विनय न माने जड़ति जल, गए तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होई न प्रीति
गोस्वामी तुलसीदास ने मानस में इस प्रसंग का उल्लेख किया है। गीता भले ही किसी भी भारतीय के लिए आदर्श हो पर मानस एक व्यवहार है। रामचरितमानस जीवन की हर समस्या का कोई ना कोई ऐसा उत्तर देता है जिससे उस समस्या से निपटने में कामयाबी हासिल हो सके। भारत और पाकिस्तान के बीच बनते बिगड़ते रिश्तों के लिए अब यह अनिवार्य हो गया है कि मानस की इस चौपाई पर गौर ही नहीं अमल भी किया जाय। क्योंकि सार्क बैठक के दौरान इस्लामाबाद पहुंचे भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ जो अंतरराष्ट्रीय शिष्टाचार का अनुपालन नहीं किया गया वह इस चौपाई पर अमल करने का अंतिम संदेश है। हालांकि देश के सम्मान की रक्षा करते हुए राजनाथ सिंह ने इस ओर कदम बढा दिए हैं। उन्होंने जिस तरह पाकिस्तान के गृहमंत्री निसार अली के भोज से खुद को अलग किया पाक को कश्मीर पर बोलने की ढिठाई का दो टूक जवाब दिया। यह बताया कि जिस भोज में मेजबान में शामिल नहीं होता उसमें मेहमान की कोई जगह नहीं होती।
पाकिस्तानी सरजमीं पर जाकर उनकी आतंकवादी को शहीद बताने को साजिश और शर्मसार कह देना राजनाथ की उस मेधा और दृढता की हर भारतीय को पाकिस्तान के संदर्भ में उम्मीद है। राजनाथ सिंह ने सवा सौ करोड़ लोगों की आंखों में पल रहे गौरव को पंख लगाए है। हालांकि यह विवाद का सबब मुट्ठी भर लोगों के बीच जरुर उठा कि राज्यमंत्री को भेजने की जगह इस सम्मेलन में केंद्रीय गृहमंत्री और पार्टी तथा सरकार में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले राजनाथ की मोजूदगी की वजह क्या थी। लेकिन अब जब राजनाथ सिंह पाकिस्तान को खरी खरी सुनाकर भारत आ गये है तब इस तरह के बतंगड़ करने वालों को जरुर जवाब मिल गया होगा।
बहुपक्षीय सम्मेलन में पाकिस्तान में द्विपक्षीय सवाल उठाने से नहीं चूकेगा इसका भरोसा तो था ही। दुनिया भर की शांति और अमनचैन के लिए समस्या बन चुके आतंकवाद पर बातचीत के दौरान पाकिस्तान कश्मीर का राग अलापने से नहीं चूकेगा। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री नवाज शरीफ जम्मूकश्मीर में आतंक का पर्याय बनने बुरहान वानी को शहीद बता चुके थे। वानी के मारे जाने पर पाकिस्तान में काला दिवस मनाया जा चुका था। नवाज शरीफ मुगेंरी लाल बनकर हसीन सपना देखते हुए कह रहे थे एक दिन कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा बन जाएगा। हालांकि भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उनके इन ख्वाबों पर तुषारापात करते हुए बता दिया था कि कयामत के दिन तक भी कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा नहीं होगा। नवाज शरीफ यह भूल गये हैं कि कभी उनकी देश के सर्वोच्च नेता रहे जुल्फिकार अली भुट्टो ने कश्मीर के लिए हजार वर्ष तक लड़ने की मुनादी पीटी थी। उनका हश्र आम है।
