किसी का नहीं हो सकता भस्मासुर......

Update:2016-04-03 11:53 IST
जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र संघ के अपने उद्बोधन में आतंकवाद को लेकर पश्चिमी देशों के स्वहित पोषी नजरिये पर हमला कर रहे थे तब उस समय ऐसे देशों को यह बात काफी अखरी थी। भारत में पसरे आतंकवाद और विश्व के शेष भागों में आतंकियों के गतिविधियों को अच्छे और बुरे आतंकवाद के चश्मे से देख रहे थे। यह देखना उन देशों की विवशता जरुर थी क्योंकि कई देशों ने आतंकवाद की जड़ में मट्ठा डालने की जगह खाद पानी देने का धत्कर्म किया है।
इराक से लेकर अफगानिस्तान तक और वियतनाम से लेकर कंबोडिया तक की कहानी में यही सच सामने आता रहा है। शीत युद्ध के चरम पर 1980 के दशक में जब सोवियत सेनाएं अफगानिस्तान में घुसी तो अमरीका ने ही ओसामा बिन लादेन से लेकर हिज्बुल को  हथियार मुहैया कराए। तालिबान का जो हौव्वा अब खड़ा हुआ है उसकी जड में भी अमरीका और रुस-विरोधी पश्चिमी देश है जिन्होंने मदरसों के बच्चों के हाथ में ए के 47 पकड़ाकर तालीमगाहों को तालिबान बना दिया। वियतनाम का बंटवारा कर दक्षिण वियतनाम के शहरों पर अपनी कठपुतली सरकार भी अमरीका ने ही बनवाई थी। अमरीका फ्रांस ब्रिटेन ने ही इराक में सद्दाम को बढावा दिया। ब्रिगेडियर अब्दुल करीम कासिम ने अमरीका और ब्रिटेन के हितों के प्रतिकूल काम करना शुरु कर दिया था तो अमरीका ने ही सद्दाम गढ़ा। कहा तो यह भी जाता है कि सद्दाम को नर्व गैस और जैविक हथियार कुर्दों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए अमरीका ने ही दिए थे। इसके अलावा रुस ने भी युगोस्लाविया से लेकर चेचेन्या तक अपने सम्राज्यवाद के लिए जमकर आतंकवाद को राजनैतिक हथियार बनाया है।
जिन देशों में आतंकवाद पुष्पित और पल्लवित हो रहा था उन देशों को मदद करके पश्चिम के देश यह मान रहे थे कि शायद यह संक्रामक रोग उनकी सरहद में दखल पाने से वंचित रह जाय पर वे भूल रहे थे जब भेडिया शहर में आता है तो हमला ही करता है। भेडिया बारी बारी से भी अगर लोगों को मार रहा है, तो कभी न कभी आपकी बारी भी आ सकती है।
आतंकवाद की पहली घटना पहली ईस्वी में ही सामने आ गयी थी। सिकारी उग्रवादियों के तौर पर। इस गुट ने अपने कपड़ों में खंजरों को छिपाकर रोमनों और उनके समर्थकों पर हमला बोला था। स्पेनिश में 'सिकारी' का अर्थ 'छुरा या खंजर' होता है। इसके बाद तो यह सिलसिला कभी थमा ही नहीं, बस बढ़ता ही गया। अमेरिका में 9/11 हमले से पहले ओकलाहामा सिटी बमकांड एक बड़ा आतंकवादी हमला था। यह बमकांड 19 अप्रैल, 1995 को किया गया था और इसके तहत में ओकलाहामा के अल्फ्रेड पी. मरे फेडरल बिल्डिंग में विस्फोट हुआ जिसमें बहुत सारे कार्यालय थे। हमले में 168 लोगों की मौत हुई थी इनमें 19 बच्चे भी शामिल थे जिनकी आयु छह वर्ष से भी कम थी। इस विस्फोट से 324 इमारतों को नुकसान पहुंचा था। अमरीका को अपने बोए बबूल का कांटा सबसे ज्यादा 11 सितंबर 2001 को लगा। 11 सितंबर, 2001 को अल कायदा ने न्यूयॉर्क और वाशिंगटन पर वर्ल्ड ट्रेड टावर और पेंटागन समेत चार हमलों को अंजाम दिया था। इन हमलों में तीन हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई।
