पाकिस्तान की दुम सीधी नहीं होती...

Update:2016-09-29 10:59 IST
किसी भी राष्ट्र के पास अपने पड़ोसी तय करने का विकल्प नहीं होता है, जबकि मित्र तय करने का विकल्प हर राष्ट्र के पास होता है। इसी विकल्प हीनता की वजह से ही शायद वैदेशिक राजनय में पड़ोसी को मित्र बनाने का चलन है। पर यह हर जगह हर देश के साथ सुहाता नहीं है। सार्क देशों के बीच अगर पड़ोसी के मित्र होने के रिश्तों की पड़ताल करें तो यह तथ्य सत्य साबित हो उठता है कि पाकिस्तान इकलौता ऐसा देश है जिसकी वजह कि पड़ोसी के मित्र बनाने की परंपरा को पलीता लगता है।
यह दुर्भाग्य है कि जब देश किसी देश को पिछड़ेपन, भूख, गरीबी और बिजली सड़क पानी के संकट से निपटना हो तो वह जाति और धर्म की अस्मिता का सवाल खड़ा कर इससे मुंह फेर लेने का एक नया प्रपंच रचता हो। 18 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान की एक तिहाई आबादी गरीबी में जीने को अभिशप्त है। गरीबी का यह आंकडा केवल भोजन की न्यूनतम कैलोरी पर आधारित है। पाकिस्तानी अखबार डान ने वहां के मंत्री के हवाले से इस तथ्य का खुलासा किया। पाकिस्तान के कई इलाके ऐसे हैं जहां सड़क से सरपट पहुचना असंभव है। पाकिस्तान के बहुत बड़े क्षेत्र में बीस-बीस घंटे बिजली नहीं आती। इसके चलते उद्योग धंधे चौपट हो रहे हैं। उद्योगों की कोयले पर निर्भरता के चलते उत्पादन लागत दोगुनी हो जाएगी। अगर मदरसों की तालीम को निकाल दिया जाय तो पाकिस्तान 30 फीसदी बच्चों को भी अच्छी शिक्षा नहीं दे पाता है। 50 फीसदी से अधिक पाकिस्तानी साफ पानी से वंचित है। पाकिस्तान के सैनिकों की छावनी में पानी का प्रबंध कई क्षेत्रो में चीन करता है। बलूचिस्तान, गिलगित और बाल्टिस्तान दुनिया भर में मानवाधिकार उल्लघंन के लिए चिंता का सबब बना हुआ है।  किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए अनिवार्य और अपरिहार्य तत्वों की उपेक्षा करना उचित नहीं है। बावजूद इसके पाकिस्तान अपने गठन से आजतक इन्हें लगातार हाशिये पर रखते हुए धर्म के मार्ग पर आतंकी फसल तैयार कर दुनिया के कई देशों के लिए सरदर्द बना हुआ है।
भारत के लिए तो पाकिस्तान इतनी बड़ी दिक्कत है कि हर पाकिस्तानी सीमा से कोई न कोई अप्रिय खबर आती। कश्मीर जहां के लोगों ने शिक्षा के केंद्र के रुप में दुनिया में अपना नाम कमाने वाले तक्षशिला विश्वविद्यालय की डिजाइन तैयार की थी। विश्वविद्यालय के कुलपति कश्मीर के भट्ट ब्राह्मण हुआ करते थे।  कश्मीर से कुमारिल भट्ट की परंपरा पलती और पनपती है। यह भारत के प्रमुख शैक्षिक क्षेत्र था। यह मंत्र तंत्र औरवेद की शिक्षा और दीक्षा का केंद्र था। 1815 में कश्मीर में 22 राज्य थे। 16 राजघराने ठाकुरों के थे और 6 मुस्लिम के। ठाकुर राजाओं ने मुगलों के पक्ष में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लडाई लड़ी थी। बहुत बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने जम्मू-कश्मीर राज्य का एकीकरण किया। इसी कश्मीर को पाकिस्तान ने अपनी आंख की किरकिरी बना रखा है। पाकिस्तान की नापाक हरकतों चलते तकरीबन 22 हजार हमारे सैनिक सीमा पर और युद्धों में शहीद हो चुके हैं।
पाकिस्तान भारत के साथ एक ऐसी मनोवृत्ति और मनोविकार का शिकार है जिसमें कोई आदमी भगवान से अपनी एक आंख फोड़कर पड़ोसी के दोनों आंख फूटने की कामना करता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि इस तरह की मनोवृत्ति और मनोविकार रखने वाली सरकारें आखिर पाकिस्तान में कैसे पनप पाती हैं। वहां के लोग बिजली, सड़क, पानी , दवाई, पढाई, कमाई की जगह भारत विरोध के सरकारी रुख से क्यों और कैसे खुश हो जाते है। क्या इस तरह की धारणा उनकी आम जरुरतों को पूरा न हो पाने की वेदना को तुष्ट करने में कामयाब होती हैं। क्यों नहीं आंतकवाद की फसल को खाद पानी देने के पाकिस्तानी सरकार के रवैये के खिलाफ लोग सड़क पर उतरते हैं। क्यों वहां दाउद इब्राहिम के पनाह पाने पर कोई छोटा या बडा ग्रुप विरोध के प्रतीक स्वर भी बुलंद नहीं करता है। मुंबई बमकांड