कश्मीर पाकिस्तान के लोगों के भावनाएँ भड़काने का सियासी एजेंडा जरुर हो सकता है। पाकिस्तान को अल्लाह के नाम पर आर्मी और आतंकवाद संचालित करते हैं। कश्मीर मुद्दा आतंकवाद से सत्ता के रिश्तों की डोर भले बन जाय पर वह पाकिस्तान के नौजवानों को रोटी रोजगार, आवाम को बिजली सड़क पानी नहीं दे सकता है। जब तक आवाम और मुल्क रोटी कपड़ा मकान, बिजली, सड़क, पानी नहीं मयस्सर नहीं होगा तब तक भावना भड़का कर सियसत करने का हश्र कोई भी परवेज मुशर्रफ से पूछ सकता है। वैसे भी पता नहीं क्यों नवाज शरीफ यह भूल जाते हैं कि जिसके घर शीशे को होते हैं वह दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंकता। खुद पाकिस्तान पृथकतावादी आंदोलन की गिरफ्त में है। पाक अधिकृत कश्मीर और बलूचिस्तान के लोग सड़कों पर हैं। जनआंदोलन मुखर है। उनकी आंखों पाक अधिकृत कश्मीर में लहराते भारतीय झंडे भी देखने चाहिए। उन्हें यह देखना चाहिए कि सिंध की राजधानी कराची में मुजाहिर पाकिस्तान सरकार की ज्यादतियों के विऱोध से दशकों से आंदोलनरत हैं। मुहाजिर वे हैं जो उर्दू बोलते है। जो देश के विभाजन के समय मुख्य रुप से उत्तर प्रदेश और बिहार से पाकिस्तान गए थे। जुलाई महीने में मुजाहिरों के संगठन मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के बैनर तले वाशिंगटन में व्हाइट हाउस के सामने प्रदर्शन किया। लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे पाकिस्तानी नेता अल्ताफ हुसैन ने इन लोगों को संबोधित भी किया।
कमोबेश यही स्थिति बलूचिस्तान में है। 1944 वहां दोहराया जाने की स्थिति में है। इस वर्ष बलूचिस्तान की आजादी का माहौल बन गया था पर 1947 में जबरन इसे पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया गया। बलूचिस्तान पाकिस्तान का पश्चिमी राज्य है जिसकी राजधानी क्वेटा है। यह राज्य ईरान और अफगानिस्तान से सटा हुआ है। नवाज शरीफ और उनके तमाम नुमाइंदे बरसों से कश्मीर विवाद को संयुक्त राष्ट्र संघ समेत तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचो पर उठा चुके हैं पर किसी ने कान नहीं दिया। पाकिस्तान को इससे सबक लेना चाहिए। आतंकवाद का चरम आज भले ही सीरिया हो पर आतंकवाद की जडों में खाद पानी देना और उसके पौधों को रोपने का काम पाकिस्तान ने ही किया है।
यह सरकार का आतंकी संगठनों से पोशीदा रिश्तों का खुलास करता है कि जब जमात उद दावा के सरगना हाफिज सईद और हिजबुल मुजाहिद्दीन के सरगना सैय्यद सलाहुद्दीन इस्लामाबाद पहुंचने वाले भारतीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के विरोध की बातें कर रहे हों तो पाकिस्तान सरकार ने चुप्पी ओढ ली। तय कार्यक्रम के मुताबिक राजनाथ सिंह को एयरपोर्ट से सम्मेलन स्थल तक रोड से जाना था पर उन्हें आतंकी सरगनों के प्रायोजित विरोध के मद्देनजर ही हेलीकाप्टर से ले जाया गया।
यह राजनाथ सिंह का धैर्य था कि इन सारी वारदातों के बाद भी उनकी अंगभाषा में कोई बदलाव नहीं हुआ। पहली बार उन्हें जब पाकिस्तान के गृहमंत्री के हाथ मिलाने में गर्मजोशी और सम्मान के अभाव का एहसास का हुआ तब उन्हें मानस की चौपाई स्मृति हो आई और उस ओर उन्होंने कदम बढाए। लेकिन पाकिस्तान की हरकत जारी रही, पाकिस्तानी गृहमंत्री ने अपना नाम लिए बगैर संबोधन में कश्मीर में कथित सैन्य अत्याचार का जिक्र कर बैठक का एजेंडा बहुराष्ट्रीय से द्विराष्ट्रीय किया। तब राजनाथ सिंह ने सबक सिखाना शुरु किया कि आतंकवाद को महिमामंडित करना और संरक्षण देना बंद किया जाना चाहिए। एक देश का आंतकी दूसरे देश का शहीद नहीं हो सकता। अच्छे और बुरे आंतकवाद में भेद खत्म किया जाना चाहिए। उन्होंने आपराधिक मामलों में आपसी सहयोग के बारे में दक्षेस समझौते को उन देशों द्वारा अनुमोदित करने की अपील की जिन्होंने इसे अभी नहीं किया है। उन्होंने दक्षेस देशों के बीच आतंकवाद निगरानी डेस्क और मादक पदार्श अपराध निगरानी डेस्क पर सहमति की अनिवार्यता जताई। निराधार बाते और बेमानी आरोप किसी समस्या का समाधान नही हो सकते, किसी भी समस्या का समाधान निकालने की आपसी बातचीत में ज्यादा गुंजाइश होती है।
