयी। योग सांस पर नियंत्रण पर तकनीक सिखाता है। इसमें सिद्धहस्त करता है। आमतौर पर हमें अपने जीवन के लिए जितनी आक्सीजन की जरुरत होती है हम नहीं ले पाते। हमें सांस नाभि से लेना चाहिए, हम नहीं लेते हैं। नतीजतन, सब कुछ तो शरीर के लिए पर्याप्त मिल जाता है, आक्सीजन नहीं। आक्सीजन का न मिलना आदमी को थकाता है बूढा करता है। जब हम यौगिक क्रिया के तहत सांस लेते हैं और फिर रोकते हैं आक्सीजन हमारे भीतर के तंतुओं तक पहुंचती है। किसी कारण से हमारी जो कोशिकाएं मृत हो जाती हैं, यह आक्सीजन उसे पुनर्जीवन देती है। चिकित्सा विज्ञान के शब्दों में कहें तो यह मृत कोषिकाएं (डेड सेल्स) को फिर से जीवन दे देती है।
एक धारणा यह भी है कि कोई घाव महज इसलिए नहीं ठीक होता कि आप ‘एंटीबायटिक’ दवा खाते हैं। बल्कि उसके ठीक होने की वजह यह भी है कि आपका ध्यान घाव वाले स्थान पर ज्यादा हो जाता है। उस स्थान का आप ध्यान रखने लगते हैं। योग की क्रियाओं के साथ ही ध्यान, धारणा और समाधि भी चरण हैं। ध्यान और धारणा के चरण में आप अपने ही पूरे शरीर में खुद उतरते हैं। उसे बंद आंखों से महसूस करते हैं। जब आप अपने शरीर के हर छोट-बड़े अंग-उपांग को रोज तसल्ली से देखने लग जायेंगे, घाव ठीक होने के दूसरे सिद्धांत के मानिंद आपका हर अंग खिल उठेगा। यह खिलना ही एक सुंदर संसार , सुंदर जीवन का निर्माण करता है। इसी निर्माण के लिए ही पूरी दुनिया ने योग को एक स्वर में अपनाया है। योग सिर्फ क्रिया नहीं है। इसके उपांग हैं- ज्ञानयोग, भक्ति या प्रेमयोग, कर्मयोग, राजयोग, हठयोग। मोदी ने सरकारी हठयोग से विपक्ष को ज्ञानयोग सिखाया है, तो कर्मयोग से पूरी दुनिया को योग को कुबूल करने के लिए मजबूर किया है। भक्ति और प्रेमयोग के मार्फत योग दिवस को गली-कूचों से लेकर राजपथ और संयुक्त राष्ट्र तक स्थापित करने में जो कामयाबी पाई है, वह उन्हीं के सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान से ज्यादा बडी है। यह मोदी के लिए गौरव भी है और प्रेरणा भी।
जिस योग के मार्फत नरेंद्र मोदी ने भारत के पुराने गौरव को महिमामंडित करने में कामयाबी पाई है, उसे लेकर विवाद और वितंडा चाहे जितना किया जाय पर इस हकीकत से आंख नहीं फेरी जा सकती कि यह सब व्यर्थ की बकवास साबित हुआ है। अगर ऐसा नहीं होता, तो शायद दुनिया के 193 देशों ने योग दिवस को मान्यता नही दी होती। 177 देशों ने बाकायदा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस नही मनाया होता। इसमें 46 मुस्लिम देश भी शामिल नही होते। योग के पर्याय बन चुके महर्षि पतंजलि ने तक्षशिला में योग की शिक्षा पाई थी। यह आज के पाकिस्तान में है। बराक ओबामा ने व्हाइट हाउस में योग उद्यान बनाया है। अमेरिका से इंडोनेशिया तक ‘योगा रिसार्ट’ खुल गये हैं। योग दिवस मानने के नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव पर जितने देशों की सहमति हासिल हुई संयुक्त राष्ट्र संघ के इतिहास में किसी प्रस्ताव पर इतने देशों में एका नहीं देखी गयी। योग भारत की गौरवमयी परंपरा का हिस्सा है, पर यह ‘मोदी मैजिक’ ही है कि इसे दुनिया ने सिर माथे पर बिठाया।
कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले हमारे देश ने योग ही नहीं ईं. पू. पांचवी शताब्दी में चरकसंहिता के मार्फत आयुर्वेद का ज्ञान कराया। वैदिक युग में रसायनशास्त्र के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के खनिजों का अध्ययन किया जाता था। वैदिक काल तक अनेक खनिजों की खोज हो चुकी थी तथा उनका व्यावहारिक प्रयोग भी होने लगा था। बौद्ध विद्वान नागार्जुन ने 280-320 ई. में इस दिशा में सबसे ज्यादा काम किया। रसायनशास्त्र के कुछ प्रसिद्ध ग्रंथों में एक है रसरत्नाकर, इसके