कभी साहित्य में देवकी नंदन खत्री के रहस्य, रोमांच और अय्यारों की कथाओं से परिपूर्ण ‘चंद्रकांता-संतति’ नाम की उनकी किताब की खूब धूम थी। इस किताब में पढ़ने वाले के सामने ऐसे-ऐसे रहस्य खुलते हैं, जो न केवल चैंकातें बल्कि ड़राते भी हैं। कई पात्रों के चेहरों को वे बेनकाब भी करते हैं। कहा जाता है कि मुंशी प्रेमचंद के युग के साथ ही साहित्य से रहस्य, रोमांच और अय्यारों का काल खत्म हो गया। लेकिन आज जब हम क्रिकेट में ‘ललित कालाओं’ का युग देख रहे हैं, तब यह भरोसा करने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि यह युग खत्म नहीं हुआ बल्कि इसने साहित्य से खेल तक की यात्रा पूरी कर ली है। जैसे-जैसे ललित-लीग वाली इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की परतें खुल रही हैं, वैसे-वैसे कई चेहरे बेनकाब हो रहे हैं। चेहरे जिन्हें देखकर सहसा विश्वास नहीं होता कि क्रिकेट की बहती गंगा में धन के आकर्षण के पानी के कुछ छींटे उन पर भी पडे हैं। यह भी भरोसा नहीं होता कि ऐसे चेहरों को ग्लैमर और पैसा बांध सकेगा !
मूलतः यह खुलासा हो रहा है कि क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं है। इस खेल को लेकर पिछले कई दशकों से ही तमाम विवाद जड़े रहे हैं। बहुत साल पहले जब मैं लखनऊ के एक बड़े अखबार में में काम करता था, तो क्रिकेट के इन दिग्गजों के सामने छोटी सी हैसियत रखने वाले एक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी ज्ञानेंद्र पांडेय ने मुझसे यह कहा था कि मैच की फिक्सिंग होती है, आप चाहिए तो खबर कर लीजिये। यह वह दौर था जब एक अंतरराष्ट्रीय मैच लखनऊ के के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम में होना था। परंतु मुझे उस समय ज्ञानेंद्र पांडेय की बात बचकानी लगी। मैंने उसे बेमकसद कही गयी बात समझ कर आई-गई कर दिया। लेकिन जब मैं दिल्ली गया और मुझे खेल मंत्रालय ‘कवर’ करने का मौका मिला, तो ‘फिक्सिंग’ की तमाम घटनाओं की जानकारी मिली। मैने खुद उन्हें ‘कवर’ किया तो लगा कि यह खेल नहीं महाभारत का वह चैसर है, जिस पर हर बार युधिष्ठिर के अलावा दुर्योधन को भी हारना होता है। जीतने वाला तो खेलता ही नहीं। या फिर यूं कहिए कि खेलता दिखता नहीं है। इस खेल में जीतने वाला तो हर खिलाडी की डोर अपने हाथ रखता है। या फिर यूं कह सकते हैं कि इस महाभारत में जीत धन, ऐश्वर्य, ग्लैमर की ही होती है। इसके अलावा सबकी हार तय है। ये खेल सिर्फ खेल भावना से नहीं खेला जाता अब इन बातों की तस्दीक तो मैं खुद कर सकता हूं।
दरअसल, भावना और धन का रिश्ता गैर समानुपातिक होता है। बल्कि ठीक उलट होता है। जहां धन प्रधान हो, वहां किसी तरह की भावना कहां हो सकती है। होती है सिर्फ एक भावना वो लालच की। अब दुनिया भर में क्रिकेट के बाजार पर निगाह डालें तो पता चलता है कि यह खेल अब खरबों डालर का वारा-न्यारा हर साल करता है। सिर्फ इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड का सालाना टर्नओवर 100 मिलयन पाउंड से ज्यादा का है। वहीं दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को सिर्फ आने वाले आठ साल में एक अनुमान के मुताबिक 3600 करोड़ रूपए का फायदा होना है। यह अनुमान आज की दरों पर किया गया है। साल, 2015 से साल, 2023 के बीच पूरी दुनिया में 15,700 करोड़ रुपये यानी 2.5 बिलियन डालर रुपया का कारोबार क्रिकेट करेगा। एक और अनुमान के मुताबिक ‘ललित लीग’ के तौर पर शुरु हुई इंडियन प्रिमियर लीग की की कीमत इससे कहीं ज्यादा यानी 2.99 बिलियन डालर अभी ही हो चुकी है।