आतंकवाद ने बीती सदी के अंतिम सालों में साबित कर दिया कि उसकी जकड़ में हर देश है । 2002 में इंडोनेशिया के इतिहास में बाली बमकांड को आतंकवाद का सबसे भीषण उदाहरण माना जाता है। 12 अक्टूबर, 2002 को हुई इस घटना में कूटा के पर्यटक क्षेत्र को निशाना बनाया गया था। स्थानीय नाइटक्लबों पर यह हमला जेमाह इस्लामिया नाम के आतंकवादी संगठन ने किया था। वहीं 2004 में स्पेन के मैड्रिड की ट्रेनों पर बम हमले ने दुनिया को दहला दिया था। इसे 'इलेवन एम' ने नाम से जाना जाता है। 11 मार्च, 2004 केरसानिया यात्री ट्रेन पर ये सिलसिलेवार बम विस्फोट आतंकवादी गुट अल कायदा ने किए थे। 27 फरवरी, 2004 को आंतकवाद ने समुद्र को काली छाया में ले लिया। फिलिपींस सुपरफेरी पर विस्फोट को समुद्र पर हुआ सबसे भीषण हमला माना जाता है जिसमें सुपरफेरी समुद्र में डूब गई थी। यह फेरी कागयान डि ओरो सिटी जा रही थी । फेरी को एक टेलीविजन में 4 किलोग्राम टीएनटी भरकर उडा दिया गया था। यह इस्लामी आतंकवादी गुट अबू सय्याफ गुट का काम था। ब्रिटेन को सात जुलाई, 2005 को लंदन की अंडरग्राउंड ट्रेनों में तीन बम विस्फोट और टैवीस्टॉक चौराहे पर एक डबल डेकर बस में हुए चौथे बम विस्फोट ने आतंकवाद का सबसे गहरा जख्म दिया था।
अगर भारत के परिपेक्ष में बात की जाय तो अस्सी के दशक के अंतिम वर्षों ने इस समस्या से भारत को दो चार कराया। तीन युद्ध हार चुके पाकिस्तान ने भारत के मिश्रित जनसंख्या और आतंरिक समस्याओं को हथियार बनाकर आतंक का ऐसा युद्ध छेडा है जिसमें  1994 से लेकर 2014 तक 63428 लोगों की जान जा चुकी है। इस युद्ध में मरने वाले 24 हजार से ज्यादा मासूम लोग और करीब 10 हजार सुरक्षा एजेंसियों  लोग शामिल हैं। भारत में 12 मार्च, 1993 को मुंबई बमकांड हमले में तेरह बम विस्फोट कराए गए थे। इन हमलों को पाकिस्तान की सरपरस्ती में दाउद इब्राहीम के इशारे पर किया गया था। 2001 में तो दुस्साहस की सीमा पारकर 13 दिसंबर को जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकवादियों ने भारतीय संसद भवन पर हमला कर दिया । पाकिस्तान ने इसके बाद तो अक्षरधाम मंदिर पर हमला, 2005 में अयोध्या में रामजन्मभूमि परिसर में आतंकियों से हमला कराया। 11 जुलाई 2006 को मुबंई की लाइफ लाइन लोकल ट्रेन पर सात सिलसिलेवार बम विस्फोट भी लश्कर ए तैयबा और स्टूडेंट्‍स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) ने करवाए।
2005 में श्रमजीवी ट्रेन में आतंकी विस्फोट, 2006 में यूपी की कचेहरियों में सीरियल ब्लास्ट, वाराणसी के संकटमोचन पर 2006 और 2010 में आतंकी विस्फोट करा सदी के पहले दशक को आतंक की भेंट चढा दिया। भारत को सबसे ज्यादा झकझोरने वाले मुंबई आतंकी हमले में पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने मुंबई के शिवाजी टर्मिनस, चाबड़ हाउस पर हमले के साथ ही ताज होटल में भी लोगों को बंधक बना लिया था। 26 नवंबर 2008 को समुद्री रास्ते से मुंबई में दाखिल हुए लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादियों ने विदेशी पर्यटकों समेत 160 से ज्यादा बेगुनाह लोगों को मार दिया।
ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान ने जो बीज बोया उसका दंश उसे नहीं लगा।  पाकिस्तान के पार्क से लेकर बच्चों के स्कूल तक और आर्मी बेस से लेकर मस्जिदें तक कोई भी सुरक्षित नहीं है। जेहाद वाले कायर आतंकी नमाज के समय भी विस्फोट करने में नहीं हिचकते। 18 अक्टूबर, 2007 को आतंकियों ने कराची पर सबसे बड़ा हमला किया इसीदिन पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो, आठ वर्षीय आत्म निर्वासन समाप्त कर स्वदेश लौटी थीं। ये हमले मोहम्मद अली जिन्ना की मजार पर जा रहे मोटर काफिले पर किए गए थे। आतंकी किसी के नहीं होते तभी तो 16 दिसंबर 2014 को आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान ने पाकिस्तान के पेशावर में एक आर्मी स्कूल में घुसकर गोलीबारी की। इसमें 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई। इसके एक महीने बाद ही खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के चारसद्दा में बाचा खान यूनिवर्सिटी पर भी आतंकियों ने हमला बोल दिया कर कैंपस को फिर लहूलुहान कर दिया। तहरीक-ए-तालिबान के आतंकियों ने कक्षाओं और छात्रावासों में छात्रों और शिक्षकों पर गोलियां चलाने में रहम नहीं किया था। पाकिस्तान भूल जाता है कि जब भी वहां की चुनी सरकारें भारत से रिश्ते काम करने की कोशिश करती हैं तो पाकिस्तान की सरपरस्ती में जी रहे आतंकी ही भारत पर हमला कर माहौल बदल देते हैं। इसी साल 2 जनवरी को 6 पाकिस्तानी आतंकियों का पठानकोट एयरबेस पर हमला इसकी बानगी है।
पिछले साल चार्ली एब्दों के दफ्तर पर हुए हमले, 2015 नवंबर में फ्रांस की राजधानी पेरिस में मुंबई के 26/11 जैसा आतंकी हमले और मध्य एशिया में आईएस के दुस्साहस ने साबित कर दिया आंतक सीमाओं से परे है। पेरिस हमले के चार महीने बाद  बाद 22 मार्च 2016 को यूरोपीय देश बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स एयरपोर्ट, एक मेट्रो स्टेशन समेत तीन धमाकों से दहल गयी। करीब 35 लोग मारे गये। बेल्जियम में यह हमला 13 नवंबर 2015 को पेरिस में हुए हमले के मुख्य आरोपी अब्देसलाम की शुक्रवार को हुई गिरफ्तारी के बाद हुआ है। यानी आतंक की सीमा तो नहीं पर इसका अंतरराष्ट्रीय  नेटवर्क है।
इस आतंकी नेटवर्क को लेकर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रवैया सही साबित हुआ है। उनके मुताबिक अब यह धारणा छोडनी होगी कि ‘ये आतंकी मेरा है और ये तुम्हारा’या  ‘‘उसका आतंकी मेरा आतंकी नहीं है।'' लेकिन जब ब्रुसेल्स के रास्ते अमरीका पहुंचे मोदी ऐन ये बात कह रहे थे तो कमोबेश उसी समय संयुक्त राष्ट्र में ही चीन भारत के मोस्ट वांटेड पाकिस्तान आतंकी अजहर मसूद को बैन किए जाने का विरोध कर उस पर प्रतिबंध की कोशिशों पर पानी फेर रहा था। संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध का समर्थन अमेरिका, यूके और फ्रांस समेत कमेटी में शामिल 15 में से 14 देश कर रहे थे। चीन ने इसके विरोध में वीटो कर दिया। इसकी वजह भी नहीं बताई। यह वही चीन है जिसने 28 दिसंबर 2015 को सुरक्षा एजेंसियों को अत्यधिक शक्ति देने वाले अपने प्रथम आतंकवाद रोधी कानून को पारित किया है जिसमें सेना को आतंकवाद रोधी अभियानों पर अन्य देशों में कार्रवाई करने की इजाजत देता है। प्रौद्योगिकी कंपनियों को बाध्य करता है कि वे ‘इनक्रिप्शन’ जैसी संवेदनशील जानकारियां सरकार को दें । चीन के इस कानून के पीछे आईएस है। चीन के प्रांत शिंजियांग से ईटीआईएम के कई चरमपंथी आईएस की ओर से लड़ाई लड़ने सीरिया गए थे। ऐसे में चीन और पाकिस्तान को समझना होगा कि आतंकी किसी का नहीं होता। उस धर्म का भी नहीं जिसके नाम पर वह जेहाद फैलाता है। क्योंकि हर धर्म बचाने की सीख देता है।

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