नज़रिया ही गढ़ता है नायक या खलनायक

Update:2016-07-10 11:30 IST
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। बावजूद इसके मजहब के नाम पर नफरत की फसल बोई जा रही है। उसे इंसानी खून से काटा जा रहा है। बांग्लादेश का आतंकी हमला, जाकिर नाईक  के भाषण और कश्मीर में हिजबुल कमांडर के मारे जाने पर घाटी का बवाल इस बात की तस्दीक करता है। ढाका को दहला देने वाले आतंकी जाकिर नाईक को अपना प्रेरणास्त्रोत मानते थे। जाकिर नाईक को इस बात पर बिल्कुल भी हैरानी नहीं हुई थी। उनके मुताबिक फेसबुक पर उन्हें फॉलो करने वाले सबसे ज्यादा लोग बांग्लादेश के ही हैं। उन्होंने दावा किया था कि 90 प्रतिशत बांग्लादेशी उन्हें जानते हैं। जिनमें नेता, समाजसेवी और आम नेता सब शामिल हैं। इतना ही नहीं, जानकारी यह भी है कि साल 2009 में न्यूयॉर्क के सब वे में फिदायीन हमले की साजिश रचने का आरोपी नजीबुल्ला जाजी जाकिर नाईक से खासा प्रभावित था। साल 2007 में ग्लासगो एयरपोर्ट को उड़ाने की कोशिश करते हुए घायल कफील अहमद के बारे में भी जानकारी मिली है कि वो जाकिर नाईक की तकरीरों को सुनता था। इसके अलावा साल 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सीरियल ब्लास्ट के मामले में आरोपी राहिल शेख और हैदराबाद से गिरफ्तार आईएस के 5 लोगों का सरगना इब्राहिम यजदानी भी जाकिर नाईक का अनुयायी बताया जाता है। कहा तो यह भी जाता है कि साल 2010 में इब्राहिम जाकिर के कैंप में भी शामिल हुआ था। सवाल यह है कि अगर जाकिर नाईक  इस्लाम को लेकर तकरीरें देते हैं तो ऐसा क्या बताते हैं कि दहशतगर्द, आतंकी, इंसानियत के दुश्मन, खून खराबा करने वाले उनकी बातों को इस कदर तवज्जों देते हैं।
दरअसल, खुशवंत सिंह ने एक बार जाकिर नाईक  के बारे में एक सटीक टिप्पणी की है जिसमें उन्होंने था कि जाकिर नाईक  की तकरीर एक स्कूल या फिर ज्यादा से ज्यादा स्नातक स्तर के डिबेटर की है जो अपनी बात साबित करने के लिए तर्क-कुतर्क सबका सहारा लेता है। तालियां बटोरने के लिए जाकिर इस कदर उतावले दिखते हैं कि जिस श्रीमद् भागवद् गीता को भारत ही नहीं पूरी दुनिया में आज का सबसे प्रासंगिक धार्मिक ग्रंथ माना जाता है। जो आईआईएम से लेकर आक्सफोर्ड तक के मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में प्रबंधन का सबसे सटीक धर्मग्रंथ माना जाता है जिसे जीवनशैली तक बताया जाता है उसे जाकिर नाईक  कत्ल का संदेश देने वाली किताब बताते हैं।
जाकिर को तालियों से मतलब है चाहे जैसे आएं। जाकिर कहते हैं कि “अगर अमेरिका सबसे बड़ा आतंकवादी है और उससे लड़ने के लिए आतंकवादी बनना पड़े तो कोई दिक्कत नहीं. आप ट्रिगर दबाएंगे तो इंसान मरेगा लेकिन पैगम्बर बच जाएंगे.” खुद को धार्मिक वक्ता बताने और जताने वाले इस नाईक  का खल चरित्र इससे ही जाहिर है कि उसे दूसरों की भावनाओं की कद्र नहीं है। उसे दूसरे धर्म को नीचा बताकर अपने धर्म का प्रचार करना है। जाकिर भगवान शंकर पर भी फब्तियां कसते हैं। शिव-पार्वती और गणेश जी के प्रसंग को लेकर वह अकसर कहते हैं कि आपका जो भगवान अपने बेटे को नहीं पहचान सका वो मुसीबत में मुझे क्या पहचानेगा ?” अपनी तकरीरों में जाकिर वेद की गलत व्याख्या भी करते हैं। वो कहते हैं हिन्दू दर्म में 33 करोड़ देवता हैं लेकिन लोगों को 33 के बारे में नहीं पाता। जाकिर नाईक गलत व्याख्या कर हिंदू संत,ऋषियों को गोमांसाहारी बताते हैं, तो उनकी सोच का आइना उनकी तकरीर दिखाती है। जाकिर नाईक के मुताबकि “लड़कियों को ऐसे स्कूलों में नहीं भेजा जाना चाहिए, जहां वह अपनी वर्जिनिटी खो दें। ऐसे स्कूल को बंद कर देना चाहिए। जाकिर  महिलाओं को सोने के गहने पहनने की इजाजत के खिलाफ हैं, वहीं वह मुस्लिम जगत में पत्नियों की पिटाई के हिमायती हैं। जाकिर सेक्स के दौरान कॉन्डम के इस्तेमाल को इंसान की हत्या मानते हैं। पश्चिमी देशों पर तोहमत जड़ते हैं कि वे महिलाओं की आजादी के नाम पर अपनी मां-बेटियों को बेच रहे हैं।  जाकिर के विष बुझे बयानों की वजह से कनाडा और ब्रिटेन में उन पर पाबंदी है। उन्हें एक और इस्लामी विद्वान तारिक फेतह ने जाकिर नालायक तक कह ड़ाला और कनाडा मे उनके प्रतिबंध लगवाने में बड़ी भूमिका निभाई है।
महात्मा गांधी ने कहा था कि आंख के बदले आंख का सिद्धांत पूरी दुनिया को अंधा कर देगा और हमारे ही देश के डाक्टर से प्रीचर बने जाकिर ओसामा की वकालत करते हैं। हर मुसलमान को आतंकी बनने की सलाह देते है।  कुल मिलाकर बात यह है कि ऐसी कोई भी सोच या बात जो समाज को बांटे, देश को बांटे या फिर हमें पाषाण काल में धकेल दे ऐसी सोच को वक्त का खाद-पानी क्यों मुहैया होने दिया जाता है। जाकिर ना सिर्फ धड़ल्ले से भारत में अपने कैंप आयोजित कर रहा है बल्कि बिना लाइसेंस पीस टीवी नाम के चैनल के जरिए अपने नफरत भरे संदेश देश दुनिया में प्रसारित भी कर रहा है।
सवाल यह है कि हमारी सरकारें आतंकवादी तैयार करने वाली सोच को खाद पानी देने वाले ऐसे तथाकथित स्कॉलर्स पर लगाम क्यों नहीं कसती ? अगर ढाका आतंकवादी हमले से जाकिर का कनेक्शन नहीं जुड़ता तो शायद उनकी तकरीरों पर अभी भी सवाल नहीं उठ रहे होते और बिना लाइसेंस पीस टीवी दुनिया भर में प्रसारित होता। सरकार से लेकर तमाम एजेंसियां हैं जो कान में तेल डालकर सोती रहतीं। इसी तेल डालकर सोने का नतीजा है कि आज एक आतंकी के मारे जाने पर पूरी कश्मीर घाटी  उबल उठी है। घाटी का मोस्‍ट वॉन्‍टेड आतंकी हिजबुल कमांडर बुरहान मुजफ्फर वानी आतंकवाद के नए दौर, बदलते चेहरे की पहचान बन चुका है। बुरहान जिंदा रहते हुए घाटी में उपजे नए आतंकवाद का पोस्‍टर ब्‍वॉय बन गया । वहीं समीक्षक मानते हैं कि बुरहान की मौत घरेलू आतंकवाद को रफ्तार दे सकती है। इसकी वजह से आतंक की नई भर्तियां हो सकती हैं। नए आतंकी ट्रेंड को बढावा मिल सकता है। ऐसा ट्रेंड जिसमें 90 के दशक के बाद पहली बार घाटी के शिक्षित युवाओं ने हथियार उठाए। उन्‍होंने स्‍थानीय स्‍तर पर खुद को प्रशिक्षित किया और जंग में उतर आए। उन्‍होंने इस काम को एक ‘पेशे’ के तौर पर देखा है। वर्ष 1990 में पहले चरण के बाद, कश्‍मीर में आतंकियों की गतिविधियों में दो बड़े बदलाव आए। पहला स्‍थानीय भागीदारी में कमी आई और हरकत उल मुजाहिद्दीन, लश्‍कर ए तैयबा, अल बद्र, जैश ऐ मोहम्‍मद जैसे गैर स्‍थानीय आतंकी संगठनों का दबदबा बढ़ा। इसकी वजह से, जो मुठभेड़ हुए उसमें मारे जाने वाले आतंकी स्‍थानीय लोगों के लिए अपरिचित चेहरे थे। भले ही इस दौर में स्‍थानीय लोगों ने भी ऐसे ग्रुप ज्‍वाइन किए, लेकिन यहां के आतंकवाद