आज ललित लीग के मार्फत ललित मोदी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उस सरकार को जिसने ठीक एक साल पूरे होने के अवसर पर कुछ दिन पहले ही अपना 56 इंच का सीना फुला कर यह दावा किया था उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के एक भी दाग नहीं हैं। कोई आरोप नहीं लगे हैं। यह सच भी था, सच भी है। मोदी लीग ने इस सच के सामने कई सवाल खड़े किये हैं। आखिर क्या वजह है कि उनकी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ललित मोदी के वीजा दस्तावेजों के लिए सिफारिश करती हैं। आखिर क्या वजह है कि मुख्यमंत्री रहते हुए वसुंधरा राजे उस ललित मोदी की मदद करती हैं, जिन्हें इन्टरपोल ‘ब्लूकार्नर’ की नोटिस जारी कर चुका है। आखिर क्या वजह है कि ललित मोदी जब नरेंद्र मोदी सरकार की दो बड़ी हस्तियों को फंसते देखते हैं, तो ट्वीट कर यह बताते हैं कि उनसे सहानुभूति रखने वालों और उनकी मायावी लीग के आकर्षण के जाल में प्रियंका गांधी वाडरा और राबर्ट वाडरा भी फंसे हुए हैं। यही नहीं , 11 अप्रैल, 2010 को ललित मोदी ने अपने ही मित्र शशि थरुर के बारे में यह सनसनीखेज खुलासा किया था कि उनकी महिला मित्र सुनंदा पुष्कर ने बिना कुछ किए कोच्चि टीम में हिस्सेदारी हासिल कर ली थी। उन्होंने कपिल सिब्बल से इस्तांबुल में अपनी मुलाकात को भी ट्वीट के जरिए उजागर किया। यह भी कहा गया कि एक वेबसाइट पर वह जल्द ही 10 टेराबाइट का डाटा अपलोड करेंगे। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस के खिलाफ उनके पास 50 लाख दस्तावेज हैं। उन्होंने कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला को ‘मास्टर फिक्सर’ और गुरुनाथ मय्यपन को सबसे बड़े ‘फिक्सर’ की उपाधि से नवाज दिया।
भाजपा कांग्रेस के कद्दावर नेताओं के अलावा आईपीएल के पूर्व कमिश्नर भगोडे ललित मोदी ने अपने मददगारों के नाम का खुलासा करते हुए पत्रकार प्रभु चावला और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश- उमेश सी बनर्जी, जीवन रेड्डी और एस.बी. सिन्हा तथा मुंबई के पूर्व कमिश्नर रामदेव त्यागी के भी नाम उजागर किये। ललित मोदी के ऐसा कहने से सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे का पाप धुल नहीं जाता लेकिन जिस तरह ललित मोदी और उनकी टीम बारंबार यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि उनके दलदल में हर चेहरा है, हर पांव फंसा है। इससे यह पता चलता है कि क्रिकेट एक खेल है, जिसे सिर्फ खेला नहीं जाता पर इसमें बड़े-बडे खेल होते हैं। क्रिकेट व राजनीति के गठजोड़ को उजागर करते हुए ललित मोदी अपने लिए लगता है बचाव का एक ऐसा रास्ता तलाश रहे हैं, जहां कोई अपनी कमीज को दूसरे की कमीज से सफेद नहीं बता सके। ऐसा कर ललित मोदी ‘ये तो होता ही है’ सिंड्रोम का फायदा उठाना चाहते हैं।