राजनाथ सिंह ने जो कुछ पाकिस्तान में किया उसके बारे में भारतीय संसद को सिलसिलेवार अवगत कराया। निःसंदेह राजनाथ सिंह ने भारतीय अस्मिता का खासा ख्याल रखा। भारतीय गौरव बढाया, शायद तभी तो पाकिस्तानी मीडिया में उनके उस भाषण को ब्लैक आउट किया गया जिसमें वह खरी-खरी कह रहे थे। उन्होंने इस पूरे मसले को पार्टी और सरकार से ऊपर उठकर देखा और पेश किया। तभी वह कह सके कि भारत के प्रधानमंत्री चाहे किसी भी दल के रहे हों उन्होने पाकिस्तान से संबंध सुधारने की पहल की। पड़ोसी से रिश्ते बेहतर बनाने के लिए जो कर सकते थे सबने किया। सभी प्रधानमंत्रियों ने दरियादिली दिखाई पाकिस्तान के स्टैंड को सिर्फ यह कह कर रेखांकित कर गये कि परमात्मा सबको सद्बुद्धि दे।
आमतौर पर भारतीय राजनीति विरोध के लिए विरोध का अध्याय है। सत्ता और विपक्ष के चेहरे एक ही मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष होते ही बदल जाते हैं। उनके स्टैंड उलट जाते हैं। पर, यह पाकिस्तान की निरंतर ज्यादती और भारतीय भावनाओं से लगातार खिलवाड़ का ही तकाजा है कि राजनाथ सिंह के हर्फ ब हर्फ से पार्टी से ऊपर उठकर कांग्रेस, सपा, बसपा और वामदल और यहां तक कि नेशनल कांफ्रेंस के सांसदों ने संसद की एक अलग रुपरेखा स्थापित की। यह दृश्य बहुतों ने शायद पहली बार देखा होगा। जिन्होंने पहली बार देखा है और जिन्होंने पहले भी देखा है उन सबकी अपने सांसदों से यही उम्मीद होनी चाहिए कि यह वर्तमान इतिहास न बने पर बार बार दोहराया जाय।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होई न प्रीति
गोस्वामी तुलसीदास ने मानस में इस प्रसंग का उल्लेख किया है। गीता भले ही किसी भी भारतीय के लिए आदर्श हो पर मानस एक व्यवहार है। रामचरितमानस जीवन की हर समस्या का कोई ना कोई ऐसा उत्तर देता है जिससे उस समस्या से निपटने में कामयाबी हासिल हो सके। भारत और पाकिस्तान के बीच बनते बिगड़ते रिश्तों के लिए अब यह अनिवार्य हो गया है कि मानस की इस चौपाई पर गौर ही नहीं अमल भी किया जाय। क्योंकि सार्क बैठक के दौरान इस्लामाबाद पहुंचे भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ जो अंतरराष्ट्रीय शिष्टाचार का अनुपालन नहीं किया गया वह इस चौपाई पर अमल करने का अंतिम संदेश है। हालांकि देश के सम्मान की रक्षा करते हुए राजनाथ सिंह ने इस ओर कदम बढा दिए हैं। उन्होंने जिस तरह पाकिस्तान के गृहमंत्री निसार अली के भोज से खुद को अलग किया पाक को कश्मीर पर बोलने की ढिठाई का दो टूक जवाब दिया। यह बताया कि जिस भोज में मेजबान में शामिल नहीं होता उसमें मेहमान की कोई जगह नहीं होती।
पाकिस्तानी सरजमीं पर जाकर उनकी आतंकवादी को शहीद बताने को साजिश और शर्मसार कह देना राजनाथ की उस मेधा और दृढता की हर भारतीय को पाकिस्तान के संदर्भ में उम्मीद है। राजनाथ सिंह ने सवा सौ करोड़ लोगों की आंखों में पल रहे गौरव को पंख लगाए है। हालांकि यह विवाद का सबब मुट्ठी भर लोगों के बीच जरुर उठा कि राज्यमंत्री को भेजने की जगह इस सम्मेलन में केंद्रीय गृहमंत्री और पार्टी तथा सरकार में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले राजनाथ की मोजूदगी की वजह क्या थी। लेकिन अब जब राजनाथ सिंह पाकिस्तान को खरी खरी सुनाकर भारत आ गये है तब इस तरह के बतंगड़ करने वालों को जरुर जवाब मिल गया होगा।
