शठे शाठ्यं समाचरेत्...

Update:2016-08-15 10:26 IST
अपने गुरुकुल में गुरु द्रोण ने एक बार पांडव और कौरव की धनुर्विद्या परीक्षा के दौरान सबको बुलाया। योग्यता की परीक्षा लेने के लिए पेड़ पर चिड़िया का खिलौना बैठाया और कहा कि उसकी आंख पर निशाना लगाओ। निशाना लगाने से पहले सबसे एक सवाल पूछा कि निशाना लगाने से पहले बताओ कि किसको क्या दिख रहा है। किसी ने पेड़, किसी ने पर्वत, किसी ने पेड सहित पर्वत और किसी ने शाख, डाल बताया। इकलौते अर्जुन ने गुरुद्रोण से कहा कि मुझे सिर्फ चिड़िया की आंख दिख रही है। नरेंद्र मोदी भले ही गुरुकुल में नहीं रहे हैं पर लक्ष्य को भेदने और साधने में कुछ इसी तर्ज पर काम करते हैं। यही वजह है कि जब बुरहान वानी की एनकाउंटर के बाद कश्मीर की अस्थिर स्थिति को लेकर जब सर्वदलीय बैठक होती है तो वह तमाम मुद्दों के साथ ही पाक अधिकृत कश्मीर का नाम लेना नहीं भूलते हैं।
यही वजह है कि पाकिस्तान जब भारत के साथ आतंक का खेल खेल रहा हो तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह बड़ा बयान देते हैं। पीएम मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि, ‘ पाकिस्‍तान अधि‍कृत कश्‍मीर (पीओके) भारत का अभि‍न्न हिस्‍सा है। पीएम मोदी ने दो टूक शब्दो में कह दिया कि 'पाकिस्‍तान अधिकृत कश्‍मीर जम्‍मू-कश्‍मीर का अभिन्‍न हिस्‍सा है। कश्‍मीर मसला बिना पीओके के लोगों को शामिल किए हल नहीं किया जा सकता।' यही नहीं, पीएम ने कहा कि पीओके के वो लोग जो दूसरी जगह रह रहे हैं, उन्‍हें भी वार्ता में शामिल किया जाना जरूरी है। गौरतलब है इससे पहले गृह राजनाथ सिंह ने लोकसभा में कश्मीर हिंसा पर चर्चा के दौरान कहा था कि पड़ोसी पाकिस्तान से अब बात पाक अधि‍कृत कश्मीर पर ही होगी। उन्होंने यह भी कहा था कि कश्मीर मसले पर सरकार सभी पक्षों से बात करने को तैयार है।
पाकिस्तान भारत के साथ करीब तीन दशक से आतंक का खेल खेल रहा है। कश्मीर पाकिस्तान की चौसर है, उसने इस चौसर पर कश्मीरियों को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया पर बाद में उसने किराए के आतंकी और अपनी आईएसआई के ट्रेंड आंतकवादियों का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया। कश्मीर का आवाम जब वहां के आतंकवाद की असलियत से रूबरू हो गया तो पाकिस्तान ने अपने गुर्गे भेजने शुरु कर दिए। दरअसल इस पूरे आतंकवाद से कश्मीर और कश्मीरियत का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। कश्मीर के लोग आर्थिक रुप से टूट गये। और सामाजिक रुप से बिखरने के बाद इस आतंक से तौबा करने लगे। यही वजह थी कि कश्मीर में कई साल तक शांति बहाल हुई और लोकतंत्र सफल हुआ।