हांलांकि उन्होंने ट्वीट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समझदार और सुलझा हुआ व्यक्ति बताया। कहा जब भी वह बल्लेबाजी करेंगे छक्का मारेंगे। ललित मोदी के इस ट्वीट से जो संदेश नरेंद्र मोदी और उनके शुभचिंतकों को जुटाना चाहिए वह सकारात्मक नहीं हो सकता। क्योंकि उनकी ‘ललित कलाएं’ इतनी मायावी हैं कि उनकी तारीफ भी जनता की नजर में बुराई से कम नहीं मानी जातीं। वैसे भी उनकी ललित कलाओं ने निशाने पर चाहे जिसको लिया हो पर दिक्कत में सबसे अधिक नरेंद्र मोदी को ही डाला है। वह राजनीति और क्रिकेट के गठजोड़ जो उजागर करते हैं उसमें उनकी ही मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की उनकी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही फंस रही हैं। यह खुलासा हो रहा है कि सुषमा की बेटी बांसुरी ललित मोदी की लीगल टीम की सदस्य है। उनके पति स्वराज कौशल ललित मोदी के वकील थे। यह खुलासा हो रहा है कि वसुंधरा के बेटे दुष्यंत का कारोबारी रिश्ता ललित मोदी से है। यही नहीं, पहली बार किसी सवाल पर नरेंद्र मोदी को चुप्पी ओढ़नी पड़ी है। भाजपा की अंतर कलह सतह पर आयी है। सांसद कीर्ति आजाद कहते हैं कि सुषमा अपनों की साजिश की शिकार हुईं। शत्रुघन सिन्हा उसका समर्थन करते हैं। सांसद आर.के. सिंह बोल उठते हैं कि ललित मोदी जैसे भगोड़े की मदद करना गलत है। उन्हें पकड़कर भारत लाया जाना चाहिए। लालकृष्ण आडवाणी प्रतीकों में कहते हैं कि मैने हवाला जैन डायरी में नाम आते ही इस्तीफा दे दिया था। नितिन गडकरी उस समय वसुंधरा को क्लीन चिट देते हैं, जब उनके साथ राजस्थान के विधायकों के अलावा वहां का संगठन और केंद्रीय सरकार-सगंठन कोई नहीं खड़ा था। गडकरी के समर्थन को अपरोक्ष रुप से राज्य सड़क विस्तार में मदद के लिए राजस्थान कैबिनेट द्वारा धन्यवाद का ज्ञापन पार्टी में नए गुट और धड़ों के उगने का संदेश है।
जिस तरह नरेंद्र मोदी खम ठोंक कर अपनी सरकार को बेदाग बताते हैं। सफाई में पूरे के पूरे नंबर देते हैं। अगर इसे बरकरार रखना है तो उन्हें कडे फैसले अपने सहयोगियों के खिलाफ भी लेने होंगे, क्योंकि ललित मोदी भरोसेमंद नहीं है। ललित की कलाओं ने क्रिकेट को बाजार में पहुंचाया। स्थापित किया। बाजार को क्रिकेट के मार्फत राजनीति करना सिखाया शायद यही वजह है कि हर नामचीन नेता कहीं न कहीं से ललित लीग की टीम का सदस्य है। ऐसे में साख बचाने के लिए सिर्फ ललित मोदी के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई तो वह कुछ भी बोल और खोल सकते हैं। इस खुलासे के हमाम में सभी दिगंबर है। ललित यह भी जानते हैं कि उनका शुरु किया गया यह खेल और आज इससे जुड़ा खुलासा देश की राजनीति की दिशा तय कर रहा है।
मूलतः यह खुलासा हो रहा है कि क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं है। इस खेल को लेकर पिछले कई दशकों से ही तमाम विवाद जड़े रहे हैं। बहुत साल पहले जब मैं लखनऊ के एक बड़े अखबार में में काम करता था, तो क्रिकेट के इन दिग्गजों के सामने छोटी सी हैसियत रखने वाले एक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी ज्ञानेंद्र पांडेय ने मुझसे यह कहा था कि मैच की फिक्सिंग होती है, आप चाहिए तो खबर कर लीजिये। यह वह दौर था जब एक अंतरराष्ट्रीय मैच लखनऊ के के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम में होना था। परंतु मुझे उस समय ज्ञानेंद्र पांडेय की बात बचकानी लगी। मैंने उसे बेमकसद कही गयी बात समझ कर आई-गई कर दिया। लेकिन जब मैं दिल्ली गया और मुझे खेल मंत्रालय ‘कवर’ करने का मौका मिला, तो ‘फिक्सिंग’ की तमाम घटनाओं की जानकारी मिली। मैने खुद उन्हें ‘कवर’ किया तो लगा कि यह खेल नहीं महाभारत का वह चैसर है, जिस पर हर बार युधिष्ठिर के अलावा दुर्योधन को भी हारना होता है। जीतने वाला तो खेलता ही नहीं। या फिर यूं कहिए कि खेलता दिखता नहीं है। इस खेल में जीतने वाला तो हर खिलाडी की डोर अपने हाथ रखता है। या फिर यूं कह सकते हैं कि इस महाभारत में जीत धन, ऐश्वर्य, ग्लैमर की ही होती है। इसके अलावा सबकी हार तय है। ये खेल सिर्फ खेल भावना से नहीं खेला जाता अब इन बातों की तस्दीक तो मैं खुद कर सकता हूं।