का यह आरोप क्यों पाकिस्तान का नेशनल हीरो बन बैठता है। मतलब साफ है कि पाकिस्तान के आवाम को कुछ न मिले और भारत का नुकसान हो तो काम चल सकता है। यह धारणा आखिर क्यों है. अगर पाकिस्तान के लोगों और सरकारो में भारत विरोध के स्वर सिर्फ इसलिए जगह पा सके हैं कि उन्हें भारत से विषम परिस्थितियो में अलग होना पड़ा । उन्हें भारत में अपने प्रियजनों को छोडऩा पडा तो यह स्थिति भारत मे तकरीबन उतने ही लोगों को जीनी पड़ी थी जितनी पाकिस्तान में। लेकिन भारत के लोगों में गुस्से का यह अस्थाई भाव उतने घृषास्पद स्वरुप में नहीं है जितना पाकिस्तान में है।
भारत सिंधु जल समझौते के तहत पाकिस्तान के एक बहुत बड़े इलाके को रेगिस्तान होने से बचा रहा है। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की 17 लाख एकड़ जमीन में फसल सिंध की पानी की वजह से होती है। 11.2 दो लाख किलोमीटर में पसरे सिंध नदी का सिर्फ 47 फीसदी हिस्सा ही पाकिस्तान मे है। मुजफ्फराबाद में 969 मेगावाट की बिजली सिंधु के जल से नीलम झेलम परियोजना में बनती है।  सिंधु समेत सतलज, झेलम, व्यास, चेनाब, रावी जैसी इन नदियों पर बिजली बनाने की अनुमति दी जाए तो 24 हजार मेगावाट बिजली सालाना उत्पादन हो सकता है और 50 हजार करोड़ की आय हो सकती है।
भारत ने सिंधु के पानी के 80 फीसदी हिस्से का इस्तेमाल का हक पाकिस्तान को दे रखा है। ताशकंद समझौते के तहत लाल बहादुर शास्त्री 1840वर्ग किलोमीटर की जीती जमीन वापस कर आये थे। यह फैसला इतना हृदय विदारक था कि इस पर दस्तखत के बाद लाल बहादुर शास्त्री जीवित भारत नहीं लौट पाए। कहा जाता है कि इस समझौते पर दस्तखत के बाद उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने भी उनसे बात करने से मना कर दिया था। कहा जाता है कि यह एक ऐसा समझौता था जिसमें भारत के हाथ कुछ नहीं लगा था। लडाई जीतने के बाद भी भारत का हाथ रीता रह गया था। पर भारत में जनमानस में अभी भी लालबहादुर शास्त्री पूजनीय, आदर्श और श्रद्धेय है। यह भाव और स्वीकृति बताता है कि भारत का विकास, उदय पाकिस्तान विरोध पर नहीं है। तभी तो यह सच्चाई भी भारत के लोग जानते हैं कि अगर आज पाकिस्तान से सिंधु जल समझौता समाप्त हो जाय तो भी पानी रोकने में अभी 12 साल लग जाएंगे।
वहीं पाकिस्तान में जो भी हो रहा है. और पाकिस्तान जिस तरह आतंक के मार्फत भारत को परेशान कर रहा है वह यह पुष्ट करता है कि पाकिस्तान कि सियासी आधार और जनाधार भारत विरोध है। नरेंद्र मोदी जब लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे तो उन्होंने पाकिस्तान को सीमा पर नापाक हरकतें बंद करने और उसे सबक सिखाने की बात कही थी। लेकिन उड़ी पर हमले के बाद जिस तरह वह सत्तापक्ष और विपक्ष के अलग-अलग स्वर का इल्म करा रहे हैं उससे भारत के लोगों के मन में भी गुस्सा भर आया है। सरकार भले ही इसे राजनय की जरुरत मानती हो यह भी सच है कि सर के बदले सर न्याय नहीं होता है। यह भी सच है कि युद्ध हर मर्ज की दवा नहीं है. पर इसे कैसे भूला जा सकता है कि जिस भी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के साथ मैत्री के हाथ बढाए उसकी अधोगति हुई। वह छला गया। अटल बिहारी वाजपेयी शांति मिशन लेकर बस से लाहौर गए थे। उन्हें कारगिल झेलना पड़ा। मनमोहन सिंह ने शांति वार्ता शुरु की तो पाकिस्तानी आतंकियों ने मुंबई में हमला हो गया। पाकिस्तान की ऐसी शैतान हरकतें भारी पड़ी है। दिलचस्प यह कि जब जब पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की कोशिश की गयी तब तब पाकिस्तान ने ऐसा ही किया है। इंदिरागांधी को छोड़कर पाकिस्तान से निपटने में ठीक से कोई प्रधानमंत्री सफल नही हुआ है। अब जब पाक से मैत्री के साऱे नस्खे आजमा चके हैं तब उसके नापाक मंसूबों से निपटने के लिए वह अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहने सिंह से सबक लेते हैं या इंदिरा गांधी के अध्याय को कुछ और बढाते हैं यह देखने का समय है ।
 

 

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