युग बदला, तुम बदलो अपनी निष्ठाएं
देखो दूर दिशा में प्राची लाल हो गयी
तम की सकल संपदा भी कंगाल हो गयी।
लोकतंत्र में जनता ने बदलाव की जो इबारत लिखी है वह कुछ यही कहानी कह रही है। यही संदेश दे रही है। वह यह बता रही है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास में कन्याओं के पांव पखारे जा रहे हैं। नवरात्र का फलाहार हो रहा है। मानसरोवर यात्रा की सब्सिडी को 50 हजार से बढ़ाकर 1 लाख कर दिया है। नवरात्र का फलाहार हो रहा है। नवरात्रि और रामनवमी के मौके पर 24 घंटे बिजली का दिया जाना। मुख्यमंत्री का गृहप्रवेश खांटी धार्मिक अनुष्ठान के मार्फत हो रहा है। आठ घंटे के काम के समय में ही लंच और ब्रंच करने वाले हुक्मरान कभी हफ्तों, महीनों और कई बार साल-साल भर तक फाइलों पर कुंडली मारकर बैठे रहते थे। अब उन्हें ही देर रात तक काम पर लगे रहना पड़ता है। मुख्यमंत्री अपने कार्यालय ठीक समय पर पहुंच जा रहे हैं। मुख्यमंत्री का कामकाज सरकारी आवास 5 कालीदास की जगह सरकारी दफ्तर से हो रहा है। जबकि मायावती और अखिलेश यादव कैबिनेट की बैठकों को छोड़ दिया जाय तो अपने सरकारी दफ्तर में पांच साल में सौ दिन भी नहीं गये होंगे।
किसी भी सरकार के बदलाव के साथ ही तबादलों की लंबी चौड़ी फेहरिस्त का काल अब गुजरे जमाने की बात हो गया है। जाति, धर्म और इलाके विशेष के मद्देनज़र अफसरों को मापने का पैमाना खत्म हो गया है। ये कुछ छोटे-छोटे ऐसे बदलाव हैं जो सत्ता के करीब रहने के अभ्यस्त लोगों को नहीं पच रहे हैं। उनके गले नहीं उतर रहे हैं। वे अपनी निष्ठाएं तम की सकल संपदा के कंगाल हो जाने के बाद भी बदलने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। इनमें जो कुछ परिवर्तन दिख भी रहा है वह इतना कास्मेटिक और वर्चुअल है कि उस पर यकीन करना नए बदलाव के ध्वज धारकों के लिए आसान नहीं है। दरअसल, इस बदलाव की पृष्ठभूमि 14 सालों से लिखी और दिखी ही नहीं थी पर यह विस्मृत नहीं करना चाहिए कि भगवान राम का वनवास भी 14 साल बाद खत्म हो गया था। अयोध्यापुरी के लोगों को अपने राजाराम के अप्रतिम रामराज्य का आनंद मिला था।
ऐसे में यह मान लेना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में भाई-भतीजावाद, जातिवाद, भ्रष्टाचार और काम न करने की प्रवृति और प्रकृति का 14 साल बाद पराभव हो गया है। प्रायः हो ही जाता है। अनीति और नीति के युद्ध में नीति की विजय का कालखंड, धर्म और अधर्म के युद्ध में धर्म की विजय का कालखंड, चारो ओर लहरा रही अब तक सियासी तौर अस्पृश्य भगवा पताकाएं इसे पुष्ट करती हैं। यह पुष्टि जनादेश से भी होती है क्योंकि उत्तर प्रदेश की जनता ने नरेंद्र मोदी को 325 विधायकों का प्रचंड बहुमत दिया है। अपने नाम और काम पर लड़े चुनाव और उसके परिणाम तथा पैमाने के बाद मोदी ने योगी को चुना। इसकी जड़ें हमारी धार्मिक परंपराओं में निहित हैं। बीते लोकसभा चुनाव से लगातार यह बताया जा रहा है कि हमारी आबादी का दो तिहाई युवा हैं। ऐसे में यह साफ है कि अथाह धार्मिक परंपराओं वाला जनादेश लिखने में हमारी युवा पीढ़ी ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है। उसे अपनी परंपराओं, संस्कृति और रीति रिवाज पर इतना गर्व है कि वह उस ओर लौटना चाहती है। लौट रही है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि बीते लोकसभा से लेकर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव तक में आया प्रचंड जनादेश बिना युवाओं के मतदान के संभव नहीं है।