दरअसल, भावना और धन का रिश्ता गैर समानुपातिक होता है। बल्कि ठीक उलट होता है। जहां धन प्रधान हो, वहां किसी तरह की भावना कहां हो सकती है। होती है सिर्फ एक भावना वो लालच की। अब दुनिया भर में क्रिकेट के बाजार पर निगाह डालें तो पता चलता है कि यह खेल अब खरबों डालर का वारा-न्यारा हर साल करता है। सिर्फ इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड का सालाना टर्नओवर 100 मिलयन पाउंड से ज्यादा का है। वहीं दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को सिर्फ आने वाले आठ साल में एक अनुमान के मुताबिक 3600 करोड़ रूपए का फायदा होना है। यह अनुमान आज की दरों पर किया गया है। साल, 2015 से साल, 2023 के बीच पूरी दुनिया में 15,700 करोड़ रुपये यानी 2.5 बिलियन डालर रुपया का कारोबार क्रिकेट करेगा। एक और अनुमान के मुताबिक ‘ललित लीग’ के तौर पर शुरु हुई इंडियन प्रिमियर लीग की की कीमत इससे कहीं ज्यादा यानी 2.99 बिलियन डालर अभी ही हो चुकी है।
आज ललित लीग के मार्फत ललित मोदी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उस सरकार को जिसने ठीक एक साल पूरे होने के अवसर पर कुछ दिन पहले ही अपना 56 इंच का सीना फुला कर यह दावा किया था उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के एक भी दाग नहीं हैं। कोई आरोप नहीं लगे हैं। यह सच भी था, सच भी है। मोदी लीग ने इस सच के सामने कई सवाल खड़े किये हैं। आखिर क्या वजह है कि उनकी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ललित मोदी के वीजा दस्तावेजों के लिए सिफारिश करती हैं। आखिर क्या वजह है कि मुख्यमंत्री रहते हुए वसुंधरा राजे उस ललित मोदी की मदद करती हैं, जिन्हें इन्टरपोल ‘ब्लूकार्नर’ की नोटिस जारी कर चुका है। आखिर क्या वजह है कि ललित मोदी जब नरेंद्र मोदी सरकार की दो बड़ी हस्तियों को फंसते देखते हैं, तो ट्वीट कर यह बताते हैं कि उनसे सहानुभूति रखने वालों और उनकी मायावी लीग के आकर्षण के जाल में प्रियंका गांधी वाडरा और राबर्ट वाडरा भी फंसे हुए हैं। यही नहीं , 11 अप्रैल, 2010 को ललित मोदी ने अपने ही मित्र शशि थरुर के बारे में यह सनसनीखेज खुलासा किया था कि उनकी महिला मित्र सुनंदा पुष्कर ने बिना कुछ किए कोच्चि टीम में हिस्सेदारी हासिल कर ली थी। उन्होंने कपिल सिब्बल से इस्तांबुल में अपनी मुलाकात को भी ट्वीट के जरिए उजागर किया। यह भी कहा गया कि एक वेबसाइट पर वह जल्द ही 10 टेराबाइट का डाटा अपलोड करेंगे। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस के खिलाफ उनके पास 50 लाख दस्तावेज हैं। उन्होंने कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला को ‘मास्टर फिक्सर’ और गुरुनाथ मय्यपन को सबसे बड़े ‘फिक्सर’ की उपाधि से नवाज दिया।