का तानाबाना गैर स्‍थानीय ही रहा। वहीं पोस्टर ब्वाय बानी ने खुद की पहचान एक स्‍थानीय के तौर पर कायम की, जो तराल का रहने वाला था। उसने युवाओं तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया का इस्‍तेमाल किया। उन युवाओं की पहचान की, जो ‘कभी न खत्‍म होने वाले राज्‍य के सैन्‍यीकरण’ से बेहद नाराज थे। उसने अपनी सेल्‍फीज पोस्‍ट कीं। यहां तक कि छिपे रहने के दौरान भी वीडियोज शेयर किए। हाल ही में वो एक वीडियो में नजर आया जिसमें उसने युवा कश्‍मीरियों को आतंकवाद से जुड़ने का आह्वान किया। बुरहान इस दौर के आतंकवाद के लिए कुछ ऐसा ही था, जैसे कि पिछली पीढ़ी में 1990 में मारा गया जेकेएलएफ का कमांडर इशफाक मजीद। बीते 15 साल से कश्‍मीरी युवा आतंकी संगठनों में जाने से दूर रह रहे थे। जिसने जुड़ने की पहल भी की, वे महज जमीनी कारिंदे या कूरियर ब्‍वॉय बनने तक सीमित रहे। बुरहान के मशहूर होने के बाद इस वक्‍त दक्षिणी कश्‍मीर में 60 से ज्‍यादा स्‍थानीय आतंकी सक्रिय हैं। इन सब की ट्रेनिंग स्‍थानीय तौर पर हुई है।
बुरहान ऐसा पहला आतंकी था, जो कश्‍मीर के हर आम घर में एक परिचित नाम बन गया। शुरुआत में इसलिए क्‍योंकि लोग उससे और उसकी कहानियों से खुद को जुड़ा महसूस करते थे। उसकी कहानी उसके गृह नगर के घर घर में मशहूर हो गईं। खास बात यह है कि बुरहान के मारे जाने पर उमर अब्‍दुल्‍ला ने कहा- कश्‍मीर के नाराज लोगों को नया नायक  मिल गया। बुरहान ने यह सब बदल कर रख दिया। उसने आतंक के चेहरे पर लगे मास्‍क को उतार फेंका। वहीं उमर अब्दुल्ला जिनकी इस सरकार से पहले सरकार थी। वही उमर अबदुल्ला जिनके परिवार ने कश्मीर पर राज किया है। बुरहान की मशहूर कहानियो में से एक यह है कि एक शाम बुरहान अपने भाई खालिद और एक दोस्‍त के साथ मोटरसाइकिल पर घूमने गया। जम्‍मू-कश्‍मीर पुलिस के स्‍पेशल ऑपरेशन ग्रुप के सुरक्षाकर्मियों ने उनकी पिटाई की। उसका भाई सड़क पर बेहोश हो गया। बुरहान और उसके दोस्‍त फरार हो गए। इस घटना ने बुरहान की जिंदगी बदलकर रख दी। 2010 में उसने आतंकवादी बनने के लिए घर छोड़ दिया। वर्ष 2010 में उमर अबदुल्ला की ही कश्मीर में सरकार थी और कांग्रेस की केंद्र में। तथाकथित सेक्युलरवाद के नाम पर आतंकवाद का पोषण होता रहा। अब उमर उसे नायक  बता रहे हैं।
हिंदू धर्म मे साफ लिखा है कि परहित सरसि धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई। वहीं कुरान में कहा गया है-अगर तुमने किसी एक इंसान का कत्ल कर दिया तो तुमने पूरी इंसानियत का कत्ल कर दिया। यह अजीब इत्तेफाक है कि मंदिर, मस्जिद, चर्च सबके अंग्रेजी भाषा में 6 ही अक्षर हैं। गीता, कुरान और बाइबिल में पांच अक्षर हैं। नेगेटिव और पाजिटिव में 8 अक्षर हैं और रांग और राइट में भी पांच ही अक्षर है। यानी यह इत्तेफाक होकर भी सिखाता है कि गलत सही सब इंसान के नज़रिए पर निर्भर है अगर जाकिर नाईक  या फिर बात बात पर भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाने की नसीहत देने वालों का नज़रिया ना सुधारा गया तो यह संदेश जाएगा कि धर्म के नाम पर हम कई बुरहान वानी गढने पर आमादा है। जलती कश्मीर घाटी इसकी नज़ीर और बानगी दोनो पेश कर रही है।

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