रचयिता नागार्जुन थे। वैदिक साहित्य में ही सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, नक्षत्र, ऋतु, मास, अयन आदि की स्थितियों पर गंभीर अध्ययन मिलता है। इस विषय में हमें ‘वेदार्घ ज्योतिष’ नामक ग्रंथ प्राप्त होता है। इसका रचना काल समय 1200 ई. पू. माना गया है। आर्यभट्ट और वराहमिहिर ज्योतिष गणित के सबसे बड़े विद्वान के रूप में माने जाते हैं। मात्र 23 वर्ष की उम्र में आर्यभट्ट ने ‘आर्यभट्टीय’ नामक प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में पूरे 121 श्लोक हैं। दुनिया को शून्य और दशमलव भारत की देन है। इसने गणितीय जटिलताओं को खत्म कर दिया। दिगम्बर जैन मुनि सर्वनंदी ने अपने ‘लोकविभाग’ ग्रंथ में शून्य का इस्तेमाल कर इसके दस्तावेजी प्रमाण दे दिये थे। इस ग्रंथ में दशमलव संख्या पद्धति का भी उल्लेख है। बाद में आर्यभट्ट ने ‘स्थानं स्थानं दसा गुणम’ अर्थात् दस गुना करने के लिए शून्य का जिक्र करके यह जता दिया कि दशमल सिद्धांत का उदगम् भारत ही है। अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित तीनों भारत की देन हैं। ‘यजुर्वेद’ में एक से लेकर 10 खरब तक की संख्याओं का उल्लेख मिलता है। बीजगणित के अविष्कार पर कुछ विवाद के बावजूद अब यह साबित हो चुका है कि भारतीय विद्वान आर्यभट्ट (446 ई.) ने ही बीजगणित का विकास किया। रेखागणित का अविष्कार भी वैदिक युग में ही हो गया था। इस विद्या का प्राचीन नाम है- शुल्वविद्या या शुल्वविज्ञान। अनेक पुरातात्विक स्थलों की खुदाई में प्राप्त यज्ञशालाएं, वेदिकाएं, कुण्ड इत्यादि को देखने तथा इनके अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि इनका निर्माण रेखागणित के सिद्धांत पर किया गया है।
यही नहीं, अर्थशास्त्र और अभियांत्रिकी के क्षेत्र में भी दुनिया का सिरमौर भारत ही है। इन विद्याओं से जुड़ी प्राचीनतम पुस्तकें भारतीय विद्वानों की ही हैं। पर यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनिया इस सच को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। हम इस सच को स्वीकार करवा पाने की स्थिति में नहीं रहे। लेकिन उत्तरी गोलार्ध के सबसे लंबे दिन को नरेंद्र मोदी ने एक ऐसी सच्चाई दुनिया को कुबूल करने को मजबूर कर दी जिससे भारत के अन्य क्षेत्रों में भी अगुवा होने का मार्ग प्रशस्त होता है। यह इक ऐसी सच्चाई है जिसे देश के बारे में सोचने वाले किसी भी शख्स को कुबूल करने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। जिस योग को लेकर दुनिया में भारत की पहचान मजबूत हुई है, इसके पेटेंट की भी लंबी लड़ाई अमेरिका से भारत को लड़नी पड़ी है। भारत हथियार बनाने में अगुवा नहीं हो सकता। पैसा कमाने में अगुवा नहीं हो सकता। ऐसे में नरेंद्र मोदी ने एक ऐसे क्षेत्र में भारत की अगुवाई कुबूल करवाई, जिस क्षेत्र में भारत लंबे समय से अपनी प्रतिष्ठा का हकदार था। आज जब पूरी दुनिया में ‘वेलनेस इंडस्ट्री’ सबसे तेजी से बढ रहा एक समृद्ध सेक्टर है, जहां अरबों-खरबों डालर का व्यापार हैं। ऐसे में जब भारत इसका अगुवा होगा तो निःसंदेह भारत के लोग ही विशेषज्ञ होंगे, उन्हें ही जगह मिलेगी। कम से कम मोदी ने यह तो मुकम्मल करा ही लिया है। मोदी के इसी ‘मैजिक’ का करिश्मा है कि विपक्ष या तो पलायन आसन में चला गया अथवा मोदी के सामने शीर्षासन करने लगा। धर्मनिरपेक्षता की ओट लेकर जो लोग यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि योग हिंदू है, उन्हें भी इस आयोजन के जरिये जवाब मिल गया है।