भाजपा कांग्रेस के कद्दावर नेताओं के अलावा आईपीएल के पूर्व कमिश्नर भगोडे ललित मोदी ने अपने मददगारों के नाम का खुलासा करते हुए पत्रकार प्रभु चावला और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश- उमेश सी बनर्जी, जीवन रेड्डी और एस.बी. सिन्हा तथा मुंबई के पूर्व कमिश्नर रामदेव त्यागी के भी नाम उजागर किये। ललित मोदी के ऐसा कहने से सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे का पाप धुल नहीं जाता लेकिन जिस तरह ललित मोदी और उनकी टीम बारंबार यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि उनके दलदल में हर चेहरा है, हर पांव फंसा है। इससे यह पता चलता है कि क्रिकेट एक खेल है, जिसे सिर्फ खेला नहीं जाता पर इसमें बड़े-बडे खेल होते हैं। क्रिकेट व राजनीति के गठजोड़ को उजागर करते हुए ललित मोदी अपने लिए लगता है बचाव का एक ऐसा रास्ता तलाश रहे हैं, जहां कोई अपनी कमीज को दूसरे की कमीज से सफेद नहीं बता सके। ऐसा कर ललित मोदी ‘ये तो होता ही है’ सिंड्रोम का फायदा उठाना चाहते हैं।
हांलांकि उन्होंने ट्वीट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समझदार और सुलझा हुआ व्यक्ति बताया। कहा जब भी वह बल्लेबाजी करेंगे छक्का मारेंगे। ललित मोदी के इस ट्वीट से जो संदेश नरेंद्र मोदी और उनके शुभचिंतकों को जुटाना चाहिए वह सकारात्मक नहीं हो सकता। क्योंकि उनकी ‘ललित कलाएं’ इतनी मायावी हैं कि उनकी तारीफ भी जनता की नजर में बुराई से कम नहीं मानी जातीं। वैसे भी उनकी ललित कलाओं ने निशाने पर चाहे जिसको लिया हो पर दिक्कत में सबसे अधिक नरेंद्र मोदी को ही डाला है। वह राजनीति और क्रिकेट के गठजोड़ जो उजागर करते हैं उसमें उनकी ही मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की उनकी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही फंस रही हैं। यह खुलासा हो रहा है कि सुषमा की बेटी बांसुरी ललित मोदी की लीगल टीम की सदस्य है। उनके पति स्वराज कौशल ललित मोदी के वकील थे। यह खुलासा हो रहा है कि वसुंधरा के बेटे दुष्यंत का कारोबारी रिश्ता ललित मोदी से है। यही नहीं, पहली बार किसी सवाल पर नरेंद्र मोदी को चुप्पी ओढ़नी पड़ी है। भाजपा की अंतर कलह सतह पर आयी है। सांसद कीर्ति आजाद कहते हैं कि सुषमा अपनों की साजिश की शिकार हुईं। शत्रुघन सिन्हा उसका समर्थन करते हैं। सांसद आर.के. सिंह बोल उठते हैं कि ललित मोदी जैसे भगोड़े की मदद करना गलत है। उन्हें पकड़कर भारत लाया जाना चाहिए। लालकृष्ण आडवाणी प्रतीकों में कहते हैं कि मैने हवाला जैन डायरी में नाम आते ही इस्तीफा दे दिया था। नितिन गडकरी उस समय वसुंधरा को क्लीन चिट देते हैं, जब उनके साथ राजस्थान के विधायकों के अलावा वहां का संगठन और केंद्रीय सरकार-सगंठन कोई नहीं खड़ा था। गडकरी के समर्थन को अपरोक्ष रुप से राज्य सड़क विस्तार में मदद के लिए राजस्थान कैबिनेट द्वारा धन्यवाद का ज्ञापन पार्टी में नए गुट और धड़ों के उगने का संदेश है।
जिस तरह नरेंद्र मोदी खम ठोंक कर अपनी सरकार को बेदाग बताते हैं। सफाई में पूरे के पूरे नंबर देते हैं। अगर इसे बरकरार रखना है तो उन्हें कडे फैसले अपने सहयोगियों के खिलाफ भी लेने होंगे, क्योंकि ललित मोदी भरोसेमंद नहीं है। ललित की कलाओं ने क्रिकेट को बाजार में पहुंचाया। स्थापित किया। बाजार को क्रिकेट के मार्फत राजनीति करना सिखाया शायद यही वजह है कि हर नामचीन नेता कहीं न कहीं से ललित लीग की टीम का सदस्य है। ऐसे में साख बचाने के लिए सिर्फ ललित मोदी के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई तो वह कुछ भी बोल और खोल सकते हैं। इस खुलासे के हमाम में सभी दिगंबर है। ललित यह भी जानते हैं कि उनका शुरु किया गया यह खेल और आज इससे जुड़ा खुलासा देश की राजनीति की दिशा तय कर रहा है।