बहुपक्षीय सम्मेलन में पाकिस्तान में द्विपक्षीय सवाल उठाने से नहीं चूकेगा इसका भरोसा तो था ही। दुनिया भर की शांति और अमनचैन के लिए समस्या बन चुके आतंकवाद पर बातचीत के दौरान पाकिस्तान कश्मीर का राग अलापने से नहीं चूकेगा। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री नवाज शरीफ जम्मूकश्मीर में आतंक का पर्याय बनने बुरहान वानी को शहीद बता चुके थे। वानी के मारे जाने पर पाकिस्तान में काला दिवस मनाया जा चुका था। नवाज शरीफ मुगेंरी लाल बनकर हसीन सपना देखते हुए कह रहे थे एक दिन कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा बन जाएगा। हालांकि भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उनके इन ख्वाबों पर तुषारापात करते हुए बता दिया था कि कयामत के दिन तक भी कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा नहीं होगा। नवाज शरीफ यह भूल गये हैं कि कभी उनकी देश के सर्वोच्च नेता रहे जुल्फिकार अली भुट्टो ने कश्मीर के लिए हजार वर्ष तक लड़ने की मुनादी पीटी थी। उनका हश्र आम है।
कश्मीर पाकिस्तान के लोगों के भावनाएँ भड़काने का सियासी एजेंडा जरुर हो सकता है। पाकिस्तान को अल्लाह के नाम पर आर्मी और आतंकवाद संचालित करते हैं। कश्मीर मुद्दा आतंकवाद से सत्ता के रिश्तों की डोर भले बन जाय पर वह पाकिस्तान के नौजवानों को रोटी रोजगार, आवाम को बिजली सड़क पानी नहीं दे सकता है। जब तक आवाम और मुल्क रोटी कपड़ा मकान, बिजली, सड़क, पानी नहीं मयस्सर नहीं होगा तब तक भावना भड़का कर सियसत करने का हश्र कोई भी परवेज मुशर्रफ से पूछ सकता है। वैसे भी पता नहीं क्यों नवाज शरीफ यह भूल जाते हैं कि जिसके घर शीशे को होते हैं वह दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंकता। खुद पाकिस्तान पृथकतावादी आंदोलन की गिरफ्त में है। पाक अधिकृत कश्मीर और बलूचिस्तान के लोग सड़कों पर हैं। जनआंदोलन मुखर है। उनकी आंखों पाक अधिकृत कश्मीर में लहराते भारतीय झंडे भी देखने चाहिए। उन्हें यह देखना चाहिए कि सिंध की राजधानी कराची में मुजाहिर पाकिस्तान सरकार की ज्यादतियों के विऱोध से दशकों से आंदोलनरत हैं। मुहाजिर वे हैं जो उर्दू बोलते है। जो देश के विभाजन के समय मुख्य रुप से उत्तर प्रदेश और बिहार से पाकिस्तान गए थे। जुलाई महीने में मुजाहिरों के संगठन मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के बैनर तले वाशिंगटन में व्हाइट हाउस के सामने प्रदर्शन किया। लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे पाकिस्तानी नेता अल्ताफ हुसैन ने इन लोगों को संबोधित भी किया।
कमोबेश यही स्थिति बलूचिस्तान में है। 1944 वहां दोहराया जाने की स्थिति में है। इस वर्ष बलूचिस्तान की आजादी का माहौल बन गया था पर 1947 में जबरन इसे पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया गया। बलूचिस्तान पाकिस्तान का पश्चिमी राज्य है जिसकी राजधानी क्वेटा है। यह राज्य ईरान और अफगानिस्तान से सटा हुआ है। नवाज शरीफ और उनके तमाम नुमाइंदे बरसों से कश्मीर विवाद को संयुक्त राष्ट्र संघ समेत तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचो पर उठा चुके हैं पर किसी ने कान नहीं दिया। पाकिस्तान को इससे सबक लेना चाहिए। आतंकवाद का चरम आज भले ही सीरिया हो पर आतंकवाद की जडों में खाद पानी देना और उसके पौधों को रोपने का काम पाकिस्तान ने ही किया है।