आयोजन के बाद योग को लेकर विवाद और वितंडा खडा करने वालों के सवालों का जवाब देना भी अनिवार्य हो जाता है। आजकल डाक्टरों का एक बड़ा तबका योग को लेकर यह आरोप मढ़ता है कि योग बीमारी का इलाज नहीं है। यह सच भी है। पर यह भी उतना ही बड़ा सच है कि योग बीमारी आने की प्रतीक्षा नहीं करता। वह ऐसी स्थिति बनाता है कि बीमारी आये ही न। अगर दुनिया के लोग इसे लेकर सचेत होते हैं, तो यह स्वास्थ्य रक्षण का सबसे व्यापक, सबसे लोकप्रिय और सबसे कम समय लेने वाला तरीका है जिससे हर कोई लाभान्वित हो सकता है।
योग में स्वस्थ काया की गारंटी छिपी होती है। योग में शास्त्रीय और अनुभवात्मक ज्ञान तथा आधुनिक दृष्टिकोण का समन्यवय है। शरीर, मन और आत्मा तीनों का योग करता है योग। यह इन तीनों को ऐसे ही बांधता है, जैसे हमारी मांसपेशियां अपने तंतुओं से जुड़ी रहती हैं। अपने समय के लोकप्रिय गिटारवादक जार्ज हैरिसन ने यह कुबूल किया था कि उनकी सफलता का राज भारतीय यौगिक क्रियाएँ हैं। यही नहीं, दुनिया के पहले सौर्य विमान ‘इंपल्स-2’ के पायलट बट्र्रेड पिकार्ड और सह पायलट अंद्रिबोस बर्ग भी यह कुबूल किया हैं कि इस विमान को उड़ाने की कामयाबी के पीछे की ताकत योग की है। कुछ ही महीनों पहले दिवंगत हुए दुनिया के सबसे बडे योग प्रशिक्षक वी.के.एस. आयंगर को 2004 में टाइम मैगजीन ने दुनिया की 100 महत्वपूर्ण शख्सियतों में शुमार किया था। योग दृष्टि से दृष्टा तक की यात्रा कराता है। योग शक्ति और मुक्ति दोनों प्रदान करता है। शक्ति लड़ने के लिए और मुक्ति छोड़ने के लिए।
योग जीवन को चेतना का मंत्र देता है। जीवन के बारे में यह सत्य हम भूलते जा रहे हैं कि हमें भगवान की तरफ से उम्र नहीं सांस मिलती है। वृहदारण्यक उपनिषद में सांसों पर नियंत्रण का जिक्र है। सुदूर गांवों में आज भी मौत का संदेश देने के लिए कहा जाता है कि सांस टूट गयी। योग सांस पर नियंत्रण पर तकनीक सिखाता है। इसमें सिद्धहस्त करता है। आमतौर पर हमें अपने जीवन के लिए जितनी आक्सीजन की जरुरत होती है हम नहीं ले पाते। हमें सांस नाभि से लेना चाहिए, हम नहीं लेते हैं। नतीजतन, सब कुछ तो शरीर के लिए पर्याप्त मिल जाता है, आक्सीजन नहीं। आक्सीजन का न मिलना आदमी को थकाता है बूढा करता है। जब हम यौगिक क्रिया के तहत सांस लेते हैं और फिर रोकते हैं आक्सीजन हमारे भीतर के तंतुओं तक पहुंचती है। किसी कारण से हमारी जो कोशिकाएं मृत हो जाती हैं, यह आक्सीजन उसे पुनर्जीवन देती है। चिकित्सा विज्ञान के शब्दों में कहें तो यह मृत कोषिकाएं (डेड सेल्स) को फिर से जीवन दे देती है।
एक धारणा यह भी है कि कोई घाव महज इसलिए नहीं ठीक होता कि आप ‘एंटीबायटिक’ दवा खाते हैं। बल्कि उसके ठीक होने की वजह यह भी है कि आपका ध्यान घाव वाले स्थान पर ज्यादा हो जाता है। उस स्थान का आप ध्यान रखने लगते हैं। योग की क्रियाओं के साथ ही ध्यान, धारणा और समाधि भी चरण हैं। ध्यान और धारणा के चरण में आप अपने ही पूरे शरीर में खुद उतरते हैं। उसे बंद आंखों से महसूस करते हैं। जब आप अपने शरीर के हर छोट-बड़े अंग-उपांग को रोज तसल्ली से देखने लग जायेंगे, घाव ठीक होने के दूसरे सिद्धांत के मानिंद आपका हर अंग खिल उठेगा। यह खिलना ही एक सुंदर संसार , सुंदर जीवन का निर्माण करता है। इसी निर्माण के लिए ही पूरी दुनिया ने योग को एक स्वर में अपनाया है। योग सिर्फ क्रिया नहीं है। इसके उपांग हैं- ज्ञानयोग, भक्ति या प्रेमयोग, कर्मयोग, राजयोग, हठयोग। मोदी ने सरकारी हठयोग से विपक्ष को ज्ञानयोग सिखाया है, तो कर्मयोग से पूरी दुनिया को योग को कुबूल करने के लिए मजबूर किया है। भक्ति और प्रेमयोग के मार्फत योग दिवस को गली-कूचों से लेकर राजपथ और संयुक्त राष्ट्र तक स्थापित करने में जो कामयाबी पाई है, वह उन्हीं के सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान से ज्यादा बडी है। यह मोदी के लिए गौरव भी है और प्रेरणा भी।