नरेंद्र मोदी यह जानते हैं कि पाकिस्तान का इलाज आज की तारीख मे यह नहीं कि उससे युद्ध हो। अब दो नाभिकीय आयुध सम्पन्न देश किसी भी पूर्णस्तरीय युद्ध को झेल ही नहीं सकते। पूर्णकालिक और पूर्ण स्तरीय युद्ध की संभावना अब दो देशों के बीच न्यून सी हो गयी है। अब देश किसी भी स्तर पर युद्ध करने के बजाय एक दूसरे पर आर्थिक तौर पर आधिपत्य जमाने में अपनी सारी कूटनीतिक कौशल का इस्तेमाल करते है। अब युद्ध मैदान में नहीं हथियारों के प्रदर्शन, कूटनीति और राजनयिक तौर पर लडा जाता है। जब चीन और पाकिस्तान की निकटता बढ़ने लगी तो मोदी के लिए यह अनिवार्य हो गया कि पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया जाय। उसे घरेलू मोर्चे पर इस कदर उलझा दिया जाय कि उसे भारत को लेकर अपने दुस्साहस के लिए समय ही न मिले। उसे भारत के बारे में सोचने और भारत में आतंक को हवा देने का वक्त न मिले। किसी भी आदमी के दो ही हाथ होते हैं। हर किसी के पास दिन के 24 ही घंटे होते हैं, चाहे वह आम आदमी हो या किसी देश का प्रधानमंत्री। उसे बस इतना तय करना होता है कि वह उसका इस्तेमाल कैसे करे।
जब किसी के घर में आग लगी होती है, तो वह दूसरे की आंच से हाथ नहीं तापता। पहले अपने घर की आग बुझाता है। नरेंद्र मोदी ने चौसर के इस खेल में अपने दांव से पाकिस्तान को इसी स्थिति में खड़ा कर दिया है। एक सच्चाई यह भी है कि नरेंद्र मोदी का यह स्टैंड अचानक नहीं हुआ है। दंड उनका पहला अस्त्र नहीं है, इसके लिए उन्होंने साम,दाम,भेद और मैत्री सबका इस्तेमाल किया। मैत्री का हाथ तो इस कदर बढाया कि बिना घोषित तौर पर राजनयिक कार्यक्रम में वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की नातिन मेहरुन्निसा की मेंहदी जैसी छोटी से रस्म में पहुंच गये। इस कोशिश में उन्होंने न सिर्फ प्रोटोकाल की परवाह नहीं की बल्कि इस मुद्दे पर उनके कट्टर समर्थकों की नाराजगी उन्हें देश में और देश के बाहर झेलनी पड़ी। भारत के फलक पर मोदी का अविर्भाव जिस तरह से हुआ है और मोदी के व्यक्तित्व और कृतत्व के लिहाज से भी इस पहल को उनके समर्थक भी पचा नहीं पा रहे थे। इस सबकी परवाह किए बिना मोदी ने न सिर्फ इसे निभाया बल्कि इससे पहले भी अपने शपथ ग्रहण समारोह में नवाज शरीफ को न्यौता भी दिया।
मोदी से पहले भी तमाम भारतीय प्रधानमंत्रियों ने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढाया। पर हर शांति की पहल का अंजाम एक नई आशाति के तौर पर उभर कर समाने आया। मोदी ने किसी नई अशांति से बचने के लिए पाकिस्तान के करीब साढे 37 करोड़ हाथ पाकिस्तान की आग बुझाने में लगाने की तैयारी शुरु कर दी है। वही आग जिससे वह आज तक भारत को जलाता आया है। साथ ही पाकिस्तान को यह जता दिया है कि आग अगर लगी तो उसमें जलने वाला कोई भी हो सकता है। आग जाति, धर्म और देश नहीं देखती जलाना उसकी प्रवृति है। आग चाहे जैसी हो वह किसी को न ही पहचानती है, न ही किसी को बख्शती है। पाकिस्तान समेत दुनिया के कई देश अपने फायदे के लिए आतंकवाद को अच्छा और बुरा बताकर उसका अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं। पर वह भूल जाते हैं कि पौराणिक हिंदू मान्यताओँ में भगवान शिव ने एक राक्षस भस्मासुर को वरदान दिया। वरदान की प्राप्ति पर भस्मासुर बहुत खुश हुआ तथा उसने इस वरदान का परीक्षण खुद महादेव पर करने का फैसला किया। देवी पार्वती को पाने के लिए भस्मासुर भगवान शिव को भस्म करना चाहता था। इस प्रयास में, भस्मासुर जैसी ही भगवान शिव के सर पर अपनी तर्जनी रखने जाता है, भगवान शिव गायब हो जाते हैं। इसके बाद, भस्मासुर महादेव का पीछा करने लगता है तथा जहां-कहीं भी महादेव पहुंचते हैं, भस्मासुर उनके पीछे-पीछे वहीं पहुंच जाता था। स्वयं द्वारा उत्पन्न की गई समस्या से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव विष्णु के निवास स्थान पर पहुंचते हैं। ऐसे में महादेव को कई महीने तक छिपकर रहना पड़ता है।