यह सरकार का आतंकी संगठनों से पोशीदा रिश्तों का खुलास करता है कि जब जमात उद दावा के सरगना हाफिज सईद और हिजबुल मुजाहिद्दीन के सरगना सैय्यद सलाहुद्दीन इस्लामाबाद पहुंचने वाले भारतीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के विरोध की बातें कर रहे हों तो पाकिस्तान सरकार ने चुप्पी ओढ ली। तय कार्यक्रम के मुताबिक राजनाथ सिंह को एयरपोर्ट से सम्मेलन स्थल तक रोड से जाना था पर उन्हें आतंकी सरगनों के प्रायोजित विरोध के मद्देनजर ही हेलीकाप्टर से ले जाया गया।
यह राजनाथ सिंह का धैर्य था कि इन सारी वारदातों के बाद भी उनकी अंगभाषा में कोई बदलाव नहीं हुआ। पहली बार उन्हें जब पाकिस्तान के गृहमंत्री के हाथ मिलाने में गर्मजोशी और सम्मान के अभाव का एहसास का हुआ तब उन्हें मानस की चौपाई स्मृति हो आई और उस ओर उन्होंने कदम बढाए। लेकिन पाकिस्तान की हरकत जारी रही, पाकिस्तानी गृहमंत्री ने अपना नाम लिए बगैर संबोधन में कश्मीर में कथित सैन्य अत्याचार का जिक्र कर बैठक का एजेंडा बहुराष्ट्रीय से द्विराष्ट्रीय किया। तब राजनाथ सिंह ने सबक सिखाना शुरु किया कि आतंकवाद को महिमामंडित करना और संरक्षण देना बंद किया जाना चाहिए। एक देश का आंतकी दूसरे देश का शहीद नहीं हो सकता। अच्छे और बुरे आंतकवाद में भेद खत्म किया जाना चाहिए। उन्होंने आपराधिक मामलों में आपसी सहयोग के बारे में दक्षेस समझौते को उन देशों द्वारा अनुमोदित करने की अपील की जिन्होंने इसे अभी नहीं किया है। उन्होंने दक्षेस देशों के बीच आतंकवाद निगरानी डेस्क और मादक पदार्श अपराध निगरानी डेस्क पर सहमति की अनिवार्यता जताई। निराधार बाते और बेमानी आरोप किसी समस्या का समाधान नही हो सकते, किसी भी समस्या का समाधान निकालने की आपसी बातचीत में ज्यादा गुंजाइश होती है।
राजनाथ सिंह ने जो कुछ पाकिस्तान में किया उसके बारे में भारतीय संसद को सिलसिलेवार अवगत कराया। निःसंदेह राजनाथ सिंह ने भारतीय अस्मिता का खासा ख्याल रखा। भारतीय गौरव बढाया, शायद तभी तो पाकिस्तानी मीडिया में उनके उस भाषण को ब्लैक आउट किया गया जिसमें वह खरी-खरी कह रहे थे। उन्होंने इस पूरे मसले को पार्टी और सरकार से ऊपर उठकर देखा और पेश किया। तभी वह कह सके कि भारत के प्रधानमंत्री चाहे किसी भी दल के रहे हों उन्होने पाकिस्तान से संबंध सुधारने की पहल की। पड़ोसी से रिश्ते बेहतर बनाने के लिए जो कर सकते थे सबने किया। सभी प्रधानमंत्रियों ने दरियादिली दिखाई पाकिस्तान के स्टैंड को सिर्फ यह कह कर रेखांकित कर गये कि परमात्मा सबको सद्बुद्धि दे।
आमतौर पर भारतीय राजनीति विरोध के लिए विरोध का अध्याय है। सत्ता और विपक्ष के चेहरे एक ही मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष होते ही बदल जाते हैं। उनके स्टैंड उलट जाते हैं। पर, यह पाकिस्तान की निरंतर ज्यादती और भारतीय भावनाओं से लगातार खिलवाड़ का ही तकाजा है कि राजनाथ सिंह के हर्फ ब हर्फ से पार्टी से ऊपर उठकर कांग्रेस, सपा, बसपा और वामदल और यहां तक कि नेशनल कांफ्रेंस के सांसदों ने संसद की एक अलग रुपरेखा स्थापित की। यह दृश्य बहुतों ने शायद पहली बार देखा होगा। जिन्होंने पहली बार देखा है और जिन्होंने पहले भी देखा है उन सबकी अपने सांसदों से यही उम्मीद होनी चाहिए कि यह वर्तमान इतिहास न बने पर बार बार दोहराया जाय।