यह बदलाव बताता है कि अब धर्मनिरपेक्षता की व्यवहारिकता और सैंद्धांतिक परिभाषाओं और मान्यताओं दोनों से आगे निकलने का समय है। हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा, दकियानूसी और प्रतिगामी नहीं है। धर्मनिरपेक्षता के अलमबरदारों ने धर्मनिरपेक्षता समेत इन सबको बेमानी और समाज के लिए प्रतिगामी करार दिया था। विपक्ष ने जो भी मुद्दे उठाए उसे खारिज करते हुए यह जनादेश अपनी पुरातन परंपराओं और जड़ों की ओर लौटने का है। तुष्टीकरण से ऊपर उठने का जनादेश है। परिवर्तन के पैमाने और परिणाम बताते हैं कि साठ साल से जो कुछ चल रहा था और हमारे नेता चला रहे थे वह सब बेमानी हो गया है।
धर्मनिरपेक्षता और तुष्टीकरण की आड़ में जिस समाज को हाशिये पर ड़ाल दिया गया था, अल्पसंख्यक- बहुसंख्यक में जो विभाजक रेखा खींची गयी थी जनादेश ने सबको मिटाने की बात कह दी है। यह बदलाव है जिसे लोकतंत्र ने लिखा है। उसे बांचने और अमल करने पर अब तक सत्ता की करीबी मशीनरी तैयार नहीं है। लोकतंत्र में जनादेश कई मायनों में संविधान से बड़ा होता है। संविधान में संशोधन की परंपरा और प्रक्रिया है। यह संशोधन करने का हक जनादेश से चुनी गयी संसद को है। सौ से अधिक परिवर्तन हो भी चुके हैं। बावजूद इसके बुद्धि जीवी और वाममार्गी तबका भी जनादेश से आए इन नये परिवर्तनों को अंगीकार करने को तैयार नहीं है। वह जनादेश से इनकार की साजिश कर रहा है। वह जनादेश को पुरातन पंथी, हिंदूवादी, सांप्रदायिक, कट्टर, धर्मांध बता रहा है। इन सभी बदलावों की इबारत मोदी या योगी ने नहीं लिखी है। ।इसकी इबारत जनता ने लिखी है।
योगी को मुख्यमंत्री बनाकर नरेंद्र मोदी ने जता दिया कि लोकसभा में जनता ने उन्हें भारतीय परंपराओं, प्राचीन आस्थाओं, भारतीय संस्कृति के अलमबरदार के रुप में जो समर्थन दी थी उसे वह और प्रखर, गहरा और पुष्ट कर रहे हैं। योगी तक की यात्रा, इस यात्रा में हो रहे परिवर्तन, प्राचीन भारतीय गौरवशाली परंपराओँ का विस्तार हैं, जिसे आजादी के बाद से दक्षिण पंथी बताकर खारिज कर दिया था। वाममार्गी और मध्यमार्गी शक्तियों ने दक्षिणपंथ को दकियानूस और अप्रासंगिक बताकर राज सत्ता और समाज सत्ता से जिस तरह अलग रखा था प्रकृति के नियमों के मुताबिक किसी एक कालखंड के बाद उसे जगह मिलनी ही थी। यह वही कालखंड है। वाममार्ग और मध्यमार्ग के बाद दक्षिणपंथ की स्थापना और वैचारिक प्रतिबद्धता को मिला प्रचंड जनादेश यह बताता है कि कालखंड बदलाव का है। अतीत के व्यतीत हो जाने का है। पर इसे समझने को न तो विपक्ष तैयार है, न सत्ताकामी ताकतें।
सत्ताकामी ताकतें बदलाव को क्षणिक मान रही हैं। उन्हें लग रहा है कि समय बीतने के साथ कामकाज के पुराने तौर तरीके पर ही लौटना होगा। उन्हें नये रास्ते से नए निर्माण की कोई उम्मीद नहीं दिखती है। जबकि विपक्ष इसे सांप्रदायिकता के उफान, ईवीएम के गोलमाल सरीखे चश्मे से देखकर परिवर्तन की तासीर को महसूस करने से दूर भागना चाहता है। जबकि उसे यह मानना चाहिए कि अब सत्ता और समाज में विमर्श के प्रसंग और संदर्भ पूरी तरह पलट गये हैं। जनता का मन पुराने प्रसंग और संदर्भ से मुक्ति का अभिलाषी था उसने इन्हें तोड़कर मुक्ति पा ली। उसकी मुक्ति की अभिलाषा, मुक्ति के परिणाम का इस्तेकबाल किया जाना चाहिए क्योंकि परिवर्तन की इस प्रक्रिया ने सुदूर फैली तम की सकल संपदा को लोकतंत्र के संदर्भ में फिलहाल नष्ट कर दिया है।