मोदी ने अभी पाकिस्तान को यह बताया और जताया है कि उसकी स्थिति भस्मासुर जैसी हो सकती है। अगर पाकिस्तान अभी भी नहीं चेता तो उसे उसकी आग जला देगी। भारत के कश्मीर की आग से कहीं ज्यादा तपिश पाक अधिकृत कश्मीर में है। ऐसे में पाकिस्तान का हाथ जलना लाजमी है। पाकिस्तान के पूर्ववर्ती शासको में जुल्फिकार अली भुट्टो से लेकर बेनजीर भुट्टो तक और हालिया तौर पर परवेज मुशर्रफ बहुत आक्रामक रहे है। आर्मी उनके साथ थी पर बाद में उनका क्या हश्र हुआ है। उन्हें सिर्फ भुट्टो से लेकर परवेज मुशर्रफ तक की आक्रामकता से ही नहीं, उनकी गति से भी सबक लेना होगा।
मोदी का यह स्टैंड किसी भावातिरेक या आनन फानन का निर्णय नहीं है। यह एक सोची समझी रणनीति है। तभी तो एक सुर से मोदी के बयान के बाद और उससे पहले भी पूरी सरकार अब कश्मीर के साथ पाक अधिकृत कश्मीर की बात कर रही है। देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने तो लोकसभा में बयान दिया कि, 'मैं पाकिस्तान गया था और वहां 30 से अधि‍क प्रतिनिधि‍मंडल से मिला, मुझे लगता है कि कश्मीर मुद्दे पर सबसे बात होनी चाहिए। यह कहना गलत है कि कश्मीर में लगातार कर्फ्यू लगाया गया. कश्मीर में आज जो भी हो रहा है वह पाकिस्तान प्रायोजित है। पाकिस्तान से अब जब भी बात होगी तो कश्मीर पर नहीं पाक अधि‍कृत कश्मीर पर होगी।' वहीं पीएमओ में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने अगली बार पीओके का संकल्प लेकर यह जता दिया कि देश में अब मूड क्या है और सरकार मूड बनाना क्या चाहती है। तभी तो मंत्री जितेंद्र सिंह ने पीएम मोदी के बयान को एक बार फिर याद दिलाकर कहा कि पीएम के आह्वान के बाद अब देशवासियों को भी गुलाम कश्मीर को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराने के लिए संकल्प लेना चाहिए, ताकि जल्द ही पीओके के कोटली और मुजफ्फराबाद में तिरंगा फहराया जा सके। उन्होंने कहा कि तिरंगा यात्रा का सही समापन पीओके में तिरंगा लहराकर होगा। लालकिले से अपने संबोधन में मोदी ने बलूचिस्तान समेत पाकिस्तान अधिकृत इलाकों में उनके प्रति लगाव का अहसास कराया है, उसका जिक्र करके बता दिया है कि अब भारत की चिंता कश्मीर बचाने के नहीं उसकी नज़र बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर पर है, जहां राज करना पाकिस्तान के लिए काफी टेढी खीर साबित हो रहा है।
यानी मोदी ने अब लोहे से लोहा काटने का मन बना लिया है। जिस भाषा में सवाल है उसी भाषा में जवाब देने का मन बना लिया है। क्योंकि गीता में प्रभु अर्जुन से कहते हैं कि धर्म का आचरण उन्हीं लोगों के साथ किया जाता है जो धर्म का पालन करे , उसके साथ नहीं जो धर्म को मानता ही नहीं है और पंचतंत्र में भी कहा गया है कि शठे शाठ्यं समाचरेत्।
 

 

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